मिल्खा सिंह करीब एक से दो पीढ़ी तक भारतीय खेल इतिहास के सबसे बड़े नामों में से एक रहे। यही नहीं, उन्हें देश का पहला ट्रैक एंड फ़ील्ड सुपरस्टार भी माना जाता है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मिल्खा सिंह के करियर का सबसे बेहतरीन पल वो था जब वह 1960 के ओलंपिक खेलों में 400 मीटर के फाइनल में चौथे स्थान पर रहे थे। पेसिंग की कमी की वजह से वह कांस्य पदक हासिल करने से चूक गए थे।
अगर वह इस पदक को हासिल कर लेते तो सेना में क्रॉस कंट्री रेसों से अपने करियर की शुरूआत करने वाले इस एथलीट के लिए यह एक सही इनाम होता। मिल्खा सिंह ने 1956 ओलंपिक में एक नई प्रतिभा के तौर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया और उसके बाद के वर्षों में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की स्पर्धाओं में कई नेशनल रिकॉर्ड बनाए।
हालांकि, मिल्खा सिंह को रोम ओलंपिक में किए गए उनके शानदार प्रदर्शन के अलावा अन्य कई उपलब्धियों की वजह से भी जाना जाता है।
मिल्खा सिंह के रिकॉर्ड और उपलब्धियां
मिल्खा सिंह को हमेशा उनकी मेहनत, लगन और प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता था और एक एथलीट के तौर पर उनका ध्यान सिर्फ टोक्यो में होने वाले 1958 एशियन गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर का स्वर्ण पदक जीतने पर था।
ऐसे में उनके जीवन का यह किस्सा बेहद दिलचस्प है। मिल्खा ने मेलबर्न 1956 में 400 मीटर और 4x400 मीटर रिले के स्वर्ण पदक विजेता, यूएसए के चार्ल्स जेनकिंस से उनके इवेंट्स के बाद बात की और उनसे उनका ट्रेनिंग रूटीन पूछा। जिसे साझा करने में अमेरिकी एथलीट ने काफी उदारता दिखाई थी।
उस वक़्त 26 साल के मिल्खा सिंह ने अगले दो वर्षों तक जेनकिंस की दिनचर्या का ही पालन किया और आगे चलकर इसका उन्हें फायदा भी मिला। मिल्खा सिंह ने 1958 के एशियाई खेलों से पहले नेशनल रिकॉर्ड बनाने में कामयाबी हासिल की।
मिल्खा सिंह अपने मुख्य इवेंट, 400 मीटर में बेहतरीन फॉर्म में चल रहे थे। उन्होंने 47 सेकेंड में शानदार गति से दौड़ को ख़त्म करते हुए गोल्ड मेडल हासिल कर लिया। वह रजत पदक विजेता पाब्लो सोम्बलिंगो से करीब 2 सेकेंड आगे रहे।
उनका दूसरा गोल्ड और भी ख़ास था। 200 मीटर में मिल्खा सिंह के मुख्य प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के अब्दुल खालिक़ थे, जिन्होंने एक नया रिकॉर्ड बनाने के साथ ही 100 मीटर रेस का स्वर्ण पदक अपने नाम किया था और उन्हें व्यापक रूप से सर्वश्रेष्ठ एशियाई धावक के रूप में माना गया था।
हालांकि, मिल्खा अपने जीवन की बेहतरीन फॉर्म में थे। उन्होंने 21.6 सेकेंड में फाइनल में दौड़ लगाई और एक नया एशियाई खेल रिकॉर्ड स्थापित किया। लेकिन पैर की मांसपेशियों के खिंचने की वजह से वह फिनिश लाइन पर गिर गए।
उन्होंने 0.1 सेकेंड से जीत हासिल की थी और उनके इस कारनामे ने उन्हें एक आदर्श एथलीट के तौर पर स्थापित किया था।
मिल्खा सिंह का राष्ट्रमंडल खेलों में प्रदर्शन
एशियाई खेलों में दो स्वर्ण पदक जीतने के अपने सफल प्रयासों के एक महीने बाद 'फ्लाइंग सिख' ने भारतीय एथलेटिक्स के अब तक के सबसे यादगार पलों को स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करने का काम किया था।
हालांकि, मिल्खा सिंह का एशियन गेम्स का प्रदर्शन काफी प्रभावशाली था, लेकिन उन दिनों राष्ट्रमंडल खेलों को ‘एम्पायर गेम्स’ के तौर पर जाना जाता था। यह उनके लिए असली परीक्षा थी, क्योंकि इसमें दुनियाभर के कुछ सर्वश्रेष्ठ एथलीटों को हिस्सा लेना था।
यहां तक कि इस प्रतियोगिता को लेकर मिल्खा सिंह को खुद भी भरोसा नहीं था। उन्होंने कई सालों बाद टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा था, “मुझे यकीन नहीं था कि मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीत सकता हूं। मुझे उस तरह का विश्वास कभी नहीं था, क्योंकि मैं दक्षिण अफ्रीका के विश्व रिकॉर्ड धारक मैलकम स्पेंस के साथ प्रतिस्पर्धा करने जा रहा था। वह 400 मीटर में उस समय के सर्वश्रेष्ठ धावक थे।”
हालांकि, भारतीय धावक को अमेरिकी कोच डॉ. आर्थर हॉवर्ड द्वारा स्मार्ट दौड़ की रणनीति साझा की गई थी, जिन्होंने इस बात का अनुभव हासिल किया था कि स्पेंस अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने के लिए आखिरी समय में ज़ोर लगाता था और इसीलिए हॉवर्ड ने उन्हें पूरी दौड़ के दौरान अपना पूरा ज़ोर लगाने का निर्देश दिया था।
उनका यह सुझाव काम कर गया, क्योंकि मिल्खा सिंह 440-यार्ड रेस की सबसे बाहरी लेन में तेज़ी से आगे बढ़े और उनके दक्षिण अफ्रीकी प्रतिद्वंद्वी भी उनको पीछे छोड़ने के इरादे से दौड़े। लेकिन अंतिम समय में अपने प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ने वाले स्पेंस अपनी गति हासिल करने में असमर्थ रहे।
मिल्खा सिंह ने इस रेस में शीर्ष पर आने के लिए 46.6 सेकेंड का नया 400 मीटर नेशनल रिकॉर्ड भी बना दिया था।
यह पल ऐतिहासिक था, क्योंकि इसने उन्हें ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण पदक जीतने वाला पहला भारतीय बना दिया था।
वास्तव में, मिल्खा सिंह का यह रिकॉर्ड 52 सालों तक काबिज़ रहा। 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया ने इस रिकॉर्ड की बराबरी की थी, लेकिन तब भी वह उपलब्धि हासिल करने वाले एकमात्र भारतीय पुरुष बने रहे। उसके बाद साल 2014 में विकास गौड़ा स्वर्ण पदक जीतने वाले दूसरे भारतीय पुरुष बने।
मिल्खा सिंह के स्वर्ण पदक जीतने की खुशी उनके घर वापस लौटने के बाद धूमधाम से मनाई गई और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी अगले दिन मिल्खा सिंह के अनुरोध पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया था।
एशियाई खेलों में एक बार फिर जीते दो स्वर्ण पदक
1958 में अपने करियर के सबसे बेहतरीन साल के बाद मिल्खा सिंह ने 1959 में कई यूरोपीय स्पर्धाएं जीतीं, और 1960 के ओलंपिक के लिए लगातार चरम पर रहे। फिर एक ऐसा इवेंट जहां उन्होंने 45.73 सेकेंड का नया 400 मीटर नेशनल रिकॉर्ड बनाया और यह जो दशकों तक उनकी पहचान बना रहा।
इसने इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का ध्यान भी अपनी ओर खींचा और उनके जीवन की कहानी को निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने 2013 की बॉलीवुड बायोपिक ‘भाग मिल्खा भाग’ में शानदार तरीके से प्रदर्शित किया। इस फ़िल्म की शुरुआत रोम 1960 में किए गए उनके प्रदर्शन से की गई।
हालांकि, दो साल तक बेहतर परिणाम न दे पाने के बाद मिल्खा सिंह ने खेल के प्रति अपनी लगन और प्रतिबद्धता को दिखाया और एक बार फिर जकार्ता में 1962 के एशियाई खेलों में दो और स्वर्ण पदक जीते।
वह हमवतन और उभरते हुए सितारे माखन सिंह के खिलाफ मैदान में उतरे, जिन्होंने उस साल राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उन्हें हरा दिया था।
मिल्खा सिंह ने कई सालों बाद याद करते हुए कहा था, “अगर ट्रैक पर उस वक्त मुझे किसी का डर था तो वह माखन था। वह एक शानदार एथलीट थे, जिन्होंने मुझे अपना सबसे बेहतर करने के लिए उकसाया।”
हालांकि, एशियाई खेलों में 400 मीटर के फाइनल के दिन भारतीय दिग्गज ने अपने खेल के ताज को बनाए रखा और अपने युवा हमवतन साथी को आधे सेकेंड के अंतर से हरा दिया था।
इसके बाद दोनों ने 4x400 मीटर रिले फाइनल में भाग लिया, और दलजीत सिंह और जगदीश सिंह के साथ मिलकर उन्होंने इसे 3:10.2 के एशियाई खेलों के रिकॉर्ड समय के साथ जीत लिया था। इसके साथ ही मिल्खा सिंह के पदक संग्रह में एशियाई खेलों का चौथा स्वर्ण पदक शामिल हुआ।