मैरी कॉम vs निकहत ज़रीन: प्रतिद्वंदिता और प्रेरणा की कहानी

एक घमासान मुकाबले में मैरी कॉम और निकहत ज़रीन ओलामिक क्वालिफ़ायर्स में जगह बनाने के लिए एक दूसरे के आमने-सामने आ गईं थीं। इस मुक़ाबले का असर युवा मुक्केबाज़ के करियर और रवैये पर भी पड़ा।

6 मिनटद्वारा जतिन ऋषि राज
Mary Kom- 1

भारतीय बॉक्सिंग में पिछले कुछ समय से अगर किसी मुद्दे को सबसे ज़्यादा हवा लगी है तो वह एमसी मैरी कॉम बनाम निकहत ज़रीन का मुकाबला रहा है।

एक युवा बॉक्सर जिसने अपनी प्रेरणा को देखकर बॉक्सिंग में आने का फैसला किया, और एक दिन अपने उसी हीरो के खिलाफ खड़ी हो गई। पहली बार इन दोनों का आमना-सामना 2019 इंडिया ओपन के दौरान हुआ। उस समय निकहत जरीन के पास ज़्यादा तजुर्बा नहीं था और इसी बात का फायदा मैरी कॉम ने उठाते हुए अपनी राह को आसान किया। इस संस्करण की विजेता भी मैरी कॉम की ही थीं।

इसके बाद जब यह दोनों मुक्केबाज़ आपस में टकराए तब मक़सद और स्तर दोनों ही अलग थे। इस बार मुकाबला हुआ एशियन ओलंपिक क्वालिफायर्स में अपनी जगह बनाने के लिए।

अगली बार जब उनका आमना-सामना एशियाई ओलंपिक क्वालिफायर में भारत के प्रतिनिधि को चुनने के लिए राष्ट्रीय मुक्केबाजी ट्रायल के फाइनल में हुआ, जो तब अम्मान, जॉर्डन में आयोजित किया गया था, जिसे कोरोनोवायरस के कारण चीन के वुहान से स्थानांतरित कर दिया गया था।

यह मुकाबला आम मुकाबला नहीं था बल्कि ज़रीन ने यूनियन खेल मंत्री किरेन रिजिजू को अपील कर कहा था कि बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने मैरी कॉम को चीन में होने वाले ओलंपिक क्वालिफायर्स के लिए भेजने का मन बना लिया है और गुज़ारिश कि सभी खिलाड़ियों को एक जैसा अवसर मिलना चाहिए।

स्पोर्ट्स मंत्री को अपील करने से पहले निकहत ज़रीन ने BFI को ट्रायल करने की अर्जी दलाई थी लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। BFI का मानना था कि इन फॉर्म मैरी कॉम को ही ओलंपिक क्वालिफायर्स में जा कर भारत का प्रतिनिधित्व करना होगा। 

आख़िरकार कमिटी को इस अर्जी को मानना पड़ा और इन दोनों खिलाड़ियों के बीच एक ट्रायल मुकाबला कराया गया। निकहत ज़रीन vs मैरी कॉम मुकाबले ने इस बार घमासान रूप ले लिया था और कोई भी मुक्केबाज़ हार मानने को तैयार नहीं था।

(Boxing Federation of India (BFI))

इस मुकाबले में कुछ साफ़ पंच भी देखे गए और साथ ही खिलाड़ियों द्वारा जकड़न का भी नज़ारा दखने को मिला। इस बात से भारत के हिया परफॉर्मेंस डायरेक्टर राफेल बर्गमास्को ने भी सहमति जताई, एक में युवा जोश था तो एक अनुभव से लैस और दोनों की मंजिल एक थी और वह थी जीत। मुकाबला अच्छा चला लेकिन इस बार भी 6 बार की विष चैंपियन ने निकहत को 9-1 से हराया और भारतीय टीम में अपनी जगह बना ली।

इसके बाद इन्ही दोनों को बिग बाउट जैसी बड़ी लीग में मुकाबला करना था लेकिन बैक इंजरी के कारण मैरी कॉम ने ओना नाम वापस ले लिए और वह मुकाबला कभी खेला ही नहीं गया।निकहत के लिए इस स्प्लिट निर्णय को सहना मुश्किल था। ओलंपिक चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा “इससे उभरने के लिए मुझे कुछ हफ्ते लग गए। उसके बाद मुझे लगा कि इसके पीछे रो कर कोई फायदा नहीं। उस दिन से मेरा फ़ोकस बस मेहनत करना है और एक मज़बूत कमबैक करना है। यह एक चीज़ है जिस पर मैं ध्यान दे रही हूं। मुझे लगता है कि सब कुछ किसी अच्छे कारण के लिए होता है।"

अपने इसी रेवैये और तेज़ की वजह से आने वाले समय में निकहत का आत्मविश्वास उतना उपर हो गया था कि वह दिग्गज मैरी को चुनौती दे सकें।

निकहत की आदर्श मैरी कॉम

निकहत ज़रीन महज़ 4 साल की थीं जब उन्होंने मैरी कॉम को पहली बार स्टेट बॉक्सिंग चैंपियनशिप 2000 में देखा था।उसके 10 साल बाद यानी 2010 नेस्श्नल चैंपियनशिप तक मैरी ‘गोल्डन बेस्ट बॉक्सर’ बन गईं थी और उनके बस्ते में 5 वर्ल्ड चैंपियनशिप खिताब आ चुके थे।

अब जब निकहत ने जूनियर स्तर पर हाहाकार मचाकर वर्ल्ड जूनियर टाइटल पर अपने नाम की मुहर लगाई तो पूरा भारत मैरी कॉम के खेल में डूबा हुआ था क्योंकि उन्होंने दो बच्चों को जन्म देने के बाद रिंग में कदम रखे थे।

निकहत ने मैरी कॉम के लिए कहा “मुझे लगता है कि उनका वहां होना हम सबको प्रेरित कर गया। उनके लिए उम्र महज़ एक नंबर हैं क्योंकि उन्हें उंचाइयों को छूना है। यह एक ऐसी चीज़ ही जो मैंने उनसे सीखी है।”

"जब आप उन्हें उनके ओलंपिक गेम्स के गोल्ड मेडल को हासिल करने के सपने के लिए रिंग में पसीना बहाते देखते हैं तो एक युवा बॉक्सर होने के नाते आप इससे ज़्यादा प्रेरणा दायक परिस्थिति में नहीं आ सकते।”

मैरी कॉम को मिला तजुर्बे का साथ 

प्रेरणा तो एक तरफ लेकिन निकहत यह भी मानती हैं कि मैरी कॉम के पास बहुत अनुभव है और यही चीज़ एमेचुअर स्तर पर उनके पक्ष में काम करती है।

एमेचुअर स्तर पर आपके पास अपना दांव चलने का ज़्यादा समय नहीं होता। इसी वजह से ज़रीन को लगता है कि अपना तजुर्बा आपको सही राह दिखाता है।

“ओलंपिक बॉक्सिंग में अनुभव बहुत मायने रखता है और आप इसे महसूस भी करेंगे जब आप उन्हें अपने मुकाबले को लड़ते देखेंगे। एमेचुअर स्तर पर आपके पास अधिक समय नहीं होता। आपको कम समय में स्कोर को मात देना होता है। आप अपने प्रतिद्वंदी पर वार करने के लिए उसके थकने का इंतज़ार नहीं कर सकते।” 

आगे अलफ़ाज़ साझा करते हुए निकहत ने कहा “अगर आपको खुद को बढ़ावा देना है तो एक समय के बाद आपके पास उंचे स्तर पर लड़ने का अनुभव होना चाहिए। मैरी कॉम का उनके कौशल ने बहुत साथ दिया है और उनके अनुभव ने और ज़्यादा फर्क डाला है।

इस बीच, निकहत जरीन ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्होंने 2022 में इस्तांबुल में और 2023 में नई दिल्ली में लगातार विश्व चैंपियनशिप जीती, और बर्मिंघम में 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

मैरी कॉम अपनी उम्र के कारण पेरिस 2024 ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले पाईं, निकहत ने आखिरकार पेरिस 2024 में ओलंपिक में डेब्यू किया, जहां उन्होंने अपना पहला मुकाबला जीता, लेकिन पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की वू यू से हारकर उन्हें बाहर होना पड़ा, जो अंततः 50 किग्रा वर्ग के राउंड ऑफ 16 में स्वर्ण पदक विजेता बनी।

2022 में पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद निकहत जरीन ने अपनी जीत मैरी को समर्पित भी की। उन्होंने कहा, "आपके आदर्श के आशीर्वाद के बिना कोई भी जीत पूरी नहीं होती।"

मैरी कॉम ने निकहत को स्वर्ण पदक जीतने के लिए बधाई दी थी और कहा था कि उन्हें उनके ऐतिहासिक प्रदर्शन पर गर्व है।

जैसी स्थिति है, यह मान लेना सुरक्षित है कि मैरी कॉम बनाम निकहत जरीन प्रतिद्वंद्विता का निष्कर्ष सुखद और पारस्परिक रूप से सम्मानजनक हो गया है।

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