पीटी उषा: एक अद्भुत एथलीट की ऐसी कहानी जिसमें इतिहास रचने की ख़ुशी के साथ दिल टूटने का दर्द भी है शामिल

भारत की ट्रेक एंड फील्ड की क्वीन कही जाने वाली पीटी उषा एक सेकंड से भी कम समय से 1984 लॉस एंजिल्स ओलंपिक खेलों में मेडल हासिल करने से चूक गईं थीं। 

5 मिनटद्वारा जतिन ऋषि राज
PT Usha missed out on an Olympic medal by just 0.01 seconds at Los Angeles 1984.
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आम जीवन में एक सेकेंड की अहमियत ज़्यादा नहीं होती है, लेकिन खेल या एथलेटिक्स की दुनिया में एक सेकंड का 100वां हिस्सा भी बेहद अहम होता है, क्योंकि यही जीत और हार के बीच का अंतर भी होता है। इस बात को भारतीय स्प्रिंटर पीटी उषा (PT Usha) से ज़्यादा बेहतर कौन समझ सकता है, जब वह कुछ सेकेंड से रेस में पीछे रह गईं और उस दिन भारत पदक जीतकर इतिहास रचने से चूक गया।

ऐसा ही नज़ारा भारत को 1960 रोम Olympic Khel में देखने को मिला था, जब मिल्खा सिंह (Milkha Singh) 400 मीटर की रेस में 1/10 सेकेंड से हारकर चौथे स्थान पर रहे थे। खेल की दुनिया अलग है, यहां एक पल का फर्क एक खिलाड़ी के नाम के आगे ‘विजेता’ लिखने की ताक़त रखता है।

लगभग दो दशक के बाद 8 अगस्त, 1984 को पीटी उषा Olympic Khel की 400 मीटर स्पर्धा में हिस्सा ले रहीं थीं और वह भी कुछ सेकेंड के कारण ही शीर्ष तीन में अपनी रेस को ख़त्म नहीं कर पाईं। रेस के बाद पीटी उषा को पता लगा कि रोम की क्रिस्टियाना कोजोकारू (Cristieana Cojocaru) ने उन्हें 1/100 सेकेंड से मात देते हुए कांस्य पदक हासिल किया और एक बार फिर भारत के हाथ निराशा लगी।

1984 ओलंपिक खेल तक पहुंचने की कहानी

1980 मास्को ओलंपिक गेम्स में भाग लेने के बाद पीटी उषा ने 1982 एशियन गेम्स में अपने नाम का डंका बजाया और एशियाई चैंपियनशिप में भी उनके हुनर भारत की शान में चार चांद लगाए। इन प्रतियोगिताओं में इस एथलीट ने 100 और 200 मीटर में हिस्सा लेते हुए रजत पदक अपने नाम किया। एक साल बाद पीटी उषा ने एशियाई चैंपियनशिप में ज़बरदस्त प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया और वह भारतीय फैंस के दिलों पर छा गईं।

इसके बाद इस भारतीय धावक से उम्मीदें बढ़ने लगीं। आगे चलकर कैलिफोर्निया में हुई एथलेटिक्स मीट में पीटी उषा ने 400 मीटर हर्डल रेस में जूडी ब्राउन (Judy Brown) को मात दी और एक बार फिर फैंस की उम्मीदों पर खरी उतरीं। इस जीत के साथ लॉस एंजिल्स 1984 ओलंपिक खेल से पहले भारत की उम्मीदें काफ़ी बढ़ गई।

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जब पीटी उषा का टूटा दिल

Olympic Khel में पीटी उषा बेहतरीन फॉर्म में दिखीं। शुरुआती दौर को उन्होंने दूसरे स्थान पर रह कर खत्म किया और एक बार फिर सेमीफाइनल में जूडी ब्राउन को मात दी।

अब बारी थी फाइनल की और पूरे देश की ज़ुबान पर एक ही नाम था। उषा के साथ वाली लेन में ऑस्ट्रेलिया की डेबी फ़्लिंटॉफ़ (Debbie Flintoff) मौजूद थीं और उनकी गलती की वजह से रेस को दोबारा शुरू भी किया गया था। लेन 5 से दौड़ रहीं भारतीय स्प्रिंटर ब्लॉक में धीमी रहीं लेकिन टर्न पर उन्होंने बीच के अंतर को काफी कम कर दिया था।

5 रनर उस रेस को जीतने की कड़ी दावेदारी पेश कर रहे थे और पीटी उषा ने क्रिस्टियाना कोजोकारू के साथ बराबरी भी कर ली थी। कुछ ही देर बाद रोमानिया की रेसर ने गति में परिवर्तन कर भारतीय एथलीट को मात दी और अपने लिए पोडियम पर जगह पक्की कर ली।

रेस में मोस्को की नवल एल मुटावकेल (Nawal El Moutawakel) ने गोल्ड मेडल हासिल किया। पय्योली एक्सप्रेस के नाम से मशहूर पीटी उषा ने बताया कि रेस के दोबारा शुरू होने की वजह से वह कहीं न कहीं लय खो चुकी थीं। आखिरी 35 मीटर में पीटी उषा ने ज़ोर तो बहुत लगाया लेकिन आखिरी के कुछ क्षणों में वह पदक से दूर हो गईं।

इक्वेटर लाइन मैगजीन से इंटरव्यू के दौरान उषा ने कहा, “मुझे याद है, हम केरल में अचार को ‘काडू मांगा अचार' कहते हैं और मैंने ओलंपिक के समय वही खाया था। मुझे उबला हुआ आलू या चिकन खाने की आदत नहीं थी, जो कि एक अमेरिकी खाना होता है और उसमें सोया सॉस भी होता है।”

उन कुछ क्षणों ने पूरे देश को मायूस कर दिया था, लेकिन पीटी उषा का मानना था कि ओलंपिक खेल में भाग लेने की वजह से उन्होंने अपने जीवन के सबसे गौरवान्वित पलों को जिया था।

एक दिग्गज बनने की कहानी

उषा के जीवन में लॉस एंजिल्स 1984 ओलंपिक खेल के परिणाम निराशा लेकर आए और उस दौरान भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने उन्हे हौसला दिया।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए उषा ने कहा, “मुझे इंदिरा गांधी जी की तरफ से एक संदेश मिला, जिसमें लिखा था ‘उषा, मेरी बेटी, तुमने देश के लिए बहुत कुछ किया है। तुम निराश न होना और अगली बार के लिए और मेहनत करना, हम सब तुम्हारे साथ हैं।’ उस एक ख़त ने मुझे प्रेरणा दी।”

अगले कुछ सालों में पीटी उषा ने बहुत सी उपलब्धियां हासिल की, जिसमें एशियाई खेल और एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत शामिल थी। इस दौरान उन्होंने कई रिकॉर्ड भी अपने नाम किए और प्रशंसकों के दिलों पर छा गईं।

उषा ने साल 1989 में रिटायर होने का मन बना लिया था लेकिन श्रीनिवास ने उन्हें आगे भी दौड़ते रहने की सलाह दी और आख़िरकार वह देश के लिए साल 2000 तक खेलती रहीं और उस दौरान उन्होंने कई प्रतियोगिताओं में पोडियम पर जगह हासिल की।

पद्म श्री पुरस्कार जीतने वाली उषा ‘उषा स्कूल ऑफ़ एथलेटिक्स’ भी चलाती हैं। यह अकादमी केरला में स्थित है और यहां बहुत से युवा अपने सपनों की उड़ान को पंख देने आते हैं। उन्हें इस अकादमी से उम्मीद है कि एक दिन यहीं से एक छात्र भारत के लिए ओलंपिक खेल में पदक लाएगा।

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