बीते कुछ दशक में ओलंपिक खेलों में भारत ने मुक्केबाजी में कुछ खास सफलता हासिल नहीं की है। इस दौरान ओलंपिक खेलों में भारत के कई विश्व स्तरीय मुक्केबाजों ने हिस्सा लिया, लेकिन वो अपना खास प्रदर्शन नहीं दिखा पाए।
जिसमें अखिल कुमार, जितेंद्र कुमार, डिंग्को सिंह सहित कई दिग्गज मुक्केबाजों ने ओलंपिक में हिस्सा लिया, लेकिन उनमें से कोई भी मुक्केबाज पोडियम पर नहीं पहुंच पाया है।
हालांकि, साल 2008 में बॉक्सिंग में विजेंदर सिंह ने पदक हासिल कर भारत का मुक्केबाजी में पदक का खाता खोला। इस जीत के साथ मुक्केबाजों का हौसला-अफजाई हुआ, और कुछ मुक्केबाजों ने विजेंदर सिंह की इस उपलब्धियों को आगे बढ़ाया और देश के लिए पदक हासिल किया।
यहां हम आपके लिए उन सभी भारतीय मुक्केबाजों के बारे में जानाकारी लेकर आए हैं, जिन्होंने ओलंपिक में पदक हासिल किया है।
विजेंदर सिंह - कांस्य पदक, बीजिंग 2008 ओलंपिक, पुरुषों का 75 किग्रा
विजेंदर सिंह का जन्म हरियाणा में हुआ था। वहीं, विजेंदर सिंह ने साल 2004 में एथेंस खेलों में फर्स्ट राउंड से बाहर होने के बाद अपने दूसरे ओलंपिक के लिए एक नए सिरे से तैयारी की। विजेंदर ने बीजिंग जाने से पहले एशियाई खेलों, एशियाई चैंपियनशिप और राष्ट्रमंडल खेलों में अपना दबदबा दिखाते हुए पदक हासिल किया था।
वहीं, बीजिंग 2008 में, मिडिलवेट बॉक्सर विजेंदर सिंह ने पहले दो राउंड में बाडौ जैक (गाम्बिया) और अंगखान चोम्फुफुआंग (थाईलैंड) की चुनौतियों का सामना करते हुए उन्हें शिकस्त दी। लेकिन थाई मुक्केबाज के खिलाफ एक मुकाबले में भारतीय को थोड़ा परेशानियों का सामना करना पड़ा, जिससे उन्हें काफी चोटें भी आईं।
हालांकि, विजेंदर सिंह अगले तीन दिनों में ठीक हो गए और क्वार्टर फाइनल में इक्वाडोर के कार्लोस गोंगोरा के खिलाफ अपने हौसले को बरकरार रखते हुए रिंग में उतरे।
जहां इस भारतीय ने इक्वाडोर को 9-4 से शिकस्त देते हुए भारत के लिए पदक को सुनिश्चित किया। जहां इस दौरान विजेंदर के शानदार पंच देखने को मिले।
हालांकि विजेंदर सिंह क्यूबा के एमिलियो कोरिया के खिलाफ उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस तरह इस मुक्केबाज को सिर्फ कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा।
मैरी कॉम - कांस्य पदक, लंदन 2012 ओलंपिक, महिलाओं की 51 किग्रा
अगर बीजिंग ओलंपिक में विजेंदर सिंह के कांस्य पदक ने उन्हें भारतीय मुक्केबाजी का पोस्टर ब्वॉय बनाया, तो लंदन 2012 में एमसी मैरी कॉम के कांस्य पदक ने उन्हें अब तक के सबसे महान भारतीय मुक्केबाज के रूप में पहचान दिलाई।
लंदन 2012 में ओलंपिक में पहली बार महिला मुक्केबाजी की शुरुआत की गई थी, तब मैरी कॉम पहले से ही पांच बार की विश्व चैंपियन और चार बार की एशियाई चैंपियन थीं।
मैरी कॉम ने लोअर वेट कैटेगरी (पिनवेट और लाइट फ्लाईवेट) में अपनी सभी खिताब जीतने के बाद, मणिपुर की इस मुक्केबाज को ओलंपिक में प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक भार वर्ग में आगे बढ़ना पड़ा।
जहां इस फ्लाईवेट मुक्केबाज ने राउंड ऑफ 16 में पोलैंड की पूर्व विश्व चैंपियन कैरोलिना मिकालजुक को हराकर ट्यूनीशिया की मारौआ रहीली के साथ क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया।
मैरी कॉम ने एक पदक सुनिश्चित करने के लिए ट्यूनीशियाई मुक्केबाज पर 15-6 की जीत के साथ जीत दर्ज की।
वहीं, भारतीय मुक्केबाज को सेमीफाइनल में अंतिम स्वर्ण पदक विजेता निकोला एडम्स से हार का सामना करना पड़ा। जहां उन्हें सिर्फ कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा।
कांस्य पदक ने मैरी कॉम को ओलंपिक पदक जीतने वाली कर्णम मल्लेश्वरी और साइना नेहवाल के बाद तीसरी भारतीय महिला एथलीट बना दिया।
लवलीना बोरगोहेन - टोक्यो 2020 ओलंपिक, महिलाओं की 69 किग्रा
लवलीना बोरगोहेन ने टोक्यो 2020 ओलंपिक में अपना डेब्यू किया। जहां उन्होंने अपनी प्रतिद्वंद्वी को शानदार तरीके से मात देते हुए आगे बढ़ी।
लवलीना दुनिया की 5वें नंबर की मुक्केबाज के रूप में टोक्यो ओलंपिक में प्रवेश करने वाली मुक्केबाज हैं। असम की इस वेल्टरवेट मुक्केबाज ने जर्मन की नादिन एपेट्ज को कड़े मुकाबले में हराते हुए अंतिम आठ में जगह बनाई। जहां इस दौरान लवलीना ने अपने बेहतरी मूव्स का इस्तेमाल करते हुए प्रतिद्वंद्वी को चारो खाने चित किए।
वहीं, उसके बाद उन्होंने क्वार्टर फाइनल मुकाबले में उन्होंने चौथी वरीयता प्राप्त और चीनी ताइपे की पूर्व विश्व चैंपियन चेन निएन-चिन को हराया।
लवलीना बोरगोहेन ने मैच को 4:1 के स्प्लिट डिसीजन से अपने नाम करते हुए सेमीफाइनल में जगह बनाई। फिलहाल लवलीना टोक्यो 2020 के सेमीफाइनल में पहुंचकर भारत के लिए पदक सुनिश्चित कर चुकी हैं।