शिक्षक बनने की चाहत रखने वाली सिमरनजीत कौर अब बॉक्सिंग रिंग में मचा रहीं धमाल

टोक्यो 2020 के लिए क्वालिफाई करके सिमरनजीत कौर ने अपनी मां के फैसले को सही ठहराया। वह चाहती थीं कि उनकी बेटी एक शिक्षक की बजाए बॉक्सर बने।

6 मिनटद्वारा रितेश जायसवाल
एशियन बॉक्सिंग क्वालिफ़ायर्स के क्वार्टरफ़ाइनल में जीत के साथ सिमरनजीत कौर ने टोक्यो 2020 में स्थान किया पक्का

सिमरनजीत कौर (Simranjit Kaur) एशियाई बॉक्सिंग ओलंपिक क्वालिफायर में आखिरी पड़ाव तक पहुंचने वाली एकमात्र भारतीय महिला मुक्केबाज़ रहीं। इस इवेंट के फाइनल में मुकाबला करते हुए उन्होंने सिल्वर मेडल हासिल किया। हालांकि, सिमरनजीत कौर के लिए इस प्रतियोगिता का सबसे बड़ा पुरस्कार ओलंपिक टिकट रहा, जो उन्होंने सेमीफाइनल में जगह बनाने के साथ ही हासिल कर लिया।

आखिरी पड़ाव पर मिली हार को वह अपनी कमजोरियों को दूर करने के एक अवसर के रूप में देखती हैं। उन्होंने ओलंपिक चैनल से हुए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कहा, “हम हारकर जो सीखते हैं, वह जीतकर नहीं सीखते।”

एक महिला जो कभी एक शिक्षक बनने की ख्वाहिश रखती थी, अब वह अंतरराष्ट्रीय स्तर की मुक्केबाज़ी सीख रही हैं। अपने मां के फैसले को सहीं साबित करते हुए उनके लिए आज यह खेल उनकी पहचान बन गया है।

लड़कों के साथ झगड़े

पंजाब के लुधियान के चाकर गांव, जहां से जूनियर वर्ल्ड चैंपियन मनदीप कौर भी निकली हैं। सिमरनजीत कौर का जन्म 10 जुलाई, 1995 को इसी गांव में हुआ था। कई खिलाड़ियों की तरह ही सिमरनजीत भी अपनी एक बड़ी बहन और दो छोटे भाइयों के साथ बड़ी हुईं। उन्होंने उस खेल में हिस्सा लिया, जिसने उनकी नियति को परिभाषित किया।

इकोनॉमिक्स टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में जो उन्होंने बताया उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वह मुक्केबाज़ी में बिल्कुल दिलचस्पी नहीं रखती थीं। उन्होंने कहा, “मैं अध्ययन करना चाहती थी।”

यह उनकी मां राजपाल कौर थीं, जिन्हें इस खेल में बहुत दिलचस्पी थी और उन्होंने ही अपनी इस बेटी के साथ ही अन्य बच्चों को भी इस खेल में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। द ट्रिब्यून को उन्होंने बताया, "मुझे अब भी वह समय याद है जब मेरी बहन अमनदीप कौर मुझे रिंग में ले गई थीं। मैं रोते हुए वापस आई और फिर कभी भी न जाने की इच्छा जाहिर की।"

लेकिन बाद में उन्होंने अपने भाई-बहनों के प्रयासों को देखते हुए इस खेल में शामिल होने का फैसला किया। इसके पीछे एक अच्छा कारण था; उनकी मां राजपाल कौर का मानना ​​था कि खेल में हासिल की गई महारत उनके बच्चों के बेहतर जीवन को सुनिश्चित करेगी।

सिमरनजीत कौर को आखिरकार मुक्केबाज़ी में इस शिखर तक पहुंचाने वाली उनकी मां कहती हैं, “खेल में अगर आप अच्छे हैं तो आपको कोई नहीं रोक सकता। अच्छी शिक्षा के लिए, आपके पास बहुत पैसा होना चाहिए।”

सिमरनजीत कौर को बॉक्सिंग से प्यार हो गया और 2010 तक उन्होंने शेर-ए-पंजाब स्पोर्ट्स अकादमी में अपने व्यक्तिगत खेल को मजबूत करने के लिए प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। अपने भार वर्ग की लड़कियों से मुकाबला करने के बजाए सिमरनजीत लड़कों के साथ लड़ने लगीं। वह मानती हैं कि इसने उनकी ताकत को बढ़ाने और कमज़ोरियों को जानने में काफी मदद मिली।

देश को सिमरनजीत कौर पर है यकीन

साल 2011 में पटियाला में 6वीं जूनियर महिला राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने वाले प्रदर्शन ने सिमरनजीत कौर को राष्ट्रीय शिविर विशाखापत्तनम में प्रशिक्षण प्राप्त करने का मौका दिया। SheThePeople से बात करते हुए उन्होंने कहा, “जब मुझे शिविर में प्रवेश मिला तो मेरे मन में यह निश्चित था कि अब मैं देश के लिए खेलूंगी। मुझे तब अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। मुझे बस एक बात पता थी, मुझे कैसे भी ‘भारत’ की जर्सी हासिल करनी है।”

सिमरनजीत ने साल 2012 में विशाखापत्तनम में अंतर-क्षेत्रीय महिला राष्ट्रीय मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में कांस्य और पटियाला में जूनियर महिला राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप में रजत पदक सहित कई पदक हासिल किए। साल 2015 में उन्होंने असम में सीनियर (शीर्ष वर्ग) महिला राष्ट्रीय मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में एक और कांस्य पदक हासिल किया।

पहली अंतरराष्ट्रीय सफलता

2018 में सिमरनजीत कौर को आखिरकार एक अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी टूर्नामेंट में मौका मिला। इसके लिए तो वह इंतज़ार में ही बैठी थीं और उन्होंने फौरन इस अवसर को अपनी मुठ्ठी में ले लिया। तुर्की के इस्तांबुल में अहमत कॉमर्ट टूर्नामेंट में 64 किग्रा भार वर्ग में प्रतिस्पर्धा करते हुए सिमरनजीत कौर ने तुर्की की सेमा कैलिस्कन को हराकर स्वर्ण पदक जीता।

मुक्केबाज़ सिमरनजीत कौर, भाग्यबती कचहरी और मोनिका ने अहमत कॉमर्ट टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक जीतकर भारत के लिए इस दिन को विशेष बना दिया। इसके अगले वर्ष उन्होंने दिल्ली में AIBA महिला विश्व मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में अपनी हमवतन साथी को हराते हुए लाइट वेल्टरवेट में कांस्य पदक हासिल किया।

अपने हुनर को किया साबित

विश्व चैंपियनशिप की विजेता ने 2019 में अन्य की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। बैंकॉक में हुई 2019 एशियाई चैंपियनशिप में लाइट वेल्टरवेट श्रेणी में उन्होंने रजत पदक हासिल करने के साथ अपने इस वर्ष की शुरुआत की।

वह इंडोनेशिया के प्रेसिडेंट कप में भी शामिल हुईं। साल 2019 से पहले वह 64 किग्रा वर्ग में प्रतिस्पर्धा करते हुए कांस्य पदक हासिल करने में सफल रही थीं। हालांकि, 2019 में उन्होंने अपने वजन को कम करते हुए 60 किग्रा श्रेणी में प्रतिस्पर्धा की और स्थानीय मुक्केबाज़ हुस्वातुन हसनाह को एक पक्षीय निर्णय 5-0 के अंतर से शिकस्त दी।

लुधियाना के चाकर गांव की सिमरनजीत कौर ने #Indonesia में आयोजित 23वें प्रेसिडेंट कप इंटरनेशनल #Boxing टूर्नामेंट में अपनी शानदार जीत से #Punjab को गौरांवित किया। वाहेगुरू जी की कृपा उनपर सदैव ऐसे ही बनी रहे और वह अपने करियर में अन्य कई सफलताएं हासिल करती रहें।

आखिरकार, बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय ट्रायल में अनुभवी मुक्केबाज़ एल सरिता देवी को हराकर सिमरनजीत ने साल 2019 का समापन किया, जिसने उन्हें एशियाई मुक्केबाजी ओलंपिक क्वालिफायर में प्रवेश दिलाया।

सिमरनजीत कौर ने हासिल किया ओलंपिक टिकट

एशियाई मुक्केबाज़ी ओलंपिक क्वार्टर फाइनल मुकाबले में दूसरी वरीयता प्राप्त नामुन मोंखोर को हराकर सिमरनजीत कौर ने अपने करियर का पहला ओलंपिक टिकट हासिल किया। भारतीय खेल मंत्री किरेन रिजिजू ने 2020 ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाले नौ भारतीय मुक्केबाज़ों में सिमरनजीत के टोक्यो 2020 टिकट हासिल करने पर ट्विटर पर लिखा, “मैं अब बहुत खुश हूं!”

अपनी उपलब्धि पर सिमरनजीत कौर ने संघर्षों को याद करते हुए कहा, “खेल में हो या परिवार में समस्याएं हमेशा से थीं, लेकिन मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं कि मुझे समस्याएं और मज़बूत बनाती हैं।”

सिमरनजीत कौर के लिए अब आगे क्या है?

मैरी कॉम की अगुवाई में उनके साथी भारतीय मुक्केबाज़ों की तरह ही उनके पास भी कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों की वजह से कोई भी मुकाबले तय नहीं हैं। इसलिए सभी मुक्केबाज़ आपस में मुकाबला करते हुए प्रशिक्षण ले रहे हैं जिससे कि जुलाई में वह मेडल हासिल कर सकें।

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