जेरेमी बुजाकोव्स्की से आरिफ खान तक, जानिए विंटर ओलंपिक में भारत का इतिहास
अब तक 11 संस्करणों में भारत विंटर ओलंपिक में भाग ले चुका है और बीजिंग 2022 में भाग लेकर मोहम्मद आरिफ खान 16वें एथलीट बन गए हैं, जिन्होंने विंटर गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।
भारत बीजिंग 2022 में भाग लेकर अपनी 11वीं विंटर ओलंपिक में उपस्थिति को दर्ज करा चुका है।
समर ओलंपिक में भारत ने 25 संस्करणों में भाग लिया है, उसकी तुलना में भारत का विंटर ओलंपिक प्रदर्शन बहुत अलग रहा है।
ऐसे माना जाता है कि भारत में ज्यादा गर्मी पड़ती है, ऐसे में इस देश का शीतकालीन खेलों के प्रति लगाव कम ही रहा है। इसलिए इसके बुनियादी ढांचे को भी उतना विकसित नहीं किया गया है जितना कि ग्रीष्मकालीन खेलों के किया गया है।
हालांकि, शीतकालीन खेलों की शुरुआत 1924 में हुई थी लेकिन भारत को अपने पहले एथलीट को विंटर ओलंपिक के लिए तैयार करने में 40 साल लग गए।
जेरेमी बुजाकोव्स्की - विंटर ओलंपिक में जाने वाले पहले भारतीय एथलीट
1964 में ऑस्ट्रिया में आयोजित हुए खेलों में जेरेमी बुजाकोव्स्की शीतकालीन ओलंपिक में भाग लेने वाले पहले भारतीय बने। वह उस संस्करण में एकमात्र भारतीय थे और उन्होंने पुरुषों की डाउनहिल अल्पाइन स्कीइंग स्पर्धा में भाग लिया था।
भारत आने से पहले लिथुआनिया में जन्मे जेरेमी अपनी पढ़ाई के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए, जेरेमी बुजाकोव्स्की को उस समय एक मूल भारतीय की तुलना में शीतकालीन खेलों का अधिक अनुभव था।
जेरेमी बुजाकोव्स्की 1964 के खेलों में अपनी रेस पूरी नहीं कर सके, लेकिन 1968 के संस्करण में तीन स्पर्धाओं (मेंस डाउनहिल, स्लैलम और जाइंट स्लैलम) में प्रतिस्पर्धा की। इस बार उन्होंने डाउनहिल और जाइंट स्लैलम स्पर्धाओं को पूरा किया और क्रमश: 53वें और 65वें स्थान पर रहे।
बुजाकोव्स्की के बाद भारत 20 सालों तक शीतकालीन ओलंपिक में कोई एथलीट नहीं भेज पाया।
शैलजा कुमार और नेहा आहूजा – पहली भारतीय महिला विंटर ओलंपियन
कनाडा में आयोजित 1988 के कैलगरी खेलों में शीतकालीन ओलंपिक में भारत की वापसी हुई। 1992 के खेलों को छोड़कर भारत ने तब से सभी शीतकालीन खेलों में भाग लिया है।
भारत ने 1988 कैलगरी खेलों के लिए तीन सदस्यीय की टीम भेजी।
गुल देव और किशोर रहना राय ने पुरुषों की स्लैलम स्पर्धा में भाग लिया, जबकि शैलजा कुमार शीतकालीन ओलंपिक में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। शैलजा कुमार महिला स्लैलम में 28वें स्थान पर रहीं, जो उस समय किसी भी भारतीय शीतकालीन ओलंपियन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था।
18 साल बाद भारत के लिए शीतकालीन खेलों में प्रतिस्पर्धा करने वाली नेहा आहूजा ने इटली में 2006 के शीतकालीन ओलंपिक में महिलाओं के स्लैलम और जायंट स्लैलम में भाग लिया था।
नेहा आहूजा मीनिमम क्वालिफिकेशन स्टैंडर्ड को पूरा करके शीतकालीन ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला हैं। आज तक शैलजा कुमार और नेहा आहूजा ही भारत की सिर्फ दो महिला शीतकालीन ओलंपियन हैं।
शिवा केशवन
शीतकालीन ओलंपिक में भारत का इतिहास छह बार के शीतकालीन ओलंपियन शिवा केशवन के बिना अधूरा है।
अभी तक जहां लगभग सभी भारतीय एथलीट शीतकालीन ओलंपियन स्की-आधारित खेलों में भाग ले चुके थे, वहीं शिवा केशवन ने देश के शीतकालीन खेल प्रशंसकों के लिए एक अलग खेल - लुग की शुरुआत की। उन्होंने 1998 में जापान के नागानो में आयोजित हुए खेलों में अपने पहले शीतकालीन खेलों के लिए क्वालीफाई किया।
16 साल की उम्र में शिवा केशवन उस समय शीतकालीन ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाले सबसे कम उम्र के लुगर भी बन गए थे। शिवा केशवन ने तब से पांच और शीतकालीन ओलंपिक में भाग लिया है, जिससे वह भारतीय इतिहास में सबसे दिग्गज शीतकालीन ओलंपियन बन गए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि सोची 2014 में शिवा केशवन ने भारतीय तिरंगे के बजाय (अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति) आईओसी ध्वज के तहत प्रतिस्पर्धा की।
सोची खेलों से पहले भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) पर बैन लगा हुआ था और शिवा केशवन सहित तीन भारतीय एथलीटों ने स्वतंत्र ओलंपिक प्रतिभागियों (IOP) के रूप में खेलों में भाग लिया।
हालांकि, IOA के ऊपर लगा बैन सोची खेलों के बीच में ही हटा लिया गया था, जिसके बाद भारतीय एथलीट आधिकारिक तौर पर भारतीय ध्वज का प्रतिनिधित्व कर सकते थे लेकिन शिवा केशवन ने प्रतिबंध हटने से पहले ही अपना कार्यक्रम समाप्त कर लिया था और उनके परिणाम IOP के तहत दर्ज किए गए थे।
शिवा केशवन ने 2018 शीतकालीन खेलों के बाद संन्यास ले लिया।
बीजिंग 2022 के लिए, भारतीय अल्पाइन स्कीयर आरिफ मोहम्मद खान ने मेंस स्लैलम और जाइंट स्लैलम में कोटा जीता था। वो सीधे दो अलग-अलग इवेंट्स के लिए क्वालीफाई करने वाले पहले भारतीय बने। हालांकि वो जायंट स्लैलम में 45वें स्थान पर रहे, जो विंटर गेम्स में किसी भी भारतीय की सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
भारत को अभी भी शीतकालीन ओलंपिक में अपने पहले पदक का इंतज़ार है।