भारत के पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता और बॉक्सिंग कोच ओपी भारद्वाज का निधन

बीमारी और उम्र से संबंधित परेशानियों के बीच लंबी लड़ाई के बाद 82 वर्षीय बॉक्सिंग कोच की मृत्यु हो गई।

3 मिनटद्वारा विवेक कुमार सिंह
A representational event of the boxing gloves

द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले बॉक्सिंग कोच ओपी भारद्वाज (OP Bhardwaj) का शुक्रवार को नई दिल्ली में बीमारी और उम्र से संबंधित परेशानियों के बाद निधन हो गया।

संयोग से 82 वर्षीय की पत्नी संतोष का निधन 10 दिन पहले खराब स्वास्थ्य के कारण हो गया था।

भारद्वाज को 1985 में बीबी भागवत (BB Bhagwat) (कुश्ती) और ओम नांबियार (OM Nambiar) (एथलेटिक्स) के साथ द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वो भारत में मुक्केबाजी के दिग्गजों में से एक थे, जिन्होंने देश में खेल के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

एक पूर्व सैनिक, भारद्वाज 1968 से 1989 तक भारतीय मुक्केबाजी टीम के राष्ट्रीय कोच थे और बाद में राष्ट्रीय चयनकर्ता के रूप में भी काम किया।

उनके मार्गदर्शन में भारतीय मुक्केबाजों ने एशियन गेम्स, राष्ट्रमंडल खेलों और दक्षिण एशियाई खेलों में पदक के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया।

ओपी भारद्वाज को बाद में 1975 में राष्ट्रीय खेल संस्थान (National Institute of Sports), पटियाला में मुक्केबाजी के लिए पहले मुख्य प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था।

एक करीबी पारिवारिक मित्र और पूर्व बॉक्सिंग कोच टीएल गुप्ता (TL Gupta) ने पीटीआई को बताया, "1975 में जब NIS बॉक्सिंग में डिप्लोमा कोचिंग का प्रस्ताव शुरू किया, तो भारद्वाज को कोर्स शुरू करने के लिए चुना गया था।"

पूर्व राष्ट्रीय कोच गुरबख्श सिंह संधू के लिए, भारद्वाज वो थे जो अपने प्रशिक्षण से उनके छात्रों को बुनियादी चीजें सिखा सकते थे, और उनके आधार को मजबूत करने पर विशेष ध्यान देते थे।

संधू ने कहा, “मेरा भारद्वाज जी के साथ एक अच्छी दोस्ती का रिश्ता था। NIS में शामिल होने के बाद मैं उनका छात्र होने के साथ-साथ सहकर्मी भी था, उनके मार्गदर्शन में ही विजेंदर सिंह (Vijender Singh) ने बॉक्सिंग में भारत को पहला ओलंपिक पदक दिलाया।”

“मैंने उन्हें भारतीय मुक्केबाजी को आगे बढ़ाते और उसके लिए नींव रखते हुए देखा। वो हमेशा लड़कों का साथ देने के लिए तैयार रहते थे। वो कभी भी निर्देश नहीं देते थे बल्कि वो समझाते थे। ट्रेनिंग के दौरान लड़कों के साथ दौड़ते थे, यहां तक ​​कि लंबी दूरी की दौड़ भी लगाते थे। मैंने उनसे ही अपने छात्रों से पूरी तरह से जुड़ना सीखा है।"

इस बीच बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (Boxing Federation of India) के पूर्व महासचिव, जय कोवली ने कोचिंग दिग्गज को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया, जो मुक्केबाजों की मदद करने के लिए अपने तरीकों पर अड़ा रहा था।

कोवली ने कहा, “वो कई मायनों में भारतीय मुक्केबाजी के एम्बेसडर थे। मुक्केबाजों को प्रशिक्षित करने और टीम को मैनेज करने के अलावा, वो प्रायोजकों को पाने के लिए कोशिश करते थे, और देश में मुक्केबाजी के स्तर में सुधार की जरूरतों के बारे में भी खुलकर बोलते थे।”

गुप्ता ने अपने पूर्व कोच को इसलिए भी याद किया कि उन्होंने इस खेल को बेहतर बनाने में मदद की।

गुप्ता ने कहा, "मुझे याद है, उन दिनों, जब कंप्यूटर नहीं थे और शायद ही कोई टाइप करना जानता था, उन्होंने रूस दौरे पर से एक टाइपराइटर खरीदा।"

"वो टाइपराइटर का उपयोग करके NIS में मुक्केबाजों के लिए बेहतर सुविधाओं की मांग करते हुए अधिकारियों को पत्र लिखते थे। उन्होंने सिर्फ एक उंगली से टाइप किया क्योंकि उन्होंने टाइपिंग में कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली थी।"