देवेंद्र झाझरिया ने कोरोना महामारी के दौरान टोक्यो पैरालंपिक के लिए गैस सिलेंडर और कार के टायर से की तैयारी
भारतीय जेवलिन थ्रोअर टोक्यो पैरालंपिक में अपने तीसरे पदक पर नजर जमाए हुए हैं।
दो बार के पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) चुनौतियों पर काबू पाने के लिए नए नहीं हैं। वह आठ साल की छोटी उम्र से ही ऐसा कर रहे हैं। राजस्थान में चुरू के रहने वाले झाझरिया ने एक नंगे बिजली के तार छुआ लिया और करंट लगने के कारण उन्हें अपना बायां हाथ गंवाना पड़ा और यह उन्हें जिंदगी के एक नए सफर पर ले गया।
झाझरिया को अपने दोस्तों को साथ खेलने के लिए राजी करना मुश्किल हो गया। लेकिन, खेल के प्रति उनके लगाव ने उन्हें इस स्थिति के सामने आत्मसमर्पण नहीं करने दिया। उन्होंने जेवलिन थ्रो में गहरी दिलचस्पी लेने लगे थे। उन्होंने स्कूल और जिला स्तरीय प्रतियोगिताओं में सक्षम एथलीटों के साथ प्रतिस्पर्धा की और उन्हें हराया भी।
तब से खेल के प्रति समर्पण ने उन्हें अविश्वसनीय ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। झाझरिया ने एथेंस 2004 में जेवलिन थ्रो में अपना पहला स्वर्ण पदक जीता और इसके बाद रियो 2016 में दूसरा हासिल किया। वह इसके बीच के सालों में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके, क्योंकि F46 श्रेणी, जिसमें वे भाग लेते हैं, पैरालंपिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी।
लेकिन, टोक्यो पैरालंपिक में भाग लेने से पहले जीवन ने उनके लिए एक और चुनौती पेश की। उन्हें कोविड-19 महामारी के दौरान प्रशिक्षण के लिए एक असामान्य रास्ता अपनाना पड़ा। वह मानते हैं कि उनकी प्रशिक्षण व्यवस्था चुनौतीपूर्ण हो गई थी, लेकिन उनके कोच सुनील तंवर (Sunil Tanwar) और पत्नी **मंजू झाझरिया (Manju Jhajharia)**ने इसमें उनकी मदद की।
झाझरिया ने Olympics.com को बताया, "आप घर से बाहर नहीं निकल सकते थे, लेकिन फिट रहना था। यह ऐसा था कि जैसे आपको संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा पास करनी है, लेकिन आपको पाठ्य पुस्तकें पढ़ने की अनुमति नहीं है।"
"मेरे कोच (सुनील तंवर) ने मुझे यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि आप अपना वजन न बढ़ाएं, क्योंकि इससे समस्याएं हो सकती हैं। अधिक वजन, मतलब अधिक वसा, इसका मतलब है कि आप धीमे हो जाएंगे। प्रदर्शन कमजोर हो जाएगा। मैं घर पर था। इसलिए, मैंने घर में ही, जो कुछ उपलब्ध था, उसके साथ वर्कआउट करना शुरू कर दिया, जैसे मेडिसिन बॉल।"
डबल पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता ने कहा, "मैं एक गैस सिलेंडर के साथ वजन प्रशिक्षण करता था, या कार से टायर निकालता और वजन के रूप में उपयोग करता था। मेरी पत्नी मेरी फिटनेस ट्रेनर के रूप में काम कर रही थीं। मैं मुख्य अभ्यास करता रहता था। यही वह समय था, जब मैं मेरे खेल से अलग हो गया था। ओलंपिक भी स्थगित कर दिया गया था, हमें यकीन नहीं था कि यह होना वाला था या नहीं। वह समय बहुत महत्वपूर्ण था।"
हालांकि, यह एकमात्र चुनौती नहीं थी, जिसका उन्होंने महामारी के दौरान सामना किया। उन्होंने अक्टूबर, 2020 में अपने पिता राम सिंह झाझरिया को भी कैंसर के कारण खो दिया था। लेकिन, स्वर्ग सिधारने से पहले उनके पिता चाहते थे कि वो टोक्यो पैरालंपिक के लिए अपने प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करें।
झाझरिया ने याद करते हुए कहा, "मैं गांधीनगर में था, जब डॉक्टर ने मेरे पिता को बताया कि उन्हें कैंसर है। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनके पास 10-15 दिन बचे हैं। मेरे पिता ने मुझसे कहा कि मुझे अपने खेल पर ध्यान देना चाहिए, और उनकी इच्छा थी कि मैं एक और पदक जीतूं। उन्होंने मुझे प्रशिक्षण के लिए वापस भेज दिया। उन्होंने कहा कि अन्य बेटे मेरी देखभाल करेंगे। मुझे लगता है कि 10वें दिन मुझे जानकारी मिली कि उनकी हालत बहुत गंभीर है। मैं जब गांधीनगर में था, तब उनका निधन हो गया।"
उन्होंने कहा, "परंपरा के अनुसार हम 12 दिनों तक घर पर रहते हैं। मैं घर पर रहा था, लेकिन मेरी मां ने मुझे वापस जाने और शिविर में शामिल होने के लिए कहा। उन्होंने मुझे बताया कि बाकी सभी यहां हैं। पहले सप्ताह मैं बिल्कुल भी अभ्यास नहीं कर सका। मैं शारीरिक या मानसिक रूप से फिट नहीं था। मैं और मेरे कोच बस मैदान पर जाते, वो मुझसे बात करते, शायद मैदान के चारों ओर टहल कर लौट आते।"
अब कुछ दिन दूर टोक्यो पैरालंपिक में अपनी भागीदारी करने जा रहे झाझरिया खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि उन्होंने पदक के दावेदार के रूप में इस आयोजन में प्रवेश किया और 67 मीटर के निशान को पार करने की उम्मीद कर रहे हैं।
उन्होंने अपने पहले दो पदक जीतकर एथेंस में 62.15 मीटर के और रियो में 63.97 मीटर के थ्रो के साथ विश्व रिकॉर्ड बनाया था। झाझरिया की नजर टोक्यो में तीसरे स्वर्ण पदक और एक अन्य विश्व रिकॉर्ड बनाने पर है।