सन् 1950 से 1970 तक के दौर को भारतीय फुटबॉल का स्वर्णिम युग माना जाता है।
ये वो युग था जिसमें भारतीय पुरुष फुटबॉल टीम का जलवा ओलंपिक में भी देखने को मिला था, लेकिन वास्तविकता में जो 'स्वर्णिम युग' को परिभाषित करता है, वह है भारतीय टीम का एशियाई खेलों में लगातार सफलता।
भारत पहली बार एशियाई खेलों का फुटबॉल चैंपियन बना और टीम ने नई दिल्ली में आयोजित हुए 1951 के उद्घाटन संस्करण में स्वर्ण पदक जीता। भारतीय टीम ने इंडोनेशिया में 1962 के संस्करण में भी स्वर्ण पदक हासिल किया।
साल 1970 में बैंकॉक में हुए एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सबसे बड़ी सफलता मानी जाती है।
एशियाई खेल में भारतीय फुटबॉल टीम के पदक
लंदन ओलंपिक 1948 में यूरोप की दिग्गज टीम फ्रांस के खिलाफ अपने डेब्यू मुकाबले को यादगार बनाने वाली भारतीय फुटबॉल टीम अपने शबाब पर थी।
साल 1951 में आयोजित पहले एशियाई खेलों की मेजबानी नई दिल्ली के पास थी। भारतीय टीम के लिए अपने मोमेंटम को आगे बढ़ाने का ये बेहतरीन मंच था।
टीम के मुख्य कोच दिग्गज सैयद अब्दुल रहीम की अगुवाई में भारत ने एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े इवेंट में रोमांचक और आक्रामक टीम को मैदान पर उतारा।
साल 1949 में भारतीय राष्ट्रीय टीम की कमान संभालने वाले रहीम ने बलईदास चटर्जी की 1948 वाली ओलंपिक टीम से सेलेन मन्ना, साहू मेवालाल और अहमद खान जैसे कुछ प्रमुख खिलाड़ियों को ही टीम में बरकरार रखा था। बाकी सभी नए चेहरों जैसे पंसंतोम वेंकटेश, थुलुखानम शनमुगम और अब्दुल रज्जाक सालेह को फॉरवर्ड लाइन को बेहतर करने के लिए टीम में शामिल किया।
उस दौर में सेलेन मन्ना को एशिया का सबसे बेहतरीन डिफेंडर माना जाता था। टूर्नामेंट में भारतीय टीम का डिफेंस इतना शानदार रहा था कि टीम के खिलाफ कोई भी टीम एक भी गोल नहीं कर सकी थी।
भारतीय टीम ने क्वार्टर फाइनल में इंडोनेशिया को 3-0 से और फिर सेमीफाइनल में इसी स्कोर लाइन से अफगानिस्तान को मात दी थी।
फाइनल में ईरान ने भारतीय टीम को कड़ी टक्कर दी, लेकिन भारत के गोलकीपर बी एंथनी ने अपने करियर का शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत को 1-0 से जीत दिलाने में अहम योगदान दिया। दिलचस्प बात यह भी है कि मेवालाल ने फाइनल सहित तीनों मुकाबलों में गोल दागे थे।
पहले संस्करण में दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में हुए इन मुकाबलों में खचाखच भरे दर्शकों के सामने भारतीय टीम चैंपियन बनीं। दर्शक के रूप में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी शामिल थे।
साल 1954 में कोच बलईदास चटर्जी की अगुवाई में भारतीय टीम अपना खिताब बचा नहीं सकी और टीम टूर्नामेंट में आठवें स्थान पर रही।
टोक्यो में सन् 1958 के एशियाई खेलों में भारतीय टीम ने मैनेजर टी शोम के नेतृत्व में बेहतरीन प्रदर्शन किया और टीम पदक से सिर्फ एक कदम चूक गई। टीम इंडिया सेमीफाइनल में दक्षिण कोरिया से 3-1 से हार गई और कांस्य पदक के मैच में इंडोनेशिया से 4-1 से हार गई।
गोलकीपर पीटर थंगराज ने 1958 के अभियान में अहम भूमिका निभाई थी और उन्हें उस वर्ष एशिया का सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर चुना गया था।
साल 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों के लिए भारतीय फुटबॉल टीम के कोच के रूप में रहीम की वापसी हुई। भारत की किस्मत फिर से बदल गई। हालांकि रहीम उस वक्त कैंसर से जूझ रहे थे, लेकिन उनकी चुनी हुई टीम असाधारण टीम थी, जिसमें पीके बनर्जी, चुन्नी गोस्वामी और तुलसीदास बलराम शामिल थे। जिन्हें भारतीय फुटबॉल की सर्वश्रेष्ठ तिकड़ी माना जाता है।
चुन्नी गोस्वामी टीम के कप्तान थे और भारत को दक्षिण कोरिया के खिलाफ अपने पहले मैच में 2-0 से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन कठिन ग्रुप से थाईलैंड और जापान को हराकर टीम इंडिया नॉकआउट राउंड में पहुंचने में कामयाब रही।
भारत ने सेमीफाइनल में दक्षिण वियतनाम पर 3-2 की करीबी जीत दर्ज की और फाइनल में पीके बनर्जी और जरनैल सिंह के गोल की मदद से दक्षिण कोरिया को 2-1 से हरा दिया।
हालांकि साल 1963 में रहीम की मृत्यु ने भारतीय फुटबॉल को बड़ा झटका दिया। क्योंकि उसके बाद भारत ने साल 1966 के एशियाई खेलों में आठवां स्थान हासिल किया था।
एशियाई खेल में भारतीय फुटबॉल का अंतिम पदक
भारत ने बैंकॉक में आयोजित 1970 के एशियाई खेलों में आखिरी बार पदक जीता था। सुभाष भौमिक, सुधीर करमाकर, मोहम्मद हबीब, श्याम थापा और कप्तान सैयद नईमुद्दीन ने टीम को कांस्य पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दिलचस्प बात यह है कि पीके बनर्जी इस अभियान के दौरान भारतीय टीम के संयुक्त कोच थे।
उसके बाद एशियाई खेलों में भारत का ग्राफ गिरता गया है, दिल्ली में आयोजित हुए 1982 के संस्करण में टीम इंडिया छठे स्थान पर रही। पिछले पांच दशकों में एशिया के खेल महाकुंभ में भारत ने एक भी पदक अपने झोली में नहीं डाला है।
भारत ने जकार्ता में हुए 2018 के एशियाई खेलों के लिए फुटबॉल टीम नहीं भेजी थी।
वहीं इस दौरान भारतीय महिला फुटबॉल टीम भी दो एशियाई खेलों में हिस्सा ले चुकी है। साल 1998 में टीम आठवें और 2014 में नौवें स्थान पर रही थी।