चंग्नेइजैंग मैरी कॉम मैंगते को ज्यादातर लोग एमसी मैरी कॉम के नाम से जानते हैं। वह भारत की एक उम्दा खेल सुपरस्टार रही हैं।
फिर चाहे वो उनके छह महिला विश्व चैंपियनशिप खिताब जीतने का सफर हो या 2012 ओलंपिक खेलों के कांस्य पदक जीतने का, इस बेमिसाल मुक्केबाज का अब तक का करियर शानदार रहा है।
अब मैरी कॉम टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण जीतने के अपने सपने के लिए तैयारी कर रही हैं, ऐसे में हम यहां पर उनके करियर की अब तक की हासिल की उपलब्धियों पर एक नज़र डालने का प्रयास कर रहे हैं। सच कहें तो उनके जीवन का संघर्ष सही मायनों में आने वाली हर पीढ़ी के लिए मिसाल साबित होगा।
मैरी कॉम: एक बॉक्सिंग युग और विश्व चैंपियनशिप
अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (AIBA) की विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में शायद ही मैरी कॉम के जैसे किसी अन्य मुक्केबाज़ का दबदबा रहा है।
जब से 2001 में वुमेंस वर्ल्ड चैंपियनशिप शुरू हुई, तब से हुए आठ संस्करणों में भारतीय मुक्केबाज़ ने प्रत्येक में पदक जीता है।
पेंसिल्वेनिया के स्कैरॉन में आयोजित की गई पहली विश्व चैंपियनशिप में 18 वर्षीय मुक्केबाज़ के रूप में प्रतिस्पर्धा करते हुए मैरी कॉम ने अपनी साफ-सुथरी मुक्केबाज़ी शैली से सभी को प्रभावित करते हुए 48 किग्रा वर्ग के फाइनल में जगह बना ली।
फाइनल में तुर्की की किक-बॉक्सर से मुक्केबाज़ बनी हुलया साहिन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैरी कॉम का कम अनुभव उनके लिए नुकसानदायक साबित हुआ और उन्हें रजत पदक के साथ ही घर वापसी करनी पड़ी।
एक साल बाद बेहतर वापसी करते हुए मैरी कॉम 45 किलोग्राम वर्ग में उत्तर कोरिया की जैंग सांग-ए के खिलाफ फाइनल में पहुंची। इस मुक़ाबले में अपनी प्रतिद्वंद्वी को हराकर वह एआईबीए की महिलाओं की विश्व मुक्केबाजी चैंपयनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
एक वर्ल्ड अमेच्योर बॉक्सिंग चैंपियन के तौर पर उन्होंने मैरी कॉम के युग की शुरुआत की, क्योंकि आने वाले वर्षों में 2005, 2006, 2008 और 2010 की प्रतियोगिताओं में विश्व चैंपियनशिप के ताज के साथ पिनवेट भार वर्ग में अपराजेय रहीं।
2008 का खिताब मैरी कॉम के लिए काफी खास था, क्योंकि उन्होंने यह अपने जुड़वा बच्चों को जन्म देने के दो साल के ब्रेक के बाद जीता था।
हालांकि, बाद में यह भारतीय स्टार लाइट फ्लाईवेट वर्ग में चली गई। लेकिन इससे उनपर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा और उन्होंने 2010 में रिकॉर्ड पांचवां विश्व खिताब जीता और ‘खेलों के महाकुंभ’ यानी ओलंपिक के लिए अपनी जगह पक्की की।
2012 में मैरी कॉम ने एक ओलंपिक पदक जीता और इसके बाद इस भारतीय सुपरमॉम को 2013 में अपने तीसरे बेटे को जन्म देने के दौरान एक बार फिर खेल से दूर रहना पड़ा।
हालांकि जल्द ही उन्होंने रिंग में वापसी की, लेकिन नई दिल्ली में हुई 2018 विश्व चैंपियनशिप से पहले तक वह कुछ ख़ास नहीं कर सकीं।
अपनी घरेलू सरज़मीं पर प्रतिस्पर्धा करते हुए मैरी कॉम ने अपना छठा विश्व खिताब जीतने के लिए यूक्रेन की हैना ओखोटा पर 5-0 से जीत दर्ज की।
एक साल बाद मैरी कॉम ने अपना आठवां विश्व पदक जीता, जो किसी भी पुरुष या महिला मुक्केबाज़ द्वारा जीते गए पदकों में सबसे अधिक है। उन्होंने यह पदक फ्लाईवेट 51 किग्रा वर्ग में जीता, जो कि एक ओलंपिक भार वर्ग है।
मैरी कॉम ओलंपिक मेडल
2012 के लंदन ओलंपिक तक एमसी मैरी कॉम अमेच्योर मुक्केबाज़ी में दुनिया में एक बड़ा और चर्चित नाम बन चुकी थीं।
उस समय तक पांच विश्व चैंपियनशिप गोल्ड अपने नाम करने के साथ भारतीय दिग्गज की चर्चा ज़ोरों पर थी, क्योंकि महिलाओं की मुक्केबाज़ी ने अपना ओलंपिक डेब्यू किया था। लेकिन पोडियम तक के लिए उनकी यह यात्रा काफी आसान थी।
हालांकि, ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए उन्हें अपने भार वर्ग (ओलंपिक के लिए केवल तीन भार वर्गों को शामिल किया गया था) को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा था। एक्सेल एग्ज़ीबीशन सेंटर में अपने ओलंपिक अभियान को शुरू करने के दौरान उन्हें कुछ कांटे की टक्कर वाले मुक़ाबलों का सामना करना था।
उनका पहला मुक़ाबला पोलैंड के एक लंबी और शारीरिक रूप बड़ी मुक्केबाज़ करोलिना मिचलोगुक के खिलाफ शुरू हुआ। भारतीय ने अपने प्रतिद्वंद्वी की पहुंच से बचने के लिए अपने शानदार फुटवर्क और अनुभव इस्तेमाल किया और क्वार्टर-फाइनल में जगह बनाने के लिए 19-14 के अंकों के अंतर से जीत दर्ज की।
अंतिम-आठ में भारतीय मुक्केबाज़ एमसी मैरी कॉम ने ट्यूनीशिया की मारौआ रहाली के खिलाफ शुरुआत में थोड़ा डगमगा गईं। लेकिन राउंड के आगे बढ़ने के साथ ही वह मजबूत होती गईं और सेमीफाइनल में जगह बनाने के साथ ही ओलंपिक पदक को पक्का करने के लिए उन्होंने दो तगड़े दाएं हुक लगाते हुए बाउट जीत ली।
हालांकि मैरी कॉम सेमीफाइनल में निकोला एडम्स के सामने कमज़ोर पड़ गईं, लेकिन उन्होंने ब्रॉन्ज़ मेडल जीता और देश के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय महिला बन गईं।
पदक जीतने के बाद मैरी कॉम ने कहा था, “मुझे खेद है कि मैं स्वर्ण पदक नहीं जीत सकी। लेकिन मैं ओलंपिक पदक से खुश हूं, जो कि लंबे समय से मेरा एक सपना है।”
मैरी कॉम का एशियाई खेलों का सफर
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैरी कॉम की सफलता ने विभिन्न कॉन्टीनेन्टल मीट में अपने प्रदर्शन के द्वारा सभी को प्रभावित किया है।
एशियाई चैंपियनशिप में पांच स्वर्ण पदक और एक रजत के साथ वह अपने भार वर्ग में एक ख़तरनाक मुक्केबाज़ के तौर पर जानी जाती हैं। दो एशियाई खेलों में उन्होंने साफतौर पर इसका प्रमाण भी दिया था।
चीन के ग्वांगझू में 2010 के एशियाई खेलों में मैरी कॉम ने अपना पहला एशियाई खेल पदक जीता, जो कि फ्लाईवेट डिवीजन में कांस्य पदक था।
इसके बाद मणिपुर की इन मुक्केबाज़ ने 2014 में दक्षिण कोरिया के इंचियोन में आयोजित किए गए एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक पर दावा किया और इसी के साथ वह एशियाई खेलों का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज बन गईं।
इंचियोन में अपने पूरे अभियान के दौरान मैरी कॉम पूरे नियंत्रण में दिखीं और खिताब जीतने के सफर में एक भी मुक़ाबला नहीं हारी।
मैरी कॉम एशियन वूमेंस बॉक्सिंग चैंपियनशिप में पांच स्वर्ण पदक जीतने में सफल रही हैं। आखिरी बार 2017 में उन्होंने हो ची मिन्ह सिटी को हराकर गोल्ड मेडल जीता था। इसके बाद 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने गोल्ड कोस्ट में एक बार फिर शानदार प्रदर्शन करते हुए एक और पदक जीता।
मैरी कॉम को मिले राष्ट्रीय सम्मान
बॉक्सिंग रिंग में मैरी कॉम की उपलब्धियों को भारत सरकार ने भी सराहा।
भारतीय मुक्केबाज़ को उनके पहले विश्व खिताब के बाद 2003 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, 2009 में भारत सरकार ने मुक्केबाज़ी में मैरीकॉम की असाधारण उपलब्धियों के लिए देश में सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया।
बॉक्सिंग दिग्गज को नागरिक सम्मान पद्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। मैरी कॉम 2006 में पद्मश्री से सम्मानित की जाने वाली एक अकेली खिलाड़ी थीं। साल 2013 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। इसी बीच इस साल की शुरुआत में भारत सरकार ने मणिपुर की दिग्गज को दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
इसके अलावा मैरी कॉम को 2016 में तत्कालीन भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा भारतीय संसद की उच्च सदन यानी राज्यसभा में शामिल किया गया।
यही नहीं, उनके जीवन संघर्ष को एक बायोपिक ‘मैरी कॉम’ के ज़रिए भी दुनिया के सामने पेश किया गया, जिसने 2014 में सिल्वर स्क्रीन पर धूम मचा दी थी।
फिल्म में मणिपुर के एक दूर-दराज के गांव से एक युवा मुक्केबाज़ के अंतरराष्ट्रीय ख्याति हासिल करने के सफर को दर्शाया गया है। आठ बार की विश्व चैंपियनशिप पदक विजेता ने इस पर कुछ ख़ास कहा है।
आउटलुक मैगज़ीन द्वारा होस्ट की गई एक यूट्यूब सीरीज़ द आउटलाइफ़ के एक एपिसोड में मैरी कॉम ने कहा, “अगर उन्होंने कभी एक और बायोपिक बनाने का फैसला किया तो मैं चाहूँगी कि मुक़ाबलों पर और अधिक ध्यान केंद्रित किया जाए।"
मणिपुर की दिग्गज मुक्केबाज़ ने आगे कहा, “मैं डायरेक्टर से और अधिक मुक़ाबले दर्शाने के लिए कहूंगी। मैं 20 साल से लड़ रही हूं और मैंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मुकाबले लड़े हैं। ओलंपिक, राष्ट्रमंडल खेल, एशियाई खेल सहित मैंने बहुत सी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है।”