जब 1980 ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने अपना खोया हुआ गौरव हासिल किया
वासुदेवन भाष्करन के नेतृत्व में एक अनुभवहीन टीम को पूर्व खिलाड़ियों और एक सेना प्रमुख ने ऐसा प्रेरित किया कि टीम ने गोल्ड पर कब्ज़ा जमाया।
वासुदेवन भाष्करन के नेतृत्व में एक अनुभवहीन टीम को पूर्व खिलाड़ियों और एक सेना प्रमुख ने ऐसा प्रेरित किया कि टीम ने गोल्ड पर कब्ज़ा जमाया।
स्वतंत्रता के तुरंत बाद 1948 में भी भारतीय हॉकी टीम ने एक ओलंपिक स्वर्ण पदक हासिल किया था।
भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने आज़ादी के बाद 1948, 1952 और 1956 में ख़िताब जीतकर हैट्रिक बनाई थी। इसके बाद पाकिस्तान ने 1960 के ओलंपिक फाइनल में उस स्वर्णिम लय को तोड़ा। हालांकि, भारत ने 1964 में अपने पड़ोसी को एक बार फिर धूल चटाई थी।
भारत ने 1968 और 1972 के ओलंपिक में कांस्य पदक के साथ संतोष किया और 1976 के संस्करण में वो तब तक के अपने सबसे निचले स्तर (सातवें पायदान) पर पहुंच गई। जिसके बाद 1980 के ओलंपिक खेलों में टीम से उतनी अपेक्षाएँ नहीं थीं।
हालाँकि, 29 जुलाई, 1980 को मास्को में भारतीय टीम ने फिर से फ़ाइनल में परचम लहराया और गोल्ड मेडल अपने नाम किया। भारतीय हॉकी टीम ने फाइनल में स्पेन को 4-3 से हराकर अपना आठवां और आखिरी ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता।
एक अनुभवहीन टीम के साथ सफ़र की शुरूआत
1980 के समर ओलंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उतना खास प्रदर्शन नहीं किया था, केवल ज़फ़र इकबाल, मेरविन फर्नांडिस, एमएम सोमया, बीर बहादुर छेत्री और कप्तान वासुवन भाष्करन ने विदेशी विरोधियों के खिलाफ मैच खेले थे।
इतने युवाओं के साथ कप्तान भाष्करन ने महसूस किया कि उनकी टीम को भारत से बाहर जाने से पहले अपना आत्मविश्वास बनाने के लिए प्रेरणा की एक अतिरिक्त खुराक की आवश्यकता थी।
पहली प्रेरणादायक टॉक बेंगलुरु के एक प्री-ओलंपिक नेशनल कैंप में हुई।
कप्तान वासुदेवन भाष्करन ने सोनी स्पोर्ट्स के शो ‘मेडल ऑफ ग्लोरी’ में कहा कि, "ये टीम भाग्यशाली थी कि उन्हें फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ से बात करने का मौका मिला।"
उन्होंने कहा, 'उन्होंने दो बार हमसे मुलाकात की और ओलंपिक में लक्ष्य के बारे में बात की। और इस तरह से इस सफर की शुरूआत हुई।”
इसके प्रभाव को देखकर, भारतीय हॉकी टीम के कप्तान ने पूर्व ओलंपिक हॉकी स्वर्ण पदक विजेता और चयनकर्ता, लेस्ली क्लॉडियस और मुनीस्वामी राजगोपाल से अपनी जीत के बारे में बात करने का अनुरोध किया।
उस बातचीत का वास्तव में असर हुआ।
1980 ओलंपिक में हॉकी में सिर्फ़ छह टीमों को टूर्नामेंट में शामिल किया गया, क्योंकि पहले इस आयोजन में 12 टीमों को शामिल किया जाना था, जिन्हें दो समूहों में विभाजित किया जाता, लेकिन नौ देश इस आयोजन से बाहर हो गए।
फील्ड हॉकी के इस आयोजन में भारत, स्पेन, पोलैंड, क्यूबा, तंजानिया और मेजबान सोवियत संघ थे।
अपने पहले मैच में भारत ने तंजानिया को 18-0 से हराया और उसके बाद दो मैचों में पोलैंड और स्पेन के खिलाफ 2-2 से बराबरी की।
पोलैंड के खिलाफ भारतीय टीम का इस तरह का प्रदर्शन एक तरह से एक झटका था क्योंकि भारतीय हॉकी टीम कई अवसरों पर चूक गई थी और बासकरन खुद पेनल्टी स्ट्रोक से चूक गए।
हालांकि, यूरोपीय चैंपियन स्पेन के साथ ड्रा ने टीम को फिर से अपने आप में विश्वास दिलाया।
“मुझे लगता है कि ये हमारे अभियान का महत्वपूर्ण मोड़ था। स्पेन एक शानदार टीम थी जिसके पास दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कोच थे और एक शानदार फ़ॉरवर्ड लाइन थी। वास्तव में ये ड्रॉ किसी जीत से कम नहीं थी।” - वासुदेवन भाष्करन
भारत ने क्यूबा को 13-0 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया।
अंतिम चार में मेजबान सोवियत संघ के खिलाफ मुक़ाबले की तैयारी के लिए भारतीय हॉकी टीम ने अपनी रणनीति बदलने का फैसला किया।
“उस गेम में हमने इनडायरेक्ट पेनल्टी कॉर्नर के लिए जाने का फ़ैसला किया।’’ बासकरन ने ख़ुलासा किया कि सेमीफ़ाइनल तक पहुंचने के तरीके का पता लगाने के लिए हमने कई वीडियो फुटेज का अध्ययन किया।
“घरेलू टीम के प्रशंसको की भीड़ से स्टेडियम पूरी तरह भरा हुआ था, दूसरी कोई टीम होती तो वो दर्शकों को देखकर ही हतोत्हाहित हो जाती। लेकिन हमारे खिलाड़ी इतने आश्वस्त थे कि वे लगातार गेंद के लिए भाग रहे थे।” - वासुदेवन भाष्करन
भारतीय हॉकी टीम के कोच भाष्करन ने कहा, "जफर इकबाल मुझ पर चिल्लाए क्योंकि मैं विपरीत दिशा में विकल्पों की तलाश में था।"
जिस तरह से भारत ने मेजबान टीम को 4-2 से हराया, उसने आत्मविश्वास के साथ फ़ाइनल में प्रवेश कराया।
सांस रोक देने वाला फ़ाइनल मुक़ाबला
स्पेन के खिलाफ फाइनल में भारतीय हॉकी टीम के लिए शुरूआत बहुत अच्छी तरह से हुई, क्योंकि सुरिंदर सिंह सोढ़ी ने एक बेहतरीन मिडफील्डर के रूप में खेलते हुए हाफ टाइम से पहले दो बार स्कोर करके उन्हें 2-0 से आरामदायक स्थिति में पहुंचा दिया।
एमके कौशिक ने दूसरे हाफ के शुरूआत में ही भारत क लिए गोल कर दिया, लेकिन ये तब हुआ जब मैच पूरी तरह भारत के कब्जे में था। लेकिन फिर स्पेन के कप्तान जुआन अमत ने दो मिनट में दो बार गोल करके स्पैनियार्ड्स को सीधे गेम में (2-3) पर वापस ला दिया।
ये वही जगह थी जहां एक और नई रणनीति के साथ मोहम्मद शाहिद ने खेलना शुरू किया।
उन्होंने कहा, "उन्होंने तब तक ज्यादा गोल नहीं किए थे। लेकिन हमें पता था कि हमें फ़ाइनल में उनके जैसे किसी की जरूरत थी और इसलिए उन्हें बताया कि वो बहुत ज्यादा किसी का पीछा नहीं करेंगे।"
मोहम्मद शाहिद ने भारत के लिए चौथा गोल किया और ये अभियान का सबसे महत्वपूर्ण भाग साबित हुआ।
जुआन अमात ने अपनी हैट्रिक पूरी की और स्पेन ने खेल के अंत में दो पेनल्टी कार्नर जीता, लेकिन भारत ने बढ़त कायम रखी।
भाष्करन ने कहा कि, “पहले पेनल्टी कॉर्नर के लिए, मैंने अपने आप को दाईं ओर तैनात किया क्योंकि मुझे लगा कि अमात वहां मारेगा। मैं इसे ब्लॉक करने में कामयाब रहा और तेजी से बाईं ओर चला गया, और जैसे ही गेंद ने मेरी छड़ी को छुआ, सीटी बज गई।”
इसके साथ ही एक बार फिर भारत ने 1980 के मास्को ओलंपिक में अपना हॉकी वर्चस्व स्थापित किया। भले ही मास्को में गोल्ड भारतीय हॉकी टीम द्वारा जीता गया आखिरी ओलंपिक स्वर्ण पदक हो, लेकिन देश अभी भी एक वैश्विक महाशक्ति बना हुआ है।
मास्को जीत के बाद, भारतीय हॉकी को अपने अगले ओलंपिक पदक के लिए चार दशक से अधिक का इंतजार करना पड़ा। भारतीय टीम ने टोक्यो 2020 ओलंपिक में कांस्य पदक जीता। हालांकि, अभी भी बहुप्रतीक्षित 9वें स्वर्ण पदक का इंतजार जारी है।
1980 मास्को ओलंपिक भारतीय हॉकी टीम: वासुदेवन भास्करन (कप्तान), बीर बहादुर छेत्री, एलन शोफिल्ड, सिल्वेनस डंग डंग, राजिंदर सिंह, दविंदर सिंह, गुरमेल सिंह, रविंदर पाल सिंह, एमएम सोमाया, महाराज कृष्ण कौशिक, चरणजीत कुमार, मेर्विन फर्नांडीस, अमरजीत सिंह राणा, मोहम्मद शाहिद, जफ़र इकबाल, सुरिंदर सिंह सोढ़ी