कुश्ती हमेशा से ही भारत में एक लोकप्रिय खेल रहा है। लेकिन बात अगर अंतरराष्ट्रीय सफलता की करें तो ये हमें बीसवीं सदी के बाद से ही मिलनी शुरू हुई है।
केडी जाधव वह नाम है जिन्होंने पहली बार भारत के लिए कुश्ती में ओलंपिक पदक हासिल किया। उन्होंने हेलसिंकी 1952 ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक हासिल कर भारत को कुश्ती में पहला पदक दिलाया था। इसके बाद भारत को पदक जीतने के लिए 56 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। ओलंपिक में दूसरा पदक भारत को सुशील कुमार ने दिलाया। उन्होंने बीजिंग 2008 में कांस्य पदक जीतकर भारत के पदक जीतने के लंबे इंतजार को खत्म किया।
इसके बाद से साक्षी मलिक, योगेश्वर दत्त, बजरंग पुनिया और रवि कुमार दहिया जैसे दिग्गज पहलवानों ने एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में नियमित रूप से पदक जीतकर भारत को कुश्ती में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नया आयाम दिया है। इसके अलावा, भारतीय पहलवानों ने 2008 के बाद से आयोजित प्रत्येक ओलंपिक खेलों में कम-से-कम एक पदक जरुर हासिल किया है।
इस लेख में हम उन सर्वश्रेष्ठ अमेचर पहलवानों पर एक नजर डाल रहे हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को गौरवान्वित किया है।
केडी जाधव
महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव गोलेश्वर से ताल्लुक रखने वाले पहलवान खशाबा दादासाहेब जाधव ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में भारत के लिए पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक हासिल किया था।
हालांकि, केडी जाधव का ओलंपिक पोडियम तक का सफर आसान नहीं था। लंदन 1948 में अपने ओलंपिक डेब्यू के दौरान पदक जीतने में असफल रहने के बाद केडी जाधव को पैसे को लेकर काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। ये वह दौर था जब उन्हें फंडिंग के लिए दर-ब-दर भटकना पड़ा था।
इसके बाद केडी जाधव ने हेलसिंकी खेलों तक पहुंचने के लिए क्राउड-फंडिंग की मदद ली, जहां उन्होंने कांस्य पदक जीता। हालांकि, कांस्य पदक जीतने से पहले जाधव को जापान के स्वर्ण पदक विजेता शोहाची इशी से हार का सामना करना पड़ा था।
ऐसी उम्मीद थी कि केडी जाधव 1956 में मेलबर्न में आयोजित ओलंपिक खेलों के दौरान अपने पदक के रंग को बदलेंगे। वह भी स्वर्ण या रजत पदक जीतने को लेकर दृढ़ संकल्पित थे। लेकिन, घुटने की गंभीर चोट ने उनके इस सपने को पूरा नहीं होने दिया।
उदय चंद
केडी जाधव के ओलंपिक प्रदर्शन से प्रेरित होकर, उदय चंद, 1961 में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में 67 किग्रा भार वर्ग में कांस्य पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान बने।
इसके बाद अगले साल एशियाई खेलों में, उदय चंद ने 70 किग्रा फ्रीस्टाइल और ग्रीको-रोमन स्पर्धाओं में हिस्सा लिया और दोनों प्रतियोगिताओं में रजत पदक अपने नाम किया।
उदय चंद ने 1960 से 1968 के बीच तीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि, इस दौरान वह एक भी बार पोडियम पर स्थान हासिल नहीं कर सके। लेकिन यकीनन इस रेसलर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने देश का नाम रोशन किया।
अलका तोमर
साक्षी मलिक और फोगाट बहनें भले ही आज भारतीय कुश्ती में काफी जाना-पहचाना नाम हैं। लेकिन, भारत में महिला कुश्ती की शुरुआत करने वाली पहलवान अलका तोमर ही थीं।
अलका तोमर ने 2005 में राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद अगले साल विश्व चैंपियनशिप में इतिहास रच दिया।
अलका तोमर ने 20 साल की उम्र में 59 किग्रा भार वर्ग में प्रतिस्पर्धा करते हुए कुश्ती विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनने का गौरव हासिल किया। आपको बता दें ये 39 वर्षों में भारत का पहला विश्व चैंपियनशिप पदक भी था। अलका तोमर ने 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों में भी अपना स्वर्णिम सफर जारी रखा और स्वर्ण पदक को अपने नाम किया।
सुशील कुमार
भारत में कुश्ती की लोकप्रियता को आसमान तक पहुंचाने का श्रेय कहीं न कहीं सुशील कुमार को जाता है। बीजिंग 2008 ओलंपिक में सुशील कुमार ने 66 किग्रा फ्रीस्टाइल में कांस्य पदक जीतकर भारत में कुश्ती की लोकप्रियता को नया आयाम दिया।
सुशील कुमार ने अपना बेहतरीन प्रदर्शन जारी रखा और साल 2010 में विश्व चैंपियनशिप का स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान बनने का गौरव हासिल किया। 2012 में लंदन ओलंपिक में उन्होंने एक रजत पदक पर कब्जा जमाया। इसके साथ ही वे पहले ऐसे भारतीय एथलीट बन गए जिन्होंने किसी भी खेल में दो व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीता।
सुशील कुमार एकमात्र भारतीय पहलवान हैं जिन्होंने कुश्ती विश्व चैंपियन का खिताब हासिल किया है। इसके अलावा वह तीन बार के राष्ट्रमंडल खेलों के चैंपियन भी हैं।
योगेश्वर दत्त
लंदन 2012 ओलंपिक में योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक जीतकर भारत की खुशी को दोगुना कर दिया था। सुशील कुमार से पीछे रहते हुए उन्होंने कांस्य पदक पर कब्जा जमाया। इस तरह लंदन ओलंपिक में भारत के दो पहलवानों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी छाप छोड़ी।
जिस तरह से दत्त ने इवेंट के दौरान आंख में गंभीर चोट लगने के बावजूद लंदन 2012 में अपना पदक जीता, वह कई भारतीय पहलवानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहा है। उन्होंने ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पुनिया सहित पहलवानों की आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मेंटर का काम भी किया है।
योगेश्वर दत्त दो बार के राष्ट्रमंडल खेलों के चैंपियन हैं और उन्होंने 2014 में 65 किग्रा भार वर्ग में एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक जीता था।
साक्षी मलिक
हालांकि, गीता फोगाट और बबीता फोगाट रियो 2016 में जाने वाली भारत की प्रसिद्ध पहलवान थीं। लेकिन, इसके बीच साक्षी मलिक जो कि 58 किग्रा भार वर्ग में प्रतिस्पर्धा कर रही थीं, बड़े ही शांति से ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धा करने पहुंची और इतिहास रच दिया। साक्षी मलिक ओलंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन गईं।
इसके बाद सफलता की नई गाथा लिखते हुए साक्षी मलिक ने 2017 में राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक हासिल किया। हालांकि, इसके बाद कई चोटों से जूझने के कारण उनका करियर बाधित हो गया।
टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेने से चूकने के बाद, साक्षी मलिक धीरे-धीरे अपनी पुरानी लय हासिल कर रहीं हैं और बर्मिंघम में 2022 के राष्ट्रमंडल खेलों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए वह तैयार हैं।
गीता फोगाट
गीता फोगाट ने अब तक ओलंपिक में कोई पदक नहीं जीता है, लेकिन उन्हें 2012 में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान होने का गौरव प्राप्त है।
हालांकि, वह लंदन 2012 में जीत दर्ज करने में असफल रहीं। गीता फोगाट ने इस निराशा से उभरते हुए वापसी की और उसी वर्ष 55 किग्रा भार वर्ग में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया।
गीता फोगाट 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला भी बनीं।
बबीता फोगाट
एक तरफ जहां 2010 नई दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में गीता फोगाट का स्वर्ण पदक मुख्य आकर्षण के केंद्रों में से एक था, तो वहीं उनकी छोटी बहन बबीता फोगाट भी इस दौड़ में पीछे नहीं थीं। बबीता ने भी 2010 नई दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के 51 किग्रा भार वर्ग में रजत पदक हासिल किया था।
लंदन 2012 के लिए क्वालीफाई करने में विफल रहने के बाद, बबीता ने सितंबर में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य जीता और 2016 के रियो खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
बबीता ने ग्लासगो में 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता था।
विनेश फोगाट
अपनी बड़ी कजिन बहनों गीता और बबीता फोगाट के नक्शे-कदम पर चलते हुए, विनेश फोगाट हाल के वर्षों में भारतीय महिला कुश्ती का अहम नाम रहीं हैं।
विनेश ने 2018 में एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता और वह दो बार राष्ट्रमंडल खेलों की चैंपियन भी रहीं हैं। 2019 विश्व चैंपियनशिप की कांस्य पदक विजेता के नाम आठ एशियाई चैंपियनशिप पदक भी हैं।
विनेश फोगाट ने 2016, 2020 और 2024 ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि, वह कोई पदक नहीं जीत सकी। पेरिस 2024 में, उन्होंने महिलाओं के 50 किग्रा वर्ग के फाइनल में जगह बनाई, लेकिन स्वर्ण पदक मुकाबले के दिन बढ़े वजन को कम करने में नाकाम रहने के बाद अंततः उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया।
बजरंग पुनिया
2018 में रजत पदक के अलावा 2013 और 2019 में कांस्य पदक जीतने के साथ, बजरंग पुनिया एकमात्र भारतीय हैं जिन्होंने अब तक तीन विश्व चैंपियनशिप पदक जीते हैं।
बजरंग पुनिया ने पिछले साल टोक्यो 2020 में 65 किग्रा भार वर्ग में कांस्य पदक जीता था। वे अपने भार वर्ग में राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों के मौजूदा चैंपियन हैं। बजरंग पुनिया ने 2014 में राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में भी रजत पदक जीता था और वह दो बार के एशियाई चैंपियन हैं।
रवि कुमार दहिया
टोक्यो 2020 के रजत पदक विजेता रवि कुमार दहिया मौजूदा एशियाई चैंपियन भी हैं। दहिया ने लगातार तीन बार कॉन्टिनेंटल खिताब अपने नाम किया है। ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय पहलवान हैं।
हरियाणा के इस पहलवान ने 2019 में विश्व चैंपियनशिप प्रतियोगिता में कांस्य पदक भी जीता है। 24 वर्षीय रवि कुमार दहिया अभी भी युवा हैं और यदि वह अपना बेहतरीन प्रदर्शन जारी रखते हैं तो इस लिस्ट में से अपने कई साथियों को पीछे छोड़ने की क्षमता रखते हैं।
अमन सहरावत
पेरिस ओलंपिक से पहले रवि दहिया की चोट के कारण अमन सहरावत ने पुरुषों के 57 किग्रा वर्ग में देश का प्रतिनिधित्व किया और पेरिस 2024 में भारत को कांस्य पदक दिलाया। अमन 2023 से एशियाई चैंपियन भी हैं और उन्होंने उसी साल एशियाई खेलों में कांस्य पदक भी जीता था।
सहरावत को अंडर-23 विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय होने का गौरव भी प्राप्त है। उन्होंने 2022 में स्वर्ण पदक जीता। वह इतिहास में व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय भी हैं। इससे पहले यह रिकॉर्ड पीवी सिंधु के नाम था।
अंतिम पंघाल
2022 में युवा खिलाड़ी द्वारा अंडर- 20 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद, अंतिम पंघाल ने पूरी दुनिया में देश का नाम रौशन किया और इतिहास में भारत का पहला अंडर- 20 विश्व चैंपियन बनकर अपना नाम दर्ज किया। तब से, उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अगले साल अपने जूनियर खिताब को सफलतापूर्वक डिफेंड किया और एशियाई खेलों में कांस्य पदक भी जीता।
हालांकि, अंतिम के अब तक के शुरुआती करियर में उनका पंसदीदा प्रदर्शन 2023 में आया, जब उन्होंने अपने विश्व चैंपियनशिप में डेब्यू किया और कांस्य पदक जीता। युवा खिलाड़ी ने महिलाओं के 53 किग्रा वर्ग में धीरे-धीरे भारत के प्रमुख पहलवान के रूप में अपनी पहचान बनाई और विनेश को पीछे छोड़ दिया है। इसके साथ ही उन्होंने पेरिस 2024 में इस डिवीजन में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। वहीं, विनेश को 50 किग्रा में प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी।