क्रिकेट में डीआरएस: जानें कैसे किया जाता है इसका इस्तेमाल

डिसीजन रिव्यू सिस्टम एक ऐसा तरीका है जिसके ज़रिए खिलाड़ी ऑन-फील्ड क्रिकेट अंपायर के निर्णय को चुनौती दे सकते हैं।

5 मिनटद्वारा रितेश जायसवाल
Indian captain Rohit Sharma asks for a DRS review.
(Getty Images)

क्रिकेट मैच के सही और बिना किसी विवाद के संचालन को सुनिश्चित करने में अंपायर सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी कभी-कभी उनकी मानवीय चूक से गलती की गुंजाइश रह जाती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसी गलतियों का खेल पर कोई प्रभाव न पड़े, इसके लिए डिसीजन रिव्यू सिस्टम (DRS) काम में आता है।

क्रिकेट में डीआरएस एक तकनीकि से जुड़ा सिस्टम है जो खिलाड़ियों को अंपायरों द्वारा किए गए ऑन-फील्ड निर्णयों के रिव्यू (समीक्षा) का अनुरोध करने में मदद करता है।

अगर खिलाड़ी को लगता है कि अंपायर के गलत निर्णय की वजह से टीम का नुकसान हुआ है तो मैदान पर बल्लेबाजी या फील्डिंग करने वाली टीमें एलबीडब्ल्यू या कैच आउट होने पर डीआरएस का विकल्प चुन सकती हैं। हालांकि, इंडियन प्रीमियर लीग के विपरीत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में केवल 'आउट' या 'नॉट आउट' डिसीजन को ही रिव्यू किया जा सकता है। इसके अलावा खिलाड़ी वाइड बॉल को भी रिव्यू कर सकते हैं।

कैच या रनआउट पर सही निर्णय लेने के लिए ऑन-फील्ड अंपायर भी डीआरएस की मदद ले सकते हैं। ऐसे मामलों में थर्ड अंपायर निर्णय लेने में मदद करता है।

डीआरएस के प्रकार

डीआरएस दो प्रकार के होते हैं: अंपायर रिव्यू या खिलाड़ी रिव्यू।

ऑन-फील्ड अंपायरों के पास कुछ निर्णयों को थर्ड अंपायर से रिव्यू कराने का अधिकार होता है, जैसे रन-आउट, स्टंपिंग, बोल्ड, हिट विकेट, फेयर कैच, बम्प बॉल या बाउंड्री चेक। 

यह रेफरल तब होता है जब ऑन-फील्ड अंपायर अपने हाथों से टीवी स्क्रीन का आकार बनाकर संकेत देता है। यह एक 'अंपायर रिव्यू' होता है और एक मैच में कई अंपायर रिव्यू लिए जा सकते हैं, इस रिव्यू को लेने की कोई सीमा नहीं होती है।

दूसरी ओर, प्लेयर डीआरएस, 'टाइम आउट' के मामले को छोड़कर, आउट होने पर ऑन-फील्ड अंपायर के फैसले को रिव्यू करने का अनुरोध है। यदि टीमें असफल रिव्यू की सीमा समाप्त कर लेती हैं तो प्लेयर डीआरएस नहीं लिया जा सकता है।

2023 वनडे विश्व कप में टीमों को प्रति पारी दो असफल रिव्यू की अनुमति दी गई थी।

केवल कुछ ही निर्णय, मुख्य रूप से कैच या एलबीडब्ल्यू से संबंधित निर्णय ही प्लेयर रिव्यू के लिए पात्र होते हैं। एक खिलाड़ी गेंद फेंके जाने के 15 सेकेंड के भीतर दोनों हाथों को सिर की ऊंचाई पर लाते हुए 'टी' का निशान बनाकर रिव्यू का अनुरोध करता है। डीआरएस टाइमर उसी पल से शुरू हो जाता है जब गेंद खेल ली जाती है।

फील्डिंग टीम का कप्तान 'नॉट आउट' निर्णय के लिए प्लेयर रिव्यू का अनुरोध करता है, जबकि आउट होने में शामिल बल्लेबाज 'आउट' निर्णय के लिए रिव्यू का अनुरोध कर सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान ड्रेसिंग रूम या मैदान के बाहर से किसी भी बाहरी इनपुट की अनुमति नहीं होती है।

खिलाड़ी के सही रिव्यू अनुरोध पर, ऑन-फील्ड अंपायर टीवी स्क्रीन इशारे का उपयोग करके थर्ड अंपायर को इसकी सूचना देता है। रिव्यू में अपील, निर्णय और पूरे विवरण के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करने के लिए थर्ड अंपायर और ऑन-फील्ड अंपायरों के बीच दो-तरफा रेडियो संचार होता है।

रिव्यू के दौरान, यदि थर्ड अंपायर अनिर्णायक साक्ष्य के कारण निर्णायक रूप से मूल निर्णय को पलट नहीं सकता या बरकरार नहीं रख सकता, तो ऑन-फील्ड अंपायर का फैसला ही मान्य होता है। यदि थर्ड अंपायर का निर्णय ऑन-फील्ड अंपायर के प्रारंभिक निर्णय को पलट देता है, तो ऑन-फील्ड अंपायर परिणाम की पुष्टि करने से पहले अपने निर्णय को बदले जाने का संकेत देता है।

**डीआरएस में इस्तेमाल किए जाने वाले टूल्स **

डिसीजन रिव्यू सिस्टम अत्याधुनिक तकनीक के उपयोग से खेल में निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है। डीआरएस बॉल-ट्रैकिंग, अल्ट्रा-मोशन कैमरे, साउंड सेंसर और थर्मल इमेजिंग के लिए हाई-टेक टूल का उपयोग करता है।

एलबीडब्ल्यू रिव्यू जैसे मामलों में, हॉक आई या वर्चुअल आई जैसी उत्कृष्ठ बॉल-ट्रैकिंग तकनीकें काम में आती हैं। ये तकनीक गेंद को फेंके जाने की लाइन और लेंथ के साथ ही पिचिंग प्वाइंट को दर्शाती है, जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि बल्लेबाज की स्थिति के बावजूद, क्या यह स्टंप से टकराई होगी।

एलबीडब्ल्यू या कैच के विवादित निर्णय पर अपील के लिए, स्निकोमीटर या अल्ट्रा-एज जैसे उपकरण काम में आते हैं। अत्यधिक संवेदनशील सेंसर से लैस ये उपकरण गेंद के बल्ले, पैड या बल्लेबाज के साथ संपर्क में आने पर उत्पन्न होने वाली सूक्ष्म ध्वनियों का पता लगाते हैं। थर्ड अंपायर अल्ट्रा-मोशन कैमरों की सटीकता का उपयोग करते हुए, इस डेटा की व्याख्या करता है, यह जांच करता है कि क्या कोई ऑडियो स्पाइक गेंद के बल्ले से गुज़रने से पहले, उसके दौरान या बाद में सटीक रूप से नज़र आती है।

अन्य उपकरणों से अलग, हॉट स्पॉट एक अलग आधार पर काम करता है, फिर भी यह गेंद के संपर्क की पुष्टि करने में सहायता करता है। यह तकनीक गेंद के संपर्क को जांचने के लिए इन्फ्रारेड इमेजिंग पर निर्भर करती है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि गेंद ने बल्ले, पैड या बल्लेबाज के किसी हिस्से से संपर्क किया है या नहीं।

डीआरएस का इतिहास

2008 में कोलंबो में भारत बनाम श्रीलंका टेस्ट मैच के दौरान पहली बार उपयोग किए जाने के बाद से डीआरएस ने क्रिकेट में काफी बदलाव किया है। भारतीय सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग डीआरएस सिस्टम के तहत आउट दिए जाने वाले पहले बल्लेबाज बने थे। उस समय, इसे अंपायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम (यूडीआरएस) कहा जाता था।

जबकि टेस्ट क्रिकेट में डीआरएस का उपयोग 2008 में किया गया। इस प्रणाली को 2011 में वनडे में शामिल किया गया था। डीआरएस को 2017 में T20 इंटरनेशनल में पेश किया गया था।

निष्पक्ष खेल सुनिश्चित करने के लिए रिव्यू सिस्टम का उपयोग करते हुए डीआरएस ने दुनिया भर में घरेलू T20 लीग में भी एक लंबा सफर तय किया है।

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