साल 2010 से 2020 तक का सफर भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के लिए बहुत बड़े बदलाव वाला रहा है। सोते हुए को जगाना आसान काम नहीं है, लेकिन जब कोई लक्ष्य होता है और कोई इरादा होता है, तो संभावनाएं बहुत अधिक बढ़ जाती हैं। ये कहानी भारतीय फुटबॉल की है, जो न केवल पेशेवर लीग की मेजबानी कर रहा है, बल्कि पूरे विश्व में सबसे बेहतरीन खेल का प्रतीक भी बन गया है।
पिछले एक दशक में भारतीय फुटबॉल में क्या-क्या बदलाव हुए, इसपर एक नज़र डालते हैं।
सुनील छेत्री का शानदार प्रदर्शन
ब्लू टाइगर्स ने शायद 1940 के दशक के अंत से 1960 के दशक के अंत तक अपने सुनहरे वर्षों का आनन्द लिया – इस दौरान भारतीय टीम ने चार अलग-अलग ओलंपिक में भाग लिया और दो एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
1970 के बाद से भारतीय टीम को प्रदर्शन में लगातार गिरावट देखने को मिली।
मुख्य रूप से दो ब्रिटिश हेड कोच स्टीफन कॉन्स्टेंटाइन और बॉब हाटन द्वारा संचालित सीनियर भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम ने कड़ी मेहनत की और 2008 में एएफसी कप कप पर कब्ज़ा किया।
भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम खिलाड़ी सुनील छेत्री की फाइनल में गोल की हैट्रिक के साथ टूर्नामेंट जीतने में मदद की और इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि भारतीय टीम ने एशियन फुटबॉल कन्फेडरेशन (AFC) एशियन कप 2011 के लिए क्वालिफाई कर लिया जो एशिया की सबसे बड़ी महाद्वीपीय फुटबॉल प्रतियोगिता है।
इस उत्साह ने भारतीय टीम का मनोबल बढ़ाया और अगले दशक में भारतीय फुटबॉल टीम को आगे बढ़ने में मदद की।
टीम के प्रदर्शन को देखते हुए पिछले दशक को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है - 2010-2013 तक टीम ने अपनी गलतियों में सुधार किया और 2014-20 में फिर से मजबूत बनने पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया।
2010-2013: फुटबॉल में नए प्रयोगों का दौर
1984 के बाद से भारतीय टीम ने 2011 में पहली बार और 1964 के बाद दूसरी बार एशिया कप में जगह बनाई थी। इसी दौरान भारतीय सीनियर टीम को आगे बढ़ाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया गया।
तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के मुख्य कोच बॉब हाटन ने महसूस किया कि उनकी उम्र बढ़ती जा रही है और टीम के इक्का बाईचुंग भूटिया अपने करियर की शुरुआत में हैं। बाईचुंग भूटिया को पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
2011 AFC एशियन कप में गोलकीपर सुब्रतो पॉल 24 साल और सुनील छेत्री 26 साल के अलावा भारतीय फुटबॉल टीम की औसत आयु 30 से अधिक थी।
स्ट्राइकर बाईचुंग भूटिया 34 के थे, मिडफील्ड में क्लाईमैक्स लॉरेंस और सैयद रहीम नबी, विंगर रेंडी सिंह, डिफेंसिव मेनस्टेज महेश गवली और दीपक मोंडल, उस समय सभी 30 के करीब थे।
घरेलू क्लब स्तर पर और U-19 या U-23 के खिलाड़ियों को कम गेम खेलने को मिलते थे, जिसके कारण परीक्षण किए गए और देखा गया कि युवाओं की कमी थी।
इसी प्रयास में बॉब हाटन ने ऑल इंडिया फुटबॉल महासंघ (AIFF) के बैनर तले एक युवा टीम को आई-लीग (I-League) में खिलाने का प्रस्ताव रखा। AIFF XI के रूप में नामांकित होने वाली इस टीम का नाम बाद में भारतीय एरोज रख दिया गया। ये टीम सीनियर टीम के लिए प्रतिभाओं को खोजने का काम करती थी।
भूटिया का दौर खत्म और नए युग का आरंभ
दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और बहरीन जैसी एशियाई दिग्गजों के साथ ग्रुप में शामिल भारतीय टीम ग्रुप स्टेज से आगे नहीं बढ़ सकी। टीम को तीनों मैचों में हार का सामना करना पड़ा।
AFC एशिया कप की निराशा के बाद, एबीसी चैलेंजर कप 2012 के क्वालिफ़ायर्स के लिए बॉब हाटन ने मुख्य रूप से भारतीय एरोज से खिलाड़ियों को चुना और सफलतापूर्वक क्वालिफिकेशन हासिल की।
दिलचस्प बात ये है कि, इंडियन एरोज के जेजे लालपेख्लुआ ने आई-लीग 2010-11 में सीनियर टीम के लिए अपने पदार्पण टूर्नामेंट में तीन मैचों में चार गोल के साथ क्वालिफ़ायर्स में भारत के शीर्ष स्कोरर रहे थे।
हालांकि, बॉब हाटन के कुछ समय बाद ये गति रुक गई।
बाईचुंग भूटिया ने कुछ महीने बाद अपने संन्यास की घोषणा कर दी, ये भारतीय फुटबॉल टीम के लिए एक युग के अंत जैसा था।
भारतीय एरोज सेटअप को भी 2013 में बंद कर दिया गया था, लेकिन इसे बाद में फिर से चालू किया जाएगा।
जब भारतीय फुटबॉल टीम को मिली सबसे खराब रैंकिग
2011 से 2013 के बीच भारतीय फुटबॉल टीम ने बॉब हाटन की जगह संभालने वाले सवियो मेडेइरा के तहत SAFF चैंपियनशिप 2011 का खिताब अपने नाम किया। लेकिन टीम बड़े टूर्नामेंटों में प्रभावित नहीं कर सकी।
2013 में ब्लू टाइगर्स एएफसी चैलेंज कप 2014 के लिए क्वालिफाई करने में असमर्थ रही। जिसके परिणामस्वरूप एएफसी एशियन कप 2015 के लिए क्वालिफाई करने का मौका नहीं मिला।
भारतीय फुटबॉल टीम ने ओलंपिक 2012 के एशियाई क्वालिफ़ायर्स में भी भाग लिया था, लेकिन दूसरे दौर से आगे नहीं जा सकी।
इन प्रदर्शनों के बाद भारतीय फुटबॉल टीम अप्रैल 2015 में फीफा रैंकिंग में 173 पर पहुंच गई। जो कि 1992 में आधिकारिक रैंकिंग बनने के बाद उनकी सबसे खराब रैंकिंग थी।
2014-2020: ISL ने स्टार खिलाड़ियों को किया आकर्षित
जो टीम बहुत पीछे जा चुकी थी, अब वो धीरे धीरे अपने लय में लौट रही थी।
12 अक्टूबर 2014 को इंडियन सुपर लीग (ISL) का पहला मैच - एक फ्रेंचाइजी-आधारित लीग - कोलकाता के साल्ट लेक स्टेडियम में खेला गया था।
आठ टीमों के साथ शुरू हुआ ये टूर्नामेंट,जिसे बाद में दस तक बढ़ा दिया गया। ये लीग भारतीय फुटबॉल को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हुआ।
जबकि रॉबर्ट पीयर्स, एलेसेंड्रो डेल पिएरो, लुइस गार्सिया और अन्य जैसे पिछले ग्लोबल सुपरस्टार्स की भागीदारी ने शुरुआत में लीग को रोमांचक बना दिया, एटलेटिको मैड्रिड और फियोरेंटीना जैसे बड़े यूरोपीय क्लबों के साथ रणनीतिक टाई अप वाले क्लबों ने लंबे समय तक इस लीग को चलने में मदद की। जिससे अंततः भारतीय फुटबॉल टीम को ही फायदा हुआ।
अधिक क्लब और अधिक मैच का मतलब था भारतीय फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए अधिक खेलने का समय मिलना, जो उन्हें राष्ट्रीय टीम के लिए बेहतर तैयार करता है।
इस लीग के आगे बढ़ने के साथ, विदेशी कोच और खिलाड़ियों के साथ काम करने के अवसरों ने केवल भारतीय टेलेंट पूल को और मजबूत किया, जिसमें संदेश झिंगन, प्रीतम कोटाल, लल्लिंज़ुआल चांगटे, अनिरुद्ध थापा और कई अन्य खिलाड़ियों को सीनियर टीम में शामिल होने से पहले और बाद में काफी मदद मिली।
कॉन्स्टेंटाइन की दूसरी पारी की शुरूआत
2002 से 2005 तक भारत के मुख्य कोच स्टीफन कॉन्स्टेंटाइन को सीनियर राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में वापस लाया गया और उन्होंने फरवरी 2015 में कार्यभार संभाला।
कॉन्स्टेंटाइन की देख-रेख में ब्लू टाइगर्स के कप्तान सुनील छेत्री टीम को लेकर आगे बढ़े और टीम ने कई अच्छे परिणामों का स्वाद चखा। टीम ने पहली बार 2016 में फीफा विश्व कप क्वालिफ़ायर्स 2018 के दूसरे दौर में पहुंची।
दूसरे दौर में बाहर होने के बावजूद भारतीय फुटबॉल टीम ने 2016 में लाओस को प्लेऑफ के मुकाबले में हराकर AFC एशियाई कप 2019 क्वालिफ़ायर्स के लिए तीसरे दौर में जगह बनाई।
फीफा के किसी भी इवेंट में गोल करने वाला पहला भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी
दशक का सबसे मुख्य आकर्षण का साल 2017 था, जो भारत के साथ स्टीफन कॉन्स्टेंटाइन का दूसरा कार्यकाल था।
जुलाई में ब्लू टाइगर्स फीफा रैंकिंग में 96 वें स्थान पर पहुंच गई, जो कि 1996 के बाद से फीफा रैंकिंग में भारत की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग थी।
अक्टूबर में भारतीय टीम ने एशियाई कप 2019 के लिए अपना स्थान सुरक्षित किया। भारतीय फुटबॉल टीम पूरे कैलेंडर वर्ष में अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अजय रही।
भारत ने अक्टूबर में फीफा अंडर -17 विश्व कप की मेजबानी की, जो किसी भी उम्र के स्तर पर विश्व कप में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज कराती है। यंगस्टर जैकसन सिंह ने भारत के लिए कोलंबिया के खिलाफ टूर्नामेंट का एकमात्र गोल किया, जिसेक बाद वो फीफा के प्रमुख इवेंट्स में स्कोर करने वाले पहले भारतीय बन गए।
इसी साल इंडियन एरोज के सेटअप को फिर से शुरू किया गया।
भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम की एशियन कप 2019 में शानदार जीत
दशक के अपने दूसरे AFC एशियाई कप में भारतीय फुटबॉल टीम ने इंटरकॉंटिनेंटल कप 2018 में शानदार जीत दर्ज की, जहां फाइनल में उन्होंने केन्या को हराया।
सैफ (SAFF) कप में स्टीफन कॉन्स्टेंटाइन ने बड़े पैमाने पर U-23 टीम के खिलाड़ियों को चुना और टीम फाइनल में पहुंच गई, जहां उन्हें से हार का सामना करना पड़ा।
जूनियर स्तर पर, भारत U-20 टीम ने स्पेन में COTIF कप 2018 में अर्जेंटीना U-20 को हराकर सुर्खियां बटोरीं। 10 खिलाड़ियों के साथ खेलने के बावजूद भारतीय कॉल्ट्स ने 2-1 से जीत हासिल की।
भारतीय फ़ुटबॉल टीम ने 2018 के अंत तक तीन अंतरराष्ट्रीय मैत्री मैच खेले, जिसमें चीन पीआर और ओमान के साथ ड्रॉ खेला, जबकि जॉर्डन के खिलाफ रोमांचक मुकाबले में 2-1 से हार का सामना करना पड़ा।
55 सालों बाद एशियन कप में भारत की पहली जीत
जनवरी में एक बड़े इवेंट के साथ शुरूआत करने वाली भारतीय फुटबॉल टीम ने एएफसी एशियन कप 2019 के अपने शुरुआती मैच में थाईलैंड पर 4-1 से जीत हासिल की, जहां सुनील छेत्री ने दो गोल दागे तो अनिरुद्ध थापा और जीजे लालपेखलुआ ने भारत के लिए एक एक गोल किया। 1964 के बाद किसी प्रतियोगिता में ये भारत की पहली जीत थी।
ब्लू टाइगर्स अपना दूसरा मैच हार गए लेकिन बहरीन के खिलाफ अपने अंतिम ग्रुप मैच में अंतिम मिनट तक लड़ते रहे।
हालाँकि, एक पेनल्टी ने भारत के सपनों को तोड़ दिया। भारत को 1-0 से हार का सामना करना पड़ा। अगर टीम ये मैच ड्रॉ भी कर लेती तो वो अगले दौर में पहुंच जाती। स्टीफन कॉन्स्टेंटाइन ने हार के तुरंत बाद अपना पद छोड़ दिया।
कोच इगोर स्टमक का युग
मई में विश्व क्यूपर इगोर स्टमक को कॉन्स्टेंटाइन की जगह लाया गया।
क्रोएशिया के कोस्ट की देख रेख में ब्लू टाइगर्स ने 11 मैचों में से एक जीत, चार ड्रा और पांच मैचों में हार का सामना करना पड़ा।
सितंबर 2019 में भारतीय फुटबॉल टीम ने हाल ही में अपने सबसे यादगार परिणामों में से एक दर्ज किया, जहां एशियाई चैंपियन कतर को 0-0 से ड्रॉ पर रोका।
जहां जून 2020 में भारतीय टीम फीफा रैंकिंग में 108वें स्थान पर थी, जो कि उसके औसत रैंकिंग से बहुत बेहतर है।
भारतीय राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टीम
पिछले एक दशक के दौरान, भारतीय महिला फुटबॉल टीम ने न केवल पुरुष टीम के जैसा प्रदर्शन किया है, बल्कि तेजी से साथ आगे बढ़ी हैं।
एक दशक के बाद ब्लू टाइग्रेसेस ने खुद को दक्षिण एशिया में प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया है, जहां उन्होंने लगातार पांच SAFF महिला चैंपियनशिप खिताब जीते हैं। उन्होंने सभी तीन दक्षिण एशियाई खेलों - 2010, 2016 और 2019 में भी जीत हासिल की।
एक बड़े मंच पर उन्होंने 2018 में इतिहास रचा, जहां पहले दौर में ग्रुप सी में दूसरे स्थान पर रहने के बाद 2020 के AFC महिला ओलंपिक क्वालिफाइंग टूर्नामेंट के दूसरे दौर में जगह बनाई।
जैसे ISL ने पुरुषों की टीम की मदद की, भारतीय महिला लीग (IWL) जो कि पहली महिला पेशेवर लीग है - जो 2017 में शुरू हुई थी। ये देश में महिला फुटबॉल की प्रगति के लिए उठाया गया बड़ा कदम है।
गोलकीपर अदिति चौहान ने 2015 से 2017 तक FA महिला राष्ट्रीय लीग में वेस्ट हैम लेडीज़ के लिए वापसी की, स्ट्राइकर बाला देवी एक शीर्ष यूरोपीय क्लब के साथ प्रोफेनल कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने वाली इतिहास की पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं, जब उन्होंने 2019 में स्कॉटिश दिग्गज रेंजरों के लिए हस्ताक्षर किए। दलिमा छिब्बर भी, कनाडाई विश्वविद्यालय की टीम मैनिटोबा बिसन्स में शामिल हो गई हैं।