जानिए टोक्यो 2020 में ओलंपिक कुश्ती पदक जीतने के लिए बजरंग पुनिया ने कैसे दर्द को भी पीछे छोड़ दिया

टोक्यो 2020 में कांस्य पदक जीतने के साथ ही बजरंग पुनिया ओलंपिक में पदक जीतने वाले छठे भारतीय पहलवान बन गए।

5 मिनटद्वारा रौशन प्रकाश वर्मा
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भारत के शीर्ष आधुनिक खेल सुपरस्टारों में बजरंग पुनिया काफी बेमिसाल रहे हैं।

बजरंग पुनिया विश्व चैंपियनशिप में एक से अधिक पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय पहलवान हैं और एशियाई खेलों, एशियाई चैंपियनशिप, राष्ट्रमंडल खेलों के साथ-साथ ओलंपिक में भी पोडियम पर उन्होंने जगह हासिल की है।

उत्तर भारत का राज्य हरियाणा, जहां से ज्यादातर विश्व स्तरीय एथलीट निकलते हैं, वहां से ताल्लुक रखने वाले बजरंग पुनिया देसी अखाड़ों - पारंपरिक मिट्टी के अखाड़ों में कदम रखने के बाद से लगातार आगे बढ़ रहे हैं। जब उन्होंने कुश्ती शुरु की तब उनकी उम्र सिर्फ 9 साल थी। 

झज्जर से हुई बजरंग पुनिया की शुरुआत

बजरंग पुनिया के कुश्ती की सफर तब शुरू हुई जब उनके पहलवान पिता बलवान पुनिया ने हरियाणा के झज्जर जिले के खुदान गांव में अपने युवा बेटे को अखाड़ों में नामांकित किया।

यहीं से बजरंग को अपने जीवन का उद्देश्य मिला।

बलवान पुनिया ने Olympics.com को बताया, "वह (बजरंग पुनिया) एक बहुत ही सरल और स्मार्ट बच्चा था। वह बहुत मज़ाक नहीं करता था और बस अपना काम करता था... उसने मुझे शुरू से ही कहा था कि वह कुश्ती करना चाहता है।"

और बजरंग ने सिर्फ कुश्ती ही की। अपने गांव में कड़ी मेहनत करने के बाद, बजरंग पुनिया 2008 में नई दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में चले गए, जो देश में शीर्ष कुश्ती प्रतिभाओं का केंद्र था। यहीं पर उनकी मुलाकात अपने गुरु, आदर्श और साथी योगेश्वर दत्त से हुई।

बजरंग पुनिया ने कहा, "मैंने देखा कि कैसे वह (योगेश्वर) मैट पर कुश्ती करते थे और मैं उनके नक्शेकदम पर चलने लगा। वह तब से मेरे लिए एक आदर्श बन गए।"

जल्द ही, पूनिया पदक जीतने लगे। बजरंग पुनिया ने 2013 में एशियाई चैंपियनशिप और पुरुषों की 60 किग्रा फ्रीस्टाइल श्रेणी में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया। इसके साथ ही उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली।

2014 में उन्हें और अधिक सफलता मिली क्योंकि हरियाणा के पहलवान ने राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई चैंपियनशिप और एशियाई खेलों में रजत पदक हासिल किया। 

बजरंग पुनिया इसके बाद आने वाले सालों में लगातार शीर्ष की ओर बढ़ते रहे। भारतीय पहलवान ने 2018 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक, 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक और 2018 विश्व चैंपियनशिप में एक रजत पदक सहित लगभग सभी मुख्य आयोजनों में हिस्सा लेते हुए दर्जनों पदक जीते।

उनके पदक के कैबिनेट में सिर्फ एक पदक नहीं था, वो था ओलंपिक पदक।

ओलंपिक में बजरंग पुनिया: टोक्यो 2020 में पदार्पण

बजरंग पुनिया ने टोक्यो 2020 में एक शानदार ओलंपिक पदार्पण किया। घुटने की चोट से जूझने के बावजूद उन्होंने 65 किग्रा फ्रीस्टाइल स्पर्धा में कांस्य पदक जीता।

ग्रीष्मकालीन खेलों से पहले, बजरंग ने टोक्यो 2020 से ठीक एक महीने पहले जून 2021 में रूस में अली अलीयेव टूर्नामेंट के दौरान अपना दाहिना घुटना चोटिल कर लिया था। 

भारतीय पहलवान को न केवल मैच गंवाना पड़ा बल्कि चोट ने उनकी टोक्यो ओलंपिक में खेलने की संभावनाओं पर भी संदेह पैदा कर दिया। 

बजरंग पुनिया ने कहा था, 'दाएं घुटने में दर्द है, डॉक्टर ने मुझे आराम करने की सलाह दी थी, लेकिन मैं आराम नहीं कर सकता था क्योंकि हर एथलीट देश के लिए ओलंपिक में खेलना चाहता है। मैंने उनसे कहा कि प्रशिक्षण मेरे लिए महत्वपूर्ण है। मैंने डॉक्टरों से कहा कि वे मुझे रिहैब के बारे में बताएं और मैं उसी के मुताबिक काम करूंगा।'

घुटने में चोट के साथ, बजरंग पुनिया ने ओलंपिक खेलों में 65 किग्रा फ्रीस्टाइल में दूसरी वरीयता प्राप्त पहलवान के रूप में अपनी बेहतरीन शुरुआत की।

लेकिन बड़े खेलों की शुरुआत योजना के अनुसार नहीं हुई। पहले दौर में ही एक करीबी मुकाबले के साथ बजरंग की शुरुआत हुई। 

बजरंग पुनिया किर्गिस्तान के एर्नाजर अकमातालिएव के खिलाफ शुरुआती मुकाबला काफी कांटे की टक्कर का रहा। दोनों पहलवानों ने तीन-तीन अंक हासिल करने के साथ बाउट समाप्त की, लेकिन इस मैच में एक अधिक स्कोर वाला दांव लगाने की वजह से वह जीत गए।

हालांकि, बजरंग ने अगले मैच में ईरान के मुर्तजा घियासी पर हावी रहते हुए जीत दर्ज की।

बजरंग पुनिया के घायल दाहिने घुटने को निशाना बनाने के ईरानी पहलवान के प्रयासों के बावजूद, भारतीय ने मुकाबले में अपना दबदबा बनाए रखा और फिर सेमीफाइनल में जगह बनाने के लिए प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को चित कर दिया।

हालांकि, बजरंग पुनिया 57 किग्रा में रियो 2016 के कांस्य पदक विजेता और 61 किग्रा में तीन बार के विश्व चैंपियन अजरबैजान के हाजी अलीयेव के खिलाफ सेमीफाइनल में हार गए।

हाजी अलीयेव ने एक प्वाइंट से पीछे रहने के बाद वापसी की और अंत में 12-5 से बढ़त बनाने से पहले लगातार दो टेकडाउन दर्ज किए।

इस हार के बाद बजरंग पुनिया को कजाकिस्तान के दौलत नियाज़बेकोव के खिलाफ कांस्य पदक के लिए मुकाबला करना पड़ा।

इससे पहले के मुकाबलों में बजरंग के लिए घुटने का पट्टा एक बाधा साबित हो रहा था, इसलिए उन्होंने इसे तीसरे स्थान की प्रतियोगिता के लिए हटा दिया। अब चोट के एक बड़े जोखिम के साथ भारतीय ने ओलंपिक पदक जीतने के अपने सपने को पूरा करने के लिए आखिरी बार टोक्यो में मैट पर कदम रखा।

पुनिया ने बताया, "आखिरी बाउट में, मैंने उनसे कहा था कि मुझे स्ट्रैपिंग नहीं मिलेगी और अगर चोट बढ़ जाती है तो मैं आराम करूंगा। मेरे लिए पदक अधिक महत्वपूर्ण था, चोट का इलाज किया जा सकता था। मैं पदक जीतने की मानसिकता के साथ गया था। इसलिए, मैंने कांस्य पदक मैच में पट्टा हटा दिया।”

बजरंग पुनिया ने पहले तीन मिनट में दो अंक बटोरे और अगले तीन में 8-0 की बढ़त बना ली और अपने पहले ओलंपिक में कांस्य पदक जीता।

बजरंग पुनिया इस तरह से केडी जाधव, सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, साक्षी मलिक और रवि कुमार दहिया के बाद ओलंपिक पदक जीतने वाले छठे भारतीय पहलवान बन गए।

बजरंग की घर वापसी पर उनका एक हीरो की तरह स्वागत किया गया, लेकिन उनके पिता बलवान ने कहा कि उनका बेटा कांस्य पदक से संतुष्ट नहीं है और उसकी नजरें अभी से पेरिस 2024 पर हैं।

बलवान पुनिया ने खुलासा करते हुए कहा, "बजरंग ने मुझे उस दिन (कांस्य जीतने के बाद) कहा था, 'पापा, पेरिस 2024 ओलंपिक में मैं पदक का रंग बदल दूंगा और अगर देशवासी इसी तरह मेरा समर्थन करते रहे तो मैं और भी बहुत कुछ घर ला सकता हूं।”