टोक्यो 2020 की शुरुआत से पहले Savita Punia ने कहा था कि रियो 2016 का हिस्सा रह चुकीं आठ खिलाड़ियों को शामिल करने से भारतीय महिला टीम को फायदा होगा। उनका अनुभव सोमवार को एकदम सही साबित हुआ, जब भारत की महिला हॉकी टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर पहली बार ओलंपिक सेमीफाइनल में प्रवेश किया।
भारी गियर पहने Punia गोल में शांत और धैर्य के साथ खड़ी रहीं, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया लगातार दबाव बनाने की कोशिश कर रहा था। ऑस्ट्रेलियाई टीम ने नौ पेनल्टी कॉर्नर अर्जित किए और 17 बार सर्कल में प्रवेश किया, लेकिन वे Punia के साथ खड़ी भारतीय डिफेंस पंक्ति ने एक बार भी उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया।
31 वर्षीय इस खिलाड़ी से पार पाना विरोधी टीम के लिए असंभव साबित हुआ। वह भारत के ऐतिहासिक सेमीफाइनल में पहुंचने की प्रमुख कुंजी में से एक रहीं। आइए, जानें भारत की इस गोलकीपर के बारे में पांच बातें:
पहली प्रेरणा
Punia के दादा Mahinder Singh ने उन्हें हॉकी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, जो उनके जिला स्कूल में होने वाले खेल में से एक था। वो एक हॉकी मैच देखने के लिए नई दिल्ली गए थे और उन्हें खेल पसंद था। Punia के अनुसार, अगर यह खेल उनके दादा को पसंद नहीं होता, तो शायद वो जूडो या बैडमिंटन में भाग लेतीं।
2001 में उनकी मां को आर्थराइटिस हो गया, इस कारण Punia को घर के बहुत सारे काम करने पड़ते थे।
Punia ने Olympics.com को बताया, "पांचवीं कक्षा से मैं अपनी मां के बीमार होने और अस्पताल में भर्ती होने के बाद घर पर सब कुछ संभालती थी।"
"लेकिन मेरे दादाजी कुछ और हासिल करने के लिए मेरे घर छोड़ने पर अड़े थे और घर के बाकी लोग भी थे, जो बहुत खुले विचारों वाले थे और वे भी चाहते थे कि मैं कुछ हासिल करूं।"
शुरुआत में हॉकी नहीं आई पसंद
बहुत सी भारतीय महिला एथलीटों को अपने चुने हुए खेल में बने रहने के लिए पारिवारिक दबाव का विरोध करना पड़ा। लेकिन Punia के सामने दूसरी स्थिति थी।
उनके परिवार वालों ने उन्हें हॉकी में धकेला। हरियाणा के सिरसा के जोधकन गांव की रहने वाली Punia हॉकी को आगे बढ़ाने के लिए हिसार में भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) केंद्र में शामिल हुई थीं। उसे हरियाणा की भीड़-भाड़ वाली बसों में 20 किलो गोलकीपिंग गियर के साथ अपने घर से छात्रावास तक लगभग दो घंटे की यात्रा करनी पड़ती थी।
उन्होंने लिवमिंट को बताया था, “मैं अपने पिता से कहता था कि मैं खेलना नहीं चाहती। लेकिन, उन्होंने मुझे गोलकीपर की किट, तब खरीदी थी, जब वो उसे खरीदने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए, लगा कि मुझे अपने परिवार के विश्वास को कायम रखना होगा। टेलीविजन पर भी मैं अपने परिवार को कभी भी स्पोर्ट्स चैनल नहीं देखने देती। मुझे शुरुआत में ज्यादा मजा नहीं आया और मैं सेशन से बाहर निकलने के बहाने बनाती थी।”
चार साल का इंतजार
खेल छात्रावास में अपने समय के दौरान Punia को गोलकीपिंग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। क्योंकि, वह अपने ग्रुप में सबसे लंबी थीं।
2007 में भारतीय सीनियर नेशनल कैंप में जगह बनाने के बावजूद Punia को मौके के लिए लगभग चार साल तक इंतजार करना पड़ा। उन्होंने 2011 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण किया।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलता
Punia पिछले कुछ सालों से हॉकी के मैदान पर भारत की सफलता का अभिन्न अंग रही हैं। 2013 में अपनी सफलता के बाद से, जब वह एशिया कप में कांस्य विजेता भारतीय टीम का हिस्सा थीं, तब से उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
वह बेल्जियम में 2015 FIH हॉकी वर्ल्ड लीग में कुछ शीर्ष प्रदर्शन के साथ आई थी, जहां भारत ने रियो 2016 के लिए क्वालीफाई किया था। 36 वर्षों में पहली बार उन्होंने ओलंपिक में जगह बनाई थी।
तब से Punia ने भारत को 2016 एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी, 2017 एशिया कप, 2018 एशियाई खेलों में एक रजत पदक और 2018 विश्व कप में क्वार्टर फाइनल जीतने में मदद की है।
रियो 2016 से लिया सबक
भारत के टोक्यो 2020 के लिए क्वालीफाई करने के बाद Punia ने रियो के 'बुरे सपने' को पीछे छोड़ने की ठानी।
Punia ने कहा, "मुझे लगता है कि उस समय हमारी टीम वास्तव में कच्ची थी और हमने कुछ गलतियां भी कीं। जब मैं कहती हूं कि मेरा सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी है, तो यह इसलिए है, क्योंकि मेरा लक्ष्य टोक्यो ओलंपिक में अपनी टीम के लिए असाधारण प्रदर्शन करना है। साथ ही यह सुनिश्चित कर सकूं कि मैं रियो के बुरे सपने को पीछे छोड़ सकती हूं।"
भारत की रक्षा की अंतिम पंक्ति मजबूत रही और टोक्यो में उस वादे को पूरा किया।