1972 म्यूनिख ओलंपिक: भारतीय हॉकी टीम के हाथ आया लगातार दूसरा ब्रॉन्ज़ मेडल

भारतीय राष्ट्रीय पुरुष हॉकी टीम ने 1972 म्यूनिख गेम्स में ब्रॉन्ज़ मेडल जीत कर ओलंपिक गेम्स में लगातार 10वां मेडल जीता।

7 मिनटद्वारा जतिन ऋषि राज
Indian hockey team en route their bronze medal at Munich 1972.
(NOC India)

भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ओलंपिक गेम्स में अपना वर्चस्व बरक़रार रखा था। 1928 से लेकर 1956 तक लगातार 6 गोल्ड मेडल जीतने वाली इस टीम ने भारतीय खेल प्रेमियों को समय-समय पर बहुत सी खुशियों के मौके दिए हैं।

उस दौर के बाद भारतीय हॉकी विश्व स्तर पर कहीं न कहीं जूझती नज़र आई है। हालांकि इस टीम ने टोक्यो 1964 ओलंपिक में गोल्ड तो ज़रूर जीता लेकिन उसके बाद मानों गाड़ी पटरी से उतरने लगी। रोम 1960 ओलंपिक गेम्स के दौरान भारतीय राष्ट्रीय पुरुष हॉकी टीम की गोल्ड मेडल जीतने की रफ़्तार पर लगाम लगी और उसके बाद 1968 मेक्सिको गेम्स में भी उन्हें ब्रॉन्ज़ मेडल से संतोष करना पड़ा।

1968 मेक्सिको गेम्स में पहली बार भारतीय हॉकी टीम पोडियम पर पहले दो स्थानों में से किसी भी एक स्थान पर कब्ज़ा नहीं कर पाई। इसके बाद भी कोशिशें जारी रही और 1972 म्यूनिख गेम्स में भी भारत के हाथ एक और ब्रॉन्ज़ मेडल ही आया। हालांकि उस समय दावा किया जा रहा था कि अगर हालात सही होते तो भारतीय टीम के नाम एक और गोल्ड मेडल आ सकता था।

1968 गेम्स की ही तरह म्यूनिख 1972 में भी भारत के हाथ ब्रॉन्ज़ मेडल आया। सभी को लग रहा था कि खिलाड़ी इस बार गोल्ड ज़रूर लाएंगे लेकिन ‘ब्लैक सितंबर’ की घटना उसी समय घटी और खेल जगत पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा।

म्यूनिख मैसकेयर में इज़रायली ओलंपिक टीम पर फ़िलिस्तीनी दहशतगर्दों के 8 लोगों ने हमला किया जिस वजह से ओलंपिक गेम्स में ख़लल पैदा हुआ।

11 इज़राइली एथलीटों के साथ-साथ एक जर्मन पुलिस अधिकारी की जान जाने के बाद भारतीय टीम की मनोस्थिति पर भी इसका प्रभाव देखा गया। सेमीफाइनल चरण में पाकिस्तान के खिलाफ खेलते हुए भारत को हार नसीब हुई और वह उनकी चमक को फीका करने के लिए काफ़ी थी।

पिता सेर तो बेटा सवा सेर

इंडियन हॉकी फेडरेशन ने 1972 म्यूनिख गेम्स के लिए युवा टीम का चयन किया और उन्हीं पर दांव खेलना चाहा। उस टीम में पिछले यानी 1968 ओलंपिक गेम्स के केवल 4 ही भारतीय खिलाड़ी मौजूद थे और बाकी पूरी टीम को दोबारा बनाया गया था।

पेरुमल कृष्णमूर्ति, अजीत सिंह और हरबिंदर सिंह उन खिलाड़ियों में से थे जिन्हें पिछले संस्करण में भी भारतीय तिरंगे के लिए खेलते देखा गया था। उनके अलावा हरमिक सिंह भी इन्हें के जोड़ीदार थे और इस बार उन्हें भारतीय हॉकी टीम का कप्तान घोषित किया गया था।

ऐसा नहीं है कि इस टीम से सिर्फ नए चेहरे ही जुड़े थे बल्कि 1952 गेम्स के कप्तान केडी सिंह बाबू इस बार एक कोच की भूमिका निभा रहे थे और उनके साथ दो बार के ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता केशव दत्त को टीम का मैनेजर बनाया गया था।

इस युवा टीम में अशोक कुमार जैसे खिलाड़ी भी थे। ग़ौरतलब है कि अशोक, हॉकी के जादूगर कहे जाने वाला ध्यान चंद के बेटे हैं। इतना ही नहीं इसी हॉकी दल में वीस पेस को भी जगह मिली। वीस, दिग्गज भारतीय टेनिस स्टार लिएंडर पेस के पिता हैं।

टीम में तालमेल को बढाने के लिए केडी बाबू ने लखनऊ और जालंधर में बहुत से नेशनल कैंप स्थापित किए और सभी को एक साथ 1972 गेम्स की तैयारी करने की सलाह दी।

पूर्व भारतीय हॉकी टीम के कप्तान एमपी गणेश ने सोनी स्पोर्ट्स के एक शो ‘मेडल ऑफ़ ग्लोरी’ में कहा “हमारे पास उस समय युवा शक्ति और अनुभवी खिलाड़ियों का मिश्रण था।”

“वह एक प्रतिभाशाली टीम थी और नेशनल कैंप में उनका जोश देखते ही बनता था। हमें अपनी क़ाबिलियत पर पूरा यक़ीन था।”

भारतीय पुरुष हॉकी टीम म्यूनिख में ज़बरदस्त आत्मविश्वास के साथ गई और वह हॉकीयानलागे में दिखा भी। हॉकीयानलागे ओलंपिक पार्क में स्थित हॉकी का वेन्यू है।

ग्रुप स्टेज को किया फ़तह

भारतीय राष्ट्रीय पुरुष हॉकी टीम को ग्रुप बी में रखा गया था जहां उनकी सबसे बड़ी चुनौती नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और ग्रेट ब्रिटेन थे। भारतीय टीम ने ज़ोरदार प्रदर्शन कर खुद को उस संस्करण की एक मात्र ऐसी टीम बना दिया जिन्होंने ग्रुप स्तर पर एक भी मुकाबला न हारा हो।

भारतीय अभियान का आग़ाज़ डच के खिलाफ 1-1 से हुआ लेकिन इसके बाद इसी टीम ने 5-0 से ग्रेट ब्रिटेन को हराया और 3-1 से ऑस्ट्रेलिया को मात दी।

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ स्ट्राइकर **मुखबैन सिंह  **ने हैट्रिक जड़ी और भारत का मनोबल ऊंचा रखा। ग़ौरतलब है कि किसी बड़ी प्रतियोगिता में भारतीय हॉकी टीम ने ऑस्ट्रेलियाई हॉकी टीम के खिलाफ पहली बार गोल की हैट्रिक दर्ज की थी।

पोलैंड के खिलाफ भी मुकाबला 2-2 से बराबर रहा लेकिन अपनी ग़लतियों को सुधार कर केन्या और न्यूज़ीलैंड को 3-2 से मात देते हुए इस टीम ने अपने कारवाँ को आगे बढ़ाया और ग्रुप मे टॉप करते हुए 12 अंकों के साथ सेमी-फाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली थी।

म्यूनिख में दुखद घटना

अब बारी थी भारत के सबसे कड़े प्रतिद्वंदी की चुनौती की और वह थी पाकिस्तानी हॉकी टीम। पाकिस्तान ने भी ग्रुप ए में रहकर अच्छी हॉकी खेली थी और उस स्टेज को दूसरे नंबर पर रहकर पार किया।

ब्लैक सितंबर की घटना उसी समय घटित हुई और उस वजह से ओलंपिक गेम्स को दो दिनों के लिए टाला गया। यह बहुत बड़ी वजह रही कि भारतीय टीम की लय हिल चुकी थी जिसका फायदा उनके प्रतिद्वंदियों ने खूब उठाया।

फारवर्ड एमपी गणेश ने आगे अलफ़ाज़ साझा करते हुए कहा “वह हादसा सेमी-फाइनल से पहले हुआ था और वहीं हम अपनी लय खो चुके थे।”

भारतीय टीम ने 9 दिनों में ग्रुप स्टेज के 7 मुकाबले खेले और सातों में उन्हें जीत नसीब हुई। यह उनके कौशल और फिटनेस को दर्शाता है और बताता है कि उस संस्करण में भी गोल्ड जीतने के लिए भारतीय टीम की दावेदारी सबसे मज़बूत थी।ली।

बीपी गोविंदा ने कहा “मुझे लगता है कि हम उस समय भी आत्मविश्वास में थे और किसी भी मौके को छोड़ नहीं सकते थे। लेकिन हमने बहुत से मौके गंवा भी दिए थे।”

उस दिन भारतीय हॉकी टीम को 18 पेनल्टी कॉर्नर मिले और तब तक के सबसे ज़्यादा गोल दागने वाले मुखबैन सिंह एक भी मौके को गोल में तब्दील नहीं कर सके।

इसके बाद अशोक कुमार ने भी जद्दोजहद करते हुए गोल मारने की कोशिश की लेकिन वह रिबाउंड हो कर वापस आ गया। पाकिस्तान हॉकी टीम ने खेल को सरल रखा और 2-0 से जीत अपने पक्ष में की।

“वह हमारे लिए एक बड़ा झटका था और हमारा मनोबल टूट चुका था।"

कांस्य के साथ घर वापसी

भारत अभी भी ब्रॉन्ज़ मेडल की रेस में था और उनका मुकाबला होना था नीदरलैंड के खिलाफ। 1970 यूरोप हॉकी चैंपियनशिप में नीदरलैंड ने सिल्वर मेडल अपने नाम किया था और इसे देख कर उनकी ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता था। 1972 म्यूनिख में ही डच टीम ने भारत को 1-1 के स्कोर के साथ कड़ी चुनौती भी दी थी तो ऐसे में भारतीय टीम उन्हें हलके में नहीं आंक सकती थी।

एमपी गणेश ने आगे कहा “हम सब साथ बैठे और हमने कहा कि अपने वतन बिना किसी मेडल के वापस नहीं जा सकता। हम 1968 गेम्स में सेमी-फाइनल में हारे थे और तब भी ब्रॉन्ज़ मेडल घर ले कर गए थे।”

नीदरलैंड के खिलाफ मुकाबला शुरुआत में भारत के मन मुताबिक़ नही जा रहा था। शुरूआती 6 मिनटों में ही टाईस क्रूज़ ने गोल कर अपनी टीम को बढ़त हासिल करा दी थी। **कुलवंत सिंह**की जगह अंदर आए बीपी गोविंदा ने अपना कौशल दिखाते हुए गोल किया और भारत की खेल में वापसी कराई।अब चंद मिनट बचे थे और दोनों ही टीमें गोल तलाश रहीं थी।

ऐसे में मुखबैन सिंह ने आखिरी मिनट में गोल दागा और भारत को ब्रॉन्ज़ मेडल से सम्मानित कराया। भारत का जो खुद पर भरोसा था वह भी सफल हुआ और भारतीय हॉकी टीम को खाली हाथ घर वापसी नहीं करनी पड़ी।

1972 ओलंपिक भारतीय हॉकी टीम: हरमिक सिंह (कप्तान), बी.पी. गोविंदा, चार्ल्स कॉर्नेलियस, मैनुअल फ्रेडरिक, माइकल किंडो, अशोक कुमार, एमपी गणेश, कृष्णमूर्ति पेरुमल, अजीतपाल सिंह, हरबिंदर सिंह, हरचरण सिंह, कुलवंत सिंह, मुखबैैन सिंह, वरिंदर सिंह, असलम शेर खान, वेस पेस, वी जे फिलिप्स, अजीत सिंह