भारतीय फुटबॉल का इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। इस दौरान हमें कुछ सुनहरे पल देखने को मिले, तो वहीं कई बार टीम को काफी मुश्किल दौर से गुजरना पड़ा और सबसे ज्यादा निराशा तब हुई जब भारत फीफा वर्ल्ड कप में खेलने से चूक गया।
चलिए, भारतीय फुटबॉल का इतिहास जानें और उन खास मौकों और पलों पर नजर डालते हैं, जिन्होंने इस खेल को भारत में नई पहचान दी।
भारतीय फुटबॉल की शुरुआत: 1800-1900
भारतीय फुटबॉल का इतिहास 19वीं सदी के मध्य से शुरू होता है, जब ब्रिटिश उपनिवेशकों के साथ यह खेल देश में आया। उस समय फुटबॉल सिर्फ ब्रिटिश सेना और नौसेना के अधिकारियों के बीच खेला जाता था, जो भारत में तैनात थे।
1870 के दशक में इस खेल ने धीरे-धीरे भारतीय समाज में प्रवेश करना शुरू किया। माना जाता है कि 1872 में भारत का पहला फुटबॉल क्लब, कलकत्ता एफसी, स्थापित हुआ था। हालांकि, कुछ रिपोर्टों के अनुसार, यह क्लब पहले एक रग्बी क्लब के रूप में शुरू हुआ और फिर 1894 में फुटबॉल में परिवर्तित हुआ।
भारतीय फुटबॉल को सही दिशा में लाने का श्रेय नागेंद्र प्रसाद सर्वाधिकारी को जाता है, जिन्हें भारतीय फुटबॉल के इतिहास का पथप्रदर्शक माना जाता है। सर्वाधिकारी ने कोलकाता और बंगाल में कई फुटबॉल क्लब स्थापित किए, जिससे इस खेल की लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ।
यही कारण है कि कलकत्ता (अब कोलकाता) और बंगाल को भारतीय फुटबॉल का गढ़ माना जाता है, जहां इस खेल ने अपनी जड़ें मजबूती से जमा लीं।
सर्वाधिकारी ने भारत में फुटबॉल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1889 में मोहन बागान, 1891 में मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब और 1920 में ईस्ट बंगाल की स्थापना की। ये तीनों क्लब आज भी मौजूद हैं।
सर्वाधिकारी ने खुद भी कई क्लब स्थापित किए, जिनमें से एक था सोवाबाजार क्लब। यह क्लब 1892 में ट्रेड्स कप जीतने वाला पहला भारतीय क्लब था। उन्होंने ईस्ट सरे रेजिमेंट को हराकर यह जीत हासिल की। इस जीत ने लगभग दो दशक बाद मोहन बागान की ऐतिहासिक IFA शील्ड जीतने की नींव रखी।
1893 में, सर्वाधिकारी ने भारतीय फुटबॉल एसोसिएशन (IFA) की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। IFA भारत में फुटबॉल के लिए गर्वनिंग बॉडी के रूप में कार्य करता था, जब तक कि 1937 में ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (AIFF) की स्थापना नहीं हुई थी।
भारत में फुटबॉल का विकास सर्वाधिकारी के पूर्वी क्षेत्र से शुरू हुआ। उनके प्रयासों से यह खेल देश के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय होता गया। साल 1899 में, त्रिशूर, केरल में आरबी फर्ग्यूसन फुटबॉल क्लब या यंग मेन्स फुटबॉल क्लब की स्थापना हुई।
यह दक्षिण भारत का पहला फुटबॉल क्लब था और इस क्लब ने केरल में फुटबॉल को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। केरल के साथ-साथ बंगाल और हैदराबाद भारत में फुटबॉल के प्रमुख केंद्र बन गए।
डूरंड कप, जो आज एशिया का सबसे पुराना सक्रिय फुटबॉल टूर्नामेंट है, यह 1888 में शुरू किया गया था। संतोष ट्रॉफी, भारत की राज्य स्तरीय फुटबॉल चैंपियनशिप, 1941 से आयोजित की जा रही है।
आजादी से पहले फुटबॉल का दौर: 1900-1947
1900 से 1947 के बीच जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था, फुटबॉल एक दिलचस्प तरीके से प्रतिरोध का साधन बन गया।
महात्मा गांधी, जिन्हें अक्सर भारत की स्वतंत्रता के वास्तुकार के रूप में जाना जाता है, उन्होंने 1900 के दशक की शुरुआत में दक्षिण अफ्रीका के डरबन, प्रिटोरिया और जोहान्सबर्ग में तीन फुटबॉल क्लब स्थापित किए और उनका नाम "पैसिव रेसिस्टर्स सोकर क्लब" रखा।
गांधी ने इन मैचों का उपयोग नस्लीय भेदभाव के खिलाफ जागरूकता फैलाने और अहिंसक प्रतिरोध के सिद्धांतों के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए किया।
1914 में भारत लौटने के बाद, गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया और फुटबॉल से अपना जुड़ाव जारी रखा। उन्होंने 1921-22 में दक्षिण अफ्रीका की पहली फुटबॉल टीम की भारत यात्रा को भी प्रोत्साहित किया।
1911 में मोहन बागान ने आईएफए शील्ड जीतकर इतिहास रच दिया। उन्होंने फाइनल में ईस्ट यॉर्कशायर रेजिमेंट को हराकर न सिर्फ प्रतिष्ठित ट्रॉफी जीती, बल्कि यह जीत भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक बड़ी प्रेरणा साबित हुई। यह पहली बार था जब किसी भारतीय क्लब ने इस प्रतिष्ठित ट्रॉफी पर कब्जा किया।
1940 में, मोहम्मडन स्पोर्टिंग ने वारविकशायर रेजिमेंट को 2-1 से हराकर डूरंड कप जीता। यह पहली बार था जब कोई गैर-भारतीय टीम ने इस प्रतिष्ठित ट्रॉफी को हासिल किया।
इसके बाद भारतीय फुटबॉल टीम ने अपना पहला विदेशी दौरा किया जब भारतीय और ब्रिटिश खिलाड़ियों से मिलकर बनी टीम ने श्रीलंका (तब के समय का सीलोन) का दौरा किया। इस दौरे में भारतीय फुटबॉल टीम के पहले कप्तान माने जाने वाले महान फुटबॉलर गोष्ठ पाल ने टीम का नेतृत्व किया।
कुछ साल पहले, 1937 में ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (AIFF) की स्थापना की गई ताकि भारतीय फुटबॉल का प्रबंधन किया जा सके। अगले ही साल, भारतीय फुटबॉल टीम ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया, जहां उन्होंने पांच फ्रेंडली मैच और कई अन्य मुकाबले खेले। यह एशिया के बाहर भारत का पहला दौरा था।
इसी दौरे के दौरान, 24 सितंबर 1938 को सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए चौथे फ्रेंडली मैच में, भारत के आर.लम्सडेन ने तीन गोल किए। यह किसी भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी द्वारा की गई पहली अंतरराष्ट्रीय हैट्रिक थी।
स्वर्णिम युग, वर्ल्ड कप खेलने से चूकी भारतीय फुटबॉल टीम: 1948 से 1970
भारत की स्वतंत्रता के बाद 1947 में, भारतीय फुटबॉल टीम का पहला आधिकारिक मिशन दिलचस्प रूप से 1948 का लंदन ओलंपिक था।
भारतीय तिरंगे का अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहली बार प्रतिनिधित्व करते हुए, भारतीय फुटबॉल टीम, जिसकी कप्तानी तालीमेरेन एओ ने की और कोच बलेदास चटर्जी थे।
31 जुलाई 1948 को ईस्ट लंदन के क्रिकलफील्ड स्टेडियम में 17,000 दर्शकों के सामने यूरोपीय दिग्गज फ्रांस के खिलाफ टीम ने मैच खेला।
भारत को ओलंपिक में अपने डेब्यू फुटबॉल मैच में 2-1 से हार मिली, जिसमें सरंगापानी रमन ने मैच में स्वतंत्र भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय गोल किया।
हालांकि, टीम में सैलें मन्ना भी शामिल थे उन्होंने लेस ब्लूज़ को अंतिम मिनट तक पसीना बहाने पर मजबूर कर दिया। गौर करने वाली बात यह थी कि इस मैच में भारत के आठ खिलाड़ी नंगे पैर खेल रहे थे।
भारत ने लगातार तीन ओलंपिक खेल - हेल्सिंकी 1952, मेलबर्न 1956 और रोम 1960 में हिस्सा लिया। मेलबर्न 1956 में, भारतीय फुटबॉल टीम, जिसे महान सैयद अब्दुल रहीम ने कोचिंग दी, वह इतिहास रचते हुए सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली एशियाई टीम बन गई। उन्होंने क्वार्टरफाइनल में मेजबान ऑस्ट्रेलिया को हराया।
हालांकि, सेमीफाइनल में यूगोस्लाविया और कांस्य पदक मैच में बुल्गारिया से हारने के कारण सैमार बनर्जी की अगुवाई वाली टीम पदक से चूक गई।
वास्तव में, 1948 से 1970 के बीच का दौर भारतीय फुटबॉल के स्वर्ण युग के रूप में माना जाता है।
इस दौरान, भारतीय फुटबॉल टीम ने दो एशियन गेम्स गोल्ड मेडल (1951 और 1962) और एक कांस्य (1970) जीते। भारत ने 1964 में अपने AFC एशियन कप की शुरुआत की और उपविजेता बने। यह टूर्नामेंट में अब तक की उनकी सबसे बेहतरीन उपलब्धि है।
कोच रहीम और कुछ प्रतिभाशाली खिलाड़ी जैसे पीके बनर्जी, चुनी गोस्वामी और तुलसीदास बलराम ने इस सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
भारत 1950 के फीफा वर्ल्ड कप के लिए ब्राजील में क्वालीफाई कर गया था, लेकिन AIFF ने टीम भेजने से मना कर दिया। कारण था ‘टीम चयन पर असहमति और अपर्याप्त अभ्यास समय’। इसके बाद से भारत फुटबॉल वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई नहीं कर सका।
घरेलू स्तर पर, ईस्ट बंगाल ने इतिहास रचा और लगातार तीन साल (1949 से 1951 तक) IFA शील्ड जीतने वाला पहला भारतीय क्लब बन गया। इससे इंग्लिश FA वार्षिक अल्मनैक 1951-52 ने रेड और गोल्ड को सर्वश्रेष्ठ भारतीय फुटबॉल क्लब के रूप में मान्यता दी।
भारतीय फुटबॉल टीम का मुश्किल दौर: 1970 से 2005
भारतीय फुटबॉल टीम अपनी शुरुआती सफलता को कायम नहीं रख पाई और अगले कुछ दशकों में भारत, जो पहले एशिया में एक प्रमुख टीम के तौर पर मानी जाती थी, वह धीरे-धीरे कमजोर होती गई।
हालांकि, प्रसून बनर्जी की कप्तानी में भारत 1974 में बैंकॉक में हुई एशियन यूथ चैंपियनशिप में ईरान के साथ संयुक्त विजेता बना। सीनियर टीम ने SAF गेम्स में कई स्वर्ण पदक जीते और SAFF चैंपियनशिप में भी अपना दबदबा कायम रखा।
लेकिन टीम को महाद्वीपीय या विश्व स्तर पर प्रभाव डालने में काफी संघर्ष करना पड़ा। 1968 से 2008 के बीच, भारतीय फुटबॉल टीम ने सिर्फ एक AFC एशियन कप - 1984 के संस्करण सिंगापुर के लिए क्वालीफाई किया, लेकिन टीम ग्रुप चरण से आगे नहीं बढ़ पाई।
यहां तक कि एशियन खेलों में, जहां टीम एक समय पर हावी रही थी, लेकिन वहीं कुछ समय बाद भारत 1970 में कांस्य पदक जीतने के बाद से कभी भी अंतिम आठ से आगे बढ़ने में असफल रहा।
नेहरू कप, जो 1982 में शुरू हुआ था ताकि भारत में विश्व भर की बेहतरीन राष्ट्रीय टीमों को खेलने के लिए लाया जा सके। वह धीरे-धीरे अपनी चमक खो बैठा और 2012 के संस्करण के बाद इसे बंद कर दिया गया।
क्लब फुटबॉल की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी। ईस्ट बंगाल द्वारा 2003 में ASEAN चैंपियनशिप जीतने के अलावा, महाद्वीपीय स्तर पर सफलताएं कम ही रही हैं।
भारत के पास बाईचुंग भूटिया, IM विजय और जो पॉल एंचेरी जैसे कुछ प्रतिभाशाली खिलाड़ी होने के बावजूद, उस समय भारत आधुनिक खेल की तकनीकी जरूरतों को पूरा नहीं कर सका।
AIFF ने उस समय के दौरान घरेलू संरचना में कई बदलाव किए। फेडरेशन कप की शुरुआत 1977 में हुई थी और इसे देश के क्लबों के लिए प्रमुख कप प्रतियोगिता के रूप में डिजाइन किया गया था। उसी वर्ष पेले कोलकाता में कॉस्मोस के साथ मोहन बागान के खिलाफ एक शो मैच खेलने के लिए आए।
नेशनल फुटबॉल लीग की शुरुआत साल 1996 में हुई और यह भारत की पहली संगठित फुटबॉल प्रतियोगिता थी। जेसीटी ने पहले साल की चैंपियनशिप जीती। इसे 2007 में आई-लीग में बदल दिया।
भारतीय फुटबॉल टीम का नया दौर: 2008 से अभी तक
पिछले डेढ़ दशक में भारतीय फुटबॉल के इतिहास में काफी कुछ बदलाव देखने को मिला है।
भारतीय फुटबॉल ने सही दिशा में एक बड़ा कदम तब बढ़ाया जब युवा सुनील छेत्री की अगुवाई में नेशनल टीम ने 2008 एएफसी चैलेंज कप जीता।
इस जीत के साथ भारत 2011 एएफसी एशियन कप के लिए क्वालीफाई कर गया, जो कि 27 सालों की लंबी अनुपस्थिति के बाद भारत की महाद्वीपीय प्रतियोगिता में वापसी थी। उसी साल गोवा क्लब डेम्पो ने 2008 एएफसी कप में सेमी-फाइनलिस्ट के रूप में प्रदर्शन किया।
ईस्ट बंगाल ने 2013 में एएफसी कप के सेमी-फाइनलिस्ट के रूप में प्रदर्शन किया, जबकि बेंगलुरू एफसी ने 2016 में रनर-अप के रूप में समाप्त किया, जो कि अब तक किसी भी भारतीय टीम की महाद्वीपीय टूर्नामेंट में सबसे अच्छी समाप्ति है।
भारतीय एरोस प्रोजेक्ट, जो युवा प्रतिभाओं को शीर्ष घरेलू क्लब फुटबॉल से जोड़ने के लिए शुरू किया गया था और इसकी शुरुआत साल 2010 में हुई। कई चुनौतियों के बावजूद, यह प्रोजेक्ट अगले दशक के लिए भारतीय फुटबॉल का प्रमुख स्रोत साबित हुआ, जिसने प्रीतम कोटल, गुरप्रीत सिंह संधू, जेजे लालपेखलुआ और अनवर अली जैसे फर्स्ट टीम के नियमित खिलाड़ियों को जन्म दिया।
इंडियन सुपर लीग (ISL) 2014 में शुरू की गई और इसे भारतीय फुटबॉल कैलेंडर में धीरे-धीरे शामिल किया गया और 2022-23 में इसने देश की शीर्ष लीग प्रतियोगिता के रूप में आई-लीग की जगह ले ली।
वहीं, सुपर कप, जिसे 2018 में शुरू किया गया। उसने फेडरेशन कप की जगह ली और भारत की शीर्ष नॉकआउट प्रतियोगिता बन गई।
ISL टीम एफसी गोवा एएफसी चैंपियंस लीग के मुख्य ड्रॉ में खेलने वाली पहली भारतीय टीम बन गई, जो महाद्वीप की शीर्ष क्लब फुटबॉल प्रतियोगिता है। अगले साल, मुंबई सिटी एफसी ने इस टूर्नामेंट में मैच जीतने वाली पहली भारतीय क्लब बनने का गौरव प्राप्त किया।
नेशनल टीम 2015 एएफसी एशियन कप के लिए क्वालीफाई करने में असफल रही, लेकिन अगले दो संस्करणों 2019 और 2023 में जगह बनाई। सुनील छेत्री सबसे अधिक अंतरराष्ट्रीय गोल करने वाले खिलाड़ियों की लिस्ट में शीर्ष-5 में शामिल हैं जिसमें दिग्गज फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो और लियोनेल मेसी के नाम भी शामिल हैं।
भारत ने इंटरकांटिनेंटल कप के तीन संस्करणों में से दो कप जीते हैं, पहली बार 2018 में केन्या को हराकर और फिर 2023 में लेबनान को हराकर जीता था।