भारतीय ट्रैक एंड फील्ड क्वीन पीटी उषा (PT Usha) का मानना है कि मिल्खा सिंह (Milkha Singh) का भले ही निधन हो गया हो, लेकिन उनकी यादें एथलेटिक्स में भारत के पहले ओलंपिक पदक की तलाश को बढ़ावा देती रहेंगी।
पीटी उषा ने युवा भारतीय एथलीटों से आग्रह भी किया कि वो समर खेलों में भारत के एथलेटिक्स पदक के सूखे को समाप्त करने के लिए दिग्गज फ्लाइंग सिख की अविश्वसनीय मेहनत और अभ्यास करने के उदहारण को फॉलो करें।
पीटी उषा ने आउटलुक इंडिया को बताया, “एथलेटिक्स में एक ओलंपिक पदक अभी भी भारत के लिए एक सपना है। मिल्खा सिंह उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए युवा एथलीटों के मार्गदर्शक हैं।”
उन्होंने आगे कहा, "ऐसी तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए और कुछ ही संसाधनों और सुविधाओं के साथ, अगर मिल्खा ओलंपिक पदक से सिर्फ 0.1 सेकंड दूर रह जाते हैं, तो युवा पीढ़ी ओलंपिक पदक क्यों नहीं जीत सकती, वो भी तब, जब उनके हाथ में सब कुछ है। आज हमारे पास किसी चीज की कमी नहीं है। युवा पीढ़ी को सिर्फ कड़ी मेहनत वाली मानसिकता की जरूरत है।”
पीटी उषा ने कहा, "मुझे पूरा विश्वास है कि भारत जल्द से जल्द एथलेटिक्स में ओलंपिक स्वर्ण जीतेगा,"
संयोग से पीटी उषा और मिल्खा सिंह ऐसे दो भारतीय एथलीट हैं जो एथलेटिक्स ओलंपिक पदक के सबसे करीब पहुंचे थे
जहां पीटी उषा ने 1984 के लॉस एंजेलिस ओलंपिक में 400 मीटर बाधा दौड़ में 0.01 सेकंड से कांस्य पदक गवां दिया था, तो वहीं 1960 में रोम ओलंपिक में 400 मीटर स्प्रिंट फाइनल में मिल्खा सिंह 0.1 सेकेंड से पदक जीतने से चूक गए थे।
पीटी उषा को प्यार से पय्योली एक्सप्रेस कहा जाता है, वो मिल्खा सिंह के 1960 के ओलंपिक रन को अपना पसंदीदा दौड़ मानती हैं।
“मेरा पसंदीदा, निश्चित रूप से, उनका ओलंपिक का प्रदर्शन है। क्या 50 साल बाद भी किसी ने ऐसा प्रदर्शन किया है? आज हम विदेशी प्रशिक्षकों, मसाजर्स, फिजियो आदि पर करोड़ों रुपये खर्च करते हैं। हमारे पास आज सभी सुविधाएं और विदेशी प्रशिक्षण उपलब्ध हैं। फिर भी, ऐसा प्रदर्शन हमारे देश में नहीं देखा जाता है। इससे पता चलता है कि वो कितना शानदार प्रदर्शन था।"
दो दिग्गज स्प्रिंटर पहली बार 1982 में कोरिया के सियोल में एक जूनियर इंटरनेशनल मीट के दौरान मिले थे, जहां पीटी उषा प्रतिस्पर्धा कर रही थीं और मिल्खा सिंह शेफ डी मिशन (भारतीय प्रतिनिधिमंडल के लीडर) थे।
केरल की तीन बार की ओलंपियन ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, “मैं बहुत छोटी थी और मुझे हिंदी अच्छे से नहीं आती थी। वो बहुत मिलनसार स्वभाव के थे और हमें अच्छा प्रदर्शन करने के लिए कहते थे। जब भी हम मिलते थे, वो या तो मुझे पीटी या बेटी (बेटी) कहकर बुलाते थे। उन्होंने मुझे कभी उषा नहीं कहा।”
पीटी उषा ने कहा, "वो मुझसे कहा करते थे कि सिर्फ भारतीय ट्रैक पर दौड़ने से अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीतने में मदद नहीं मिलेगी। वो मुझे विदेशी ट्रैक पर अनुभव हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में अधिक भाग लेने के लिए कहते थे।"
मिल्खा सिंह का कुछ दिन पहले COVID-19 के कारण निधन हो गया था।