एशियाई खेल में भारतीय फुटबॉल टीम का प्रदर्शन: शानदार आगाज के बाद धीमी पड़ गई रफ्तार

एशियन गेम्स के पहले संस्करण की चैंपियन भारत ने इस प्रतिष्ठित महाद्वीपीय प्रतियोगिता में अब तक दो स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीता है। हालांकि, तीनों पदक साल 1970 से पहले आए थे।

5 मिनटद्वारा मनोज तिवारी
Indian football team at Asian Games
(Getty Images)

साल 1950 से 1970 तक का दौर भारतीय फुटबॉल का स्वर्णिम युग माना जाता है।

यह वह समय था जिस दौरान भारतीय पुरुष फुटबॉल टीम ने कुछ मौक़ों पर ओलंपिक खेल में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया। लेकिन, सही मायनों में इस दौर को 'स्वर्णिम युग' के रूप में इसलिए जाना जाता है क्योंकि इस अवधि में भारतीय टीम ने एशियाई खेलों में लगातार सफलता हासिल की।

साल 1951 में नई दिल्ली में आयोजित एशियन गेम्स के पहले संस्करण में स्वर्ण पदक जीतकर भारत पहली बार एशियाई खेलों का फुटबॉल चैंपियन बना। इसके बाद भारतीय पुरुष फुटबॉल टीम ने इंडोनेशिया में 1962 एशियन गेम्स में भी स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

बैंकॉक 1970 एशियाई खेल में कांस्य पदक जीत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय फुटबॉल की आख़िरी बड़ी सफलता है।

एशियाई खेल में भारतीय फुटबॉल टीम के पदक

लंदन 1948 में यूरोप की दिग्गज टीम फ्रांस के ख़िलाफ़ ओलंपिक खेल में अपने डेब्यू पर यादगार प्रदर्शन के बाद से भारतीय फुटबॉल टीम आत्मविश्वास से भरपूर थी।

ऐसे में साल 1951 में नई दिल्ली में आयोजित पहला एशियाई खेल, भारतीय टीम के पास अपनी लय को बनाए रखने के लिए एक बेहतरीन मंच था।

टीम के मुख्य कोच दिग्गज सैयद अब्दुल रहीम की अगुवाई में भारत ने एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में एक रोमांचक और आक्रामक टीम को मैदान पर उतारा।

साल 1949 में भारतीय राष्ट्रीय टीम की कमान संभालने वाले रहीम ने बलईदास चटर्जी की 1948 ओलंपिक खेल में शिरकत करने वाली टीम से सेलेन मन्ना, साहू मेवालाल और अहमद खान जैसे कुछ प्रमुख खिलाड़ियों को टीम में बरकरार रखा था। साथ ही फॉरवर्ड लाइन को अधिक मज़बूती देने के लिए पैनसेंटोम वेंकटेश, थुलुखानम शनमुगम और अब्दुल रज्जाक सालेह जैसे नए खिलाड़ियों को टीम में शामिल किया।

उस समय एशिया के सबसे अच्छे डिफेंडरों में से एक माने जाने वाले भारतीय कप्तान सेलेन मन्ना की बैकलाइन पर मौजूदगी के साथ, भारत ने किसी भी विरोधी टीम को अपने ख़िलाफ़ एक भी गोल करने नहीं दिया और प्रतियोगिता का चैंपियन बना।

भारतीय टीम ने क्वार्टर-फाइनल में इंडोनेशिया को 3-0 से हराया और सेमी-फाइनल में इसी स्कोरलाइन के साथ अफगानिस्तान को भी मात दी थी।

फाइनल में ईरान ने भारतीय टीम को कड़ी टक्कर दी, लेकिन भारत के गोलकीपर बी एंथनी ने अपने करियर का शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत को 1-0 से जीत दिलाने में अहम योगदान दिया। दिलचस्प बात यह है कि मेवालाल ने फाइनल सहित भारत के द्वारा खेले गए तीनों मुक़ाबलों में गोल दागे थे।

भारत के पूर्व प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की मौजूदगी में दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में खचाखच भरी भीड़ के सामने भारतीय टीम, एशियाई खेल की पहली फुटबॉल चैंपियन बनी।

साल 1954 में कोच बलईदास चटर्जी की अगुवाई में भारतीय टीम अपना ख़िताब बचा नहीं सकी और टीम टूर्नामेंट में आठवें स्थान पर रही।

टोक्यो में साल 1958 के एशियाई खेल में भारतीय टीम ने मैनेजर टी शोम के नेतृत्व में बेहतरीन प्रदर्शन किया और पदक जीतने से सिर्फ एक कदम दूर रह गई। टीम इंडिया को सेमी-फाइनल में दक्षिण कोरिया के ख़िलाफ़ 3-1 से शिकस्त का सामना करना पड़ा जबकि कांस्य पदक मैच में भारत को इंडोनेशिया ने 4-1 से हराया।

गोलकीपर पीटर थंगराज ने 1958 के अभियान में अहम भूमिका निभाई थी और उन्हें उस वर्ष एशिया का सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर चुना गया था।

साल 1962 के जकार्ता एशियाई खेल के लिए भारतीय फुटबॉल टीम के कोच के रूप में रहीम की वापसी हुई और उनके आने से जैसे भारत की किस्मत भी फिर से पलट गई। हालांकि, रहीम उस वक्त कैंसर से जूझ रहे थे, लेकिन उनकी चुनी हुई टीम असाधारण थी, जिसमें पीके बनर्जी, चुन्नी गोस्वामी और तुलसीदास बलराम शामिल थे, जिन्हें भारतीय फुटबॉल की सर्वश्रेष्ठ तिकड़ी माना जाता है।

चुन्नी गोस्वामी की अगुवाई में भारत को दक्षिण कोरिया के खिलाफ अपने पहले मैच में 2-0 से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन, थाईलैंड और जापान को हराकर टीम इंडिया नॉकआउट राउंड तक पहुंचने में कामयाब रही।

भारत ने सेमी-फाइनल में दक्षिण वियतनाम पर 3-2 की करीबी जीत दर्ज की और फाइनल में पीके बनर्जी और जरनैल सिंह के गोल की मदद से दक्षिण कोरिया को 2-1 से शिकस्त देते हुए भारतीय टीम एक बार फिर से एशियन गेम्स की चैंपियन बन गई।

हालांकि, साल 1963 में रहीम का निधन भारतीय फुटबॉल के लिए बड़ा झटका साबित हुआ, क्योंकि उसके बाद 1966 एशियाई खेल में भारतीय टीम 8वें स्थान पर रही थी।

एशियाई खेल में भारतीय फुटबॉल का अंतिम पदक

भारत ने बैंकॉक में आयोजित 1970 एशियाई खेल में आख़िरी बार पदक जीता था। सुभाष भौमिक, सुधीर करमाकर, मोहम्मद हबीब, श्याम थापा और कप्तान सैयद नईमुद्दीन ने टीम को कांस्य पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दिलचस्प बात यह है कि पीके बनर्जी इस अभियान के दौरान भारतीय टीम के संयुक्त कोच थे।

साल 1970 के एशियन गेम्स के बाद से प्रतियोगिता में भारत के प्रदर्शन में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। दिल्ली एशियन गेम्स 1982 में टीम इंडिया छठे स्थान पर रही, जो पिछले पांच दशक में इस महाद्वीपीय प्रतियोगिता में भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।

जकार्ता 2018 एशियन गेम्स के लिए भारत ने फुटबॉल टीम नहीं भेजी थी।

इस बीच, भारतीय महिला फुटबॉल टीम भी दो बार एशियाई खेलों में हिस्सा ले चुकी है। साल 1998 में टीम 8वें और 2014 में 9वें स्थान पर रही थी।

एशियाई खेल में भारतीय फुटबॉल टीम का रिजल्ट

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