मीराबाई चानू: भारत की वो भारोत्तोलक जिसने वेटलिफ्टिंग की दुनिया में मचा रखी है सनसनी

ओलंपिक पदक विजेता, विश्व चैंपियन और विश्व रिकॉर्ड धारक मीराबाई चानू पिछले कुछ समय से विश्व स्तर पर भारतीय भारोत्तोलन का चेहरा रहीं हैं।

9 मिनटद्वारा सतीश त्रिपाठी
टोक्यो 2020 में रजत पदक जीतने वाली भारोत्तोलकर मीरा बाई चानू।
(2021 Getty Images)

मीराबाई चानू ने पिछले एक दशक में अपने शानदार प्रदर्शन के जरिए भारतीय वेटलिफ्टिंग को एक अलग मुकाम पर पहुंचाया है।

मीराबाई चानू ने एक के बाद एक कई खिताब हासिल कर भारत को गौरवान्वित किया है। मणिपुर की इस दिग्गज वेटलिफ्टर ने एक विश्व चैंपियन और ओलंपिक पदक विजेता के तौर पर हर प्रतियोगिता में देश का नाम ऊंचा किया है।

मीराबाई चानू कहां की हैं?

मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को मणिपुर की राजधानी इम्फाल से लगभग 20 किलोमीटर दूर नोंगपोक काकचिंग नाम के एक गांव में हुआ था।

छह भाई-बहनों में, चानू सबसे छोटी हैं और वह एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थीं। मीराबाई के पिता साईखोम कृति मैतेई राज्य के लोक निर्माण विभाग (PWD) में कार्यरत थे। जबकि उनकी मां साईखोम तोम्बी देवी एक छोटी सी चाय की दुकान चलाती थीं।

बहुत सीमित संसाधनों के साथ, मीराबाई चानू और उनके भाई-बहन परिवार की ईंधन लागत को कम करने के लिए आस-पास के जंगलों से लकड़ी इकट्ठा किया करते थे।

यही वह समय था जब मीराबाई चानू की भारोत्तोलन की प्रतिभा सामने आई।

मीराबाई चानू उस समय महज 12 वर्ष की थीं। वह अपने 16 वर्षीय भाई साईखोम सनतोम्बा मैतेई के साथ अपने गांव के पास के जंगलों में जलाऊ लकड़ी की सफाई के लिए गई थीं। जहां इस भाई-बहन की जोड़ी को दिन में लकड़ी का काफी ढेर मिला।इस दौरान जब बंडल उठाने की बात आई तो सनतोम्बा को इस ढेर को उठाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

लेकिन सिर्फ 12 साल की मीराबाई चानू ने इस बंडल को बड़ी आसानी से उठाकर अपने सिर पर रख लिया और घर पहुंचने के लिए पहाड़ी रास्ते से 2 किमी का लंबा सफर तय किया। जिसे देखकर उनके भाई को काफी आश्चर्य हुआ।

हालांकि सनतोम्बा भारोत्तोलन के लिए अपनी बहन की रुचि के बारे में बिल्कुल आश्वस्त थे लेकिन बतौर खेल मीराबाई चानू ने तीरंदाजी को प्राथमिकता दी।

मीराबाई चानू ने इस बारे में कहा, “मेरे सभी भाई और चचेरे भाई फुटबॉल खेलते हैं लेकिन वे एक दिन के खेल के बाद गंदे होकर घर लौट आते हैं। मैं एक ऐसा खेल खेलना चाहती थी, जो साफ-सुथरा हो। सबसे पहले, मैं एक तीरंदाज बनना चाहती थी क्योंकि ये खेल साफ-सुथरा और स्टाइलिश है।”

एक तीरंदाज बनने की चाहत में, मीराबाई चानू ने अपने चचेरे भाई के साथ इम्फाल के खुमान लम्पक स्टेडियम में भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) केंद्र का दौरा किया।

हालांकि, उस दिन वहां कोई तीरंदाजी अभ्यास नहीं कर रहा था और इसके बजाय उन्होंने कुछ भारोत्तोलकों को एक्शन में देखा। इस खेल से आकर्षित होकर, मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग की दुनिया में कदम रखने का फैसला किया।

इस बीच मीराबाई चानू को मणिपुरी की एक अन्य वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी के बारे में जानकारी हुई।

जिन्होंने भारत को सात विश्व चैंपियनशिप पदक और साल 2002 में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक दिलाने के लिए सभी बाधाओं कर पारकर ये खिताब हासिल किया था।

खेल के प्रति उनके इस जुनून को देखकर चानू काफी प्रभावित हुईं।

चानू को अपने गांव में खेल के लिए कोई बुनियादी जरूरते नहीं होने के कारण उन्हें अपनी कोच अनीता चानू के नेतृत्व में प्रशिक्षण हासिल करने के लिए हर रोज लगभग 40 किमी का सफर तय करना पड़ता था।अनीता चानू एक पूर्व भारोत्तोलक थीं, जिन्होंने 1990 में बीजिंग एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।

मीराबाई चानू प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन बस या फिर ट्रकों के द्वारा अपना सफर तय करती थीं।

शुरुआत में, वह अपनी तकनीक को बेहतर बनाने के लिए बांस के डंडों का इस्तेमाल करती थी, फिर छह महीने के बाद उन्होंने वजन उठाने पर जोर देना शुरू किया।

दो साल बाद नेशनल कैंप में जगह बनाने के साथ उन्होंने सब-जूनियर कैटेगरी में राज्य स्तर पर स्वर्ण पदक जीता और फिर 2011 में जूनियर कैटेगरी में अपना पहला राष्ट्रीय पदक हासिल किया।

मीराबाई चानू के मेडल और रिकॉर्ड

इसके तुरंत बाद, मीराबाई चानू को नेशनल टीम द्वारा बुलाया गया और आखिरकार वह अपनी आइडियल कुंजारानी देवी के मार्गदर्शन में आ गईं।

चानू ने 2013 में पिनांग राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका पहला खिताब था।

इसके बाद 28 वर्षीय इस होनहार भारतीय एथलीट ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक खिताब जीतकर अपने देश का नाम ऊंचा करती रहीं।

मीराबाई चानू ने ग्लासगो में 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया और महिलाओं के 48 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीतने के बाद उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई।

हालांकि तत्कालीन 20 वर्षीय मीराबाई चानू इंचियोन 2014 एशियाई खेलों से खाली हाथ लौटीं, लेकिन उन्होंने रियो 2016 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने के लिए शानदार प्रदर्शन किया।

वहीं, रियो 2016 में मणिपुर की इस वेटलिफ्टर से भारत को काफी उम्मीदें थीं और मीराबाई चानू के लिए यह ओलंपिक डेब्यू भी था।

भारोत्तोलक चानू क्लीन एंड जर्क में कोई भी सफल प्रयास उठाने में विफल रहीं।

इस तरह रियो 2016 में मीराबाई चानू के मेडल जीतने के सपनों पर पानी फिर गया।

रियो में अपनी विफलता बाद उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा।

मीराबाई चानू रियो 2016 के सफर पर कहती हैं, “रियो ओलंपिक में असफल होने के बाद मैं पूरी तरह से टूट गई थी। मेरी इच्छा पदक जीतने की थी, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पाई। इसलिए, मैं सोचती रही कि 'इतनी मेहनत करने के बाद मैं असफल क्यों हुई'।”

लेकिन कहते हैं न कि अगर आपके इरादे मजबूत हैं और हौसले बुलंद हैं तो कोई भी मुश्किल आपकी राह में कांटा नहीं बन सकती है।

ऐसा ही कुछ नजारा, रियो ओलंपिक के बाद मीराबाई चानू की जिंदगी में देखने को मिला। इस वेटलिफ्टर ने अपनी असफलता के बाद जिस तरीके से वापसी की, वह किसी नए वेटलिफ्टर के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है।

संयुक्त राज्य अमेरिका के अनाहेम में 2017 विश्व वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में, मीराबाई चानू ने यादगार प्रदर्शन करते हुए सभी का ध्यान एक बार फिर अपनी ओर आकर्षित किया।

मीराबाई चानू ने 194 किग्रा (स्नैच में 85 किग्रा और क्लीन एंड जर्क में 109 किग्रा) का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ भार उठाकर विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और महिलाओं के 48 किग्रा भार वर्ग में एक चैंपियनशिप रिकॉर्ड भी हासिल किया।

1995 में कर्णम मल्लेश्वरी के बाद से यह विश्व स्तर पर भारत का पहला स्वर्ण था।

इस विश्व खिताब ने न केवल उन्हें अपने आलोचकों को गलत साबित करने में मदद की बल्कि मीराबाई चानू इस खेल में एक सनसनी बनकर सामने आईं।

वहीं, भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न और चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया।

इसके बाद मीराबाई चानू ने ठीक एक साल बाद एक और कारनामा हासिल किया, जब उन्होंने गोल्ड कोस्ट में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में 48 किग्रा भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता।

थाईलैंड में आयोजित विश्व चैंपियनशिप 2019 में भारतीय वेटलिफ्टर बहुत कम अंतर से पदक से चूक गईं थी लेकिन मणीपुर की एथलीट ने चीन के निंगबो में आयोजित एशियाई वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप 2020 में इतिहास रच दिया।

इस दौरान मीराबाई ने कुल 205 किग्रा का भार उठाकर कॉन्टिनेंटल मीट में 49 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीता। मीराबाई चानू ने क्लीन एंड जर्क में 119 किग्रा का सर्वश्रेष्ठ लिफ्ट किया। जिसके बाद वह नए विश्व रिकॉर्ड धारक के रूप में उभरकर सामने आईं।

बता दें कि 205 किग्रा का भार उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ और राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी है।

उन्होंने दो बार की विश्व चैंपियन चीन की जियांग हुईहुआ के 118 किग्रा के पिछले रिकॉर्ड को तोड़कर इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवाया।

फिर वह वक्त आया जब मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक 2020 में अपने अधूरे सपने को पूरा किया।

रियो ओलंपिक में असफलता हाथ लगने के बाद मीराबाई चानू ने जापान में महिलाओं के 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीता।

इस दौरान उनका कुल 202 किग्रा (87 किग्रा + 115 किग्रा) चीन के होउ झिहुई के 210 किग्रा (94 किग्रा + 116 किग्रा) से कम था, जिन्होंने इस इवेंट में एक नया ओलंपिक रिकॉर्ड बनाया था।

इसके साथ ही यह ओलंपिक के वेटलिफ्टिंग इवेंंट में भारत का पहला रजत पदक था। सिडनी 2000 में महिलाओं के 69 किग्रा भार वर्ग में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारत के लिए कांस्य पदक जीता था।

मीराबाई चानू के लिए व्यक्तिगत रूप से यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

भारतीय वेटलिफ्टर ने टोक्यो में पदक हासिल करने के बाद कहा, "मैं पिछले पांच सालों से इस पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। मैंने स्वर्ण जीतने की बहुत कोशिश की लेकिन दुख की बात है कि मैं ये नहीं जीत सकी। हालांकि मैं अपने देश के लिए पदक जीतकर खुश हूं।"

पहले से ही पेरिस 2024 में अपने पदक के रंग में बदलाव करने के इरादे से मीराबाई चानू ने अपने अगले लक्ष्य की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है।

हाल ही संपन्न हुए बर्मिंघम में कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में उन्होंने सफलतापूर्वक अपने पदक को डिफेंड कर अपने लक्ष्य तक पहुंचने के इरादे को साफ कर दिया है।

बर्मिंघम में महिलाओं के 49 किग्रा भार वर्ग में भारतीय वेटलिफ्टर ने कुल 201 किग्रा (88 किग्रा + 113 किग्रा) का भार उठाकर एक नया रिकॉर्ड कायम किया।

मॉरीशस की रोइल्या रानाइवोसोआ ने 172 किग्रा, मीराबाई से 29 किग्रा कम भार उठाकर रजत पदक हासिल किया था।

कोलंबिया के बोगोटा में आयोजित विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप 2022 में मीराबाई चानू ने 200 किग्रा (87 किग्रा स्नैच + 113 किग्रा क्लीन एंड जर्क) प्रयास के साथ अपना दूसरा विश्व चैंपियनशिप पदक, इस बार रजत पदक जीता।

चोट से जूझने के बावजूद, चानू पेरिस 2024 ओलंपिक में एकमात्र भारतीय भारोत्तोलक थीं। मणिपुरी सनसनी अपने दूसरे पदक से चूक गई और चौथे स्थान पर रहीं। उनका कुल 199 किग्रा वजन कांस्य पदक विजेता थाईलैंड की सुरोडचाना खंबाओ से सिर्फ 1 किग्रा कम था।

मीराबाई चानू की उपलब्धियां और व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड

  • व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ और राष्ट्रीय रिकॉर्ड - 205 किग्रा (86 किग्रा + 119 किग्रा)
  • स्नैच के लिए व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ और राष्ट्रीय रिकॉर्ड - 88 किग्रा
  • क्लीन एंड जर्क के लिए व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ और विश्व रिकॉर्ड - 119 किग्रा
  • ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय भारोत्तोलक - टोक्यो 2020
  • 22 साल में विश्व चैंपियन बनने वाली पहली भारतीय भारोत्तोलक - विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप 2017
से अधिक