सैयद मुश्ताक अली कौन हैं: भारत के पहले विदेशी टेस्ट शतकवीर के बारे में जानें

सैयद मुश्ताक अली ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए 11 टेस्ट मैच खेले। उनके नाम पर भारत के प्रमुख T20 टूर्नामेंट का नाम रखा गया है।

6 मिनटद्वारा सतीश त्रिपाठी
Syed Mushtaq Ali of India and right-handed opening batsman for the touring Indian Cricket Team circa April 1936. Syed Mushtaq Ali holds the distinction of scoring the first overseas Test century by an Indian player when he scored 112 against England at Old Trafford in 1936.
(Getty Images)

क्रिकेट के समृद्ध इतिहास में कुछ ही खिलाड़ी ऐसे रहे हैं जिन्होंने अपने खास अंदाज से खेल को नई परिभाषा दी। सैयद मुश्ताक अली, अपनी आक्रामक बल्लेबाजी और बेहतरीन खेल शैली के साथ, ऐसे ही एक महान खिलाड़ी थे, जिन्होंने उस दौर में अपनी एक अलग चमक बिखेरी।

सैयद मुश्ताक अली ने 1936 में इंग्लैंड के खिलाफ ओल्ड ट्रैफर्ड में टेस्ट शतक लगाकर इतिहास रच दिया। वह विदेशी सरजमीं पर टेस्ट शतक लगाने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर बने। उन्होंने दूसरी पारी में 112 रन बनाए, जिसमें 17 चौके शामिल थे। उनकी इस पारी ने भारत को 368 रनों से पिछड़ने के बाद मैच ड्रॉ कराने में मदद की।

उनका आक्रामक खेल और दर्शकों को रोमांचित करने की क्षमता, उन्हें एक लोकप्रिय खिलाड़ी बनाती थी। हालांकि, उनका अंतरराष्ट्रीय करियर केवल 11 टेस्ट मैचों तक ही सीमित रहा, जो 1934 से 1952 के बीच खेले गए। इन मैचों में उन्होंने 612 रन बनाए, जिसमें दो शतक और तीन अर्धशतक शामिल थे।

दाएं हाथ के सलामी बल्लेबाज सैयद मुश्ताक अली ने अपने शानदार प्रथम श्रेणी करियर के जरिए क्रिकेट में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने 226 मैचों में 13,213 रन बनाए, जिसमें 30 शतक और 63 अर्धशतक शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने बाएं हाथ की स्पिन गेंदबाजी से 162 विकेट भी चटकाए।

सैयद मुश्ताक अली का क्रिकेट के प्रति दृष्टिकोण उनकी आत्मकथा Cricket Delightful में साफ झलकता है। उन्होंने लिखा, "आनंद, कौशल और सतर्कता से खेला गया क्रिकेट आमतौर पर जीत दिलाता है। हालांकि, हार टालने का जज्बा जरूरी है, लेकिन यह जीत की गारंटी नहीं देता।"

ऑस्ट्रेलियाई महान खिलाड़ी कीथ मिलर ने उन्हें "क्रिकेट के एरोल फ्लिन" (हॉलीवुड अभिनेता) कहा। उनके अनुसार, मुश्ताक अली आकर्षक, जोशीले, साहसी और एक ऐसे खिलाड़ी थे जो हर जगह बेहद लोकप्रिय थे।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने सैयद मुश्ताक अली की विरासत को सम्मानित करते हुए अपने प्रमुख घरेलू T20 क्रिकेट टूर्नामेंट का नाम उनके नाम पर रखा - सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी

सैयद मुश्ताक अली के शुरुआती दिन

सैयद मुश्ताक अली का जन्म 17 दिसंबर 1914 को इंदौर में हुआ था। उनके पिता, खान साहब सैयद याकूब अली, सेंट्रल इंडिया एजेंसी पुलिस में इंस्पेक्टर थे। शुरुआती दिनों में मुश्ताक अली अपनी गेंदबाजी के लिए जाने जाते थे, लेकिन बाद में वह अपनी पीढ़ी के सबसे बेहतरीन बल्लेबाजों में से एक बन गए।

1930 में, जब मुश्ताक अली मात्र 15 वर्ष के थे, उन्होंने दिल्ली में आयोजित ऑल इंडिया रोशन आरा क्रिकेट टूर्नामेंट में सीके नायडू की टीम के साथ हिस्सा लिया। इस टूर्नामेंट में उनकी तेज गेंदबाजी और उत्कृष्ट फील्डिंग ने महाराजकुमार ऑफ विजयनगरम (विज्जी) का ध्यान आकर्षित किया। विज्जी ने मुश्ताक अली को अपने संरक्षण में ले लिया और उन्हें वाराणसी (तब बनारस) बुला लिया।

वाराणसी पहुंचने के बाद मुश्ताक अली ने बंगालीटोला हाई स्कूल में दाखिला लिया और विजयनगरम पैलेस के मैदान पर अभ्यास करना शुरू किया। यहीं पर उनकी बल्लेबाजी और ऑलराउंड कौशल में निखार आया।

विज्जी के साथ रहते हुए मुश्ताक अली ने भारत और विदेशों में कई फर्स्ट-क्लास मैच खेले। अपने हरफनमौला खेल के दम पर उन्होंने क्रिकेट जगत में एक खास पहचान बनाई।

सैयद मुश्ताक अली का क्रिकेट करियर

सैयद मुश्ताक अली ने 1930-31 के सीजन में फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में डेब्यू किया और जनवरी 1934 में पहली बार भारतीय टेस्ट टीम का प्रतिनिधित्व किया। अपने शानदार करियर के दौरान, उन्होंने कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल कीं, जो भारतीय क्रिकेट के लिए प्रेरणा बनीं।

सैयद मुश्ताक अली ने इंग्लैंड के खिलाफ कोलकाता के आइकॉनिक ईडन गार्डन्स में अपना डेब्यू किया। इस मैच में उन्होंने इंग्लैंड के कप्तान डगलस जार्डिन का विकेट चटकाया, जो उस समय 61 रन बनाकर अच्छी लय में थे।

पहले टेस्ट की दूसरी पारी में, मुश्ताक अली को ओपनिंग करने के लिए भेजा गया, क्योंकि दिलावर हुसैन पहली पारी में एक बाउंसर लगने से चोटिल हो गए थे।

अगले टेस्ट मैच में भी मुश्ताक को ओपनिंग का मौका मिला। हालांकि वह 20 रन से ज्यादा नहीं बना पाए, लेकिन उनकी तकनीक ने टीम प्रबंधन का ध्यान खींचा।

अगले कुछ वर्षों में, सैयद मुश्ताक अली ने विजय मर्चेंट के साथ एक मजबूत ओपनिंग जोड़ी बनाई। यह साझेदारी भारतीय बल्लेबाजी क्रम की रीढ़ बन गई और और इस जोड़ी ने कई यादगार पारियां खेलीं।

1936 में ओल्ड ट्रैफर्ड के मैदान पर इंग्लैंड के खिलाफ सैयद मुश्ताक अली ने ऐसा कारनामा किया, जो भारतीय क्रिकेट इतिहास में दर्ज हो गया। उन्होंने 112 रनों की पारी खेली, जो विदेश में किसी भारतीय बल्लेबाज द्वारा पहला टेस्ट शतक था। इस पारी ने भारत को हार की कगार से निकालकर मैच ड्रॉ कराने में मदद की।

पहली पारी में भारत 203 रन पर सिमट गया था, जिसके जवाब में इंग्लैंड ने 573/8 पर पारी घोषित कर दी और 368 रनों की बड़ी बढ़त हासिल कर ली। लेकिन मुश्ताक अली और विजय मर्चेंट (114 रन) की शानदार पारियों ने भारत को 390/5 तक पहुंचाकर मैच ड्रॉ करा दिया।

मुश्ताक अली के 112 रन में 17 चौके शामिल थे। उनकी यह पारी न केवल भारत के लिए बल्कि भारतीय क्रिकेट के इतिहास के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण थी।

लाला अमरनाथ भारतीय क्रिकेट इतिहास के पहले टेस्ट सेंचुरियन थे। उन्होंने 1933 में इंग्लैंड के खिलाफ 118 रनों की शानदार पारी खेली थी, हालांकि यह मैच भारत हार गया था। यह पारी भारतीय क्रिकेट में एक मील का पत्थर साबित हुई।

1948 में वेस्टइंडीज के खिलाफ सैयद मुश्ताक अली ने अपना दूसरा टेस्ट शतक बनाया। उनके क्रिकेट करियर का आखिरी टेस्ट मैच भी इतिहास में दर्ज हो गया।

फरवरी 1952 में इंग्लैंड के खिलाफ चेन्नई में भारत ने अपनी पहली टेस्ट जीत दर्ज की। भारत ने यह मैच एक पारी और आठ रनों से जीता। इस ऐतिहासिक जीत में भारतीय टीम ने 457/9 का विशाल स्कोर बनाया, जिसमें सैयद मुश्ताक अली ने पारी की शुरुआत करते हुए 22 रनों का योगदान दिया।

इस मैच में पंकज रॉय (111) और पॉली उमरीगर (130*) ने शतक जड़े, जबकि विनू मांकड़ ने गेंदबाजी में कमाल दिखाते हुए पहली पारी में 8/55 और दूसरी पारी में 4/53 का प्रदर्शन किया।

1964 में सैयद मुश्ताक अली को उनके अमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। 90 वर्ष की आयु में 18 जून 2005 को उनका निधन हो गया।

सैयद मुश्ताक अली के बेटे गुलरेज अली और पोते अब्बास अली भी प्रथम श्रेणी क्रिकेटर बने।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने 2009 में इंटर-स्टेट ट्वेंटी-20 टूर्नामेंट का नाम बदलकर 'सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी' कर दिया। यह टूर्नामेंट घरेलू क्रिकेट में T20 फॉर्मेट का एक प्रमुख इवेंट है।

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