क्रिकेट के खेल में बल्लेबाज को आउट करने के 10 अलग-अलग तरीकों में से एक एलबीडब्ल्यू (लेग बिफोर विकेट) यानी पगबाधा नियम है। जो बीते कुछ वर्षों से अक्सर विवादों और बहस का मुद्दा रहा है।
कुछ साल पहले तक एलबीडब्ल्यू के फैसले काफी हद तक ऑन-फील्ड अंपायर की व्यक्तिगत समझ और अलग-अलग विचार पर निर्भर हुआ करते थे। एलबीडब्ल्यू के फैसलों में अक्सर मानवीय गलती इसे चर्चा में ले आती थी।
हालांकि हाल के वर्षों में चीजें बदल गई हैं। स्लो-मोशन वीडियो, बॉल ट्रैकिंग और अब डीआरएस जैसी तकनीकी मदद के आने से एलबीडब्ल्यू निर्णयों में काफी हद तक सुधार देखा गया है। हालांकि इसमें अभी भी सुधार की गुंजाइश रहती है।
तकनीकी सहायता के बिना या यहां तक कि उनके साथ भी मैच में एलबीडब्ल्यू अभी भी खेल के दौरान ऑन-फील्ड अंपायर का सबसे कठिन निर्णय रहता है।
आइए यहां एलबीडब्ल्यू के नियमों और इतिहास पर एक नजर डालते हैं।
एलबीडब्ल्यू नियम
अगर आसान शब्दों में कहें तो एक बल्लेबाज को एलबीडब्ल्यू आउट तब माना जाता है, जब वह गेंद को स्टंप में जानें से रोकता है। इस दौरान बल्लेबाज के हाथों को छोड़कर उसके शरीर का कोई भी हिस्सा स्टंप्स के रास्ते में अगर आता है तो उसे एलबीडब्ल्यू करार दिया जाता है।
क्रिकेट में कलाई तक हाथ, बल्ले का विस्तार माना जाता है। बल्लेबाज आमतौर पर सुरक्षा के लिए दस्ताने पहनता है, जिसे पूरा उनका हाथ माना जाता है।
हालांकि यह आसान लग सकता है, कई अन्य शर्तें हैं जिन्हें एलबीडब्ल्यू के माध्यम से बल्लेबाज को आउट करने के लिए पूरा करने की आवश्यकता होती है, जो निर्णय लेने के लिए कुछ जटिलताओं को समेटे हुए हैं।
शर्तें हैं:
गेंद एक वैध डिलीवरी होनी चाहिए, यानी नो बॉल नहीं होनी चाहिए।
एलबीडब्ल्यू कॉल के लिए सबसे पहले ये देखा जाता है कि गेंद सबसे पहले बल्लेबाज को कहां छूती है, मतलब यदि गेंद पहले बल्ले या हाथ और फिर खिलाड़ी के शरीर से टकराती है, तो इसे एलबीडब्ल्यू आउट नहीं माना जा सकता है। भले ही अन्य शर्तें पूरी हों। यदि गेंद बल्ले और खिलाड़ी के शरीर से एक साथ टकराती है, तो उसे माना जाता है कि वह पहले बल्ले से टकराई है।
अगर बल्लेबाज गेंद को बाउंस होने से पहले बल्ले से नहीं रोक पाता है, उस स्थिति में एलबीडबल्यू की अपील के लिए यह जरूरी है कि गेंद की उछाल तीनों विकेट के लाइन में हो या फिर बल्लेबाज के ऑफ स्टंप की लाइन में हो।
बल्लेबाज के लेग स्टंप से बाहर गेंद यदि पिच होती और स्विंग या स्पिन होकर उसके विकेटों में आती है तो उसे एलबीडब्ल्यू आउट नहीं दिया जाता है।
गेंद को ऑफ स्टंप लाइन के बाहर पिच होने और विकेटों की ओर आने के मामले में भी, कुछ बारीकियां हैं जिन्हें बल्लेबाज को एलबीडब्ल्यू आउट देने से पहले विचार किया जाता है।
इस मामले में यदि गेंद और बल्लेबाज के शरीर के बीच का प्वाइंट ऑफ इंपैक्ट स्टंप की लाइन में है और अन्य शर्तें पूरी होती हैं, तो बल्लेबाज को आउट दिया जाता है।
हालांकि यदि गेंद और बल्लेबाज के शरीर के बीच का प्वाइंट ऑफ इंपैक्ट ऑफ स्टंप लाइन के बाहर है, तो बल्लेबाज को केवल तभी आउट दिया जा सकता है जब वह शॉट खेलने की कोशिश नहीं कर रहा है। क्रिकेट की भाषा में कहें तो बल्लेबाज का इरादा गेंद को खेलने का नहीं था। यदि बल्लेबाज ने शॉट लगाने का वास्तव में प्रयास किया है, लेकिन वह चूक गया है, तो वह नॉट आउट दिया जाता है।
बल्लेबाज ने 'वास्तव में' गेंद को खेलने का प्रयास किया है या नहीं, यह अक्सर एलबीडब्ल्यू निर्णयों का सबसे कठिन हिस्सा बन जाता है और तीसरे अंपायर और वीडियो सहायता की शुरूआत के बाद भी फैसला अंपायर के विवेक पर निर्भर करता है।
हाल के नियमों में बदलाव के बाद स्टंप के शीर्ष पर लगाई गई बेल्स को भी विकेटों का हिस्सा माना जाता है। इसका मतलब यह है कि अगर गेंद की ऊंचाई बेल्स तक की होती है, तो भी फैसला गेंदबाज के पक्ष में चला जाता है। हालांकि यह इसके लिए बाकी अन्य शर्तें पूरी होनी चाहिए, तभी बल्लेबाज को आउट करार दिया जा सकता है।
क्रिकेट में आउट के सभी तरीकों की तरह, क्षेत्ररक्षण करने वाली टीम को औपचारिक रूप से अंपायर से एलबीडब्ल्यू आउट देने के लिए अपील करने की आवश्यकता होती है।
हालांकि इसे लेग बिफोर विकेट और हिन्दी में पगबाधा कहा जाता है, शरीर के किसी भी हिस्से से गेंद को रोकना, हाथों को छोड़कर, जैसा कि ऊपर बताया गया है, एलबीडब्ल्यू आउट हो सकता है। हालांकि क्रिकेट में ज्यादातर मौके पर एलबीडब्ल्यू आउट होने की दशा गेंद का बल्लेबाज के पैड में लगने को ही माना जाता है, क्योंकि बल्लेबाज का बाकी शरीर स्टंप से ऊंचा होता है इसलिए उसका पैर ही ज्यादातर मौकों पर स्टंप्स के सामने आ जाता है। तभी इसे लेग बिफोर विकेट का नाम दिया गया है।
एलबीडब्ल्यू का इतिहास
एलबीडब्ल्यू नियम मैरीलेबोन क्रिकेट क्लब (MCC) के क्रिकेट के कानून 36 के तहत दर्ज है, जो खेल के नियमों को नियंत्रित करता है।
क्रिकेट के नियमों का सबसे पुराना ज्ञात संस्करण 1744 से पहले का है, हालांकि सीधे तौर पर एलबीडब्ल्यू का कोई उल्लेख नहीं है। उस समय इंग्लैंड में इस्तेमाल किए जाने वाले बल्ले घुमावदार होते थे और जिससे बल्लेबाजों को विकेटों को ब्लॉक करने की संभावना बहुत कम होती थी।
हालांकि अंपायरों के पास खिलाड़ियों को दंड देने का अधिकार दिया गया था, यदि बल्लेबाज गलत तरीके से गेंद पर हमला करने के लिए खड़ा होता था, तो वे 1744 के क्लॉज के मुताबिक बल्लेबाज को दंडित कर सकते थे।
जैसे ही बाद के वर्षों में बल्ले सीधे होने लगे बल्लेबाज अक्सर अपने पैड का उपयोग करके गेंदों को विकेटों में जाने से रोकने लगे। जिसे उस समय पैड प्ले के रूप में जाना जाता था।
पैड प्ले की वजह से खेल उबाऊ हो गया और कहीं न कहीं ये गेंदबाजों के साथ गलत होने लगा। जिससे 1774 के कानून के मसौदे में एक नियम में बदलाव किया गया। उसके बाद एलबीडब्ल्यू नियम को लागू किया गया और ये तय हुआ कि अगर बल्लेबाज जानबूझकर स्टंप में जाने वाली गेंदों को पैर से रोकेगा तो उसे आउट करार दिया जाएगा।
क्रिकेट में आज हम जिस एलबीडब्ल्यू नियम को जानते हैं, उसे इस रूप में आने के लिए कई बार बदलाव व संशोधन के दौर से गुजरना पड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में एलबीडब्ल्यू आउट होने वाले पहले खिलाड़ी इंग्लैंड के हैरी जूप थे। साल 1876 में मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच पहले टेस्ट मैच में जूप को ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज टॉम गैरेट ने 63 रन पर विकेट के सामने फंसाया था और उन्हें एलबीडब्ल्यू के जरिए आउट किया था।
आपको बता दें, एलबीडब्ल्यू से आउट होने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज नाऊमल जूमल थे, जिन्हें 1932 में लॉर्ड्स में एक टेस्ट मैच में इंग्लैंड के वाल्टर रॉबिन्स ने 33 रन पर आउट किया था।
उसी मैच में भारत के कप्तान सीके नायडू एलबीडब्ल्यू द्वारा विकेट लेने वाले पहले भारतीय गेंदबाज बने थे, उन्होंने एडी पेन्टर को 14 रन पर आउट करके पवेलियन भेजा था।
लॉर्ड्स में हुआ ये टेस्ट भारतीय क्रिकेट टीम का पहला आधिकारिक टेस्ट मैच था।
ग्रेट ब्रिटेन के खिलाड़ी हैरी कॉर्नर पेरिस 1900 ओलंपिक में खेले गए टेस्ट मैच में एलबीडब्ल्यू द्वारा आउट होने वाले पहले बल्लेबाज थे। उन्हें फ्रांस के डब्ल्यू एंडरसन ने आउट किया था।