भारतीय क्रिकेटर राज अंगद बावा से सभी को काफी उम्मीदें हैं। हालांकि, उम्मीदों के बोझ से युवा ऑलराउंडर के निराश होने और अपने लक्ष्य से भटकने की संभावना बिल्कुल नहीं है।
लंदन 1948 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम का हिस्सा तरलोचन बावा रहे हैं। राज बावा, तरलोचन बावा के पोते हैं। वह एक ऐसे परिवार में पले-बढ़े हैं, जहां खेल से काफी गहरा लगाव रहा है।
राज बावा के पिता सुखविंदर बावा एक मशहूर क्रिकेट कोच हैं। उन्होंने युवराज सिंह और वीआरवी सिंह जैसे भारत के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को तराशा है। सुखविंदर ने युवावस्था में हॉकी और क्रिकेट दोनों खेलों में हाथ आजमाया, लेकिन 20 साल की उम्र में रीढ़ की हड्डी में चोट के बाद उन्होंने कोचिंग की ओर रुख किया।
राज बावा अपने दादा और पिता के नक्शेकदम पर आगे बढ़ रहे हैं। कम उम्र में ही उन्होंने विश्व स्तर पर भारत के लिए कई बड़े सम्मान जीते चुके हैं। इसके साथ ही भारत को रिकॉर्ड पांचवीं बार ICC अंडर-19 वर्ल्ड कप 2022 जीतने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
राज बावा का जन्म 12 नवंबर 2002 को हिमाचल प्रदेश के नाहन में हुआ था और वह चंडीगढ़ में पले-बढ़े। उन्होंने पांच साल की उम्र में अपने ओलंपियन दादा को खो दिया।
राज बावा ने इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में में बताया, "मेरे पास अपने दादाजी की बहुत ज्यादा यादें नहीं हैं क्योंकि जब उनकी मृत्यु हुई थी तब मैं एक बच्चा था। लेकिन मैंने अपनी दादी और अपने पिता से उनके बारे में काफी सुना है, जो हमेशा मेरे साथ रहेंगी।”
हालांकि, ओलंपिक स्वर्ण पदक के रूप में उनके दादा की एक याद हमेशा घर पर मौजूद रहती थी।
उन्होंने कहा, "जब भी मैं उस स्वर्ण पदक को देखता हूं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं, मैं केवल कल्पना कर सकता हूं कि यह कितनी महान उपलब्धि रही होगी।"
यह पदक हमेशा ही राज के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। वह छोटी उम्र से ही जानते थे कि उनके पास जीने के लिए खेल की एक समृद्ध विरासत है।
राज बचपन में थिएटर, संगीत और नृत्य से काफी प्रभावित थे। राज एक बार क्रिकेट मैच देखने के लिए अपने पिता के साथ धर्मशाला गए। जिसके बाद 11 साल की उम्र में राज के जीवन ने एक अहम मोड़ लिया। उनके पिता सुखविंदर उस पल को याद करते हुए कहते हैं "उस लम्हें के बाद उनमें सब कुछ बदल गया।"
राज बावा ने क्रिकेट को काफी गंभीरता से लेना शुरू कर दिया। उन्हें अपने पिता के रूप में एक कोच मिल गया। राज अपने पिता सुखविंदर की कोचिंग अकादमी में भी जाना शुरू कर दिया, जहां भारतीय टीम के दिग्गज युवराज सिंह ने भी प्रशिक्षण लिया था।
युवराज के रूप में राज बावा को एक आदर्श मिल गया। प्राकृतिक तौर पर दाएं हाथ से बल्लेबाजी करने वाले राज बाएं हाथ के बल्लेबाज के रूप में परिवर्तित हो गए। क्योंकि युवराज बाएं हाथ से बल्लेबाजी करते थे। हालांकि, वह अभी भी अपने दाहिने हाथ से गेंदबाजी करते हैं।
अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप में राज बावा बने शानदार खिलाड़ी
यहीं से राज बावा का करियर आगे बढ़ना शुरू हुआ। उन्होंने कई आयु समूहों में सफलता हासिल करने के बाद, ऑलराउंडर के रूप में राज बावा ने शारजाह में बांग्लादेश के खिलाफ एक वन डे मैच में हिस्सा लिया। जहां उन्होंने भारतीय अंडर-19 टीम के लिए अपना डेब्यू किया। अभी तक उन्होंने 10 मैच खेले हैं, जिसमें उन्होंने 57.16 की औसत से 343 रन बनाए हैं और 17 विकेट अपने नाम किए हैं। अंडर-19 क्रिकेट वर्ल्ड कप के अधिकांश मैच वेस्टइंडीज में हुए थे। राज बावा ने टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया।
राज बावा ने अपनी दो पारियों में 252 रन बनाए और 9 विकेट लिए। युगांडा के खिलाफ उन्होंने 108 गेंदों में नाबाद रहते हुए 162 रनों की पारी खेली, जो उनका सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर के साथ टूर्नामेंट का सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर था। यह अंडर-19 वर्ल्ड कप में किसी भी भारतीय द्वारा बनाया गया सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर रहा। इस रिकॉर्ड ने शिखर धवन के साल 2004 में बनाए गए 155 रनों के रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया।
वहीं, गेंदबाजी के रिकॉर्ड पर नज़र डालें तो राज अंगद का 31 रन देकर 5 विकेट लेने का सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी का रिकॉर्ड है। यह आंकड़ा उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल मुकाबले में हासिल किया था। जहां उन्हें मैन ऑफ द मैच से नवाजा गया था।
दिलचस्प बात यह है कि लंदन 1948 के हॉकी फाइनल में, महान बलबीर सिंह सीनियर की कप्तानी में भारत ने भी इंग्लैंड को हराकर स्वर्ण पदक हासिल किया था। तरलोचन बावा ने 4-0 से जीत में भारत के लिए एक गोल किया था। ओलंपिक में यह उनका दूसरा गोल था।
1948 के हॉकी स्वर्ण पदक को भारतीय खेल इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। हालांकि, यह भारत के छह ओलंपिक हॉकी स्वर्ण पदकों में से एक है। लेकिन यह स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में देश का पहला स्वर्ण था। यह पदक इंग्लैंड में इंग्लैंड के खिलाफ जीता गया था।
मजे की बात यह है कि राज बावा के चचेरे भाई रितिंदर सिंह सोढ़ी, जो भारत के पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। उन्होंने भी साल 2000 में अंडर-19 विश्व कप फाइनल के दौरान मैन ऑफ द मैच अपने नाम किया था। इस मैच में भारत ने श्रीलंका को हराया था। फिलहाल अभी राज बावा को एक लंबा सफर तय करना है।
बावा पहले ही पंजाब किंग्स के लिए अपना आईपीएल डेब्यू कर चुके हैं और चंडीगढ़ के लिए रणजी ट्रॉफी भी खेल चुके हैं। उन्हें आईपीएल 2025 सीजन के लिए मुंबई इंडियंस ने चुना था।
राज बावा को अभी भी एक लंबा सफर तय करना है। क्योंकि उनमें एक ओलंपिक चैंपियन के जीन हैं, जिनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है।