भारत के देसी खेल: जिन्हें फिट इंडिया के तहत भारत सरकार दे रही बढ़ावा

फिट इंडिया कैंपेन में भारत के 19 स्वदेशी खेलों को शामिल किया गया है, जिसमें कबड्डी, कुश्ती अखाड़ा, खो-खो और कई अन्य खेल शामिल हैं। अपने देश की मिट्टी से जुड़े इन देसी खेलों के बारे में जानिए।

12 मिनटद्वारा मनोज तिवारी
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(Khelo India)

भारत विविधताओं का देश है, जहां जितने समुदाय के लोग हैं उतनी ही बोलियां बोली जाती हैं और उतने ही खेल भी खेले जाते हैं। भारत का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है, जिसमें ज्ञान, विज्ञान, राजनीति, खेल और संस्कृति का विकसित रूप भी शामिल है।

भारत सरकार लोगों को फिट रहने के लिए पूरे देश में फिट इंडिया अभियान चला रही है। जिससे लोग फिटनेस के प्रति जागरूक हो सकें।

भारत में कई ऐसे देसी खेल खेले जाते हैं, जिनकी उत्पत्ति भारत में ही हुई है। भारत सरकार के फिट इंडिया कैंपेन में ऐसे 19 स्वदेशी खेलों को शामिल किया गया है, जो भारत के देसी या स्वदेशी खेल हैं। इस खास लेख में आज हम आपको ऐसे ही 19 देसी खेलों के बारे में बताने जा रहे हैं।

कुश्ती अखाड़ा

कुश्ती या पहलवानी के बारे में आप सभी ने सुना होगा। इस खेल को मिट्टी के अखाड़े में खेला जाता है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि स्वदेशी खेल 4000बीसी पुराने इस कुश्ती अखाड़ा का जिक्र भारत के महान ग्रंथ महाभारत में भी मिलता है।

अखाड़ा कुश्ती में जबतक एक पहलवान हार नहीं जाता है तब तक मुकाबला चलता रहता है। ये खेल फ्रीस्टाइल कुश्ती से बिल्कुल अलग होता है।

थांग-ता

भारत के मणिपुर राज्य का देसी मार्शल आर्ट थांग-ता के नाम से मशहूर है। थांग का मतलब तलवार होता है, जबकि ता का अर्थ भाला होता है। थांग-ता में तलवार, ढाल और भाले का उपयोग किया जाता है। साल 1891 में मीतेई रेस के लोग जो कंगलीपैक नामक स्थान पर रहते थे। ऐसा माना जाता है कि वहीं से इस युद्धकला की शुरुआत हुई।

यह ह्यूएन लैंगलॉन मार्शल आर्ट का हिस्सा है, जिसमें थांग-ता यानी सशस्त्र युद्ध और दूसरा हिस्सा सरित सरक यानी निहत्था मुकाबला है।

कलरीपायट्टु

15,000 बीसी पुराना खेल कलारीपयट्टू या कलरीपायट्टु भारत के दक्षिणी राज्य में पारंपारिक रूप से खेला जाता है। इसमें शस्त्र के अलावा हाथ और पैर का अनोखा प्रयोग किया जाता है। यह मल्लयुद्ध की शैली पर ही आधारित है। केरल और तमिलनाडु के कई स्कूल में इसकी ट्रेनिंग दी जाती है।

कलरीपायट्टु का ताल्लुक केरल और तमिलनाडु से है, जो आत्मरक्षा, युद्ध एवं व्यायाम का साधन है। इसके अलावा इस खेल का नाता नृत्यकला से भी है। प्राचीन धर्मग्रंथों के मुताबिक भगवान शिव, मुनि अगस्त्य और भगवान परशुराम को इस खेल का जनक माना जाता है।

खो-खो

बच्चों के टैग खेल की तरह ही खो-खो एक पारंपरिक भारतीय खेल है जो हजारों सालों से किसी न किसी रूप में अस्तित्व में रहा है। हालांकि खो-खो खेल की शुरुआत कब हुई इसे बता पाना कठिन है। ऐसा माना जाता है इस खेल के कुछ पहलुओं का उल्लेख प्राचीन भारतीय महाकाव्य महाभारत में वर्णित चक्रव्यूह में रहा है।

खो-खो टीम गेम है, जिसमें एक टीम के खिलाड़ी विपक्षी टीम के खिलाड़ी को टैग करते हैं और अंक अर्जित करने की कोशिश करते हैं। दो पारियों में खेले जाने वाले इस गेम की प्रति पारी 9 मिनट की होती है। फिलहाल महाराष्ट्र और भारत के कई अन्य प्रदेशों में खो-खो काफी लोकप्रिय खेल है।

रस्साकशी

ओलंपिक में सन् 1900 से 1920 तक हिस्सा लेना वाला खेल रस्साकशी भारत का प्राचीनतम खेल है। इसमें रस्सी को बीच से दो टीमें अपने-अपने सिरे की ओर खींचती हैं। जो टीम रस्सी को अपनी ओर खींचने में सफल हो जाती है, वह विजेता बन जाती है।

वैसे तो कहना मुश्किल है कि इस खेल की शुरुआत किस देश में पहली बार हुई। लेकिन ऐसा माना जाता है कि ये खेल कंबोडिया, पुराने इजिप्ट, ग्रीस, भारत और चीन में खेला जाता था। काफी समय पहले इस खेल की मदद से योद्धाओं को ट्रेनिंग दी जाती थी।

मलखंब

मलखंब एक प्राचीन भारतीय पारंपरिक खेल है जो योग, व्यायामशाला और मार्शल आर्ट को जोड़ता है। इसे प्राचीन भारतीय खेलों की जननी माना जाता है। 'मल' का अर्थ है जिम्नास्ट और 'खंब' का अर्थ पोल है। ऐसे में 'मलखंब' का अर्थ 'जिमनास्ट पोल' हुआ। माना जाता है कि इस खेल की उत्पत्ति 12वीं शताब्दी में हुई।

1936 के बर्लिन ओलंपिक में शामिल रहे इस खेल को दुनिया ने जाना था। मलखंब का जिक्र प्राचीन भारतीय महाकाव्य रामायण में मिलता है, जबकि चंद्रकेतुगढ़ की मिट्टी के बर्तनों में पाया गया था। जो एक शताब्दी ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा भारत में बौद्ध चीनी तीर्थ यात्रियों की किताबों में भी इसका उल्लेख है।

हेक्को

नागालैंड के मोकोचंग जिले के चांग्की गांव में हेक्को खेल खेला जाता है। जिसका मतलब होता है बाघ का मुकाबला करना। इस खेल से गांव के सबसे शक्तिशाली युवा की पहचान भी होती है। दो टीमों के बीच होने वाले इस खेल में खिलाड़ियों की ताकत, स्टेमिना और तेजी का प्रदर्शन करना होता है। इस खेल के पीछे भी कहानी है, जब इंसान और जानवर एकसाथ रहा करते थे। लेकिन अक्सर इन दोनों प्राणियों में जंग छिड़ जाया करती थी।

जंगल का राजा शेर सबसे ताकतवर होता था, इसलिए वह हर चीज पर पहला हक अपना जताता था। लेकिन इंसानों ने बाघों को चुनौती दी और ये चुनौती ही हेक्को कहलाई। इंसानों ने बाघों को जंगल में खदेड़ दिया, लेकिन नागालैंड के आदिवासियों और बाघों की लड़ाई अभी जारी है। इस लड़ाई से प्रेरित होकर चांग्की गांव के लोगों ने हेक्को को एक खेल का रूप दे दिया।

मैदान में एक बड़ा गोला बनाकर इस खेल को खेला जाता है, जिसमें आमी यानी इंसानों की टीम और आखो यानी शेर की टीम होती है। दोनों टीमों में 11-11 खिलाड़ी होते हैं। कौन सी टीम आमी होगी और कौन सी आखो होगी, इसका फैसला टॉस से होता है।

आमी टीम घेरा बनाकर गोले में खड़ी होती है, जबकि आखो टीम गोले के बाहर से हमला करती है। आखो की ओर से एक खिलाड़ी आमी टीम पर हमला बोलता है, जिसका काम होता है आमी से किसी को भी गोले से बाहर करना होता है, जबकि आमी टीम उसे सर्किल में ही दबोच लेना चाहती है।

स्काय

कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। कश्मीर की अपनी प्राचीन सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है और यह अपनी सांस्कृतिक सुंदरता, पहाड़ों, झीलों, उद्यानों और शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। स्काय मार्शल आर्ट कश्मीर के इतिहास की तरह ही बहुत ही पुराना है। शुरु में इस मार्शल आर्ट से मनुष्य ने खुद को या अपने कुटुम्ब को जंगली जानवरों से बचाने के लिए सीखा था।

4012 ईसा पूर्व से पहले कश्मीरियों ने खुद को बचाने के लिए स्काय मार्शल आर्ट का उपयोग किया था और इस कला का उपयोग उन्होंने जानवरों का शिकार करने के लिए किया था। लेकिन 3905 ईसा पूर्व के बाद राजा ‘दीया देव’ ने दुश्मनों से कश्मीर की रक्षा के लिए सैनिकों को इस कला का प्रशिक्षण दिया और सैनिकों को इन नियमों का पालन करने का सख्त आदेश दिया।

छऊ और पाइका अखाड़ा

छऊ और पाइका अखाड़ा मार्शल आर्ट और सेमी क्लासिकल का अपना वर्जन है। छऊ नृत्य या खेल भारत के राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा में पारंपरिक रूप से खेला या परफॉर्म किया जाता है। रामायण, महाभारत, भारतीय साहित्य और पुराणों में भी इसका जिक्र मिलता है।

वहीं मार्शल आर्ट का एक और रूप पाइका अखाड़ा का मतलब योद्धाओं का स्कूल होता है। ओडिशा में खानदायत जाति के लोग और चरवाहे इस मार्शल आर्ट को परफॉर्म करते हैं। ये शारीरिक व्यायाम करने का बेहद पुराना तरीका भी है।

कबड्डी

कबड्डी काफी रोमांचक खेल है। ऐसा माना जाता है कि यह खेल तकरीबन 4000 वर्ष पुराना है। आधुनिक भारत में कबड्डी कुछ प्रसिद्ध खेलों में से एक है। छोटे शहरों और यहां तक कि गांवों में भी लोग इसे खेलना पसंद करते हैं। इस खेल में कौशल के साथ-साथ शारीरिक ताकत की भी आवश्यकता होती है।

कबड्डी मैच आमतौर पर 40 मिनट (प्रत्येक 20 मिनट के दो भाग) तक चलता है। प्रत्येक टीम में सात खिलाड़ी होते हैं। आज पूरे भारत में लोगों को इस खेल के लिए प्यार मिल रहा है।

शूटिंग बॉल

ऐसा माना जाता है कि शूटिंग बॉल का इतिहास भारत में आजादी से पहले का है। ये खेल जितना भारत में लोकप्रिय है, उतना ही पाकिस्तान में भी है। शुरू में ये खेल लोगों की फिटनेस के लिए खेला जाता था, दो टीमें होती थीं और मैदान पर एक रस्सी बांधकर कपड़े की गेंद से शूटिंग बॉल का खेल खेला जाता था।

खेल में खिलाड़ियों का मुख्य उद्देश्य गेंद को विपक्षी के पाले में मारना होता है। बाद में इस खेल में लेदर गेंद को शामिल कर लिया गया और रस्सी की जगह नेट ने ले ली। ये खेल वॉलीबॉल से मिलता-जुलता है, लेकिन इसके नियम-कानून और खेलने का तरीका अलग है। इसमें 12-12 खिलाड़ियों की टीम होती है, जिसमें कोर्ट में 7 खिलाड़ी होते हैं।

लागोरी और लंगडी

लागोरी बेहद ही पुराना खेल है और इसका जिक्र श्रीमद भागवत गीता में भी है। तकरीबन 5000 वर्ष पुराने इस खेल को भगवान कृष्ण अपने दोस्तों के साथ खेला करते थे। ऐसा माना जाता है कि ये खेल दक्षिण भारत में साल 1990 से खेला जा रहा है। लगोरी खेल भारत के कई राज्यों में खेला जाता है। अलग-अलग राज्यों में इसके अलग-अलग नाम भी हैं।

इस खेल में 7 पत्थरों की लगोरी बनाई जाती है और 5-7 लोगों की दो टीम के बीच ये खेला जाता है। लगोरी गिराने वाली टीम को सीकर और दूसरी टीम को हीटर कहते हैं। फेंकने वाले खिलाड़ी का पैर लाइन नहीं पार करना चाहिए, नहीं तो उसे फाउल करार दिया जाता है। हर टीम के खिलाडी को 3 मौके मिलते हैं, और अगर लगोरी नहीं गिरी तो उसे आउट दे दिया जाता है।

गतका

सिक्खों का अपना मार्शल आर्ट यानी गतका पंजाब में बहुत ही मशहूर है। गतका सिक्खों का पारंपरिक युद्ध कौशल का तरीका है। मौजूदा समय में भी सिक्खों के धार्मिक उत्सवों में इस कला का प्रदर्शन किया जाता है। पंजाब सरकार ने इस भारतीय मार्शल आर्ट 'गतका' को खेल की मान्यता दी हुई है।

साल 1982 में अंतरराष्ट्रीय गतका फेडरेशन की स्थापना भी हुई थी। गतका खेल या तलवारबाजी प्रदर्शन कला के रूप में काफी लोकप्रिय है। इस खेल का प्रदर्शन पारंपारिक परिधान में किया जाता है।

रोल बॉल

रोल बॉल दो टीमों के बीच खेला जाने वाला खेल है और रोलर स्केट्स, बास्केटबॉल, हैंडबॉल और थ्रोबॉल का एक अनूठा संयोजन है। यह ‘रोलर शूज’ पर खेला जाता है, जिसमें प्रत्येक टीम में बारह खिलाड़ी होते हैं, छह मैदान पर और छह रिजर्व में होते हैं।

खेल का मुख्य उद्देश्य निर्धारित समय के भीतर अधिकतम गोल करना होता है। रोल बॉल की मुख्य विशेषता यह है कि गेंद एक या दोनों हाथों में पकड़ी जाती है, अन्य खिलाड़ियों के पास जाने पर गेंद बार-बार जमीन पर उछलती है।

इस खेल का आविष्कार भारत के पुणे के रहने वाले राजू दाभाडे ने किया था, वह अंग्रेजी माध्यम के स्कूल एमईएस बाल शिक्षण मंदिर में खेल शिक्षक थे। दाभाडे इंटरनेशनल रोल बॉल फेडरेशन (आईआरबीएफ) के सचिव भी हैं।

धूप और कौड़ी खेल

धूप खेल असम का पारंपारिक खेल है, जो बसंत के आगमन पर और अक्सर बीहू उत्सव के दौरान खेला जाता है। एक समय में इस खेल का आयोजन अहोम राज घरानों के मनोरंजन के लिए किया जाता था। ये खेल दो टीमों के बीच खेला जाता है, जिसमें 11-11 खिलाड़ी होते हैं। खेल का मैदान 125 मीटर लंबा और 80 मीटर का चौड़ा होता है, जिसके हर कोने में एक झंडा होता है।

इस खेल में टीमें गेंद को एक दूसरे की ओर फेंकती है, जिन्हें कैच करना होता है। अगर कैच छूटा तो उस टीम से गेंद फेंकने का चांस छीन लिया जाता है। जो टीम जल्दी ऑलआउट हो जाती है, वो मुकाबला हार जाती है।

सिलंबम

सिलंबम भारतीय मार्शल आर्ट है, जिसमें हथियार के रूप में छड़ी का उपयोग होता है। इस खेल की उत्पत्ति तमिलनाडु राज्य से हुई। यह काफी पुरानी मार्शल आर्ट है। माना जाता है कि यह करीब 5,000 साल से अधिक पुरानी है। इसका इस्तेमाल अधिकांश दक्षिण भारतीय शासकों द्वारा युद्ध में किया जाता था।

सिलंबम का थोड़ा संबंध केरल की मार्शल आर्ट से है, जो कलरिपायट्टु के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मार्शल आर्ट की प्रसिद्ध शाओलिन शैली भारतीय स्टिक फाइटिंग से ली गई है। सिलंबम का जिक्र सिलाप्पडिक्करम और संगम साहित्य में भी है।

सिक्किम तीरंदाजी

सिक्किम आपको अपने साहसिक खेल - तीरंदाजी का आनंद लेने के लिए प्रेरित करता है। यह एक दिलचस्प खेल है, जिसमें बांस से बने धनुष और बाण का उपयोग किया जाता है। सिक्किम की तीरंदाजी अंतरराष्ट्रीय स्तर की तीरंदाजी से अलग है, क्योंकि इसमें बांस का ही धनुष और उसी का बाण इस्तेमाल होता है।

दरअसल सिक्किम के लोग पहले जंगली जानवरों से बचाव के लिए तीरंदाजी का उपयोग करते थे। बाद में धीरे-धीरे ये वहां का खेल बन गया और अब इसे भारत सरकार ने बड़ा मंच प्रदान किया है।

गिल्ली डंडा

एक होल में गिल्ली को रखा जाता है। दो टीमें बनती हैं और वे बारी-बारी से गिल्ली को मारकर अंक बनाती हैं। खिलाड़ी डंडे से गिल्ली को दो बार मारने की कोशिश करता है - एक बार इसे जमीन से उठाने के लिए और दूसरी बार जहां तक संभव हो इसे मारने के लिए डंडा चलाता है। वहीं क्षेत्ररक्षण करने वाली टीम गिल्ली को जमीन पर छूने से पहले कैच करने की कोशिश करती है।

गिल्ली डंडा भारत का एक प्राचीन खेल है। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति संभवत: 2500 साल पहले हुई थी।

मिजोरम का देसी खेल

बांस या लकड़ी के रॉड को धक्का देकर खेला जाने वाला गेम इंसुकनवर मिजोरम का सबसे पुराना खेल है। इस खेल में दो खिलाड़ी होते हैं, जो काठ की रॉड के सहारे एक दूसरे को रिंग से बाहर करने की कोशिश करते हैं। ये खेल खासकर युवाओं के बीच होता है, जो पुराने दिनों में गांवों की सुरक्षा के लिए इस खेल का इस्तेमाल करते थे।

हालांकि राज्य सरकार अब इस खेल को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की कोशिश में है।