भारत का ओलंपिक इतिहास: हॉकी के शुरुआती दौर में भारत का वर्चस्व, पदक की उम्मीद, शूटिंग और ट्रैक स्टार
पेरिस 1900 से पेरिस 2024 तक, ओलंपिक के साथ भारत के सौ वर्षों की कोशिश - जिसमें देश ने टोक्यो में सबसे ज्यादा सफल खेलों का आनंद लिया।
पेरिस 1900 ओलंपिक में भारत का एक ही प्रतिनिधि था। 124 साल बाद उसी शहर में आयोजित ओलंपिक में भारत के 117 एथलीटों ने प्रतिस्पर्धा की थी।
भारत का ओलंपिक इतिहास कई उपलब्धियों से भरा हुआ है, जैसे हॉकी में आठ स्वर्ण पदक जो कि एक रिकॉर्ड है, जिनमें से छह लगातार थे, इतना ही नहीं स्वतंत्र भारत के लिए केडी जाधव का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक, और बीजिंग 2008 में अभिनव बिंद्रा का ऐतिहासिक स्वर्ण और टोक्यो 2020 में नीरज चोपड़ा द्वारा पहला ट्रैक-एंड-फील्ड स्वर्ण पदक।
हालांकि, इस दौरान हमें बुरा दौर भी देखने को मिला और भारतीय प्रशंसकों का दिल भी टूटा। आइए पिछली शताब्दी में भारत के ओलंपिक इतिहास पर एक नज़र डालते हैं।
आजादी से पहले: नॉर्मन प्रिचर्ड और पहली हॉकी हैट्रिक
ओलंपिक में पहली बार भारत ने 1900 के पेरिस ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया, जहां नॉर्मन प्रिचर्ड देश के एकमात्र प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए। उन्होंने 200 मीटर स्प्रिंट और 200 मीटर बाधा दौड़ (हर्डल रेस) में दो रजत पदक जीते।
इसके बाद भारत ने कई खेलों में हिस्सा लेने के लिए अपना पहला दल 1920 के एंटवर्प ओलंपिक में भेजा, जहा पांच एथलीटों (एथलेटिक्स में तीन और रेसलिंग में दो पहलवानों) ने हिस्सा लिया था।
1924 के पेरिस ओलंपिक में भारत ने टेनिस में अपना डेब्यू किया। पांच खिलाड़ियों (4 पुरुष और 1 महिला) ने एकल स्पर्धाओं में हिस्सा लिया, दो जोड़ियों ने पुरुष युगल और एक मिश्रित युगल में हिस्सा लिया।
इसके बाद 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक से भारतीय हॉकी के स्वर्णिम युग की शुरुआत हुई।
भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने दिग्गज हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद के नेतृत्व में 29 गोल किए और एक भी गोल खाए बिना उन्होंने अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता।
उन्होंने 1932 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक और 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भी स्वर्ण पदक जीतते हुए गोल्डन हैट्रिक पूरी की और दुनिया की सबसे प्रभावशाली हॉकी टीम के रूप में खुद को साबित करने के लिए एक बार फिर से इस उपलब्धि को दोहराने का काम किया।
स्वतंत्रता के बाद: तीन हॉकी स्वर्ण और पहला व्यक्तिगत पदक
द्वितीय विश्व युद्ध के चलते 1940 और 1944 में ओलंपिक खेलों का आयोजन नहीं किया किया जा सका और 1947 में भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिली। इसलिए 1948 के लंदन ओलंपिक में भारत ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपने पहले ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों मे हिस्सा लिया।
उस वक्त भारत ने 1948 ओलंपिक खेलों के लिए अपना सबसे बड़ा दल (9 खेलों में 86 एथलीट) भेजा और भारतीय हॉकी टीम फिर से एक ताकत के रूप में उभरी। इस बार वह अपने चौथे ओलंपिक स्वर्ण पदक के साथ लौटी और बलबीर सिंह सीनियर के रूप में देश को एक नया हॉकी सितारा मिला।
इसके बाद भारतीय हॉकी टीम 1952 और 1956 के ओलंपिक में फिर से इस कारनामे को दोहराने में सफल रही।
भारतीय फुटबॉल टीम ने 1948 के लंदन ओलंपिक खेलों में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन किया, लेकिन अपने ओलंपिक डेब्यू के दौरान वह दिग्गज फ्रांस के साथ हुए करीबी मुकाबले में यह मैच हार गई।
1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में भी भारत को एक ऐतिहासिक पल देखने को मिला, क्योंकि उसमें पहलवान केडी जाधव व्यक्तिगत ओलंपिक पदक (कांस्य) जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने।
हेलसिंकी ओलंपिक में ही नीलिमा घोष ओलंपिक में भाग लेने वाली स्वतंत्र भारत की पहली महिला एथलीट के रूप में उभरीं। उस वक्त महज़ 17 साल की उम्र में उन्होंने 100 मीटर स्प्रिंट और 80 मीटर बाधा दौड़ में हिस्सा लिया।
1956 के मेलबर्न ओलंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम कांस्य पदक के प्लेऑफ़ में हार गई और चौथे स्थान पर रही।
भले ही बाद में भारतीय हॉकी की ओलंपिक स्वर्ण पदक की दौड़ को पाकिस्तान ने कुछ समय के लिए रोक दिया था, क्योंकि रोम 1960 में उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा। इसी संस्करण में दिग्गज एथलीट मिल्खा सिंह 400 मीटर में ओलंपिक कांस्य पदक जीतने से कुछ क्षण से पीछे रह गए।
इसके बाद एकबार फिर भारतीय हॉकी टीम 1964 में टोक्यो में अपने छठे स्वर्ण पदक के साथ ओलंपिक हॉकी के शिखर पर पहुंच गई।
1968 का मेक्सिको ओलंपिक पहला मौका था जब भारतीय हॉकी टीम शीर्ष दो टीमों में जगह बनाने से पीछे रहे गई और उसे सिर्फ कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में भारत को एक बार फिर कांस्य पदक ही नसीब हुआ।
भारतीय हॉकी टीम 1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक में बिल्कुल निचले स्तर पर पहुंच गई और सातवें स्थान पर रही, जो कि ओलंपिक खेलों में उसका सबसे खराब प्रदर्शन रहा। 1924 के बाद से यह पहला मौका था जब भारत ओलंपिक खेलों में एक भी पदक जीतने में असमर्थ रहा।
हालांकि, 1980 के मास्को ओलंपिक में ओलंपिक चैंपियन बनने के बाद हॉकी टीम ने अपना खोया हुआ गौरव एकबार फिर से वापस पा लिया, जो अभी तक उनका अंतिम ओलंपिक हॉकी पदक बना हुआ है।
लिएंडर पेस ने जीता ब्रॉन्ज़ मेडल
1980 के दशक में ओलंपिक में भारत एक बुरे दौर से गुजर रहा था, क्योंकि वह 1984 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक और 1988 के सियोल ओलंपिक में एक भी पदक नहीं जीत सका। पदक का यह सूखा 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भी जारी रहा।
हालांकि, दिग्गज एथलीट पीटी उषा पोडियम स्थान पर पहुंचने के बेहद करीब पहुंची और 1984 में 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रहीं।
इसके बाद भारत में पदक के सूखे को टेनिस दिग्गज लिएंडर पेस ने खत्म किया, जिन्होंने 1996 के अटलांटा ओलंपिक में पुरुष एकल स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। फिर चार साल बाद वेटलिफ्टर कर्णम मालेश्वरी ने इतिहास लिखने का काम किया और वह ओलंपिक कांस्य पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं।
एथेंस 2004 में पुरुषों के ट्रैप में आर्मी मैन राज्यवर्धन सिंह राठौर का रजत पदक भारत का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक बन गया, जो कि उन्होंने निशानेबाजी में हासिल किया।
बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा का ऐतिहासिक स्वर्ण पदक
2008 बीजिंग ओलंपिक भारतीय ओलंपिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण पल था, जिसमें निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में देश का पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता।
साथ ही बॉक्सर विजेंदर सिंह और पहलवान सुशील कुमार ने भी कांस्य पदक जीते। 1952 के बाद यह पहला मौका था जब भारत ने एक ही ओलंपिक में कई पदक जीते।
2012 के लंदन ओलंपिक में साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में भारत का पहला ओलंपिक पदक जीता।
इसके बाद सुशील कुमार ने अपना दूसरा ओलंपिक पदक जीता, जबकि गगन नारंग, विजय कुमार, मैरी कॉम और योगेश्वर दत्त ने भी उस संस्करण में पदक जीतते हुए भारत की झोली में कुल छह पदक डाले और यह पहला मौका था जब ग्रीष्मकालीन खेलों में भारत ने सबसे अधिक पदक हासिल किए।
रियो 2016 में, सिर्फ पीवी सिंधु और साक्षी मलिक ही भारत के लिए पदक जीत सकीं, यह पहला मौका था जब पदक तालिका में सिर्फ महिलाओं ने बाजी मारी।
टोक्यो 2020 भारत का सबसे सफल ओलंपिक साबित हुआ है, क्योंकि इसमें उन्होंने सात पदक के साथ वापसी की।
पिछले 41 साल से ओलंपिक पदक का इंतजार इस बार भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने कांस्य हासिल कर खत्म किया। और महिला टीम ने इस ओलंपिक में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ चौथा स्थान दर्ज कराया।
इस अभियान के स्टार निसंदेह नीरज चोपड़ा थे, जिन्होंने जैवलिन थ्रो में भारत का पहला ट्रैक-एंड-फील्ड स्वर्ण पदक जीता था। बता दें कि बीजिंग 2008 में अभिनव बिंद्रा के बाद यह भारत का पहला स्वर्ण पदक था।
नीरज चोपड़ा ने टोक्यो 2020 के अंतिम इवेंट के दौरान स्वर्ण जीता, जो कि उनके अभियान का सुनहरा पल था।
पेरिस 2024 में, भारत ने छह पदक जीते, जिसमें एक रजत और पांच कांस्य पदक शामिल था। नीरज चोपड़ा का रजत पदक जीतना उन्हें सबसे सफल ओलंपियन बनाता है, जबकि मनु भाकर ने दो कांस्य पदक जीतते हुए इतिहास रच दिया। इसके साथ ही वह न केवल खेलों में निशानेबाजी में पदक जीतने वाली पहली महिला थीं, बल्कि स्वतंत्र भारत से एक ही ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली पहली एथलीट भी बनीं।