रेसलर योगेश्वर दत्त भारत के उन चुनिंदा पहलवानों में से एक हैं जिन्होंने ओलंपिक में देश का नाम रोशन किया है। हरियाणा के सोनीपत ज़िले के एक छोटे से गांव बैंसवाल कलां से ताल्लुक़ रखने वाले योगेश्वर को प्यार से ‘योगी’ या फिर ‘पहलवान जी’ के नाम से पुकारा जाता है।
योगेश्वर के करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि रही लंदन 2012 ओलंपिक में देश के लिए ब्रॉन्ज़ मेडल जीतना। लेकिन फ्रीस्टाइल रेसलर ने जो आज पहलवानी में ख़ास मुकाम हासिल किया है उसके पीछे उनकी काफी मेहनत और जद्दोजहद छुपी हुई है।
एक नज़र योगेश्वर दत्त के उस सफर पर जिससे ओलंपिक का सपना हुआ।
लिएंडर पेस से हुए प्रेरित
हरियाणा के सोनीपत में भैंसवाल कलां नामक एक गाँव में शिक्षक के परिवार जन्मे योगेश्वर दत्त ने बलराज पहलवान (एक स्थानिय पहलवान) से प्रेरित होकर कम उम्र में ही कुश्ती शुरू कर दी थी।
13 साल की उम्र में उन्होंने अटलांटा 1996 ओलंपिक में लिएंडर पेस को कांस्य पदक जीतते हुए देखा, तभी से इस युवा पहलवान ने ओलंपिक के सपने देखने शुरू कर दिए।
योगेश्वर दत्त का ओलंपिक पदक
मुख्य इवेंट में योगेश्वर दत्त ने अपनी पहली बाउट में बुल्गारिया के अनातोली इलरियनोविच गाइडेका (Anatolie Ilarionovitch Guidea) को 3-1 से हराकर विजयी शुरुआत की। हालांकि, प्री-क्वार्टर फ़ाइनल में भारतीय पहलवान रूस के बेसिक कुदुखोव (Besik Kudukhov) से हार गया - जो चार बार के विश्व चैंपियन थे।
लेकिन कुदुखोव के फाइनल में पहुंचने के साथ ही योगेश्वर दत्त के ओलंपिक पदक की उम्मीदें बढ़ गईं।
"मुझे 1996 में ओलंपिक के बारे में पता चला। मुझे याद है कि टीवी पर लिएंडर पेस को देखने के बाद मैंने अपने पिताजी से इसके बारे में पूछा था और उन्होंने मुझे ओलंपिक के बारे में बताया था।"
2004 और 2008 ओलंपिक में योगेश्वर दत्त
आठ साल बाद इस पहलवान को 2004 के एथेंस में अपने पहले ओलंपिक में भाग लेने का मौका मिला।
अनुभवहीन 21 वर्षीय पहलवान को अजरबैजान के दो बार का ओलंपिक और चार बार का विश्व चैंपियनशिप पदक विजेता नमिग अब्दुल्लायेव (Namig Abdullayev) के खिलाफ मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा। जापान के चिकारा तानाबे (Chikara Tanabe) ने उस वर्ष कांस्य पदक जीता।
बीजिंग 2008 से पहले भारतीय पहलवान ने अच्छी पहलवानी की। उन्होंने 2005 राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और 2006 के दोहा एशियाई खेलों से कुछ समय पहले अपने पिता को खोने के बावजूद, योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक जीता।
उन्होंने 2008 में एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर बीजिंग ओलंपिक के लिए अपना स्थान पक्का किया।
मुख्य इवेंट में योगेश्वर दत्त क्वार्टर फाइनल में पहुंचे, लेकिन जापान के केनिची युमोटो (Kenichi Yumoto) से हारने के बाद अपने पदक के सपने को साकार नहीं कर सके।
हालांकि, उनके साथी भारतीय पहलवान सुशील कुमार ने 66 किलोग्राम इवेंट में कांस्य जीतकर अपने देश के लिए पदक जीतने के योगेश्वर दत्त के संकल्प को मजबूत किया।
दत्त ने कहा, "ये ठीक उससे पहले हुआ, जब मैंने अगले ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतने का मन बना लिया था।"
लंदन 2012 से पहले मुश्किल चुनौती
योगेश्वर दत्त ने नई दिल्ली में 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता था लेकिन लंदन ड्रीम काफी दूर था।
2009 में घुटने की गंभीर चोट ने उनकी तैयारी में बाधा डाली। योगेश्वर दत्त ने कहा कि अगले कुछ वर्ष उनके जीवन में मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से सबसे चुनौतीपूर्ण थे। उन्हें यहां तक कहा गया कि उनका करियर खत्म हो सकता है।
राष्ट्रमंडल खेलों में चैंपियन के रूप में वापसी के बावजूद, दत्त को बैक इंजरी की वजह से छह महीने के लिए फिर से साइडलाइन कर दिया गया।
“मैंने हालांकि उम्मीद नहीं खोई। ओलंपिक पदक के सपने ने मेरा हौसला बढ़ाया और ये सिर्फ कुश्ती से प्यार की वजह से संभव हो पाया था।"
हालांकि, ओलंपिक वर्ष में योगेश्वर दत्त ने एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और लंदन में पदक के लिए खुद को स्थापित किया।
योगेश्वर दत्त का ओलंपिक पदक
मुख्य इवेंट में योगेश्वर दत्त ने अपनी पहली बाउट में बुल्गारिया के अनातोली इलरियनोविच गाइडेका (Anatolie Ilarionovitch Guidea) को 3-1 से हराकर विजयी शुरुआत की। हालांकि, प्री-क्वार्टर फ़ाइनल में भारतीय पहलवान रूस के बेसिक कुदुखोव (Besik Kudukhov) से हार गया - जो चार बार के विश्व चैंपियन थे।
लेकिन कुदुखोव के फाइनल में पहुंचने के साथ ही योगेश्वर दत्त के ओलंपिक पदक की उम्मीदें बढ़ गईं।
कुदुखोव के खिलाफ मैच में आंख की चोट लगने के बाद, योगेश्वर दत्त को 45 मिनट के भीतर दुनिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ पहलवानों से निपटना पड़ा, उनकी चोट गंभीर थी, जिसके कारण उनकी दाहिनी आंख पर काफी सूजन आई – उसके बाद भी मुक़ाबला करना, किसी भी तरह से आसान काम नहीं।
"ओलंपिक में हम चोट के बारे में चिंता नहीं कर सकते। हमें बाहर निकलना होता है और संघर्ष करना होता है।
योगेश्वर दत्त ने उत्तर कोरिया के री जोंग-म्योंग (Ri Jong-Myong) के खिलाफ कांस्य पदक मुकाबले में खुद को स्थापित करने से पहले क्रमशः पहले और दूसरे रेपेचेज राउंड में प्यूर्टो रिको के फ्रैंकलिन गोमेज़ (Franklin Gomez) और ईरान के मसूद एस्माईलपुर (Masoud Esmaeilpour) को हरा दिया।
योगेश्वर दत्त ने म्योंग के खिलाफ पहला राउंड गंवा दिया लेकिन भारतीय ने दूसरा राउंड जीतकर मुकाबला 1-1 से बराबर कर दिया।
तीसरे और निर्णायक राउंड में दोनों पहलवानों ने अपने अवसर की प्रतीक्षा की और मुक़ाबला जीतने के लिए पूरी जोर लगा दी रहे थे लेकिन योगेश्वर दत्त ने अंततः मैच अपने नाम कर लिया।
लगभग 40 सेकंड के राउंड में योगेश्वर दत्त अपने प्रतिद्वंद्वी को चकमा देने में कामयाब रहे और अपने ट्रेडमार्क 'फिटलेले' चाल को अंजाम देने में कामयाब रहे - जिसमें प्रतिद्वंद्वी के पैरों पर लॉक करके उसे लगातार घुमाकर अंक अर्जित किया जाता है।
म्योंग के पास योगेश्वर दत्त के कठिन सवालों का कोई काउंटर नहीं था और इस कदम ने भारतीय को कांस्य पदक हासिल करने में मदद की।
अपने घुटने में चोट के बावजूद, योगेश्वर दत्त ने पदक जीतने के बाद खूब जश्न मनाया।
"मैं बचपन से ही हमेशा ओलंपिक पदक जीतना चाहता था ... जीत वही होती है जो आपको आखिर पहचान दिलाती है।"
लंदन ओलंपिक में जीत की वजह से उन्हें 2012 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार और 2013 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
योगेश्वर दत्त ने कहा, "मैंने जो कुछ भी हासिल किया है, वह सब कुछ कुश्ती की वजह से है। मेरा ओलंपिक कांस्य पदक मेरे जीवन का सबसे अच्छा पल रहेगा।"