कलकत्ता फ़ुटबॉल लीग (CFL) को एशिया की सबसे पुरानी लीग फ़ुटबॉल प्रतियोगिता होने का गौरव प्राप्त है। इस लीग की शुरुआत साल 1898 में हुई थी।
वैश्विक दृष्टिकोण से, सीएफ़एल से ठीक एक दशक पहले शुरू हुई इंग्लिश फ़ुटबॉल लीग को दुनिया की सबसे पुरानी लीग फ़ुटबॉल प्रतियोगिता माना जाता है।
दिलचस्प बात यह है कि इटली का डायरेक्टरियो डिवीजन सुपीरियोरी सीरी ए भी उसी वर्ष शुरू हुआ था।
कलकत्ता फ़ुटबॉल लीग का इतिहास
1800 के दशक में फ़ुटबॉल दुनिया के लिए एक नया खेल था और उस समय ब्रिटिश भारत की राजधानी के रूप में कोलकाता शहर में अंग्रेजी बस्ती और ब्रिटिश सेना की बैरकों के कारण भारत इस खेल का केंद्र बन गया।
डुरंड कप (1888), ट्रेड्स कप (1889) और आईएफ़ए शील्ड (1893) जैसी प्रतियोगिताएं पहले से ही देश में चल रही थीं। हालांकि, देश में खेल के लिए पूर्ववर्ती शासी निकाय भारतीय फु़टबॉल संघ (IFA) चाहती थी कि इंग्लैंड और वेल्स में फु़टबॉल लीगों की तर्ज़ पर एक प्रतियोगिता शुरू की जाए, जो उस समय बेहद लोकप्रिय था।
इसी अवधारणा के तहत कलकत्ता फ़ुटबॉल लीग (सीएफ़एल) की शुरुआत की गई जो दो स्तरीय फ़ुटबॉल लीग थी। हालांकि, शुरुआती 15 संस्करणों में प्रतियोगिता सिर्फ अंग्रेजों और अन्य यूरोप के रहने वाले लोगों के लिए थी। किसी भी भारतीय टीम को सीएफ़एल में प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति नहीं थी।
प्रतियोगिता के पहले 15 वर्षों में ब्रिटिश सेना के सिविल सेवकों, व्यापारियों, मिशनरियों और अन्य यूरोपीय राष्ट्रीयताओं की क्लब टीमों ने सीएफ़एल में हिस्सा लिया।
साल 1933 तक सेना की टीमों ने कलकत्ता फ़ुटबॉल लीग के प्रमुख डिवीज़न पर अपना दबदबा बनाया और 35 सीएफ़एल ख़िताबों में से 23 में जीत (1930 का संस्करण राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आंदोलन के कारण रद्द कर दिया गया था) दर्ज की। शेष 12 में, कलकत्ता एफ़सी ने आठ ख़िताब जीते जबकि डलहौजी एथलेटिक्स क्लब ने चार ख़िताब अपने नाम किए। बाद में कलकत्ता एफ़सी को सीसीए़फ़सी के नाम से जाना गया।
इस बीच, भारत में फ़ुटबॉल को लेकर माहौल में बदलाव देखने को मिला। साल 1884 में वेलिंगटन क्लब की स्थापना करने वाले नागेंद्र प्रसाद सर्वाधिकारी ने भारत में एक फ़ुटबॉल क्रांति का आग़ाज़ किया जिसके बाद कई नए भारतीय फ़ुटबॉल क्लब, विशेष रूप से कोलकाता में अस्तित्व में आए।
साल 1911 के फ़ाइनल में ईस्ट यॉर्कशायर रेजिमेंट को हराकर मोहन बागान की टीम ने इतिहास रच दिया। इस ऐतिहासिक आईएफ़ए शील्ड जीत का मतलब यह भी था कि भारतीय फ़ुटबॉल क्लब को अब नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता था, जिसे उस समय ब्रिटिश हुकुमत के लोग देशी क्लब के रूप में संबोधित करते थे।
ब्रिटिश राज को आख़िरकार साल 1914 में सीए़फ़एल के दूसरे डिवीजन में भाग लेने के लिए दो भारतीय क्लबों - मोहन बागान और आर्यन को अनुमति देने के लिए मज़बूर होना पड़ा। मोहन बागान ने उसी सीज़न में प्रीमियर डिवीज़न में हिस्सा लेने का मौक़ा मिला जबकि दो सीज़न के बाद आर्यन को भी प्रोमोशन मिला।
साल 1917 में कुमोरटुली क्लब सीएफ़एल का दूसरा डिवीज़न जीतने वाला पहला भारतीय क्लब बना। उन्होंने साल 1918 और साल 1919 में भी अपना ख़िताब बरक़रार रखा। जबकि साल 1920 में उनके साथी भारतीय टीम, टाउन क्लब ने दूसरे डिवीजन के ख़िताब पर कब्जा कर लिया। आर्यन और मोहन बागान पहले से ही शीर्ष डिवीज़न में खेल रहे थे और उस समय के नियमों के मुताबिक़ सिर्फ दो देशी क्लब ही फ़र्स्ट डिवीजन में खेल सकते थे, जिसकी वजह से न तो कुमोरटुली क्लब और न ही टाउन क्लब को प्रोमोशन मिली।
हालांकि, चीजें साल 1924 में बदल गईं जब ईस्ट बंगाल कैमरून बी के साथ दूसरे डिवीज़न के संयुक्त विजेता के रूप में उभरा। चूंकि कैमरून ए पहले से ही प्रथम श्रेणी में खेल रहे थे और ईस्ट बंगाल के प्रोमोशन पर विवाद जारी था जिसके कारण दो टीमों की प्रोमोशन के दावे को खारिज़ कर दिया गया।
इस बीच ईस्ट बंगाल बोर्ड ने नियम में संशोधन के लिए अपील की और क्लब के बोर्ड में प्रतिष्ठित हस्तियों के होने की वजह से उन्हें सफलता मिली और वे प्रीमियर डिवीजन में चले गए।
मोहम्मडन स्पोर्टिंग - कलकत्ता फ़ुटबॉल लीग जीतने वाला पहला भारतीय क्लब
कोलकाता के दो दिग्गजों ईस्ट बंगाल और मोहन बागान की उपस्थिति और शीर्ष स्तर पर भारतीय क्लबों के लिए अधिक अवसरों के बावजूद कोलकाता के तीसरे दिग्गज क्लब मोहम्मडन स्पोर्टिंग को शीर्ष डिवीज़न में जगह बनाने के लिए लगभग एक दशक का समय लग गया।
पूर्व हॉकी खिलाड़ी सीए अज़ीज़ द्वारा देश भर के खिलाड़ियों के एक साथ बनाई गई टीम मोहम्मडन स्पोर्टिंग साल 1934 में कलकत्ता फ़ुटबॉल लीग के शीर्ष डिवीज़न को जीतने वाली पहली भारतीय टीम बन गई और अगले चार सत्रों के लिए उन्होंने इस ख़िताब पर अपना कब्ज़ा बनाए रखा।
मोहम्मडन स्पोर्टिंग ने भारत की स्वतंत्रता के बाद पहला सीएफ़एल भी जीता। साल 1947 के संस्करण को राजनीतिक उथल-पुथल और विभाजन के कारण आयोजित नहीं कराए जाने के बाद, ब्लैक पैंथर्स ने साल 1948 में लीग जीतने के लिए अपने शहर के प्रतिद्वंद्वियों को हराया।
मोहन बागान ने अपना पहला कलकत्ता फ़ुटबॉल लीग ख़िताब साल 1939 में जीता था जबकि ईस्ट बंगाल की को पहली सीएफ़एल जीत साल 1942 में मिली थी।
इसके बाद से कोलकाता के तीनों दिग्गजों ने सीए़फ़एल विजेताओं की सूची में अपना दबदबा क़ायम रखा। 39 ख़िताबों के साथ, कलकत्ता फ़ुटबॉल लीग में ईस्ट बंगाल सबसे सफल टीम है। जबकि, मोहन बागान ने 30 और मोहम्मडन ने 13 ख़िताब अपने नाम किए हैं।
साल 2010 से 2017 तक, ईस्ट बंगाल ने लगातार आठ बार सीएफ़एल जीता। यह किसी भी टीम द्वारा लगातार ख़िताब जीतने का रिकॉर्ड है।
साल 1977 और साल 2016 में अपनी ख़िताबी जीत के दौरान, रेड और गोल्ड्स ने हर एक मैच में जीत दर्ज की और साल 1972 में टीम ने अपने विरोधियों को एक भी गोल करने नहीं दिया।
ईस्टर्न रेलवे (1958) लंबे समय तक कलकत्ता फु़टबॉल लीग प्रीमियर डिवीजन का ख़िताब जीतने वाली बिग थ्री के बाहर एकमात्र भारतीय टीम बनी रही। दिग्गज पीके बनर्जी ने उस सीज़न में ईस्टर्न रेलवे की अंडरडॉग कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पीयरलेस, साल 2019 में सीएफ़एल चैंपियन बनने वाली पांचवीं भारतीय टीम बनी।
कलकत्ता फु़ुटबॉल लीग की चैंपियन टीमें
मोहम्मडन स्पोर्टिंग, कलकत्ता फु़टबॉल लीग की मौजूदा चैंपियन हैं, जिन्होंने साल 2022 में आयोजित आख़िरी संस्करण में जीत हासिल की थी।
साल 1937 तक, सीएफ़एल एक अखिल भारतीय टूर्नामेंट था जिसमें पूरे देश की टीमें हिस्सा ले सकती थीं। साल 1938 से, यह सिर्फ कोलकाता और बंगाल की टीमों तक ही सीमित कर दिया गया।
एक ऐतिहासिक प्रतियोगिता होने के अलावा, कलकत्ता फ़ुटबॉल लीग ने देश को अब तक कई सर्वश्रेष्ठ फ़ुटबॉलर भी दिए हैं - चुन्नी गोस्वामी, पीके बनर्जी, सुब्रत भट्टाचार्य, सुभाष भौमिक, गौतम सरकार, प्रसून बनर्जी, सुरजीत सेनगुप्ता, मोहम्मद हबीब, अकबर, शब्बीर अली से लेकर भाईचुंग भूटिया और सुनील छेत्री जैसे आधुनिक युग के फ़ुटबॉल आइकन इसी प्रतियोगिता से निखर कर दुनिया के सामने आए।
प्रासंगिकता की लड़ाई
साल 1996 में नेशनल फ़ुटबॉल लीग (एनएफ़एल) के आने और बाद में आई-लीग और कैश-रिच इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) की शुरुआत के कारण सीएफ़एल का महत्व कम हो गया है।
अपने समृद्ध इतिहास और विरासत के बावजूद, कलकत्ता फ़ुटबॉल लीग पिछले कुछ समय से अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। स्थानीय प्रशंसकों की भावनाओं से जुड़े होने के कारण तीन दिग्गजों के बीच होने वाला डर्बी मुक़ाबला अब भी काफ़ी लोकप्रिय है और इन मैचों में प्रशंसकों की बड़ी भीड़ देखने को मिलती है। हालांकि, भारतीय फुटबॉल की बात करें तो सीएफ़एल के शानदार दिन अतीत में ही देखने को मिलते हैं।
हाल के वर्षों में, पूर्वी बंगाल और मोहन बागान ने इस प्रतियोगिता में दूसरी श्रेणी (रिज़र्व टीम) की टीमों को मैदान पर उतारा है। यहां तक कि मोहन बागान ने 2022 सीएफ़एल में हिस्सा भी नहीं लिया था।