कुश्ती अखाड़ा क्या होता है, जानिए इससे जुड़ी कुछ अनसुनी बातें
कुश्ती अखाड़ा तैयार करने के लिए मिट्टी में दूध, छाछ, तेल, हल्दी और नींबू का इस्तेमाल किया जाता है।
कुश्ती अखाड़ा, परंपरागत रूप से ऐसा स्थान होता है जहां पहलवान रहते हैं, अपने गुरू के नेतृत्व में प्रशिक्षण हासिल करते हैं, कला सीखते हैं और कुश्ती करते हैं। कुश्ती अखाड़े पर दंगल और सुल्तान जैसी फिल्में बन चुकी हैं और इनके रिलीज होने के बाद कुश्ती अखाड़ा की प्राचीन कला अब देश में और भी अधिक पहचानी जाने लगी है।
पहलवान कुश्ती अखाड़ा में मिट्टी में पहलवानी करते हैं और तरह-तरह के दांव पेच सीखते हैं। भारत के हिंदी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब में कुश्ती अखाड़ा संस्कृति काफ़ी प्रसिद्ध है।
कम उम्र में कुश्ती शुरू करने से बच्चों का मेंटल लेवल काफ़ी मज़बूत होता है। इसके साथ ही दांव और खेल की चतुराई को समझने में और भी आसानी होती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिर्फ़ ताक़त या दम का खेल नहीं बल्कि इसके लिए पहलवान को दिमाग से भी काफ़ी मज़बूत होना जरूरी होता है।
आइए कुश्ती अखाड़ा से जुड़ी संक्षिप्त जानकारी हासिल करें।
कुश्ती अखाड़ा का इतिहास
कुश्ती अखाड़ा की बात करें तो यह प्राचीन काल से ही लोकप्रिय है। पहलवान कुश्ती अखाड़ा में लंगोट पहनकर पहलवानी करते हैं। ग्रंथों में भगवान हनुमान जी को अपने समय के सबसे महान पहलवानों में एक माना जाता है, जिनकी पूजा पहलवान कुश्ती अखाड़ा में पहलवानी शुरू करने से पहले आज भी करते हैं।
भारत के अलग-अलग हिस्सों में कुश्ती अखाड़ा है। जहां किशोरावस्था से ही बच्चों को कुश्ती अखाड़ा में पहलवानी के टिप्स दिए जाते हैं। उन्हें व्यायाम (एक्सरसाइज़) और प्रशिक्षण के जरिए ताक़तवर बनाया जाता है। जिससे उनकी मांसपेशियां मज़बूत और लचीली हो सकें। पहलवान कुश्ती अखाड़ा में सूर्य नमस्कार, शीर्षासन, दंडासन और हठ योग करते हैं। इसके साथ ही पहलवान व्यायाम के लिए गदा, गर और नाल जैसे उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं।
कहा जाता है कि महाराष्ट्र के पुणे में स्थित चिंचेली तालीम कुश्ती अखाड़ा सबसे पुराना है, जिसे साल 1783 में पेशवा शासन के दौरान स्थापित किया गया था। यहां पर छोटे-छोटे बच्चे कुश्ती सीखने के लिए आते हैं और उन्हें कुश्ती अखाड़ा में प्रशिक्षित किया जाता है।
भारत के पवित्र नगरों में से सबसे पवित्र स्थान माने जाने वाले वाराणसी से कुश्ती अखाड़ा की संस्कृति जुड़ी हुई है। यहां तुलसी घाट पर त्रिलोचन अखाड़ा और तुलसी अखाड़ा देश के सबसे पुराने और प्रसिद्ध अखाड़ों में से एक हैं। इसके अलावा दिल्ली का छत्रसाल अखाड़ा, गुरु हनुमान अखाड़ा, बद्री अखाड़ा भी काफ़ी मशहूर हैं।
कुश्ती अखाड़ा कैसे तैयार किया जाता है?
कुश्ती अखाड़ा तैयार करते समय कई चीजों का ध्यान रखा जाता है। पहलवान जिस मिट्टी पर कुश्ती करते हैं उसे वह मां के समान मानते हैं। कुश्ती अखाड़ा की मिट्टी में छाछ, दूध, सरसों का तेल, हल्दी और नींबू मिलाया जाता है। अखाड़ा में पहलवान बिना जिम की मशीनों के अभ्यास और व्यायाम करते हैं। कुश्ती अखाड़ा आमतौर पर गोल आकार का होता है।
सबसे पहले पहलवान कुश्ती अखाड़े की जगह पर फावड़ा या कुदाल से मिट्टी को बराबर मिलाते हैं फिर उसके बाद मिट्टी के ऊपर हल्दी डालते हैं और फिर तेल और छाछ या दूध का छिड़काव करते हैं। अंत में पहलवान मिट्टी को अच्छी तरह मिलाते हैं, जिससे मिट्टी मुलायम हो सके और उसके बाद पूजा करने के बाद अपनी पहलवानी शुरू करते हैं।
कुश्ती अखाड़ा का महत्व
पहलवान कुश्ती अखाड़ा को एक मंदिर की तरह मानते हैं और अपने गुरु यानी उस्ताद को ईश्वर के समान दर्जा देते हैं। पहलवान कुश्ती अभ्यास करने से पहले कुश्ती अखाड़ा की पूजा करते हैं और फिर वो अपने गुरुजी से आशीर्वाद मांगते हैं, फिर पहलवान कुश्ती अखाड़ा में पहलवानी शुरू करते हैं।
कुश्ती अखाड़ा की ये संस्कृति मुख्य रूप से भारत के ग्रामीण इलाकों में मौजूद है। हालांकि, वाराणसी और मथुरा जैसे शहर अपने सदियों पुराने अखाड़े के साथ-साथ अपनी संस्कृति को संरक्षित किए हुए हैं और पुरानी स्कूल शैली की कुश्ती को वर्तमान पीढ़ी तक भी बढ़ावा देते रहे हैं।
कुश्ती भारत में सिर्फ एक खेल नहीं है, बल्कि एक प्राचीन संस्कृति का हिस्सा है। हमारे देश का नाम रौशन करने वाले भारतीय पहलवान अपनी सफलता का श्रेय अपने कुश्ती अखाड़ा प्रशिक्षण को देते हैं, जो उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में किया था।
यह संस्कृति हमें अपनी जड़ों की ओर ले जाती है। एक पहलवान को सबसे विनम्र एथलीटों में से एक के रूप में देखा जाता है। उन्हें अखाड़े के मूल सिद्धांतों के रूप में महिलाओं का सम्मान करना और कमज़ोरों की रक्षा करना सिखाया जाता है।
कुश्ती अखाड़ा का आधुनिकीकरण
बदलते समय के साथ कुश्ती अखाड़ा में काफ़ी बदलाव देखने को मिला है। मिट्टी पर होने वाली कुश्ती की जगह अब सिंथेटिक के कपड़े से बने मैट ने ले लिया है। लेकिन कुश्ती अखाड़ा से जुड़े लोगों का मानना है कि असली कुश्ती मिट्टी के बने अखाड़े पर ही होती है क्योंकि अखाड़े की मिट्टी में जादू होता है।
इसलिए भारतीय गांवों में आज भी मिट्टी के कुश्ती अखाड़े में दंगल का आयोजन किया जाता है, जहां जीतने वाले पहलवानों को भारी-भरकम राशि दी जाती है।