प्रवीण कुमार सोबती - ओलंपिक में खेलने से लेकर महाभारत में भीम का किरदार निभाने तक का सफ़र

प्रवीण कुमार सोबती ने एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेल में पदक जीते। वह भारत की प्रसिद्ध टीवी धारावाहिक महाभारत में ‘भीम’ का अभिनय करने के कारण काफ़ी मशहूर हुए।

6 मिनटद्वारा रितेश जायसवाल
Praveen Kumar Sobti
(Sports Authority of India (SAI))

प्रवीण कुमार सोबती कई प्रतिभाओं वाले व्यक्ति थे। सोबती एक प्रसिद्ध एथलीट और एक सैनिक होने के साथ ही भारतीय टेलीविजन के सबसे चर्चित चेहरों में भी शुमार थे। विशेष तौर पर, लंबे समय तक चलने वाली टेलीविजन धारावाहिक महाभारत में 'भीम' की भूमिका निभाने के लिए प्रवीण कुमार सोबती काफ़ी मशहूर हुए थे।

1960 और 1970 के दशक के दौरान प्रवीण कुमार सोबती भारत के सबसे सफल ट्रैक और फील्ड एथलीटों में गिने जाते थे। लेकिन, कुछ वर्षों बाद वह सिल्वर स्क्रीन पर अपने अभिनय का प्रदर्शन करते हुए भारत में एक चर्चित नाम बन गए।

एक एथलीट के तौर पर प्रवीण कुमार सोबती अपने खेल करियर में डिस्कस और हैमर थ्रो दोनों स्पर्धाओं में प्रतिस्पर्धा करते थे। 

उन्होंने एशियाई खेल की डिस्कस थ्रो प्रतियोगिता में दो स्वर्ण और एक रजत पदक अपने नाम किया है। वहीं, हैमर थ्रो में सोबती ने बैंकॉक में 1966 के एशियाई खेल में कांस्य पदक जीता था। उसी वर्ष की शुरुआत में किंग्स्टन में आयोजित राष्ट्रमंडल खेल में उन्होंने रजत पदक पर अपने नाम की मुहर लगाई थी।

प्रवीण कुमार सोबती ने मेक्सिको 1968 और म्यूनिख 1972 ओलंपिक खेल में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था।

1970 के दशक के आख़िर में अपने खेल करियर पर विराम लगाने के बाद, प्रवीण कुमार सोबती ने हिंदी टेलीविजन और फिल्म जगत में बतौर अभिनेता अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। उन्होंने कुछ बड़े किरदार निभाए – जैसे टीवी सीरियल महाभारत में भीम, फिल्म शहंशाह में मुख्तार सिंह और चाचा चौधरी में साबू की भूमिका।

प्रवीण कुमार सोबती ने साल 2020 में टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा, “खेल छोड़ने के बाद भी मैं अपने प्रशंसकों के बीच लोकप्रिय और चर्चित रहना चाहता था। मैं सुर्खियों में रहना चाहता था। इसलिए मैंने सिनेमा को चुना।”

सोबती ने 1981 में फिल्म 'रक्षा' के जरिए बॉलीवुड में अपना डेब्यू किया और उसके बाद 50 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया।

प्रवीण कुमार सोबती कहां से हैं?

प्रवीण कुमार सोबती का जन्म 6 दिसंबर 1947 को पंजाब के सरहाली कलान में हुआ था। उन्होंने एक स्थानीय स्कूल में पढ़ाई की और इंटर-स्कूल प्रतियोगिताओं में नियमित रूप से हिस्सा लिया। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा अमृतसर के खालसा कॉलेज से की।

उम्र बढ़ने के साथ ही सोबती का खेलों के प्रति जुनून भी बढ़ता गया और उनके माता-पिता, खासतौर से उनके पिता ने उन्हें अपने जुनून की ओर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित किया।

प्रवीण कुमार सोबती को 18 साल की उम्र में सीमा सुरक्षा बल (BSF) नौकरी मिली और उन्होंने अपने प्रभावशाली एथलेटिक कौशल के साथ अपनी अलग पहचान हासिल की।

विभिन्न राष्ट्रीय स्पर्धा में पदक जीतने के बाद, सोबती ने एशियाई खेल, ओलंपिक खेल और राष्ट्रमंडल खेल सहित कई अन्य प्रमुख प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स और ओलंपिक गेम्स

भारतीय सशस्त्र बल में शामिल होने के एक साल बाद, प्रवीण कुमार सोबती ने जमैका के किंग्स्टन में 1966 के राष्ट्रमंडल खेल के लिए भारतीय एथलेटिक्स टीम में जगह बनाई।

सोबती ने डिस्कस थ्रो स्पर्धा में निराशाजनक रुप से आठवां स्थान हासिल किया लेकिन पांच दिन बाद हैमर थ्रो में रजत पदक जीतकर सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। दिग्गज भारतीय धावक मिल्खा सिंह के कार्डिफ़ 1958 में स्वर्ण जीतने के बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स की एथलेटिक्स स्पर्धा में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने के लिए 60.12 मीटर का सर्वश्रेष्ठ थ्रो किया।

आज तक, सोबती का रजत पदक कॉमनवेल्थ गेम्स की हैमर थ्रो स्पर्धा में भारत का एकमात्र पदक है।

इसके कुछ महीने बाद, प्रवीण कुमार सोबती ने डिस्कस थ्रो स्पर्धा में 49.62 मीटर की दूरी तय करते हुए एक एशियाई रिकॉर्ड बनाकर स्वर्ण पदक जीता। इसके अलावा, हैमर थ्रो में 57.18 मीटर के प्रयास के साथ उन्होंने उसी संस्करण में कांस्य पदक हासिल किया।

साल 1967 में, प्रवीण कुमार सोबती की उपलब्धियों के चलते उन्हें भारत सरकार ने अर्जुन पुरस्कार (खिलाड़ियों के लिए भारत का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार) से सम्मानित किया।

उन्होंने मेक्सिको 1968 Olympic Khel में भारत का प्रतिनिधित्व किया लेकिन हैमर थ्रो में 60.84 मीटर प्रयास के साथ 20वें स्थान पर रहे। दो साल बाद, प्रवीण कुमार सोबती ने एशियाई खेल 1970 में 52.32 मीटर प्रयास के साथ अपने डिस्कस थ्रो स्वर्ण पदक को डिफेंड किया।

ओलंपिक में प्रवीण कुमार सोबती को दूसरी बार भी कोई सफलता नहीं मिली और डिस्कस थ्रो में 53.12 मीटर प्रयास के साथ वे म्यूनिख 1972 में 26वें स्थान पर रहे। अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनका आखिरी बड़ा पदक तेहरान में 1974 के एशियाई खेल में आया, जहां उन्होंने डिस्कस थ्रो में 53.64 मीटर की तय करते हुए रजत पदक अपने नाम किया।

प्रवीण कुमार सोबती ने एक बार कहा था, “फिल्म जगत ने मुझे बहुत कुछ दिया है। लेकिन खेल हमेशा मेरा पहला प्यार रहेगा। मैं अब भी उन पलों को याद करता हूं। जब आप पोडियम पर खड़े होकर अपने गले में पदक पहनते हैं, तो यह सबसे अलग और एक अविश्वसनीय एहसास होता है।”

प्रवीण कुमार सोबती का एक्टिंग करियर

प्रवीण कुमार सोबती ने 50 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। इसमें रक्षा, हम से है ज़माना, लोहा, शहंशाह, मोहब्बत के दुश्मन और अन्य फिल्में शामिल हैं।

साल 1981 में आई फिल्म रेखा में शुरुआत करने के बाद वह गुंडे के तौर पर कई भूमिकाओं में दिखाई दिए, लेकिन साल 1987 में अमिताभ बच्चन की फिल्म शहंशाह में एक खलनायक की भूमिका निभाने के बाद उनकी शोहरत में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई।

एक अभिनेता के रूप में उनका सबसे यादगार दौर तब आया, जब उन्होंने बीआर चोपड़ा की पौराणिक महाकाव्य 'महाभारत' पर आधारित टीवी सीरीज में ‘भीम’ की भूमिका निभाई।

6'6 की ऊंचाई के साथ प्रवीण कुमार सोबती की मजबूत कद-काठी ने महाभारत के पांच नायक पांडव भाइयों में से एक, शक्तिशाली भीम की भूमिका को पूरी तरह से यादगार बना दिया।

1990 के दशक में 'महाभारत' हर भारतीय घर में दैनिक तौर पर देखा जाने वाला मुख्य टीवी शो बन गया। इसी के साथ सोबती एक पूरी पीढ़ी द्वारा पहचानी जाने वाली हस्ती बन गए।

प्रवीण कुमार सोबती ने 2020 में द हिंदू को बताया, "ईमानदारी से कहूं तो जो लोग आपको खिलाड़ी के तौर पर जानते हैं वे हमेशा भूल जाते हैं।”

“एथलेटिक्स छोड़ने के 35-40 साल बाद, जो लोग मुझे एक एथलीट के रूप में जानते थे, वे या तो रिटायर हो गए हैं या खेल से बाहर हो गए हैं। लेकिन महाभारत ने मुझे जो पहचान दी, उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता है।“

साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन भारती चैनल पर इस टेलीविजन सीरीज को फिर से शुरू किया और यह भारत में टीवी पर सबसे ज्यादा देखे जाने वाले शो में से एक था।

“बच्चे मुझे भीम के रूप में याद करते हैं। जब भी मैं बाहर जाता हूं, वे कहते हैं 'वो देखो (वहां देखो), भीम अंकल, भीम अंकल'। मुझे अच्छा लगता है जब वे मुझे ऐसा कहते हैं।

एक सफल एक्टिंग करियर के बाद, प्रवीण कुमार सोबती साल 2013 में राजनीति में शामिल हुए।

प्रवीण कुमार सोबती का निधन कब हुआ

नई दिल्ली में 74 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने के कारण 7 फरवरी, 2022 को इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व का निधन हो गया।

प्रवीण कुमार सोबती के पदक और उपलब्धियां

  • एशियाई खेल - स्वर्ण पदक (डिस्कस थ्रो -1966, 1970), रजत पदक (डिस्कस थ्रो 1974), कांस्य पदक (हैमर थ्रो - 1966)
  • राष्ट्रमंडल खेल - रजत पदक (हैमर थ्रो - 1966)
  • राष्ट्रीय खेल पुरस्कार - अर्जुन पुरस्कार 1967
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