साल 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक विजेता योगेश्वर दत्त को देश में घर घर पहचाना जाता है। लेकिन फ्रीस्टाइल पहलवान के लिए, अपने करियर का मुकाम बहुत बड़ा व्यक्तिगत महत्व रखता है।
यह एक सपने के सच होने जैसा था, जो हरियाणा में रहने वाले उनके पिता ने देखा था और अंत में उनका ये सपना लंदन ओलंपिक में पूरा हुआ।
हरियाणा के सोनीपत में भैंसवाल कलां में जन्मे योगेश्वर दत्त शिक्षकों के परिवार से ताल्लुक रखते हैं लेकिन वह अपने पैतृक गाँव के एक नामी पहलवान, बलराज पहलवान से इस खेल में उतरने के लिए प्रेरित हुए।
दत्त के परिजन शुरुआत में आश्वस्त नहीं थे कि उन्हें रेसलिंग में ही करियर बनाना चाहिए या नहीं। लेकिन ये परेशानी कुछ ही समय तक रही, इसके बाद तो योगेश्वर दत्त के पिता ही उनके सबसे बड़े सपोर्टर बनें।
योगेश्वर दत्त जब 14 साल के थे तो वह ट्रेन से रोजाना नई दिल्ली स्थित मशहूर छत्रसाल स्टेडियम का सफर तय करते थे और यहीं से उन्हें आगे जाने की राह मिली।
करीब 7 साल बाद साल 2004 एथेंस ओलंपिक में 21 साल के योगेश्वर दत्त के सामने जापानी ग्रैफ़लर चिकारा तानबे (उस साल के कांस्य पदक विजेता) और 2000 के सिडनी में स्वर्ण पदक विजेता अजरबैजान के अब्दुल्लायेव की चुनौती थी। इन दोनों ही मैचों में योगेश्वर दत्त को अनुभव की कमी महसूस हुई।
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