जानिए कैसे 0.1 सेकेंड के अंतर से मिल्खा सिंह के हाथों से फिसल गया था ओलंपिक पदक

फ्लाइंग सिख ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक 1960 में पदक जीतने के बेहद करीब पहुंचकर चूक गए थे।

4 मिनटद्वारा जतिन ऋषि राज
मिल्खा सिंह (बाएं), रोम 1960 की 400 मीटर रेस की एक फ़ोटो फ़िनिश 

कई सालों से उसैन बोल्ट, एलिसन फेलिक्स, डॉफ्ने स्किप्पर्स और हेल गेब्रसेलासी जैसे दिग्गजों ने एथलेटिक्स की दुनिया में अपना नाम बनाया हुआ है और अगर भारत की बात करें तो वह इस क्षेत्र में काफ़ी पीछे था। हालांकि, कुछ एथलीट ऐसे निकले हैं जिनका भारतीय एथलेटिक्स में अहम योगदान रहा है और उन्होंने ख़ूब नाम भी कमाया है।

मिल्खा सिंह का ओलंपिक सफ़र

भारत की ओर से मिल्खा सिंह का नाम खूब चर्चा में था। उनके ऊपर रोम ओलंपिक 1960 का दारोमदार था। 'फ्लाइंग सिख’ के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह दूसरी बार ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रहे थे और उन्होंने दो साल पहले यानी 1958 एशियन गेम्स की 400 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर लोगों की उम्मीदों को बढ़ा दिया था।

मिल्खा सिंह ने साल 1958 और साल 1962 एशियन गेम्स में जीत के साथ महाद्वीपीय स्तर पर अपने नाम का डंका बजा दिया था लेकिन 1960 ओलंपिक खेल की मिल्खा सिंह की वह रेस कोई नहीं भूल सकता जिसमें वह चौथे स्थान पर रहे थे।

0.1 के अंतर से ओलंपिक पदक जीतने से चूके मिल्खा सिंह

400 मीटर में भाग ले रहे मिल्खा ने क्वार्टर-फाइनल तक का सफ़र मानो बहुत आसानी से पार कर लिया। यहां तक कि सेमीफाइनल में उनका प्रदर्शन और बेहतर हो गया। उन्होंने यूएस के ओटिस डेविस के पीछे रहकर फाइनल में कदम रखा।

प्रिलिमिनरी राउंड में शानदार प्रदर्शन दिखाने के बाद मिल्खा सिंह फाइनल में जाने के लिए फेवरेट तो बन ही गए लेकिन उनसे पदक जीतने की भी उम्मीदें भी काफ़ी बढ़ गईं। जिस तरह से वह दौड़ रहे थे, उनको देखकर ऐसा लग लग रहा था कि भारत का ट्रैक एंड फील्ड में मेडल जीतने का सपना पूरा हो जाएगा।

एक तरफ मिल्खा भारत के लिए इतिहास लिखने को बेक़रार थे तो दूसरी तरफ़ उनके प्रशंसक उनके लिए दुआ मांग रहे थे। पूरा भारत एक हो चुका था और सबकी ज़ुबान पर मिल्खा सिंह का ही नाम था।

इस रेस के रिजल्ट में ग़लती देखी गई जिसकी वजह से साउथ अफ्रीका के मैल्कॉम स्पेंस ने भारतीय धावक मिल्खा सिंह को पछाड़ दिया।

मैल्कॉम स्पेंस ने रेस को 45.5 सेकेंड में खत्म करते हुए कांस्य पदक जीता। मिल्खा भी खूब दौड़े। उनके और पदक के बीच महज़ 0.1 सेकेंड का अंतर रह गया। इस मुक़ाबले के बाद कुछ सवाल भी खड़े हुए लेकिन सच तो यह था कि भारत एकबार फिर ट्रैक एंड फील्ड में मेडल जीतने में असफल रहा।

ओटिस डेविस ने रेस को 44.9 सेकेंड में ख़त्म कर उस वक्त वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ ही स्वर्ण पदक पर भी अपने नाम की मुहर लगाई। कार्ल कॉफ़मैन और विजेता ओटिस डेविस के बीच भी नाम मात्र का अंतर रहा।

आज भी मिल्खा सिंह के बेटे जीव मिल्खा सिंह के दिल में उस रेस के आंकड़े ताज़ा हैं और वह भी बाक़ी भारतीय की तरह सोचते है कि काश उस दिन पदक हमारे हाथ आ जाता।

Olympics.com से बात करते हुए गोल्फर जीव मिल्खा सिंह ने कहा “उन्होंने मुझे कहा था कि वह मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ग़लती थी और मैं उसके लिए खुद को कभी माफ़ नहीं करूंगा। उन्हें हमेशा यही दुख रहा और उन्होंने खुद को दोषी माना और कहा कि टॉप लेवल का एथलीट होने के नाते मैं गोल्ड मेडल जीत सकता था लेकिन मैंने रेस को ख़राब तरीक़े से मैनेज किया।

मुझे पता था कि मेरी क्या गलती थी। लेन 5 में जबरदस्त दौड़ने के बाद मैं 250 मीटर पर धीरे हो गया और उसके बाद मैं अंतर को कवर नहीं कर पाया।

मिल्खा सिंह की उपलब्धियां

मिल्खा सिंह भले ही ओलंपिक पदक जीतने से चूक गए लेकिन उस दिन उन्होंने हज़ारों लोगों का दिल जीतने के साथ-साथ नेशनल रिकॉर्ड भी बनाया, जो आज भी कायम है।

1960 रोम Olympic Khel में भारतीय हॉकी टीम भी स्वर्ण पदक जीतने से चूक गई थी और साथ ही मिल्खा सिंह भी पदक हासिल नहीं कर सके थे।

Olympic Khel को छोड़कर, मिल्खा सिंह ने कई प्रतियोगिताएं अपने नाम की हैं और उन्होंने भारतीय ट्रैक एंड फील्ड का भविष्य भी उज्ज्वल किया। एशियाई खेल में स्वर्ण पदक जीतने के साथ मिल्खा सिंह कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैक एंड फील्ड में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने।

प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने मिल्खा की इस जीत के अगले दिन ही देश में राष्ट्रीय छुट्टी का ऐलान किया। इसके बाद भी मिल्खा सिंह ने भारतीय खेल जगत को बढ़ावा देना जारी रखा। कुछ समय बाद वह पंजाब के डायरेक्टर ऑफ स्पोर्ट्स बने।

आज उस ओलंपिक इवेंट को गुजरे कई साल हो चुके हैं लेकिन मिल्खा सिंह क नाम आज भी भारत में पूरे आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।

से अधिक