भारत में कुश्ती का इतिहास: मनोरंजक खेल से लेकर ओलंपिक में पदक तक का सफर

कुश्ती की शुरुआत एक व्यायाम के रूप में हुई, जिसमें पुरुषों को फिट रखने के लिए कुश्ती शुरू हुई। यह शाही परिवारों के लिए मनोरंजन का एक जरिया था, लेकिन अब यह एक पेशेवर खेल के रूप में उभरा है, जो भारत को अंतरराष्ट्रीय शोहरत दिला रहा है।

9 मिनटद्वारा शिखा राजपूत
Bajrang Punia.
(Getty Images)

एक खेल के रूप में पिछले एक दशक से भारत में लगातार कुश्ती की लोकप्रियता बढ़ रही है। कुश्ती लड़ने के लिए चुस्ती-फुर्ती और सही तकनीक के साथ शारीरिक शक्ति का मेल होना जरूरी है।

हालांकि, भारत में कुश्ती का विकास पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि कुश्ती वैश्विक स्तर पर मार्शल आर्ट के रूप में 7000 ईसा पूर्व से अस्तित्व में है।

भारत में कुश्ती प्राचीन काल से मशहूर है। भारत में कुश्ती के प्रारंभिक रूप को 'मल्ल-युद्ध' (हाथों से मुकाबला) के रूप में जाना जाता था और इससे जुड़ी कई कहानियां रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन महाकाव्यों में मिल जाएंगी।

वास्तव में महाभारत में पांच पांडव भाइयों में से दूसरे नंबर के पांडव पुत्र भीम को महाभारत में सबसे बलशाली व्यक्ति माना जाता था और वह एक कुशल पहलवान के रूप में मशहूर थे।

आज के उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में कुश्ती का बड़े स्तर पर अभ्यास किया जाता था। अक्सर राजा और राजकुमार मनोरंजन के लिए कुश्ती प्रतियोगिताओं का आयोजन कराते थे।

यह इस बात से मिलता-जुलता था कि मध्य युग के दौरान कुश्ती का अभ्यास करने वाले सामाजिक शीर्ष वर्ग के साथ दुनिया भर में कुश्ती को किस तरह से देखा जाता था।

उत्तर भारत में देशी भाषाओं में कुश्ती कई नामों से जानी जाती थी- जैसे दंगल, पहलवानी और कुश्ती। स्वदेशी कुश्ती के लिए मिट्टी के मैदान थे, जिन्हें अखाड़ों के रूप में जाना जाता था। ये यूरोपीय संस्करण में लोकप्रिय सॉफ्ट मैट के विपरीत था।

उस वक्त भारत में कुश्ती को फिट रहने के तरीके के रूप में देखा जाता था और बलशाली व्यक्ति को अक्सर बहुत सम्मान दिया जाता था।

दुनियाभर में पेशेवर कुश्ती साल 1830 में सामने आई, जिसमें पहलवानों ने अपनी प्रतिभा दिखाने और अपना दल बनाने के लिए यूरोप का सफर तय किया। इसी युग के आसपास कुश्ती पर फ्रांसीसी प्रभाव की वजह से ग्रीको-रोमन शैली अस्तित्व में आई।

साल 1904 में फ्रीस्टाइल कुश्ती को सेंट लुइस खेलों के ओलंपिक कार्यक्रम और लंदन 1908 खेलों में भी शामिल किया गया था।

इसी समय भारत को अपना पहला कुश्ती पहलवान मिला।

गामा पहलवान की कहानी

भारत के पहले कुश्ती सुपरस्टार गुलाम मोहम्मद बख्श (Ghulam Mohammad Baks) थे, जिन्हें गामा पहलवान या ग्रेट गामा के नाम से भी जाना जाता है।

गामा को उनके चाचा इदा ने कुश्ती में उतारा था, जो खुद एक पहलवान थे। ऐसा माना जाता है कि गामा पहलवान ने दस साल की उम्र में पहली कुश्ती लड़ी थी, उन्हें स्ट्रांगमैन प्रतियोगिता में विजेता घोषित किया गया था। इसके बाद ही एक पहलवान के रूप में अपनी ट्रेनिंग शुरू की थी।

छोटे कद के गामा पहलवान का नाम साल 1895 में काफी चर्चा में था, जब उन्होंने प्रसिद्ध पहलवान रहीम बख्श सुल्तानीवाला (Raheem Baksh Sultaniwala) के साथ एक मुकाबला किया। यह दंगल कई घंटों तक चला। गामा ने अपने से लंबे पहलवान को कड़ी टक्कर दी। आखिर में दोनों में से किसी ने हार नहीं मानी और यह मुकाबला बराबरी पर रहा।

रहीम सुल्तानीवाला भारतीय कुश्ती चैंपियन थे और गामा की उपलब्धि ने उन्हें भारतीय कुश्ती में अगले मुकाम की ओर आगे बढ़ाया।

गामा पहलवान का बेहतरीन पल साल 1910 में आया। लेकिन तब तक वह भारत में सर्वश्रेष्ठ पहलवान के रूप में मशहूर हो चुके थे। वह जॉन बुल विश्व चैंपियनशिप के लिए लंदन के लिए रवाना हुए, लेकिन उनके छोटे कद के कारण उन्हें चैंपियनशिप के नियमानुसार हिस्सा लेने नहीं दिया गया।

महान गामा पहलवान ने खुली चुनौती दी कि वे किसी भी पहलवान को हरा सकते हैं। उस समय के एक लोकप्रिय अमेरिकी पहलवान बेंजामिन रोलर (Benjamin Roller) ने चुनौती को स्वीकार किया और भारतीय पहलवान ने उन्हें दो बार चित करके जवाब दे दिया।

अगले दिन विश्व चैंपियन स्टानिस्लॉस ज़बीस्ज़्को (Stanislaus Zbyszko) के साथ गामा का मुकाबला हुआ। इस मुकाबले में गामा ने कुछ ही देर में ज़बीस्ज़्को को गिरा दिया और ज़बिस्ज़को ने भारतीय पहलवान की ताकत को कम करने के इरादे से रक्षात्मक स्थिति में बने रहे। आखिरकार दो घंटे 35 मिनट की कुश्ती के बाद ज़िबेस्को और गामा के बीच यह मुकाबला ड्रा हो गया।

लंदन दौरे पर गामा पहलवान ने कई जाने-माने पहलवानों को धूल चटाई और जब वे भारत लौटे तो उन्होंने मशहूर पहलवान रहीम सुल्तानीवाला को मात दी। इसके बाद उन्हें भारत के चैंपियन का ताज पहनाया गया।

1947 में बंटवारे के बाद गामा पहलवान पाकिस्तान के लाहौर में बस गए और 1960 में बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई। ऐसा माना जाता है कि अपने लगभग पांच दशक लंबे करियर में उन्होंने एक भी मुकाबला नहीं हारा।

केडी जाधव ने रचा इतिहास

उत्तर भारत के इलाकों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के राज्यों में कुश्ती का रोमांचक खेल जारी रहा। सभी राज्यों ने खेल में अपनी समृद्ध विरासत का आनंद लिया।

जब खाशाबा दादासाहेब जाधव (Khashaba Dadasaheb Jadhav) या केडी जाधव ने हेलसिंकी ओलंपिक में कांस्य पदक जीता, तब उन्हें 1952 में भारत के अगले कुश्ती सुपरस्टार का ताज पहनाया गया।

महाराष्ट्र के रहने वाले केडी जाधव ने 1948 में लंदन में ओलंपिक में डेब्यू किया था। मैट पर कुश्ती ने उन्हें काफी हैरान कर दिया। उन्होंने पहली बार मैट पर कुश्ती की थी। उन्होंने इससे पहले तक सिर्फ मिट्टी पर ही अभ्यास किया था।

चार साल बाद कड़ी ट्रेनिंग के बाद अपने ओलंपिक सफर के लिए पैसे इकट्ठे किए। इसके बाद केडी जाधव ने हेलसिंकी में बैंटमवेट वर्ग में ओलंपिक कांस्य जीतकर इतिहास रच दिया।

आजादी के बाद यह भारत का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक था और अटलांटा 1996 खेलों तक यह रिकॉर्ड कायम रहा। उसके बाद ओलंपिक खेलों में लिएंडर पेस (Leander Paes) ने टेनिस में कांस्य पदक जीता।

केडी जाधव के पदचिन्हों पर आगे बढ़ते हुए भारतीय पहलवान धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम बनने लगे।

1961 के संस्करण में उदय चंद (Udey Chand) विश्व चैंपियनशिप के 67 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान बने।

इसके बाद साल 1967 में भारत के बिशंबर सिंह (Bishambar Singh) ने नई दिल्ली में हो रही विश्व चैंपियनशिप में 57 किग्रा में रजत पदक जीता था।

एडिनबर्ग, स्कॉटलैंड में 1970 के राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय पहलवानों को पहले से अधिक सफलता मिली। इन खेलों में भारत सबसे सफल कुश्ती टीम के रूप में उभरा और भारत ने पांच स्वर्ण, तीन रजत और एक कांस्य पदक जीते थे।

भारतीय पहलवानों ने 1954 से एशियाई खेलों में तक लगातार पदक हासिल किए। साल 1962 में पहला एशियाड स्वर्ण पदक प्राप्त किया। मारुति माने (Maruti Mane), गणपत अंधालकर (Ganpat Andhalkar) और मालवा सिंह (Malwa Singh) ने विभिन्न कैटेगरी में जीत का परचम लहराया।

1986 तक एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में सभी पदक जीतने वाले पहलवानों करतार सिंह (Kartar Singh), राजेंद्र सिंह (Rajender Singh) और सतपाल सिंह (Satpal Singh) के साथ भारतीय कुश्ती ने सफलता की सीढ़ियां चढ़ना जारी रखा।

लेकिन प्रमुख पीढ़ी के पहलवानों के संन्यास लेने के बाद भारतीय कुश्ती काफी पीछे रह गई। अगले दो दशकों में देश ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुश्किल से ही अपनी छाप छोड़ी है।

ओलंपिक में दोबारा सफलता और महिला पहलवानों की जीत

56 साल बाद सुशील कुमार (Sushil Kumar) ने 2008 बीजिंग ओलंपिक में 66 किग्रा फ्रीस्टाइल में कांस्य पदक जीता। ग्रीष्मकालीन खेलों में सुशील ने पदकों के सूखे को खत्म किया और एक बार फिर से भारत का नाम कुश्ती की वजह से सुर्खियों में छा गया।

सुशील कुमार 2010 में विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान बने। उन्होंने 66 किग्रा फाइनल में रूसी ओलंपिक समिति (आरओसी) के एलन गोगेव (Alan Gogaev) को हराया।

वह अब तक कुश्ती विश्व चैंपियन बनने वाले एकमात्र भारतीय पहलवान हैं।

(Getty Images)

इस समय तक भारत में कुश्ती काफी हद तक पुरुष पहलवानों तक ही सीमित थी। अलका तोमर (Alka Tomar) ने 2006 में विश्व चैंपियनशिप पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। उन्होंने 59 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीता था।

1967 में बिशंबीर सिंह के रजत पदक के बाद से यह भारत के लिए पहला विश्व चैंपियनशिप पदक था। इससे पहले किसी पुरुष या महिला पहलवान ने इसे अपने नाम नहीं किया।

आखिरकार भारत में महिला कुश्ती ने नई दिल्ली में 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में सुर्खियां बटोरीं, जब गीता फोगाट (Geeta Phogat) ने स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने पहली भारतीय महिला पहलवान बनकर इतिहास रचा। उनकी बहन बबीता फोगाट (Babita Phogat) ने 51 किग्रा में रजत पदक जीता था।

भारत ने 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में भी 10 स्वर्ण पदक जीते थे, जिसमें से तीन महिला पहलवानों ने जीते। यह पदक जीतने वाली सबसे सफल टीम बन गई। इससे भारतीय कुश्ती को काफी बढ़ावा मिला।

अगले दशक में गीता और बबीता फोगाट ने विश्व चैंपियनशिप में पदक जीते। सुशील कुमार ने लंदन 2012 में ओलंपिक रजत पदक अपने नाम किया, जबकि योगेश्वर दत्त (Yogeshwar Dutt) ने उसी संस्करण में ओलंपिक कांस्य पदक जीता।

रियो 2016 में भारत की साक्षी मलिक (Sakshi Malik) ने इतिहास रचा। 58 किग्रा में ओलंपिक कांस्य पदक जीता। इसी के साथ वह ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं।

इस दशक की शुरुआत में विनेश फोगाट (Vinesh Phogat) भारतीय कुश्ती में सूरज की किरणों की तरह चमकीं और एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खिताब जीते। विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता और विश्व नंबर 1 बन गईं।

टोक्यो 2020 में भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया (Ravi Kumar Dahiya) ने रजत पदक हासिल किया, जबकि बजरंग पुनिया (Bajrang Punia) ने कांस्य पदक जीता। कुश्ती एकमात्र ऐसा खेल है, जिसमें भारत ने पिछले चार ओलंपिक खेलों में से प्रत्येक में कम से कम एक पदक अपने नाम किया है।

अक्टूबर 2021 में अंशु मलिक (Anshu Malik) ने भारत का नाम रौशन किया। अंशु ने विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में जगह बनाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं और वर्ल्ड मीट में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला भी बनीं।

ओलंपिक के साथ कई प्रतियोगिताओं में सफलता की कहानी लिखने के साथ कुश्ती में भारतीय पहलवानों ने अपना दमखम दिखा कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बनाई है। अब भारत की कुश्ती का इतिहास पहले से कहीं ज्यादा सुनहरा है। कुश्ती में कई युवा पहलवान लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं।

से अधिक