जानें क्यों मुक्केबाजी में दो कांस्य पदक दिए जाते हैं?

ओलंपिक में दो बॉक्सिंग ब्रॉन्ज़ मेडल दिए जाने के नियम के चलते भारतीय मुक्केबाज मैरी कॉम और विजेंदर सिंह को फायदा मिला है।

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(2012 Getty Images)

ओलंपिक खेलों में बॉक्सिंग सबसे आक्रामक खेलों में से एक है। बॉक्सिंग एक रोमांच, ड्रामा और एक्शन से भरपूर खेल है। मुक्केबाजी में जीत के लिए तीन-तीन मिनट के तीन राउंड होते हैं। जहां इस दौरान मुक्कों से भरपूर एक्शन देखने को मिलता है और मुक्केबाज पोडियम पर अपनी जगह बनाते हैं। दरअसल, बॉक्सिंग में तीसरे स्थान के लिए मैच नहीं होता है। यहां सेमीफाइनल में हारने वाले दोनों बॉक्सर को कांस्य पदक दिया जाता है।

हालांकि, अधिकांश ओलंपिक खेलों के विपरीत बॉक्सिंग के लिए पोडियम थोड़ा बड़ा होता है।

ये शाब्दिक अर्थ में नहीं है, लेकिन बॉक्सिंग में एक के बजाय दो कांस्य पदक विजेता पोडियम पर अपनी जगह बनाते हैं।

इसी तरह टोक्यो ओलंपिक 2020 के क्वार्टर-फाइनल मुकाबले को भारतीय वेल्टरवेट लवलीना बोरगोहेन ने जीत हासिल करते हुए अपने लिए कांस्य पदक पक्का किया।

एमसी मैरी कॉम और विजेंदर सिंह ने भी क्रमशः लंदन 2012 और बीजिंग 2008 में अपने-अपने सेमीफाइनल मुकाबले में हारने के बावजूद कांस्य पदक हासिल किया था।

हालांकि, हमेशा दो बॉक्सिंग ब्रॉन्ज़ मेडल नहीं दिए जाते थे।

पांच ओलंपिक गेम्स में नहीं दिया गया कोई कांस्य पदक

1904 में ओलंपिक में डेब्यू करने के बाद से ही मुक्केबाजी में हारने वाले सेमीफाइनलिस्ट मुक्केबाजों के बीच कांस्य पदक का प्लेऑफ होता था, जबकि शीर्ष दो मुक्केबाजों को स्वर्ण और रजत पदक दिए जाते हैं - अधिकांश खेलों में यही एक मानक नियम है।

हालांकि, इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन (AIBA) ने 1950 में दूसरी एआईबीए कांग्रेस में नियम बदल दिया। कांस्य पदक के लिए खेले जाने वाले मैच को खत्म करने का फैसला किया। सेमीफाइनल मुकाबले में दोनों हारने वालों को तीसरे स्थान पर रखा जाता था। लेकिन उन्हें पदक से सम्मानित नहीं किया जाता था।

इस नियम को सेमीफाइनल और तीसरे स्थान के मैच के बीच कम समय अंतराल होने के कारण पेश किया गया था। मुक्केबाजों को खेल में वापसी करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता था, जो उनके स्वास्थ्य के लिए खतरा था।

एआईबीए की सिफारिश पर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने 1952 के हेलसिंकी खेलों में कांस्य पदक के लिए मैच आयोजित नहीं किया और सेमीफाइनल में हारने वालों को पदक के बजाय ओलंपिक डिप्लोमा दिया गया।

यह अभ्यास मेक्सिको सिटी में 1968 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक तक पांच संस्करणों तक जारी रहा।

बॉक्सिंग में दो कांस्य पदक

1970 में फिनलैंड बॉक्सिंग एसोसिएशन की सिफारिश पर एआईबीए ने आईओसी को ओलंपिक डिप्लोमा के बजाय हारने वाले दोनों मुक्केबाजों को कांस्य पदक देने का प्रस्ताव दिया।

इस प्रस्ताव को आईओसी ने स्वीकार कर लिया और 1952, 1956, 1960, 1964 और 1968 के सभी सेमीफाइनल में 10 पहुंचे मुक्केबाजों को आखिरकार 1970 में एक समारोह में कांस्य पदक से सम्मानित किया गया।

इस तरह बॉक्सिंग में दो कांस्य पदक देने का नियम शुरू हुआ।

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