फेलिक्स सवोन से लेकर मैरी कॉम तक, दुनिया के प्रसिद्ध मुक्केबाज़ जिन्होंने बॉक्सिंग रिंग पर किया राज

एमेच्योर मुक्केबाजी से लेकर ओलंपिक मेडल हासिल करने तक, आइए उन बॉक्सिंग चैंपियन के करियर पर एक नज़र डालते हैं जिन्होंने अपनी शानदार मुक्केबाज़ी से कई पदक हासिल किए। 

8 मिनटद्वारा जतिन ऋषि राज
Felix Savon

एमेच्योर बॉक्सिंग ने इस विश्व को बहुत से बॉक्सिंग चैंपियन दिए हैं। चाहे वह मुहम्मद अली हो या फ़्लोयड मेवेदर जूनियर हो या फिर एंथोनी यहोशू हो, सभी खिलाड़ियों ने एमेच्योर बॉक्सिंग से अपने खेल कौशल को निखारा है।

AIBA वर्ल्ड चैंपियनशिप और ओलंपिक गेम्स में बहुत से एमेच्योर मुक्केबाज़ों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया है और पूरी दुनिया में अपने नाम का डंका बजाया है।

आइए उन प्रसिद्ध एमेच्योर बॉक्सिंग चैंपियन पर एक नज़र डालते हैं जिन्होंने ओलंपिक गेम्स में अपना जलवा दिखाया।

बनाफेलिक्स सवोन

जब जब वर्ल्ड बॉक्सिंग की बात की जाएगी तब तब फेलिक्स सवोन का नाम सबसे पहले लिया जाएगा।

1980 में ग्वांटनमो में जन्में फेलिक्स सवोन ने क्यूबा के टियोफ़िलो स्टीवेंसन को अपना हीरो माना और उन्हीं से प्रेरित हो कर बॉक्सिंग को पेशा बनाया।

इस खिलाडी को एमेच्योर सर्किट में घातक मुक्केबाज़ी करते हुए देखा गया है। वह समय देखकर प्रहार नहीं करते थे, बल्कि कम से कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा अंक बटोरने की कोशिश करते थे।

फेलिक्स की यही रणनीति कभी-कभी उनके खिलाफ भी गई लेकिन असल खिलाड़ी वही है जो अपनी गलतियों से सीख लेकर आगे बढ़े और इस खिलाड़ी ने भी वही किया और देखते ही देखते दिग्गज बनने की राह पर निकल पड़े।

अपने 20 साल के सुनहरे करियर में फेलिक्स सवोन ने 6 बार वर्ल्ड चैंपियनशिप के खिताब को अपने नाम किया है और इस रिकॉर्ड की बराबरी सिर्फ भारत की एमसी मैरी कॉम ने की है। इतना ही नहीं यह मुक्केबाज़ उन तीन मुक्केबाज़ों में शामिल है जिन्होंने तीन बार ओलंपिक गोल्ड पर हक जमाया है।

क्यूबा के इस बॉक्सर ने 1992, 1996 और 2000 में ओलंपिक गोल्ड पर कब्ज़ा जमाया है और यह कहना गलत नही होगा कि जब भी ओलंपिक गेम्स में बॉक्सिंग का नाम लिया जाएगा तब तब इस खिलाड़ी का नाम साथ में लिया जाएगा।

1970 में अमेरिका ने टियोफिलो स्टीवेंसन को प्रोफेशनल बॉक्सिंग में आने का निमंत्रण दिया और साथ ही $5 मिलियन का कॉन्ट्रैक्ट भी तैयार था। इतना ही नहीं उन्हें उस समय के चैंपियन मुहम्मद अली के खिलाफ लड़ने का मौका भी दिया जा रहा था।

क्यूबा की क्रांति में लीन इस खिलाड़ी ने अमेरिका के इस प्रताव को ठुकरा दिया और जो कर रहे थे उसी में अपनी जान लगाते रहे। 1987 में आगे चलकर ओलंपिक की तरफ से उन्हें ‘ओलंपिक ऑर्डर’ के पुरस्कार से भी नवाज़ा गया।

इस विषय पर बात करते हुए इस मुक्केबाज़ ने कहा “मैंने 8 मिलियन क्यूबा के नागरिकों को चुना।

बॉक्सिंग चैंपियन झोउ शिमिंग

चीन को मुक्केबाज़ी में अगर पहचान किसी खिलाड़ी ने दिलाई है तो उनका नाम है झोउ शिमिंग। साल 2005 में इस खिलाड़ी ने अपने देश के लिए पहला वर्ल्ड टाइटल अपने नाम किया था और उसके बाद 2008 गेम्स में ओलंपिक गोल्ड मेडल पर भी अपने नाम को सुनहरे अक्षरों में लिख दिया था।

यह कहना गलत नहीं होगा कि झोउ शिमिंग ने चीन के मुकेबाज़ों के लिए दरवाज़े खोल दिए थे। 14 साल की उम्र में इस बॉक्सर ने चीन के गुइझोऊ में बॉक्सिंग की शुरुआत की। इनके बारे में यह भी कहा जाता है कि शुरूआती दौर में उन्हें अपने इस कौशल को अपने परिवार से छिपा कर रखना पड़ा।

शाइन न्यूज़पेपर से बात करते हुए शिमिंग ने कहा “जब 14 या 15 साल की उम्र में मैंने बॉक्सिंग को चुना था तब मेरी हिम्मत नहीं हुई थी कि इसके बारे में मैं अपने माता पिता को बता पाऊं।”

“मेरी माँ तब भी बॉक्सिंग के खिलाफ थीं जब गुइझोऊ की प्रांतीय टीम में मेरा चयन हुआ था। जब तक ओलंपिक गेम्स में मैंने चीन का प्रतिनिधित्व नहीं किया था तब तक उनकी सोच नहीं बदली थी।”

इस चीनी दिग्गज ने बीजिंग 2008 में अपना पहला ओलंपिक मेडल जीता था और उसके एक साल बाद वह पहली बार वर्ल्ड चैंपियन भी बनें।

इसके बाद शिमिंग ने कॉन्टिनेंटल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ दी और इस खेल से जुड़े अनुभव को बटोरना शुरू कर दिया।”

अपने ताजुर्बे को अपने खेल में लाते हुए इस खिलाड़ी ने 2007 में अपना दूसरा वर्ल्ड टाइटल जीता और उसके बाद बीजिंग 2008 में गोल्ड मेडल पर अपने नाम की मुहर लगा दी।

इसके बाद इनका सफ़र और तेज़ी से बढ़ने लगा और अपनी काबिलियत के दम पर शिमिंग ने 2011 और 2012 में एक वर्ल्ड टाइटल और वक ओलंपिक मेडल अपने नाम किया और इसके उन्होंने प्रोफेशनल बॉक्सिंग की ओर रुख किया।

शिमिंग का प्रो करियर छोटा ज़रूर रहा लेकिन प्रेरणादायक भी। इस मुक्केबाज़ ने WBO लाइट फ्लाईवेट टाइटल 2014 से 2017 तक अपने नाम रखा। इसके बाद आँख में चोट लगने के कारण उन्हें इसे छोड़ना पड़ा।

एमेच्योर बॉक्सिंग का दबदबा बढ़ता जा रहा था और ऐसे में क्यूबा के जुआन हर्नांडेज़ सिएरा, हूलियो सेंसर ला क्रूज और यूक्रेन के वासिल लोमाचेंको ने भी बहुत नाम कमाया।

वेल्टरवेट वर्ग में खेलते हुए सिएरा ने 4 विश्व खिताब अपने नाम किए हैं और इसके साथ ही ओलंपिक गेम्स 1992 और 1996 में उनके हाथ दो सिल्वर मेडल भी आए।

वहीं दूसरी ओर ला क्रूज ने साल 2011 से 2019 तक वर्ल्ड चैंपियन का खिताब अपने पास रखा और इतना ही नहीं रियो 2016 में उन्होंने अपने खाते में एक गोल्ड मेडल भी जोड़ा।

बॉक्सर वासिल लोमाचेंको का करियर भी किसी तूफ़ान से कम नहीं रहा है। फेदरवेट में खेलते हुए इस मुक्केबाज़ ने वर्ल्ड टाइटल और ओलंपिक मेडल अपने नाम किया हुआ है और इसके बाद उन्होंने लाइटवेट की ओर रुख किया और साल 2011 or 2012 में वर्ल्ड टाइटल और ओलंपिक गोल्ड पर अपने नाम की छाप छोड़ी।

बॉक्सिंग चैंपियन एमसी मैरी कॉम

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि विश्व में जब अव्वल मुक्केबाज़ों का नाम आता है तो उस फेहरिस्त में भारतीय दिग्गज एमसी मैरी कॉम का नाम भी शामिल है। एमसी मैरी कॉम ने न सिर्फ अपना करियर बनाया है बल्कि भारत में वह बाकी महिलाओं की प्रेरणा भी रही हैं।

मणिपुर में एक किसान के घर जन्मीं मैरी कॉम का परिवार भी मुक्केबाज़ी के खिलाफ था लेकिन इस खिलाड़ी ने रिंग के अंदर और बाहर लड़कर अपना रास्ता खुद बनाया और अपने नाम के आगे चैंपियन लिखवाया।

लोकल कोच की निगरानी में इस मुक्केबाज़ ने खेल के गुर सीखे और आज उनके खिताब उनके कौशल की अगुवाई करते हैं। AIBA वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप के 8 संस्करणों में इस मुक्केबाज़ ने कई मेडल अपने नाम किए हैं, जिसमें 6 गोल्ड, 1 सिल्वर और 1 ब्रॉन्ज़ शामिल है।

AIBA वर्ल्ड राकिंग में मेजिकल मैरी ने अव्वल दर्जा यानी रैंक 1 हासिल की। इसके बाद लंदन 2012 में उन्होंने ब्रॉन्ज़ मेडल हासिल कर अपने ओलंपिक के सपने को उड़ान दी।

इस समय भारतीय दिग्गज की नज़र ओलंपिक गेम्स 2020 में गोल्ड मेडल जीतने पर है और वह इस लक्ष्य को पार पाने के लिए कड़ी मेहनत भी कर रही हैं।

बॉक्सिंग चैंपियन केटी टेलर

केटी टेलर को यूरोप की सबसे उम्दा बॉक्सर माना जाता है। लाइटवेट वर्ग में खेलती केटी टेलर के हाथ बहुत तेज़ चलते हैं जिस वजह से वह अपनी आक्रामक तकनीक पर भरोसा कर सकती हैं।

मुक्केबाज़ों के परिवार में जन्मीं इस आयरिश खिलाड़ी के पिता चैंपियन रह चुके हैं और इनकी माँ रेफ़री की भूमिका निभा चुकी हैं।

अपने पिता से मुक्केबाज़ी के गुर तो केटी ने सीख लिए लेकिन इस दुनिया में अपने नाम की छाप छोड़ना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। कहते हैं न कि खिलाड़ी वही है जो गिर कर उठे और जीत की ओर दौड़ लगाए और इस मुक्केबाज़ ने भी कुछ ऐसा ही किया।

केटी टेलर ने 2005 में यूरोपियन चैंपियनशिप (लाइटवेट) में खेलते हुए खिताब अपने नाम किया। एक साल बाद केटी वर्ल्ड चैंपियन बनीं और 2014 तक उस खिताब को अपने साथ संजो कर रखा।

केटी टेलर के जीवन में सबसे हसीन पल अभी आना बाकी था और अपने सपने की ओर तेज़ी से चलती इस मुक्केबाज़ ने लंदन 2012 में गोल्ड मेडल जीत कर उस पल को महसूस किया।

हालांकि 2016 ओलंपिक गेम्स में वह क्वार्टर-फाइनल तक भी नहीं पहुंच सकीं और उसके बाद उन्होंने प्रोफेशनल होने का फैसला लिया।।

प्रो बॉक्सिंग में भी इस खिलाड़ी ने महानतम दर्जा हासिल किया। अभी तक केटी टेलर ने 16 बाउट खेले हैं और सभी में उन्हें जीत की प्राप्ति हुई है। इतना ही नहीं, इनके बस्ते में WBA, WBC, IBF, WBO और 'The Ring female' लाइटवेट खिताब भी शुमार हैं।

बॉक्सिंग चैंपियन सोफिया ओचिगावा

अगर क्यूबा के सर पुरुष मुक्केबाज़ी का ताज है तो रूस के पास महिला मुक्केबाज़ी की तकनीक। वर्ल्ड चैंपियनशिप में रूसी मुक्केबाज़ों ने 24 गोल्ड मेडल जीते हुए हैं और यह आंकडें उनके प्रबाव को दर्शाने के लिए काफी हैं।

रूस के इसी दबदबे को जारी रखते हुए सोफिया ओचिगावा ने भी इस खिताब को दो दफ़ा अपने नाम किया है। ग़ौरतलब है कि सोफिया ने अपना करीर किक बॉक्सिंग से शुरू किया था और 2001 में वह नेशनल चैंपियन भी बनीं थी। सम्पूर्ण आधारिक संरचना के न होने की वजह से इस खिलाड़ी ने मुक्केबाज़ी को पेशा बनाने की साझी।
लाइट बैंटमवेट में खलते हुए सोफिया ओचिगावा ने अपनी पहली वर्ल्ड चैंपियनशिप 2005 में जीती और हमेशा के लिए इस करियर को अपने साथ जोड़ लिया

दो साल बाद ओचिगावा ने भारवर्ग को बढ़ा दिया और अपने करियर की दूसरी वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती। अहम बात यह रही कि यह जीत लाइट वर्ग में नहीं बल्कि बैंटमवेट में आई। आगे चल कर सोफिया ओचिगावा ने लंदन 2012 ओलंपिक गेम्स में मेडल हासिल किया। अब जब बैंटमवेट वर्ग ओलंपिक गेम्स में शुमार नहीं था तो इस रूसी खिलाड़ी ने लाइटवेट में जाने का फैसला किया और फिर एक बार अपने करियर में चार चांद लगा दिए।

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