युवा और नेतृत्व का एक सही मिश्रण, ये है भारतीय हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह की पहचान। अपने जुनून और दृढ़ संकल्प के साथ ये खिलाड़ी युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन गया है।
भारतीय हॉकी टीम के कप्तान मैदान के बाहर भले ही ज्यादा आक्रामक ना हो लेकिन जैसे ही वह मैदान पर पहुंचते हैं तो वह कठिन से कठिन स्थिति में अपने खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ा लेते हैं।
जालंधर के पास मीठापुर गांव में जन्मे मनप्रीत सिंह जल्दी ही इस खेल से जुड़ गए थे, वैसे भी इस शहर ने देश को कई बड़े खिलाड़ी दिए हैं।
मनप्रीत के दोनों ही भाई स्कूल हॉकी टीम के स्टार खिलाड़ी थे। पूर्व कप्तान और पद्मश्री अवार्डी परगट सिंह मितापुर में डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेंट के रूप में सेवारत थे, हॉकी खेलना एक युवा मनप्रीत सिंह के लिए एक स्वाभाविक कदम था।
मनप्रीत सिंह की मां उन्हें शुरुआत में हॉकी में नहीं जाने की सलाह देती थी क्योंकि उन्हें लगता था कि हॉकी एक खतरनाक खेल है। लेकिन मनप्रीत भी जिद्दी थे और शुरुआत से ही वह सभी को अपने खेल से प्रभावित करने लग गए। दो साल बाद उनकी मेहनत ने परिवार का विश्वास जीत लिया। इसके बाद उनके परिवार ने उनका दाखिला जालंधर के करीब सुरजीत हॉकी ऐकेडमी में करवा दिया।
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