कहानी ‘दंगल’ के असली नायक महावीर सिंह फोगाट की, जिन्होंने भारत में महिला कुश्ती की तस्वीर बदल दी

गीता और बबीता के पिता और कोच होने के साथ-साथ भारतीय महिला कुश्ती के दिग्गज महावीर सिंह फोगाट अपनी भतीजी विनेश के भी कोच हैं।

11 मिनटद्वारा रौशन प्रकाश वर्मा
Mahavir Singh Phogat.
(Geeta Phogat / Instagram)

महावीर सिंह फोगाट ने कभी भी बतौर पहलवान भारत का प्रतिनिधित्व नहीं किया और ना ही इस खेल में एक भी राष्ट्रीय स्तर का पदक हासिल किया है। हालांकि, भारतीय कुश्ती में बहुत कम नाम ही ऐसे हैं जिन्हें महावीर के जितनी प्रतिष्ठा मिलती है।

एक कोच के रूप में महावीर सिंह फोगाट ने अपनी बेटियों गीता फोगाट, बबीता, रितु फोगाट और संगीता फोगाट के अलावा अपनी भतीजी विनेश फोगाट और प्रियंका फोगाट (जिन्हें वे अपनी बेटियों की तरह ही मानते हैं) को बेहतरीन ट्रेनिंग देकर भारतीय महिला कुश्ती को हमेशा के लिए बदल दिया।

उनके इस कारनामे ने बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म दंगल को भी एक बेहतरीन कहानी दी, जिसमें सुपरस्टार आमिर खान ने शानदार अभिनय किया है।

सुप्रसिद्ध फोगाट बहनों में सबसे बड़ी गीता फोगाट ने ओलंपिक (लंदन 2012) के लिए क्वालीफाई करने और राष्ट्रमंडल खेलों (नई दिल्ली 2010) में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा है।

वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान हैं। वहीं, बबीता भी राष्ट्रमंडल खेलों (ग्लासगो 2014) की पूर्व चैंपियन रह चुकी हैं।

गीता और बबीता दोनों ने ही कुश्ती की विश्व चैंपियनशिप प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता है, लेकिन विनेश फोगाट को कई विश्व चैंपियनशिप पदक (साल 2019 और साल 2022) हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बनने का गौरव प्राप्त है।

तीन बार राष्ट्रमंडल खेलों की चैंपियन बनकर रिकॉर्ड बनाने वाली विनेश ने जकार्ता 2018 एशियाई खेलों में भी अपना दबदबा क़ायम रखते हुए ख़िताब़ अपने नाम किया था।

इस बीच, रितु और प्रियंका दोनों ने भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय पदक जीते हैं, जबकि संगीता ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है और वह राष्ट्रीय स्तर की पदक विजेता भी रह चुकीं हैं।

एक कोच के रूप में महावीर के उपलब्धियों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है।

साल 2000 में, जिस समय महावीर सिंह फोगाट ने अपनी बेटियों को पहलवानी के लिए प्रशिक्षित करने का फैसला लिया उस समय भारत में कुश्ती एक पुरुष-प्रधान खेल हुआ करता था। इसके अलावा, जिस राज्य से (हरियाणा) फोगाट परिवार का संबंध है वहां महिलाओं के अधिकारों की बात करना अभी भी बहुत बड़ी और मुश्किल बात है।

महावीर सिंह फोगाट कहां से हैं?

महावीर सिंह फोगाट का जन्म हरियाणा के भिवानी जिले के बलाली गांव में हुआ था। उनके पिता मान सिंह एक किसान थे जबकि उनकी मां एक गृहिणी थीं। महावीर पांच भाई थे। विनेश और प्रियंका उनके सबसे छोटे भाई राजपाल की बेटियां हैं।

दिलचस्प बात ये है कि महावीर के पिता मान सिंह भी अपने समय के एक सम्मानित स्थानीय पहलवान थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने क्षेत्रीय दंगल प्रतियोगिताओं में लीला राम से भी दो-दो हाथ किया था।

लीला राम उनके पड़ोसी गांव के रहने वाले थे। आपको बता दें कि लीला राम पहले भारतीय पहलवान थे जिन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया था। उन्होंने कार्डिफ 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में यह उपलब्धि अपने नाम की थी।

शुरुआती दौर में महावीर को कुश्ती नहीं बल्कि कबड्डी खेलना ज़्यादा पसंद था। पांचवीं कक्षा तक, महावीर फोगाट एक प्रखर छात्र भी थे लेकिन वक़्त गुज़रने के साथ ही पढ़ाई में उनकी दिलचस्पी कम होती चली गई और उनके जीवन में खेल ने एक अहम हिस्सा ले लिया।

महावीर सिंह फोगाट, कबड्डी के जिला स्तरीय प्रतियोगिताओं में अपनी स्कूल टीम के स्टार रेडर हुआ करते थे। कबड्डी में अपनी शानदार प्रतिभा को लेकर वे आस-पड़ोस में काफी मशहूर थे। सौरभ दुग्गल द्वारा रचित महावीर सिंह फोगाट की जीवनी अखाड़ा में, महावीर ने स्वीकार किया है कि शानदार कबड्डी खिलाड़ी होने के कारण उन्हें स्कूल और घर पर कई विशेषाधिकर प्राप्त थे।

जब घर के काम करने की मदद करने की बात आती है, तो युवा कबड्डी स्टार को उनकी मां की तरफ से छूट नहीं थी क्योंकि उनकी मां अनुशासन को लेकर काफ़ी सख़्त थीं। शायद अनुशासन के इसी गुण के कारण बाद में महावीर की ख्याति बतौर कोच स्थापित हुई है।

महावीर के द्वारा सातवीं की परीक्षा मुश्किल से पास करने के बाद उनके परिवार ने सोचा कि वह कबड्डी खेलने और दोस्तों के साथ घूमने में बहुत अधिक समय बिता रहे हैं। अपने शिक्षकों की सोच के मुताबिक महावीर को उनके बड़े भाई राजिंदर के साथ रहने के लिए राजस्थान के चुरू जिले के हनुसर जिले में भेजा गया। उनके भाई वहां स्कूल शिक्षक के रूप में कार्यरत थे।

हालांकि, उनकी शिक्षा में कोई सुधार नहीं हुआ, लेकिन राजस्थान में महावीर का समय महत्वपूर्ण साबित हुआ क्योंकि उन्होंने कुश्ती को गंभीरता से लिया और दंगलों में भाग लेना शुरू कर दिया।

दंगल उत्तर भारत में काफी लोकप्रिय है और स्थानीय रूप से गांव और जिला स्तर पर प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। जहां पहलवान मुकाबलों को जीतने के बाद इनाम स्वरूप पैसे हासिल करते हैं।

महावीर एक साल बाद भिवानी लौटे और अपनी कुश्ती जारी रखी। पढ़ाई में ध्यान नहीं देने के कारण उन्हें दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में असफल होना पड़ा। उन्होंने इस परीक्षा को दोबारा देने का फ़ैसला किया। अपने परिवार के मदद के लिए सरकारी नौकरी पाना उनका एक मुख्य लक्ष्य था और महावीर ने इस लक्ष्य को खेल कोटे के माध्यम से पूरा करने का फ़ैसला किया।

महावीर सिंह फोगाट का कुश्ती करियर

अपने माता-पिता को राज़ी करने के बाद महावीर फोगाट ने पहलवान के रूप में प्रशिक्षण लेने के लिए दिल्ली में मास्टर चंदगी राम के प्रसिद्ध अखाड़े में दाखिला लिया। अगले तीन सालों तक यही उनका घर था।

साल 1970 के एशियाई खेलों में पुरुषों के 100 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाले और म्यूनिख में 1972 के ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले चंदगी राम की देखरेख में महावीर ने अपनी कुश्ती के दांव-पेंच सीखे। शायद इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि महावीर एक ऐसी मानसिकता के संपर्क में थे जिसने उनके भविष्य को एक नया और बेहतरीन स्वरूप दिया।

फाइन आर्ट्स के शिक्षक होने के कारण चंदगी राम को 'मास्टर' की उपाधि भी दी गई। वे भारत में महिला कुश्ती के सबसे बड़े अगुवा हैं। उन्होंने साल 1990 के दशक के दौरान अपनी दोनों बेटियों, सोनिका और दीपिका कालीरामन को पुरुष-प्रधान खेल से परिचित कराया - जो उस समय लगभग अकल्पनीय था।

बाद में, सोनिका ने प्रतिष्ठित भारत केसरी खिताब हासिल किया और वो यह पुरस्कार पाने वाली देश की पहली महिला पहलवान बनीं।

मास्टर चंदगी राम के अखाड़े में महावीर के कुछ करीबी दोस्त और साथी भारत के लिए प्रतिष्ठित पहलवान बन गए, लेकिन तमाम तरह की प्रतिभा होते हुए भी महावीर अपने लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब नहीं हो सके।

महावीर ने कहा, "मेरी दृष्टि केवल सरकारी नौकरी पाने तक ही सीमित थी, इसलिए मैं एक निश्चित स्तर से आगे नहीं जा सका। प्रशिक्षण में, हम सभी एक समान स्तर पर थे। अगर मैं भी उस लक्ष्य के लिए खेल रहा होता, तो मैं भी एक अंतरराष्ट्रीय पहलवान हो सकता था।"

महावीर ने दंगल सर्किट में अपना अच्छा नाम बनाया और साल 1982 में ट्रायल के माध्यम से हरियाणा राज्य विद्युत बोर्ड (HSEB) में नौकरी हासिल की। उनके भाई कृष्णा भी एचएसईबी के लिए काम करते थे।

एचएसईबी का प्रतिनिधित्व करते हुए, महावीर ने हरियाणा राज्य चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया और महाराष्ट्र में आयोजित 1982 नेशनल गेम्स में राज्य का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि, महावीर को नेशनल चैंपियनशिप की अंक प्रणाली को समझने में काफी वक़्त लगा, क्योंकि महावीर मुख्य रूप से एक दंगल पहलवान थे, जहां केवल एक 'पिन' से ही मुकाबला जीता सकता था।

साल 1983 में, महावीर ने अपना अंतिम आधिकारिक कुश्ती मुकाबला खेला। चंडीगढ़ में एक टूर्नामेंट में 60 किग्रा भार वर्ग के फ़ाइनल में, महावीर अपने प्रतिद्वंद्वी पर पूरी तरह से हावी थे, लेकिन अंतिम पलों में उनकी पकड़ कमजोर हो गई और वे मुक़ाबला फॉल से हार गए। इस तरह की हार ने उनका मनोबल तोड़ दिया। उन्होंने जल्द ही एचएसईबी की नौकरी छोड़ दी।

इसके बाद महावीर को खेल कोटे पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में नौकरी मिल गई, लेकिन कुछ दिनों के बाद उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। उन्होंने दिल्ली में कुछ दोस्तों के साथ एक रियल एस्टेट व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया और अपने पिता से 16,000 रुपये कर्ज लेकर एक सफल व्यापार की नींव रखी।

इसने महावीर को आर्थिक रूप से मजबूत बना दिया। यहां तक कि उन्होंने जल्दी ही अपनी पसंदीदा रॉयल एनफील्ड बाइक भी खरीद ली। महावीर ने मज़ाकिया लहज़े में कहा, "यह मेरे व्यक्तित्व पर काफी अच्छी लगती है।"

साल 1985 में, महावीर सिंह फोगाट ने दया कौर से शादी की और गीता के जन्म के साथ ही यह जोड़ी पहली बार 1988 में माता-पिता बने। उसी वर्ष, महावीर ने भिवानी जाने और अपने परिवार के साथ वक़्त बिताने के ख़्याल से दिल्ली में अपने व्यवसाय को ख़त्म किर दिया।

बबीता का जन्म एक साल बाद हुआ था, जबकि रितु और संगीता का जन्म क्रमशः 1994 और 1998 में हुआ था। महावीर के सबसे छोटे बेटे दुष्यंत का जन्म साल 2003 में हुआ था और वह भी एक पहलवान ही थे।

महावीर ने कुछ समय के लिए राजनीति में हाथ आजमाया और खुद किसी पद पर न रहने के बावजूद, अपनी पत्नी और छोटे भाई सज्जन को गांव के सरपंच चुनाव में लगातार जीत दिलाई।

कोच के रूप में कुश्ती में वापसी

साल 2000 में सिडनी ओलंपिक से पहले, हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने यह घोषणा कर दी कि जो भी हरियाणवी एथलीट ओलंपिक में स्वर्ण पदक लेकर आएगा उसे राज्य सरकार की ओर से 1 करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा। रजत और कांस्य पदक विजेताओं के लिए क्रमश: 50 लाख और 25 लाख रुपये की पुरस्कार राशि निर्धारित की गई थी।

इत्तेफ़ाक़ की बात ये थी कि सिडनी 2000 में भारत की ओर से एकमात्र पदक (कांस्य पदक) कर्णम मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन में जीता था, लेकिन फिर भी यह पदक सबसे खास था। पहली बार किसी भारतीय महिला ने ओलंपिक में पदक जीता था।

हरियाणा के भारोत्तोलक राजेश त्यागी से विवाहित होने के कारण, कर्णम मल्लेश्वरी भी राज्य की बहू के रूप में हरियाणा सरकार के कांस्य पदक पुरस्कार के लिए योग्य हो गईं।

इन सारी घटनाओं के बीच महावीर के अंदर कुछ चल रहा था जिसके परिणामस्वरूप जल्द ही, महावीर को अपने घर के पीछे में मिट्टी का गड्ढा खोदते हुए देखा गया।

लोगों ने यह सोचकर इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया कि पूर्व पहलवान महावीर एक बार फिर से खुद की ट्रेनिंग शुरु करने वाले हैं, लेकिन जब उनके मन की बात सामने आई तो इसने ग्रामीणों और परिवार के सदस्यों को पूरी तरह से आश्चर्यचकित कर दिया।

जब महावीर ने 12 वर्षीय गीता, 11 वर्षीय बबीता, और 6 वर्षीय रितु को उस समय कुश्ती के लिए बनाए गए मिट्टी के गड्ढे को दिखाया तो लड़कियों को यह कोई खेलने की चीज़ लगी। लेकिन जल्द ही, महावीर के प्रशिक्षण की ललक और मेहनत ने उनके इरादे स्पष्ट कर दिए।

महावीर सिंह फोगाट ने सिडनी 2000 ओलंपिक के आदर्श वाक्य 'डेयर टू ड्रीम' को काफी गंभीरता से लेते हुए अपनी बेटियों को ओलंपिक चैंपियन बनाने की कोशिश में लग गए थे। ग्रामीणों ने इसे उनका 'पागलपन' करार दिया।

महावीर सिंह फोगाट ने कहा, "यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वे मेरे विचार को समझ नहीं पाए। जितना अधिक उन्होंने [ग्रामीणों] मेरा विरोध किया या मेरा मज़ाक उड़ाया, मैं उतना ही अधिक दृढ़ संकल्पित हो गया।"

"यह केवल कुछ समय पहले की बात है जब लड़कियों ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में पदक जीतकर अपनी योग्यता साबित की। उनकी कड़ी मेहनत ने अब हालात को हमारे पक्ष में कर दिया है और ग्रामीण उनकी उपलब्धियों को अब गर्व की बात मानते हैं।"

महावीर सिंह ग्रामीणों की उपेक्षा और उनकी बातों को नज़रअंदाज़ कर सकते थे, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने परिवार के भीतर से ही आई। उनके पिता मान सिंह ने ही उनका समर्थन करने की बजाय उनकी उपेक्षा की।

लेकिन, महावीर अडिग रहे और अपनी बेटियों को प्रशिक्षण देते रहे। जल्द ही, उनके दृढ़ संकल्प ने उनके भाइयों की सोच को भी बदल दिया और विनेश भी प्रशिक्षण के लिए आने लगीं। इसके बाद महावीर ने घर की महिलाओं को अपने छात्रों की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मदद के लिए भी मनाने में कामयाबी हासिल कर ली।

गीता, बबीता और विनेश की उम्र की कोई अन्य महिला पहलवान नहीं होने के कारण, महावीर उन्हें उनके समान उम्र के चचेरे भाइयों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करवाते थे। इसने लड़कियों को जल्द विकसित किया, और जल्द ही महावीर ने उन्हें दंगल (एक ऐसा अखाड़ा जिससे महिला प्रतियोगियों का अब तक कोई ताल्लुक़ नहीं था) से भी परिचित कराया।

महावीर ने पुराने वक़्त को याद करते हुए कहा, "जब उन्होंने स्थानीय दंगलों में प्रतिस्पर्धा करना शुरू किया, जहां सिर्फ वे ही महिला प्रतियोगी होती थीं, वहां वे न केवल लड़कों से लड़ती थीं बल्कि उन्हें दृढ़ता से हराती भी थीं।"

बेटियों को प्रशिक्षण देने शुरू करने के मात्र दो साल बाद, सबसे बड़ी बहन गीता ने सभी आलोचकों का मुंह बंद करा दिया। उन्होंने रानीपुर में आयोजित 23वीं कैडेट राष्ट्रीय चैंपियनशिप 2022 में स्वर्ण पदक हासिल कर अपने प्रदर्शन से सभी के सवालों का शानदार जवाब दिया।

बाकी की कहानी के लिए, पिछले दो दशकों में फोगाट बहनों के पदक और साल 2016 में महावीर को दिए गए द्रोणाचार्य पुरस्कार की एक झलक ही पर्याप्त होगी।

यहां यह जानना भी आवश्यक है कि महावीर ने यह भी सुनिश्चित किया कि इस प्रक्रिया के दौरान फोगाट बहनों में से कोई भी अपनी पढ़ाई से समझौता न करें, जैसा कि उन्होंने किया था। आपको बता दें कि सभी बहनें स्नातक हैं या वर्तमान में कॉलेज की छात्रा हैं।

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