बचपन से ही मनप्रीत सिंह (Manpreet Singh) की चाहत थी कि वह भी अपने बड़े भाईयों की तरह हॉकी खेलें और उसमें इनाम जीतें, लेकिन उनके अभिभावक उन्हें इस खेल से दूर रखना चाहते थे।
मनप्रीत का ये सपना शुरुआत में साकार होना मुश्किल लग रहा था, क्योंकि उनकी मां चाहती थीं कि उनका बेटा हॉकी में नहीं बल्कि किसी और चीज़ में करियर बनाए। मनप्रीत की मां उन्हें कमरे में बंद कर दिया करतीं थीं ताकि वह बाहर जाकर हॉकी न खेल सकें।
इसके बावजूद मनप्रीत अपने इरादे के पक्के थे और उन्होंने ठान लिया था कि वह एक हॉकी खिलाड़ी ही बनेंगे। वह किसी तरह से कमरे से बाहर आ ही जाते थे और अपने बड़े भाई के साथ दौड़ सीधे मैदान की तरफ़ होती थी, जहां से वह अपने करियर को आकार देना चाहते थे। मनप्रीत का ये संकल्प ही था कि आगे जाकर उन्होंने न सिर्फ़ भारतीय हॉकी टीम में जगह बनाई बल्कि देश को ओलंपिक का टिकट भी दिलाया।
पुरस्कारों ने बदल डाली सोच
मनप्रीत जालंधर के मीठापुर गांव के रहने वाले हैं, ये वही स्थान है जहां से पूर्व भारतीय हॉकी कप्तान और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित परगट सिंह (Pargat Singh) आते हैं। मनप्रीत की ज़िंदगी को भी परगट सिंह से मिली प्रेरणा ने बदल डाला।
10 साल की उम्र से ही मनप्रीत के हाथों में हॉकी स्टिक आ गई थी, लेकिन तब घर वाले इससे ख़ुश नहीं थे और वह नहीं चाहते थे कि मनप्रीत हॉकी में करियर बनाएं।
एक बार इस युवा खिलाड़ी ने अपनी टीम को एक स्थानीय हॉकी प्रतियोगिता में जीत दिलाई थी, जिसमें सभी खिलाड़ियों को 500 रुपये मिले थे। बस ये इनाम काफ़ी था अब पूरी तरह से अपने सपने को आकार देने के लिए, क्योंकि उन्होंने इसके बाद अपनी मां को भी मना लिया था।
और फिर 13 साल की उम्र में उनका दाख़िला जालंधर के सुरजीत हॉकी ऐकेडमी में करा दिया गया।
मनप्रीत का खेल इतना शानदार था कि उन्हें इस ऐकेडमी से राष्ट्रीय जूनियर टीम में आने में महज़ 6 साल लगे। 2011 में मनप्रीत सिंह भारतीय जूनियर हॉकी टीम का हिस्सा बन गए थे।
मनप्रीत का दमदार प्रदर्शन
इस खिलाड़ी को 2013 मेंस हॉकी जूनियर वर्ल्ड कप से ठीक पहले भारतीय जूनियर टीम की कमान दे दी गई।
ऐसा लगा मानो मनप्रीत को इसी मौक़े का इंतज़ार था और उन्होंने 2013 सुल्तान ऑफ़ जोहोर कप में भारतीय युवा टीम को गोल्ड मेडल जिता दिया था। इसके बाद 2014 में एशियन हॉकी फेडरेशन ने उन्हें जूनियर प्लेयर ऑफ़ द ईयर के ख़िताब से भी नवाज़ा।
2014 में भारतीय हॉकी टीम का बेहद व्यस्त कार्यक्रम था, उसी साल हॉकी वर्ल्ड कप, कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स भी होना था। मनप्रीत सिंह ने इस दौरान ग्लैस्गो में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय हॉकी टीम को रजत पदक दिलाने में अहम योगदान दिया। फिर इचियोन में खेले गए एशियन गेम्स में भी वह स्वर्ण पदक विजेता टीम का हिस्सा रहे और इसी के साथ भारतीय हॉकी टीम ने रियो 2016 में भी अपना स्थान पक्का कर लिया था।
भारतीय टीम की संभाली कमान
सीनियर टीम के साथ समय बिताते हुए मनप्रीत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ते जा रहे थे। हाफ़-बैक के तौर पर खेलते हुए मनप्रीत विपक्षी टीम के डिफ़ेंस में तेज़ी से सेंध मारने के लिए पहचाने जाने लगे थे। उनकी इसी प्रतिभा और क़ाबिलियत ने मनप्रीत को एक ‘’ख़ास खिलाड़ी’’ बना दिया था।
अब लग रहा था कि मनप्रीत को कुछ बड़ा इनाम मिलने ही वाला है, और तभी अनुभवी पीआर श्रीजेश (PR Sreejesh) के घुटने में लगी चोट ने उन्हें एक नया मौक़ा दे दिया था।
पहले भी जूनियर टीम की कप्तानी कर चुके मनप्रीत सिंह को 2017 में भारतीय हॉकी टीम का नियमित कप्तान बना दिया गया था। उनकी कप्तानी में 2017 हॉकी वर्ल्ड लीग फ़ाइनल में टीम इंडिया को कांस्य पदक हासिल हुआ, और फिर 2018 FIH एशियन चैंपियंस ट्रॉफ़ी में ख़िताबी जीत के साथ मनप्रीत ने अपनी नेतृत्व क्षमता पर भी मुहर लगा दी।
जैसे जैसे वक़्त आगे बढ़ा, मनप्रीत ने कप्तान के तौर पर भी ख़ुद को साबित किया है। 2019 का सीज़न भारतीय हॉकी के लिए बेहद सफल रहा, जहां मनप्रीत सिंह की कप्तानी में टीम इंडिया ने रूस के ख़िलाफ़ ओलंपिक क्वालिफ़ायर्स में जीत के साथ टोक्यो ओलंपिक का टिकट भी हासिल कर लिया।
इसके बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम के कोच शोर्ड मारिन (Sjoerd Marijne) ने अनुभवी सरदार सिंह (Sardar Singh) को डिफ़ेंस में भेज दिया और मनप्रीत सिंह को मिडफ़ील्ड की ज़िम्मेदारी दी। इसे ऐसे भी देखा जा सकता है कि ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को ज़िम्मेदारी देने की शुरुआत थी।
जिसके बाद फ़र्स्ट पोस्ट से बात करते हुए उस वक़्त मनप्रीत सिंह ने कहा था कि, ‘’एक मिडफ़ील्डर के रूप में, मेरी भूमिका गेंद को आगे की तरफ ले जाने की थी। एशिया कप में मुझ पर कोई दबाव नहीं था। मैं इस स्विच के बारे में न ही सोचता हूं, और न ही कोई नकारात्मक बात सरदार के दिमाग़ में है। अगर देखा जाए तो ये स्विच वास्तव में टीम के लिए फायदेमंद था, यही वजह है कि हमने ऐसा किया।‘’
अपने स्वाभाविक आक्रामक प्रवृत्ति और लगभग असंभव से दिखने वाले गैप को ढूंड निकालने की क्षमता के साथ, भारतीय हॉकी कप्तान ने कई गेंदों को आगे बढ़ाया और भारतीय हॉकी टीम के सिर एशिया कप की जीत का सेहरा भी बांधा।
सीनियर और जूनियर खिलाड़ियों के बीच अच्छा तालमेल
भारतीय पुरुष हॉकी टीम के मुख्य कोच ग्राहम रीड (Graham Reid) के आने के बाद जिस तरह से युवा और जोशीले खिलाड़ियों के साथ टीम आगे बढ़ रही है। उसी तरह कप्तान मनप्रीत भी टीम के सभी खिलाड़ियों के साथ एक दोस्ताना और बड़े भाई जैसा किरदार निभाते हैं।
मनप्रीत सिंह सिर्फ़ एक कप्तान ही नहीं बल्कि भारतीय टीम के युवा खिलाड़ियों के लिए एक मेंटर की तरह भी हैं, वह लगातार खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करते रहते हैं और उनका मनोबल बढ़ाते हैं।
भारतीय हॉकी टीम में नए शामिल किए गए खिलाड़ी विवेक प्रसाद (Vivek Prasad) की बातों से भी आप समझ सकते हैं जो उन्होंने मनप्रीत के बारे में ओलंपिक चैनल से बातचीत में कही, ‘’वरिष्ठ खिलाड़ियों से बात करना आसान है जिससे जूनियर टीम आराम से परिवर्तन काल से गुज़र जाती है, जब मनप्रीत सिंह जैसा कोई आपका स्वागत करता है और आपको टीम का हिस्सा महसूस कराता है तो आपका आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है।‘’
ओलंपिक चैनल के साथ बातचीत में मनप्रीत सिंह ने भी इस बात को माना और कहा कि, ‘’एक चीज़ जो मुझे इन युवाओं में अच्छी लगती है वह है, सीखने की उनकी ललक।‘’
‘’मुझे लगता है कि यही वह चीज़ है जो मेरा काम आसान कर देती है, मैं जानता हूं कि साथी खिलाड़ी मुझसे काफ़ी उम्मीद रखते हैं और मुझसे सीखना भी चाहते हैं। साथ ही साथ मैं ये भी कोशिश करता हूं कि जब खिलाड़ियों का अच्छा दिन न हो तो उन्हें कैसे प्रोत्साहित किया जाए, और उनका मनोबल बढ़ाया जाए। ये एक खेल है, जहां कोई न कोई दिन ख़राब होना ही है, मेरी कोशिश रहती है कि मैं साथी खिलाड़ियों को उन हालातों से निपटने के लिए तैयार करूं।‘’
एक बात तो साफ़ है, भारतीय हॉकी का भविष्य सुरक्षित हाथों में है, जहां मनप्रीत सिंह जैसा शांत और योग्य लीडर मौजूद है। जिनके मज़बूत कंधों और तेज़ आंखों पर उम्मीद है कि एक बार फिर भारत का सुनहरा अतीत लौट कर आएगा।