कुछ साल पहले ट्रैक पर उतरने के बाद स्टीपलचेज़र अविनाश साबले ने इस पीढ़ी के भारत के प्रमुख लंबी दूरी के धावक के रूप में खुद को तेज़ी से स्थापित किया है।
साल 2015 में दौड़ को एक खेल के रूप में अपनाने के बाद साबले का करियर बेहद शानदार रहा है।
अविनाश साबले का जन्म 13 सितंबर 1994 को महाराष्ट्र के बीड जिले के मांडवा गांव में हुआ था। अविनाश मुकुंद साबले एक साधारण परिवार में पले-बढ़े।
उनके माता-पिता किसान थे और सार्वजनिक परिवहन की सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्हें अपने स्कूल जाने के लिए हर दिन छह किलोमीटर दौड़ना पड़ता था।
अविनाश साबले ने कभी भी बड़े होकर किसी भी खेल को अपना करियर बनाने के बारे में नहीं सोचा और अपने परिवार की मदद करने के लिए सेना में शामिल होने का मन बना लिया।
इंडियन आर्मी ने अविनाश साबले को कैसे बनाया एक एथलीट
अविनाश साबले 12वीं कक्षा पास करने के बाद भारतीय सेना में भर्ती हुए और 5 महार रेजिमेंट का हिस्सा बने। वह सियाचिन, राजस्थान और सिक्किम में तैनात रहे।
अपनी सर्विस के पहले दो सालों के दौरान अविनाश साबले दो जलवायु के बीच संघर्ष करते रहे। एक तरफ़ जहां सियाचिन का तापमान आमतौर पर शून्य के काफ़ी नीचे रहता है, तो वहीं राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में तापमान 50 डिग्री तक पहुंच जाता है।
सेना के एथलेटिक्स कार्यक्रम में शामिल होने के बाद अविनाश साबले ने 2015 में ही स्पोर्ट्स रनिंग के बारे में कुछ सीखा। उन्हें शुरू में क्रॉस कंट्री प्रतियोगिताओं के लिए चुना गया था और उनकी प्रतिभा जल्द ही सबके सामने दिखने लगी।
खास बात यह है कि भारतीय एथलीट ने सिर्फ एक साल की ट्रेनिंग की थी। साबले सर्विसेज़ टीम में शामिल हुए और उनकी टीम ने टीम प्रतियोगिता जीती और वह व्यक्तिगत राष्ट्रीय क्रॉस कंट्री चैंपियनशिप में पांचवें स्थान पर रहे।
हालांकि, अविनाश साबले को चोट लग गई और ट्रेनिंग की कमी के कारण उनका वजन काफ़ी बढ़ गया। सेना में कुछ लोगों ने उनका करियर ख़त्म समझ लिया लेकिन इसी बात ने भारतीय एथलीट के लिए किसी प्रेरणा की तरह काम किया।
उस समय 24 वर्षीय साबले ने जल्द ही 15 किलो से अधिक वजन कम किया और फिर से दौड़ना शुरू कर दिया। 2017 में एक दौड़ के दौरान सेना के कोच अमरीश कुमार ने उनकी तीव्रता पर ध्यान दिया और उन्हें स्टीपलचेज़ वर्ग में दौड़ने की राय दी।
अमरीश कुमार ने Scroll.in को बताया, “उनके पास ताक़त और सहनशक्ति थी क्योंकि वह एक ग्रामीण क्षेत्र से हैं। वह क्रॉस-कंट्री में बहुत अच्छे थे और जब मैंने ट्रेनिंग में उनकी जंप देखी, तो हमने उन्हें स्टीपलचेज़ में ले जाने का फैसला किया।”
अब ये बताने की जरूरत नहीं है कि उस फ़ैसले ने अविनाश साबले और भारतीय एथलेटिक्स के लिए कितना अद्भुत काम किया।
शानदार रही साबले की शुरुआत
खेल की श्रेणी बदली लेकिन अविनाश साबले की चमक नहीं, वह 2017 फ़ेडरेशन कप में पांचवें स्थान पर रहे और फिर चेन्नई में ओपन नेशनल में स्टीपलचेज़ राष्ट्रीय रिकॉर्ड से सिर्फ 9 सेकेंड दूर रहे थे।
लेकिन वह दौर फिर से आया जब उनकी आलोचना होने लगी।
साबले ने ईएसपीएन से कहा, "स्टीपलचेज़ एक बहुत ही तकनीकी दौड़ है। इसलिए कई बार, मुझे कहा गया कि भारत में इस रिकॉर्ड को तोड़ना संभव नहीं है क्योंकि भारत में इस तरह की गति को हासिल करने वाला कोई नहीं है। इसलिए मुझे अपने लिए भी गति निर्धारित करनी पड़ी।”
जहां पिछली बार उनपर सवाल खड़े हुए थे, तो उन्होंने अपने आलोचकों को गलत साबित कर दिया था, लेकिन इस बार चुनौती ज्यादा बड़ी थी। 2018 की शुरुआत में ट्रेनिंग के दौरान अविनाश साबले का घुटना टूट गया और वह दौड़ने के लिए संघर्ष करने लगे, जिसके परिणामस्वरूप वह एशियाई खेल के लिए क्वालीफ़ाई नहीं कर सके।
हालांकि, उन्होंने जल्द ही वापसी की और अपने लक्ष्य को हासिल करना शुरू कर दिया। भुवनेश्वर में 2018 ओपन नेशनल में अविनाश ने 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में 8: 29.88 का समय लेते हुए 30 साल के नेशनल रिकॉर्ड को 0.12 सेकेंड से तोड़ दिया। इससे पहले ये रिकॉर्ड गोपाल सैनी ने 1981 के टोक्यो में आयोजित एशियाई चैंपियनशिप में बनाया था।
टोक्यो 2020 ओलंपिक तक का सफर
हालांकि, सेना के हवलदार के लिए सब कुछ अच्छा नहीं हो रहा था। रूसी कोच निकोलाई स्नेसारेव के चुनौतीपूर्ण तरीके अविनाश साबले की शैली के अनुरूप नहीं थे और उन्होंने कुछ समय के लिए दौड़ को छोड़ने का विचार किया।
हालांकि, साबले ने धैर्य से काम लिया और स्नेसारेव को छोड़कर अमरीश कुमार से ट्रेनिंग लेने चले गए। इस जोड़ी ने आला दर्जे की ट्रेनिंग पर काम किया और धीरे-धीरे गति को तेज करने के लिए अलग-अलग मौसमों में ट्रेनिंग की।
इसका परिणाम साबले ने 2019 में पटियाला में फेडरेशन कप में दिखाया, जहां उन्होंने दूसरी बार नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 8:28.94 का समय निकाला, जो उनके पिछले रिकॉर्ड से लगभग एक सेकेंड तेज था।
इसके बलबूते उन्होंने दोहा में होने वाले IAAF विश्व चैंपियनशिप का टिकट हासिल किया, जिससे वह 1991 में दीना राम के बाद विश्व चैंपियनशिप में दौड़ने वाले पहले भारतीय पुरुष स्टीपलचेज़र बन गए।
अप्रैल में दोहा में आयोजित 2019 एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी अविनाश साबले ने रजत पदक जीता। यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनका पहला रन था।
हालांकि, यह 2019 दोहा का विश्व चैंपियनशिप ही था, जहां अविनाश साबले भारतीय एथलेटिक्स के नए स्टार बन गए। यहां उन्होंने दो बार अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा। हीट में वह अपने राष्ट्रीय रिकॉर्ड समय से तीन सेकेंड तेज दौड़े, हालांकि वह रेस विवादों से घिरी रही।
यहां गौर करने वाली बात ये रही कि उन्होंने फाइनल के लिए क्वालीफाई नहीं किया था। लेकिन एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एएफआई) ने अपील किया कि उनके साथ दौड़ रहे एक धावक ने उन्हें बाधा पहुंचाई, जिसके बाद उन्हें फाइनल में खेलने का मौका मिला।
फाइनल में सेना के इस जवान ने 8:21.37 का समय निकालकर एक बार फिर से राष्ट्रीय रिकॉर्ड को बेहतर बनाया और 13वें स्थान पर रहे और इसके परिणामस्वरूप टोक्यो 2020 के लिए क्वालीफाई किया। इसके साथ, अविनाश साबले गुलजारा सिंह के बाद ओलंपिक में स्टीपलचेज स्पर्धा में क्वालीफाई करने वाले पहले भारतीय बन गए। आपको बता दें गुलजारा सिंह ने 1952 के खेलों में भारत की तरफ से भाग लिया था।
टोक्यो 2020 में अपने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को फिर से बेहतर बनाने के बावजूद, अविनाश साबले अपने डेब्यू समर गेम्स के फ़ाइनल में जगह बनाने में असफल रहे।
अविनाश साबले के रिकॉर्ड
ओलंपियन बनने के अपने सपने को साकार करने के बाद भी अविनाश साबले की गति धीमी नहीं हुई।
अविनाश साबले का सबसे हालिया पुरुषों की 3000 मीटर स्टीपलचेज नेशनल रिकॉर्ड 8:09.91 समय का है, जो उन्होंने 2024 में पेरिस डायमंड लीग में दर्ज किया था। उनका पिछला सर्वश्रेष्ठ 8:11.20 समय था, जो उन्होंने बर्मिंघम में कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में रजत पदक जीतने के साथ दर्ज किया था।
बर्मिंघम 2022 में, भारतीय धावक केन्या के अब्राहम किबिवोत से सिर्फ 0.05 सेकेंड के अंतर से पीछे रह गए थे। केन्याई धावक ने स्वर्ण पदक जीता था। दिलचस्प बात ये है कि कनाडा के ग्रीम विंसेंट फेल (विक्टोरिया 1994 में) के बाद से साबले पहले एथलीट बने, जिन्होंने केन्याई एथलीटों को कॉमनवेल्थ गेम्स में पोडियम के सभी तीनों स्थानों पर कब्ज़ा करने से रोक दिया। CWG में उनके द्वारा जीता गया रजत पदक स्टीपलचेज़ में भारत का पहला पदक भी था।
अविनाश साबले ने डायमंड लीग सीरीज में शानदार प्रदर्शनों के साथ 2023 सीजन में अपना बेहतरीन फॉर्म जारी रखा। सिलेसिया डायमंड लीग में 8:11.63 का समय लेकर उन्होंने पेरिस 2024 ओलंपिक के लिए पुरुषों की 3000 मीटर स्टीपलचेज़ के लिए क्वालीफाई किया।
यूजीन में डायमंड लीग फाइनल के लिए क्वालीफाई करने के बावजूद, अविनाश साबले ने हांगझोऊ में एशियाई खेल 2023 पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया। इसका उन्हें फायदा भी मिला और साबले ने 8:19.50 का समय लेकर नया एशियन गेम्स रिकॉर्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक जीता।
अपने पसंदीदा इवेंट के अलावा, भारतीय दिग्गज ने लंबी दूरी की दौड़ के अन्य डिसिप्लीन में भी नए मील के पत्थर स्थापित करना शुरू कर दिया है।
अविनाश साबले ने 2022 में अमेरिका के सैन जुआन कैपिस्ट्रानो में साउंड रनिंग ट्रैक मीट में 13:25.65 समय लेते हुए पुरुषों की 5000 मीटर रेस में 30 साल पुराना राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था। यह उनका दूसरा रेस था। उन्होंने साल 1992 में बर्मिंघम में बहादुर सिंह द्वारा बनाए गए 13:29.70 के पिछले रिकॉर्ड को ध्वस्त किया था। साल 2023 में, साबले ने लॉस एंजेल्स में साउंड रनिंग ऑन ट्रैक फ़ेस्ट में 13:19.30 के साथ अपने समय में और सुधार किया।
भारतीय धावक ने हांगझोऊ 2023 में पुरुषों के 5000 मीटर में रजत पदक जीतने के लिए 13:21.09 का प्रभावशाली समय दर्ज किया। बहरीन के बिरहानु बालेव ने एशियन गेम्स रिकॉर्ड बनाते हुए अविनाश साबले को स्वर्ण पदक जीतने से रोक दिया।
आपको बता दें, गुलवीर सिंह ने जून 2024 में अमेरिका के पोर्टलैंड में 13:18.92 समय के साथ 5000 मीटर का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया।
वर्तमान में, हाफ मैराथन का राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी उनके नाम दर्ज है, जो उन्होंने साल 2020 में दिल्ली हाफ मैराथन में 1:00:30 के समय के साथ अपने नाम किया था। अविनाश साबले 61 मिनट से कम समय में हाफ मैराथन पूरा करने वाले एकमात्र भारतीय हैं।
अविनाश साबले की उपलब्धियां और उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
- पुरुषों के 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में राष्ट्रीय रिकॉर्ड - 8:11:20
- पुरुषों के 5000 मीटर में राष्ट्रीय रिकॉर्ड - 13:19.30
- पुरुषों के हाफ मैराथन में राष्ट्रीय रिकॉर्ड - 1:00:30
- पुरुषों के 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में एशियन गेम्स रिकॉर्ड - 8:19:50
- पुरुषों के 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में रजत पदक - दोहा 2019 एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप
- पुरुषों के 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में रजत पदक - बर्मिंघम 2022 राष्ट्रमंडल खेल
- पुरुषों के 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में स्वर्ण पदक - हांगझोऊ 2023 एशियन गेम्स
- पुरुषों के 5000 मीटर में रजत पदक - हांगझोऊ 2023 एशियन गेम्स
- साल 2022 में अर्जुन अवार्ड - भारत में खिलाड़ियों को दिया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार
- लगातार सात बार 3000 मीटर स्टीपलचेज़ का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा
- 68 सालों में 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में ओलंपिक के लिए क्वालीफ़ाई करने वाले पहले भारतीय