लॉन्ग जंप कैसे खेला जाता है? जानें इस खेल का इतिहास और रिकॉर्ड

प्राचीन ओलंपिक खेल के समय से ही लंबी कूद, या लॉन्ग जंप, एथलेटिक्स का मुख्य हिस्सा बना हुआ है।

8 मिनटद्वारा लक्ष्य शर्मा
USA's Carl Lewis in the long jump at the Atlanta 1996 Olympics.
(Getty Images)

प्राचीन ओलंपिक खेल से लेकर आधुनिक ओलंपिक खेल तक, लॉन्ग जंप ,या लंबी कूद, का सफ़र बेहद शानदार रहा है।

लॉन्ग जंप का उद्देश्य बहुत आसान है और वह है कि एक एथलीट को क्षैतिज कूद करते हुए सबसे ज़्यादा दूरी हासिल करनी होती है। अगर इस खेल की बारीकियों में जाया जाएगा तो यही देखने को मिलेगा कि ट्रैक एंड फील्ड के इस खेल को सिर्फ तकनीक से जीता जा सकता है। लंबी कूद के बारे सब कुछ जानें।

लॉन्ग जंप: कैसे खेला जाता है यह खेल

लॉन्ग जंपर भागते हुए अपनी जंप की शुरुआत करते हैं और एक प्वाइंट पर ख़ुद को हवा में उछाल देते हैं और उनकी कोशिश होती है कि वह ज़्यादा से ज़्यादा दूरी तय करें। एक जंप 3 भागों में बटी हुई होती है – रनवे, टेक-ऑफ और लैंड।

ऑफिसियल इवेंट में भागने वाला हिस्सा यानी रनवे 40 मीटर का होता है। यह वही दूरी है जितनी स्प्रिन्टिंग के ट्रैक में इस्तेमाल की जाती है (मध्य दूरी या अधिक दूरी)। कंक्रीट की ज़मीन के उपर एक रबर की सतह बनाई जताई है और एक एथलीट उसी पर दौड़ कर अपनी जंप की शुरुआत करता है। रनवे के ख़त्म होने के बाद एक 20 सेंटीमीटर का टेक ऑफ बोर्ड लगा हुआ होता है। रनवे और टेक-ऑफ बोर्ड का स्तर एक जैसा ही होता है।

उसी टेक-ऑफ बोर्ड के बाद एक फ़ाउल लाइन बनाई जाती है। एक लीगल जंप के लिए एथलीट का पंजा इस टेक-ऑफ बोर्ड से पीछे रखना होता है। अगर किसी भी कारण उस लाइन को लांघा जाता है तो रेफरी उस कूद को अमान्य कर फ़ाउल करार कर देता हैहवा में आने के बाद जंपर एक सैंडपिट में जा गिरता है। टेक ऑफ बोर्ड के किनारे से लगे कूद के बाद एथलीट की दूरी को देखा जाता है। यह दूरी का मापदंड सैंडपिट में गिरने के बाद देखी जाती है।

रनवे पर कदम रखने के बाद यह जंप 1 मिनट के अंदर पूरी होनी चाहिए। एक जंपर स्पाइक्स को पहन कर इस खेल में भाग ले सकता है लेकिन उसके जूते का सोल 13 mm से मोटा नहीं होना चाहिए।

एक इवेंट में हर एथलीट को कुछ ही मौके मिलते हैं और जिसकी दूरी ज़्यादा होती है उसे विजेता घोषित किया जाता है।ओलंपिक गेम्स और वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसी अहम और बड़ी प्रतियोगितायों के फाइनल में एथलीटों को 6 बार मौका दिया जाता है। 3 ट्रायल राउंड जंप के द्वारा फाइनल में प्रवेश किया जाता है और इसके बाद मेडल जीतने के लिए 3 और मौके मिलते हैं।

आगे चलकर लॉन्ग जंप को 4 भागों में विभाजित किया गया है – दौड़, आखिरी दो स्ट्राइड, हवा में उछलना और लैंडिंगद अप्रोच रनहवा में कूद लगाने के लिए शुरूआती दौड़ बेहद ज़रूरी हो जाती हैएक लॉन्ग जंपर को दौड़ लगाने के लिए 40 मीटर का ट्रैक मिलता है, माना जाता है कि उस समय खिलाड़ी को तेज़ गति से दौड़ना ज़्यादा फायदेमंद होता है।

हालांकि एक एथलीट अपनी तकनीक के हिसाब से कम दूरी से भी दौड़ लगा सकता है और इसका उद्देश्य खुद को ग्रिप देना और कंट्रोल करना होतअप्रोच रन या दौड़ के लिए ज़्यादातर मुख्य एथलीट 20 से 22 कदम का इस्तेमाल करते हैं। यह आखिरी दो कदम होते हैं जो एक एथलीट टेक-ऑफ बोर्ड से पहले लेता है।

ज़्यादा से ज़्यादा दूरी हासिल करने के लिए जंपर 20 डिग्री या उससे कम के एंगल से कूद लगाते हैं। वहीं आखिरी दो कदम उन्हें आगे धकेलने के लिए काम आते हैं ताकि उनकी गति कम न हो और वह ज़्यादा डिस्टेंस पार कर सके। आखिरी स्ट्राइड से पहले की स्ट्राइड सेंटर ऑफ़ ग्रेविटी को कम करने के लिए होती और इससे ही शरीर पर भी इसी से पकड़ बनाई जाती है ताकि एक जंपर ज़्यादा आगे तक जा सकता, आखिरी स्ट्राइड यानी आखिरी कदम सबसे छोटा होता है क्योंकि उस समय एक एथलीट अपने शरीर को ग्रेविटी के विपरीत लेकर जा रहा होता है।टेक-ऑफ

आखिरी कदम के बाद और हवा में आने से पहले वाली विधि को टेक-ऑफ कहा जाता है।

हर एथलीट यह भी ख्याल रखता है कि कूद के समय वह अपने पूरे पैरों पर हो क्योंकि पंजे या एड़ी की मदद से लगाई हुई कूद का उतना प्रभाव नहीं पड़ताअगर कोई जंपर एड़ी की मदद से कूद लगाता है तो उसकी गति भी धीमी होती है और उसकी लय भी टूट जाती है। वहीं अगर पंजे से कोई एथलीट कूद लगाता है तो उसका शरीर अस्थिर हो जाता है और इस वजह से वह ज़्यादा दूरी नहीं बना पाता है।

कूद के समय शारीरिक मुद्रा बहुत अहम होती है और साथ ही एक एथलीट का पैर किस स्थिति में होता है उसका भी कूद पर बहुत प्रभाव पड़ता है।अक्सर एथलीट टेक-ऑफ के लिए किक, डबल-आर्म, स्प्रिंट और पॉवर स्प्रिंट का प्रयोग करता है। सभी के कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान हैं।हवा में जाने के बाद एथलीट के पास दिशा और लैंडिंग पर नियंत्रण होता है। हालांकि कुछ ऐसी तकनीक भी होती हैं जो दूरी को बढ़ा सकती है।ऐसे में एक जंपर हवा में तीन तकनीकों का इस्तेमाल कर अपने शरीर पर नियंत्रण पाता है।

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सेल – यह सबसे आम तकनीक है जिसे ज़्यादातर खिलाड़ी इस्तेमाल में लाते हैं। इसमें जंपर हवा में जाने के बाद अपने पंजों को पकड़ लेता है। इसकी वजह से शरीर हवा में खुद ज़्यादा देर तक रख सकता हैं। इसमें शरीर को खींच कर हवा में लंबा कर दिया जाता है। हाथ और टांग दोनों को ही खींचा जाता है ताकि शरीर ज़्यादा से ज़्यादा दूरी तय कर सके। जंपर तब तक इसी पोज़ीशन में रहता है जब तक वह हवा में उपर तक न चला जानीचे आते समय जंपर अपनी टांगों को आगे कर लेता है और लैंड की तैयारी करता है।

हिच-किक – इसका मतलब हवा में क्लाइंब करना या दौड़ना होता है। टेक ऑफ के समय एक एथलीट हाथ और टांगों को घुमाता है ताकि उनके शरीर पर आई रोटेशनल वेलोसिटी का प्रभाव कम कर सके। तीनों तकनीकों में से यह सबसे पेचीदा तकनीक है।लैंडिंग

लैंडिंग के समय एथलीट का लक्ष्य सैंडपिट में सिर्फ गिरना नहीं होता बल्कि उसमें ग्लाइड लगाना या फिसलना होता है। लैंडिंग के समय ऐसी ही कुछ तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है जो देखने में तो आसान होती हैं लेकिन उन्हें कायम रखना बहुत मुश्किल होता है।

एथलीट अपने पैरों को अपने शरीर के सामने रखता है और अपने हिप्स से वह अपने पैरों को स्ट्रेच करना शुरू कर देता है। लैंडिंग के समय जंपर अपनी बाजुओं से स्वीप करने की गति में आता है और उनकी टांगें ऊपर होती हैं और शरीर आगे।

लॉन्ग जंप में महारत हासिल करने के लिए एक एथलीट को बहुत से तकनीकों को अपनाना होता है।

इतना ही नहीं लॉन्ग जंपर अपने अभ्यास से बाकी खेलों में भी ज्ञान हासिल कर सकते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कार्ल लुइस और जेसी ओवेंस हैं। यह दोनों एथलीट 100, 200 मीटर दौड़ और 4x100 मीटर रिले में भी सफलता हासिल कर चुके हैं।

ओलंपिक खेल में इतिहास

प्राचीन ओलंपिक खेल के दौरान लंबी कूद और आधुनिक समय की लंबी कूद स्पर्धा में ज़्यादा अंतर नहीं है। दोनों में एक ही बड़ा अंतर है और वह है हैल्टर्स, आज के समय में एथलीट अपने हाथ में 1 से 4.5 किलो ग्राम तक का वज़न रखता है और टेक-ऑफ के समय उसे स्विंग करता है ताकि उसकी लय बनी रहे।

ऐसा ही कुछ प्राचीन ओलंपिक खेल में भी होता था लेकिन उसे पेंटाथलॉन रनिंग, भाला फेंक, डिस्कस थ्रो और रेसलिंग इवेंट में किया जाता था।आज के समय में ओलंपिक गेम्स के पहले संस्करण (1898 गेम्स) से ही लॉन्ग जंप इस प्रोग्राम का हिस्सा है। इसे रनिंग ब्रॉड जंप ही कहा जाता है।

1912 में इस खेल के कुछ अलग प्रकारों को भी देखा गया था और वह स्टैंडिंग लॉन्ग जंप और ब्रॉड जंप थे। यह रनिंग लॉन्ग जंप जैसा ही है लेकिन खिलाड़ी इसे स्टैंडिंग पोज़ीशन में करते हैं1948 लंदन गेम्स से पहले लॉन्ग जंप में केवल पुरुष भाग लिया करते थे लेकिन इस संस्करण में महिलाओं के इवेंट को भी लाया गया। इसके 20 साल बाद विमेंस हाई जंप high jump ने भी अपनी जगह बनाई।

ओलंपिक इतिहास में यूनाइटेड स्टेट्स के कार्ल लुइस सबसे सफल पुरुष लॉन्ग जंपर है। इन्होंने 1984 से 1996 तक लगातार 4 गोल्ड मेडल अपने नाम किए हैं।

वहीं जर्मनी हाइके ड्रेक्स्लर महिला वर्ग में सबसे ज़्यादा सफलता हासिल करने वाली लॉन्ग जंपर हैं और इन्होंने 1988 से 2000 के बीच दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है।

लंबी कूद का विश्व रिकॉर्ड

पुरुष – यूएसए के माइक पॉवेल ने 1991 वर्ल्ड चैंपियनशिप, टोक्यो में 8.95 मीटर का रिकॉर्ड बनाया।

महिला - 1998 में सेंट पीटर्सबर्ग, रूस की एक मीट में रूस की गैलिना चिस्त्यकोवा ने 7.52 मीटर का रिकॉर्ड बनाया।।

लंबी कूद का ओलंपिक रिकॉर्ड

पुरुष – यूएसए के बॉब बीमन ने मेक्सिको सिटी में हुए 1968 ओलंपिक गेम्स में 8.90 मीटर का रिचर्ड स्थापित किया।

महिला – यूएसए के जैकी जॉयनर-करसी ने सियोल, साउथ कोरिया 1988 ओलंपिक गेम्स में 7.45 मीटर का रिकॉर्ड बनाया।

लॉन्ग जंप के रिकॉर्ड अगर 2m/s की हवा के दौरान बनाए गए हैं तो उन्हें गिना नहीं गया है। हालांकि माइक पॉवेल ने हवा से मिलने वाली सहायता के साथ 8.99 मीटर का रिकॉर्ड बनाया है। इस दौरान हवा की गति +4.4m/s की थी और इसे उन्होंने 1992 इटली गेम्स के दौरान स्थापित किया था।

भारतीय लॉन्ग जंपर की बात की जाए तो अंजू बॉबी जॉर्ज का नाम सबसे पहले आता है। उन्होंने 2003 विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक अपने नाम किया था और वह विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय ट्रैक एंड फील्ड एथलीट बनीं थीं।

एथेंस 2004 में अंजू बॉबी जॉर्ज ने अपना कारवां पांचवे स्थान पर रह कर अंत किया था। उस दौरान उन्होंने अपनी सर्वश्रेष्ठ (6.83 मीटर) दूरी हासिल की थी। आज भी यह भारतीय महिला लॉन्ग जंप का नेशनल रिकॉर्ड है।

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