दो दशकों से अधिक के करियर में भारतीय मुक्केबाजी की दिग्गज एमसी मैरी कॉम ने हमेशा खुद को साबित किया है, चाहे रिंग के अंदर हो या बाहर, वह हमेशा एक चैंपियन रहीं।
दुनिया की सबसे सफल एम्च्योर मुक्केबाजों में से एक मैरी कॉम ने 8 वर्ल्ड चैंपियनशिप मेडल जीते हैं, जिनमें 8 गोल्ड भी शामिल है। ऐसा कारनामा करने वाली वह भारत की इकलौती महिला मुक्केबाज है। मैरी कॉम का कद साल दर साल बढ़ता ही गया है।
भारतीय समाज में जहां महिलाओं को केवल परिवार पालने के लिए माना जाता है, वहां 38 साल की इस बॉक्सर ने परंपरा को तोड़ और महिला सशक्तीकरण के लिए एक योद्धा बनने का प्रण लिया है।
अब मैरी कॉम टोक्यो ओलंपिक में आखिरी बार रिंग में उतरने के लिए तैयार हैं। मैरी कॉम को उम्मीद है कि उनका करियर उन महिलाओं के लिए एक आदर्श रूप में कार्य करेगा जो जीवन में उठना और चमकना चाहती हैं।
मैरी कॉम ने ओलंपिक चैनल को बताया कि “मैं सभी को उदाहरण के तौर पर समझना चाहती हूं। मैं मैसेज देने में अच्छी नहीं हूं, इसलिए मैं चाहती हूं कि रिंग में इसका जवाब दूं। मुझे लगता है कि मैंने कई महिलाओं को अपने जीवन में आने वाली बाधाओं के बावजूद अपने खेल के लिए जुझारू रहने के लिए प्रेरित किया है।”
इसके अलावा इस दिग्गज ने कहा कि “आमतौर पर आप देखते हैं कि कई महिला एथलीट शादी के बाद या गर्भावस्था के बाद खेलों की दुनिया से बाहर आ जाती हैं, लेकिन अब समय बदल रहा है। मुझे विश्वास है कि मैंने दिखाया है कि माँ होने के बाद भी कोई चैंपियन बन सकता है। अगर मैं ऐसा कर सकती हूं, तो मुझे ऐसी कोई वजह नहीं दिखती जो दूसरी लड़कियां नहीं कर सकतीं।"
सिमरनजीत कौर अपनी मां के सपनों को जी रही हैं
मैरी कॉम पहले से ही उन महिलाओं की संगठन में हैं, जो खेल के माध्यम से पेशेवर करियर का पीछा करना चाहती हैं। सिमरनजीत कौर (Simranjit Kaur) लाइटवेट बॉक्सर, जो टोक्यो 2020 में इस दिग्गज की तरह रिंग में उतरेंगी, वह भी मैरी क़ॉम की तरह एक उदाहरण है।
25 वर्षीय सिमरनजीत कौर का कहना है कि वह अपनी मां के सपने को जी रही है।
सिमरनजीत कौर कहती हैं कि “मैं बॉक्सिंग में सिर्फ अपनी मां की वजह से हूं, वही हैं जिन्होंने मुझे बॉक्सिंग में आने के लिए प्रेरित किया।“
भारतीय बॉक्सर ने कहा कि “अपने शुरुआती दिनों में वह (सिमरनजीत कौर की मां) एक एथलीट बनने के लिए बहुत उत्सुक थी। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाईं। इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को खेल में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया। मेरी एक बहन और दो भाई है, और हम चारों ने ही मुक्केबाजी में अपना नाम बनाया है।“
25 साल की ये महिला मुक्केबाज अपनी मां के सपनों के लिए अपने पहलेे ओलंपिक खेल में हिस्सा लेंगी।
सिमरनजीत ने आगे कहा कि “मैं जब भी जॉर्डन में टोक्यो खेलों के लिए क्वालिफाई करने वाले समय को याद करती हूं, तो काफी रोमांचक हो जाती हूं। यह मेरा सपना था कि मैं बड़े लेवल पर अपने देश का प्रतिनिधित्व करूं।“
इसके अलावा उन्होंने बताया कि “हां, मुझे अपने राष्ट्र और भारतीय मुक्केबाजी परिवार के प्रति जिम्मेदारी महसूस होती है। लेकिन इस सब से ऊपर मेरी मां है, क्योंकि उनकी ही वजह से मैं यहां तक पहुंची हूं। वह चाहती थी कि उनके बच्चे बॉक्सर बनें और मैं उनका सपना जी रही हूं।’’