भारतीय एथलेटिक्स के प्रशंसकों के लिए किसी एथलीट का एक ही इवेंट में तीन स्वर्ण पदक और एक कांस्य पदक जीतना हैरान कर देने वाली बात थी। लेकिन उस वक्त तक पीटी उषा (PT Usha) एक बड़ी एथलीट बन चुकी थीं और उनकी इस उपलब्धि ने उनके हुनर को सही मायने में परिभाषित करने का काम किया।
दरअसल, 1984 में लॉस एंजिल्स ओलंपिक में मामूली से अंतर से 400 मीटर की हर्डल रेस में एक ऐतिहासिक पदक से चूकने के बाद पीटी उषा काफी चर्चित एथलीट बन गईं थीं। इसके बाद उन्होंने 1985 के एशियाई चैंपियनशिप में खुद को एशियाई ट्रैक एंड फील्ड की क्वीन के रूप में स्थापित करने वाला कारनामा कर दिखाया।
पीटी उषा ने इंडोनेशिया के जकार्ता के सेन्या मैड्या स्टेडियम में एक इवेंट में छह पदक जीते, जिस रिकॉर्ड को अभी तक कोई भी भारतीय धावक नहीं तोड़ पाया है। ट्रैक एंड फील्ड क्वीन के अंदर ऐसा कुछ करने की इच्छा उस समय की सबसे तेज़ धावक लिडिया डी वेगा (Lydia de Vega) को देखकर जागी।
एशिया में सर्वश्रेष्ठ बनने का संकल्प
1980 के दशक में पीटी उषा की लगभग हर एक कहानी और दास्तां फिलिपिनो की स्प्रिंट स्टार लिडिया डी वेगा के उल्लेख के बिना अधूरी थी।
उनकी ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता का पहला अध्याय 1982 के एशियाई खेल में शुरू हुई थी, जहां लिडिया ने उषा को 100 मीटर स्वर्ण पदक रेस में पीछे छोड़ दिया था। हालांकि, बाद में 100 मीटर और 200 मीटर में रजत पदक उनके लिए अच्छे पलों की शुरुआत बने।
एक साल बाद 1983 के एशियाई चैंपियनशिप में 200 मीटर में लिडिया डी वेगा ने एक बार फिर पीटी उषा को हरा दिया। हालांकि, भारतीय एथलीट स्टार ने 400 मीटर का स्वर्ण जीतकर वापसी की। इसके बाद 1985 एशियाई चैंपियनशिप में पद्म श्री पुरस्कार विजेता के लिए यह सिर्फ स्वर्ण पदक जीतने की बात नहीं थी।
उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “ये बहुत गर्व की बात थी और एशिया में सर्वश्रेष्ठ होना उससे भी बड़ी बात थी।”
1984 के ओलंपिक में उषा के प्रदर्शन के बाद लिडिया डी वेगा को पता था कि वह उन्हें कड़ी टक्कर देगी और इसलिए 100 मीटर के पहले इवेंट में दौड़ने से पहले ही दोनों के दिमाग में यह दौड़ शुरू हो गई थी।
पीटी उषा ने द वीक पत्रिका को बताया, “लिडिया 100 मीटर में मेरी मुख्य प्रतिद्वंद्वी थीं और उनके पिता फ्रांसिस्को डी वेगा ने कहा कि एक एथलीट किसी मीट में केवल तीन स्पर्धाओं में भाग ले सकता है। वह चाहते थे कि मैं 100 मीटर की दौड़ से हट जाऊं।”
हालांकि, भारतीय धावक और उनके कोच ओम नांबियार (OM Nambiar) को इससे कुछ फर्क नहीं पड़ा।
उस वक्त 21 वर्षीय पीटी उषा 100 मीटर के लिए अपनी टाइमिंग को लेकर बहुत आश्वस्त थीं, उन्होंने इसे साबित भी कर दिखाया। उन्होंने सेमी-फाइनल में 11.39 सेकंड में दौड़ को समाप्त करके नेशनल रिकॉर्ड बनाया।
फ़ाइनल में भी उनका अविश्वसनीय प्रदर्शन जारी रहा, जहां पीटी उषा ने अपने प्रसिद्ध प्रतिद्वंद्वी को लगभग आधे सेकेंड के अंतर से हराकर स्वर्ण पदक जीता।
लिडिया डी वेगा तीसरे स्थान पर रहीं, क्योंकि थाईलैंड की रतजई श्रीपत ने रजत पदक जीता। यह इस इवेंट में लिडिया का एकमात्र पदक रहा।
पीटी उषा ने कहा, "ये वो जीत है जिससे मुझे आज भी बहुत ख़ुशी होती है।"
एक के बाद एक स्वर्ण पदक जीतने का दौर
सबसे मुश्किल इवेंट में उषा के जीत हासिल करने के बाद पेयोली एक्सप्रेस के आगे की राह को आसान बना दिया। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “बाकी सभी दौड़ में मेरा आत्मविश्वास आसमान पर था। मुझे यकीन था कि मैं स्वर्ण पदक जीत सकती हूं।”
उनके इस विश्वास को विशाल इलेक्ट्रॉनिक स्कोरबोर्ड ने साबित भी कर दिया।
भारतीय स्टार ने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ को एक सेकंड के सात के दसवें हिस्से के अंतर से स्वर्ण पदक जीता। अपने मुख्य इवेंट 400 मीटर बाधा दौड़ में उन्होंने हमवतन एमडी वलसाम्मा (MD Valsamma) से एक सेकंड आगे रहते हुए स्वर्ण पदक जीता।
35 मिनट के भीतर पीटी उषा ने दो स्वर्ण पदक हासिल किए। वह उस वक्त अपने चरम पर थीं।
उन्होंने कहा, “मुझे पता था कि मुझे कितने समय में दौड़ पूरी करनी थी। मैं हर कदम को अच्छी तरह जानती थी।”
उसके बाद पीटी उषा ने साथी पदक विजेता शाइनी विल्सन (Shiny Wilson) (800 मीटर स्वर्ण और 400 मीटर रजत), वंदना राव (Vandana Rao) (200 मीटर में कांस्य पदक) और पुष्पा नचप्पा (Pushpa Nachappa) के साथ मिलकर 4x400 मीटर रिले में रिकॉर्ड पांचवां स्वर्ण पदक जीता, जिसमें जापानी टीम पांच सेकेंड पीछे रह गई।
सबसे यादगार पदक
लगातार ट्रैक पर स्वर्ण पदक जीतने के बीच पीटी उषा 4x100 मीटर रिले रेस में कांस्य पदक हासिल करती हैं, यह जकार्ता में स्वर्ण पदक के अलावा उनका एकमात्र अन्य पदक था।
इसने उन्हें दूसरी बार लिडिया डी वेगा को पीछे छोड़ने का अवसर भी दिया।
उषा ने कहा, “जब मुझे बैटन मिला, तो मैं छठे या सातवें स्थान पर थी। लिडिया मेरे बगल में ही थी, अगली लेन पर फिलीपींस की टीम एंकर देने के लिए तैयार थी। मेरा बैटन एक्सचेंज तेज़ी से हुआ और मैंने उसके बाद एक या दो महिलाओं को पीछे छोड़ दिया। लिडा को बैटन लेने में देर हो गई और भारत ने 4x100 मीटर रिले में पहला पदक जीता।”
पीटी उषा ने आगे कहा, “मेरे पास अभी भी इस घटना की सीडी है और मैं इसे काफी बार देखती हूं।"
भारतीय ट्रैक क्वीन ने भारतीय एथलेटिक्स से अचानक ही अपने कदम पीछे खींच लिए थे, लेकिन उन्होंने एशियाई एथलेटिक्स इतिहास में अपनी एक अलग छाप छोड़ दी थी।
पीटी उषा ने 1986 के एशियाई खेलों में चार स्वर्ण और एक रजत के साथ शानदार रिकॉर्ड दर्ज किया, लेकिन 1985 के उनके अविश्वसनीय प्रदर्शन ने उन्हें आने वाले वर्षों के लिए एशिया में उनकी अलग पहचान बनाने का अवसर दिया।