प्रभावित किया है और कई मौकों पर भारत को गौरवान्वित किया है। इसमें कोई शक नहीं कि वो आने वाले समय में भारतीय कुश्ती के ध्वजवाहक होंगे।
टोक्यो 2020 में रवि कुमार दहिया के रजत पदक ने उनकी साख को और मजबूत किया है। पुरुषों की 57 किग्रा फ्रीस्टाइल में उनका पदक, लंदन 2012 में सुशील कुमार की जीत के बाद ओलंपिक में कुश्ती में भारत का दूसरा रजत पदक था।
रवि कुमार दहिया का टोक्यो 2020 तक का सफर
12 दिसंबर 1997 को हरियाणा के सोनीपत के नाहरी गांव में जन्मे रवि कुमार दहिया का कुश्ती से शुरुआत से ही नाता रहा है।
हरियाणा को कुश्ती का गढ़ माना जाता है, इसे भारत की कुश्ती नर्सरी भी कह सकते हैं, जिसने योगेश्वर दत्त, सुशील कुमार, बजरंग पुनिया और साक्षी मलिक जैसे ओलंपिक पदक विजेताओं को दिया है। भारत के सबसे उल्लेखनीय पहलवान में से अधिकांश इस उत्तरी भारतीय राज्य से ही आते हैं।
दिल में कुछ कर-गुजरने की तमन्ना लिए युवा रवि दहिया ने उसी राह पर चलने के लिए घर छोड़ दिया, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के अधिकांश भारतीय पहलवान करते हैं। उनका अगला पड़ाव नई दिल्ली का छत्रसाल स्टेडियम था, जो प्रतिभाशाली पहलवानों के लिए भारतीय कुश्ती का प्रतिष्ठित स्कूल है।
छत्रसाल स्टेडियम में रवि दहिया दिग्गज कोच सतपाल सिंह की देख-रेख में प्रशिक्षण लेने आए, जिन्होंने सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त जैसे दिग्गजों को भी ट्रेनिंग दी थी।
जहां कोच सतपाल ने रवि को एक अच्छे पहलवान के रूप में ढालने में अहम भूमिका निभाई, वहीं एक और व्यक्ति थे, जिन्होंने रवि दहिया को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान दिया। वो कोई और नहीं उनके पिता राकेश दहिया थे।राकेश दहिया दूसरे के खेत में किसानी करते थे। लेकिन जब रवि दहिया के पहलवान बनने के सपने का समर्थन करने की बात आई, तो राकेश उतने ही दृढ़ थे, जितने रवि अब मैट पर हैं।
जब रवि छत्रसाल स्टेडियम में प्रशिक्षण ले रहे थे, तब उनके पिता अपने बेटे को गांव से ताजा दूध, फल और मक्खन पहुंचाने के लिए हर सुबह 40 किमी की यात्रा करते थे ताकि वो उनकी दैनिक आहार संबंधी जरूरतों को पूरा कर सकें। खेत के काम पर जाने से पहले हर दिन दो घंटे की यात्रा कर वो छत्रसाल स्टेडियम समय पर पहुंचते थे।
रवि कुमार दहिया को भी सुर्खियों में आने में देर नहीं लगी। 17 साल की उम्र में साल 2015 में उन्होंने ब्राजील के सल्वाडोर डी बाहिया में जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में 55 किग्रा फ्रीस्टाइल में रजत पदक जीता।
2017 के नेशनल चैंपियनशिप के दौरान लगी चोट ने उनकी रफ्तार को थोड़ा धीमा जरूर किया, लेकिन 2018 में हरियाणा के इस पहलवान ने फिर से वापसी की और बुखारेस्ट में आयोजित 2018 विश्व U-23 रेसलिंग चैंपियनशिप में एक और रजत पदक अपने नाम किया।
विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक के साथ 2019 में सीनियर लेवल पर कदम रखने वाले दहिया ने अपने वर्ग के पहलवानों को सावधान कर दिया। 20 साल की उम्र में इस होनहार भारतीय पहलवान ने विश्व चैंपियनशिप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण किया।
उन्होंने जापान के पूर्व विश्व चैंपियन युकी ताकाहाशी और आर्मेनिया के मौजूदा यूरोपीय चैंपियन आर्सेन हारुत्युनियन को हराकर पोडियम फिनिश किया। ख़ास बात ये रही कि इस दौरान उन्होंने टोक्यो 2020 के लिए भी क्वालीफाई कर लिया।
जहां विश्व चैंपियनशिप का पदक और ओलंपिक क्वालिफिकेशन अधिकांश एथलीट्स के लिए किसी सपने के सच होने जैसा होता है, लेकिन रवि कुमार दहिया के लिए ये सिर्फ एक शुरुआती थी।
रवि दहिया ने विश्व चैंपियनशिप का पदक जीतने के बाद कहा, “मेरी असली यात्रा अभी शुरू हुई है। मैंने क्या हासिल किया है? मेरे ट्रेनिंग सेंटर से ओलंपिक पदक विजेता हैं। मैंने किया भी क्या है?”
एक शर्मीले व्यक्ति के रूप में जाने जाने वाले रवि आम तौर पर दूसरों से बहुत कम बात करना पसंद करते हैं। इतने बड़े सपने को साकार करने की उम्मीद, भले ही थोड़ी जल्दी लगती है, लेकिन मैट पर रवि दहिया का प्रदर्शन इस बात की गवाही देता है कि वो कितना आगे जाने वाले हैं।
बैक-टू-बैक एशियाई खिताब जीतने के बाद टोक्यो 2020 का टिकट हासिल करने वाले रवि कुमार दहिया पर टोक्यो के प्रतिष्ठित मकुहारी मेस्से सेंटर में ग्रीष्मकालीन खेलों के लिए सबकी नजरे टिकी हुई थीं, जिसे COVID के कारण एक साल के लिए टाल दिया गया था।
रवि कुमार दहिया का ओलंपिक पदक
4 अगस्त, 2021 को रवि कुमार दहिया ने कोलंबिया के ऑस्कर टाइग्रेरोस के खिलाफ ओलंपिक में पदार्पण किया और दक्षिण अमेरिकी खेलों के पूर्व रजत पदक विजेता को तकनीकी श्रेष्ठता के आधार पर 13-2 से हराकर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए।
बुल्गारिया के जॉर्जी वांगेलोव को भी भारतीय युवा खिलाड़ी के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा, जिन्हें 14-4 के अंतर से शिकस्त झेलनी पड़ी।
बैक-टू-बैक जीत हासिल करने वाले रवि का अगला मुकाबला दो बार के विश्व चैंपियनशिप पदक विजेता और उस साल माटेओ पेलिकोन चैंपियन कजाकिस्तान के नूरिस्लाम सनायेव के खिलाफ होना था।
सानायेव के खिलाफ रवि ने ब्रेक तक 2-1 की बढ़त हासिल कर ली लेकिन दूसरे राउंड में एक 'फीतले' ने रवि को पीछे कर लिया।
'फीतले' कुश्ती में एक चाल है जहां एक पहलवान अपने प्रतिद्वंद्वी के घुटनों को पकड़ता है और अंक हासिल करने के लिए उन्हें तेजी से घुमाता है।
यह एक घातक कदम माना जाता है, जो पहलवानों को पूरे अंक का एक बड़ा हिस्सा अर्जित करा सकता है और उन्हें मुकाबला भी जीता सकता है। योगेश्वर दत्त ने लंदन 2012 में अपना कांस्य पदक जीतने के लिए इसी 'फीतले' का इस्तेमाल किया था।
दहिया इस पकड़ से बचने में सफल रहे, लेकिन इससे पहले सानायेव ने 9-2 की बढ़त हासिल कर ली थी। सानायेव के एक और अंक हासिल करते ही रवि दहिया तकनीकी श्रेष्ठता (10+ अंक के अंतर) से हार सकते थे।
भारतीय युवा खिलाड़ी ने वापसी की और आधुनिक ओलंपिक इतिहास में सबसे यादगार वापसी को दर्ज कराते हुए पूरी दुनिया को हैरान कर दिया।
कजाक पहलवान पर लगातार दबाव बनाते हुए भारतीय पहलवान ने स्कोर को 9-5 तक कम कर दिया। जैसे जैसे मुकाबला आखिरी समय की ओर बढ़ रहा था, फैंस की धड़कने तेज हो रही थी।
आखिरी समय में रवि ने वो कर दिया, जो ओलंपिक जैसे बड़े इवेंट में कभी-कभार ही देखने को मिलता है। पहले उन्होंने दो अंक लिए और फिर सानायेव को टेकडाउन कर मुकाबला अपने नाम कर लिया।
रवि कुमार दहिया के कोच सतपाल सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “सिर्फ रवि ही ऐसा कर सकते थे। यह देखना अविश्वसनीय और अद्भुत था क्योंकि मैंने कभी किसी को 2-9 से पिछड़ने के बाद जीतते हुए नहीं देखा और वह भी सिर्फ एक मिनट के भीतर।”
जीत ने रवि दहिया को रूसी ओलंपिक समिति (आरओसी) के जाउर उगुएव के खिलाफ स्वर्ण पदक मैच में पहुंचा दिया। उगुएव ने दो साल पहले 2019 विश्व चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में रवि को हराया था।
उस समय दो बार के विश्व चैंपियन और अधिक अनुभवी पहलवान के खिलाफ रवि कुमार दहिया पिछड़ गए और मुकाबला 7-4 से हार गए, जिसके बाद उन्हें रजत से संतोष करना पड़ा। हालांकि, स्कोरलाइन मैच के रोमांच को नहीं बता सकता।
रवि कुमार दहिया 23 साल और सात महीने की उम्र में ओलंपिक खेलों में पदक जीतने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय पहलवान भी बन गए। इससे पहले, साक्षी मलिक ने 23 साल और 11 महीने की उम्र में रियो 2016 में कांस्य पदक जीतकर यह रिकॉर्ड बनाया था। हालांकि, अमन सेहरावत ने यह रिकॉर्ड तोड़ दिया, जिन्होंने पेरिस 2024 में कांस्य पदक जीतकर 21 साल और 24 दिन की उम्र में यह रिकॉर्ड बनाया।
पदक जीतने के बाद रवि दहिया की प्रतिक्रिया, वह भी अपने पहले ग्रीष्मकालीन खेलों में, सामान्य से बहुत अलग थी, जिससे इस युवा की अनूठी मानसिकता की झलक मिलती है।
रवि दहिया ने कहा, “मैं रजत पदक के लिए टोक्यो नहीं आया था। इससे मुझे संतुष्टि नहीं मिलेगी। शायद इस बार मैं सिर्फ सिल्वर का हकदार था क्योंकि आज उगुएव बेहतर पहलवान साबित हुए। मैं वह हासिल नहीं कर सका जो मैं चाहता था। मैं सिल्वर मेडल से खुश नहीं हो सकता। मुझे फोकस रहना है और अपनी तकनीक पर काम करना है और अगले ओलंपिक खेलों के लिए तैयार होना है।"
रवि दहिया ने पहले ही साबित कर दिया है कि ये महज वादे नहीं थे, उन्होंने एशियाई चैंपियनशिप में एक और स्वर्ण पदक जीता, जो उनका लगातार तीसरा स्वर्ण पदक है, और 2022 में प्रतिष्ठित यासर डोगू टूर्नामेंट में शीर्ष पोडियम फिनिश है।