मैरी कॉम: एक शानदार ओलंपिक डेब्यू और अजेय सुपरमॉम का यादगार प्रदर्शन

इस दिग्गज बॉक्सर ने पांच बार वर्ल्ड एमेच्योर चैंपियन बनने के बाद ओलंपिक डेब्यू किया था और अपना भार वर्ग बढ़ाने के बावजूद ब्रॉन्ज़ मेडल जीतकर इतिहास रचा था।

5 मिनटद्वारा रितेश जायसवाल
Mary Kom: Pride of India

मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम को पूरी दुनिया में ज्यादातर लोग एमसी मैरी कॉम के नाम से जानते हैं। वह 2012 लंदन ओलंपिक में ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने के बाद भारत की अग्रणी खेल नायिकाओं में से एक रही हैं।

2012 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में पहली बार एमेच्योर वूमेंस बॉक्सिंग का आयोजन किया गया था और मैरी कॉम पहले ही इसमें झंडे गाड़कर छा चुकी थीं।

भारतीय मुक्केबाज़ ने उस समय तक AIBA विश्व मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में पांच स्वर्ण पदक और एक रजत पदक हासिल कर लिया था, जिससे वह महिलाओं की विश्व चैंपियनशिप के इतिहास में सबसे सफल मुक्केबाज़ बन गईं थीं।

मैरी कॉम ने एशियाई चैंपियनशिप में भी चार बार स्वर्ण पदक जीते थे, 2012 के ओलंपिक खेलों से कुछ महीने पहले ही उन्होंने चौथा खिताब जीता था।

इस सभी सफलता के बावजूद वह भारत की सबसे लोकप्रिय खिलाड़ियों की तुलना के आस-पास भी नहीं थीं।

हालांकि, 8 अगस्त 2012 की शाम को यह सब बदल गया, क्योंकि मैरी कॉम 51 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक अपने नाम करते हुए ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज़ बन गईं थीं। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, जिसने एक चमकते हुए सितारे को और अधिक चमकाने का काम किया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रखे क़दम

शुरुआत में एथलेटिक्स में रुचि रखने वाली मैरी कॉम ने मणिपुर के एक मुक्केबाज़ डिंग्को सिंह से प्रेरणा लेकर मुक्केबाज़ी में कदम रखा। डिंग्को सिंह ने 1998 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। जिसने मैरी कॉम को सोचने पर मजबूर कर दिया था।

उस समय उनके कोच के कोसाना मीतेई ने मैरी के हुनर को पहचाना और उन्हें मुक्केबाज़ी की मूल बातें बताईं।

इस खेल के लिए मैरी कॉम का प्यार तब और भी गहरा हो गया, जब उन्होंने पहली बार 2000 में अपने शानदार खेल प्रदर्शन से एक लहर सी पैदा की। जिसके चलते उन्होंने मणिपुर स्टेट बॉक्सिंग चैंपियनशिप और पश्चिम बंगाल चैंपियनशिप दोनों जीतीं।

साल 2001 में महज 18 साल की उम्र में मैरी कॉम ने यूएसए के स्क्रैंटन में AIBA महिलाओं की विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 48 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक जीता।

हालांकि वह फाइनल में बहुत अधिक अनुभवी मुक्केबाज़ हुल्या साहिन से आसानी से हारकर बाहर हो गईं थीं। उसी के बाद मैरी कॉम ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने क़दम रखने की घोषणा की थी।

इसने मुक्केबाज़ी विश्व चैंपियनशिप के साथ मैरी कॉम के एक नए अध्याय को शुरू किया।

मैरी कॉम का ओलंपिक पदक

महिला मुक्केबाजी 2012 लंदन ओलंपिक में अपना डेब्यू करने जा रहा था और भारत को अपने चमकते हुए सितारे मैरी कॉम से काफी उम्मीदें थीं, जो संयोग से उस संस्करण में ओलंपिक कट हासिल करने वाली एकमात्र महिला भारतीय मुक्केबाज़ भी थीं।

मैरी कॉम के लिए एक और चुनौती यह भी थी कि उन्हें 51 किग्रा (फ्लाईवेट) में लड़ने के लिए अपने भार वर्ग को बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि विश्व निकाय ने केवल तीन भार वर्गों में महिलाओं की मुक्केबाज़ी को अनुमति देने का फैसला किया था।

हालांकि, ये सभी बातें इस महान भारतीय मुक्केबाज़ को प्रभावित नहीं कर सकीं।

पोलैंड की एल लंबी और शारीरिक तौर पर मज़बूत प्रतिद्वंदी कारोलिना मिखालचुक के खिलाफ वह पहली बार ओलंपिक रिंग में उतरीं। मैरी कॉम ने अपने शानदार फुटवर्क का इस्तेमाल करते हुए पोलिश मुक्केबाज़ को 19-14 से हराकर क्वार्टर-फाइनल में प्रवेश किया। इस पहली जीत के साथ उनका आत्मविश्वास और भी बढ़ गया।

इसके बाद भारतीय मुक्केबाज़ को ट्यूनीशिया की मरौआ रहली के खिलाफ पहले दौर में थोड़ी मुश्किल हुई, लेकिन दूसरे दौर में उनके लगातार हमलों और अंतिम राउंड में लगाए गए दो खतरनाक दाएं हुक ने उन्हें सेमीफाइनल में पहुंचा दिया।

इस जीत ने मैरी कॉम के लिए कांस्य पदक सुनिश्चित कर दिया और वह कर्णम मल्लेश्वरी और साइना नेहवाल के बाद भारत की ओर से ओलंपिक पदक जीतने वाली तीसरी महिला एथलीट बन गईं।

इसके बाद मैरी कॉम निकोला एडम्स से सेमीफाइनल में हार गईं, जिन्होंने अंत में गोल्ड मेडल हासिल किया था।

हालांकि, ओलंपिक कांस्य पदक ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसने उनकी सोच आज़ाद और हौसले को बुलंद करने का काम किया था।

"ओलंपिक पदक ने मेरी जिंदगी बदल दी, क्योंकि अब मैं वह सब कर पा रहा हूं जो मैं चाहती हूं।"

ओलंपिक स्वर्ण पदक की भूख

उस ओलंपिक सफलता के बाद से मैरी कॉम ने कई सफलताएं हासिल की हैं।

भारतीय मुक्केबाज ने 2014 में एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था और चार साल पहले इसी टूर्नामेंट में वह कांस्य पदक जीतने में सफल रहीं थीं। साल 2017 में उन्होंने पांचवीं बार एशियाई चैंपियनशिप का स्वर्ण पदक जीता।

‘सुपरमॉम’ मैरी कॉम ने अप्रैल 2018 में पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण जीता और कुछ महीने बाद नई दिल्ली में अपनी सरज़मीं पर छठा विश्व खिताब जीता और इसी के साथ उन्होंने आयरिश मुक्केबाज़ केटी टेलर के पांच पर इस खिताब को जीतने के रिकॉर्ड को तोड़ दिया था।

यह उनका सातवां विश्व चैंपियनशिप पदक भी था, किसी भी महिला मुक्केबाज़ द्वारा सबसे अधिक पदक हासिल करने का रिकॉर्ड। मैरी कॉम ने रूस के उलान-उडे में 2019 विश्व मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में कांस्य के साथ आठवां पदक हासिल किया था।

हालांकि, मैरी कॉम अभी भी रुकने का इरादा नहीं रखती हैं और उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षाओं को स्पष्ट भी कर दिया था।

“ओलंपिक गोल्ड की चाहत ही मेरे अंदर की भूख को ज़िंदा रखती है। एक बार अगर मैं वह जीत जाऊं तो मुझे लगता है कि मैं संतुष्ट हो जाऊंगी।”

मैरी ने अपने लिए इस मौके को भी पक्का कर लिया है। उन्होंने इस साल के मार्च में टोक्यो ओलंपिक के लिए टिकट हासिल किया है और यह उनका आखिरी ओलंपिक भी हो सकता है।

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