भारतीय राज्य केरल में फ़ुटबॉल जीवन का एक तरीका है और सेवेंस फ़ुटबॉल इस क्षेत्र के खेल के प्रति अटूट प्रेम का केंद्र है।
तटीय राज्य में स्थानीय और सामुदायिक स्तरों पर खेले जाने के बावजूद इस रोमांचक खेल का छोटा संस्करण हाल ही में फ़ीफ़ा के ध्यान में आया और विश्व निकाय ने सेवेंस फ़ुटबॉल पर ध्यान केंद्रित किया, जिसे केरल सेवेंस या सिर्फ सेवेंस भी कहा जाता है। इस खेल पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी है जिसका नाम मैतानम है।
सेवेंस फ़ुटबॉल क्या है
फ़ुटबॉल के इस प्रारूप की प्रत्येक टीम में सात खिलाड़ी खेलते हैं। इस खेल में नियमित फ़ुटबॉल के नियमों का निश्चित तौर पर पालन नहीं किया जाता है। सेवेंस फ़ुटबॉल छोटे स्थानीय खेल के मैदानों पर खेला जाता है।
फ़ुटबॉल के इस प्रारूप में एक हाफ ज्यादातर 15 या 20 मिनट का होता है और इस खेल में रेफ़री भी सख्ती से पेश नहीं आते हैं और मुश्किल टैकल को अनदेखा भी कर देते हैं। खिलाड़ी अपनी ड्रिबलिंग कौशल से सेवेंस फ़ुटबॉल को और अधिक दिलचस्प बनाने का प्रयास करते हैं।
सेवेंस फ़ुटबॉल में हर मैच को काफी तेज़ गति से खेला जाता है, जो इस खेल को काफ़ी मनोरंजक बना देता है।
यही वजह है कि सेवेंस, केरल में बड़े पैमाने पर मनोरंजन का एक जरिया बन गया है, जिसमें परिवारों सहित सभी समुदाय अपनी स्थानीय टीमों का समर्थन करने के लिए आगे आते हैं। ज्यादातर, मैच हर दिन खेले जाते हैं, लेकिन शाम को प्रशंसकों को अपने दैनिक काम के बाद मैदान में आने का अधिक मौका मिलता है।
सेवेंस फ़ुटबॉल कब खेला जाता है
सेवेंस फ़ुटबॉल हर साल नवंबर से मई तक खेला जाता है। जून से अक्टूबर तक की अवधि को ऑफ़ सीज़न माना जाता है क्योंकि इस समय राज्य में मानसून का आगमन होता है।
पूरे राज्य में, विशेष रूप से उत्तरी और मध्य भागों में, सेवेंस फुटबॉल टूर्नामेंट अलग-अलग आकार में आयोजित किए जाते हैं। मलप्पुरम जिले को केरल में सेवेंस फ़ुटबॉल का हब माना जाता है।
सेवेंस फ़ुटबॉल - केरल की संस्कृति का एक हिस्सा
ईएसपीएन के अनुमान के मुताबिक, 'लगभग 600 टूर्नामेंट विभिन्न निकायों और क्लब संघों द्वारा आयोजित किए जाते हैं'। इनमें स्थानीय क्लबों के बीच टूर्नामेंट से लेकर राज्य भर के क्लबों के लिए बड़े पैसे वाले टूर्नामेंट शामिल हैं।
बड़े टूर्नामेंटों के लिए क्लबों के लिए अर्ध-पेशेवर विदेशी खिलाड़ियों को साइन करना आम बात है, जिसमें ज्यादातर पश्चिम अफ़्रीका के खिलाड़ी शामिल होते हैं। विदेशी खिलाड़ियों को प्रति मैच 30 से 80 अमेरिकी डॉलर के बीच भुगतान किया जाता है और वे एक टूर्नामेंट में कई टीमों के लिए खेल सकते हैं।
लगभग 50 से अधिक संगठित टूर्नामेंट सेवेंस फुटबॉल एसोसिएशन (SFA) द्वारा आयोजित किए जाते हैं।
सेवेंस के मैचों को देखने के लिए प्रशंसकों की संख्या में वृद्धि हुई है। कुछ बड़े टूर्नामेंटों के लिए, अस्थायी लकड़ी के स्टैंड खड़े किए जाते हैं, जो पूरी तरह से भर जाते हैं, जिससे मैच के दौरान अत्यधिक रोमांचक वातावरण बन जाता है।
सेवंस मैचों की ऊर्जा के कारण बड़ी तादाद में भीड़ उमड़ती है और मैच को जोश और जुनून के साथ देखा जाता है।
केरल में सेवेंस फ़ुटबॉल सिर्फ एक खेल से कहीं अधिक है, यह राज्य की संस्कृति से जुड़ा हुआ है। न केवल मैचों में बल्कि टीम निर्माण में भी पूरा समुदाय शामिल होता है। टीमों का एक बड़ा स्थानीय प्रतिनिधित्व होता है और खिलाड़ी अक्सर उन समुदायों के भीतर रहते हैं जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे यह एक बहुत ही व्यक्तिगत मामला बन जाता है।
आधुनिक समय के पेशेवर फ़ुटबॉल गेम के विपरीत, यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि आपका स्थानीय दुकानदार सेवेंस मैच में विजयी गोल कर रहा है या टूर्नामेंट जीतने वाली पेनल्टी बचाने के लिए आपके अगली गली का मछुआरा डाइव लगा रहा है।
सेवेंस फ़ुटबॉल केरल वासियों की संस्कृति, समुदाय और आजीविका में इस हद तक समा गया है कि नाइजीरिया से सूडानी नामक एक बहु-पुरस्कार विजेता मलयालम फिल्म भी इस खेल के ऊपर बन चुकी है।
युवा प्रतिभा के लिए आकर्षण का केंद्र
चोटों के अधिक जोखिम के कारण भारतीय राज्य और राष्ट्रीय महासंघ अक्सर खिलाड़ियों को सेवेंस फ़ुटबॉल खेलने से मना करते हैं। हालांकि, केरल के हर नुक्कड़ और कोने में सेवेंस फ़ुटबॉल मैदानों ने भारतीय राष्ट्रीय टीम को कुछ शानदार खिलाड़ी दिए हैं।
भारतीय फ़ुटबॉल दिग्गज आईएम विजयन भी सेवेंस फ़ुटबॉल को ही इस खेल के प्रति अपने प्यार को बढ़ावा दिए जाने का श्रेय देते हैं।
आईएम विजयन ने द हिंदू को बताया, "सेवेंस फ़ुटबॉल ने मुझे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैंने छोटी उम्र से ही सेवेंस टूर्नामेंट में खेलना शुरू किया था, और उसके बाद कभी नहीं रुका।"
अनस एडाथोडिका, आशिक कुरुनियान और सहल अब्दुल समद जैसे खिलाड़ियों ने भी पारंपरिक रूप से आगे बढ़ने से पहले सेवेंस फ़ुटबॉल खेलकर ही अपनी पहचान बनाई।
सेवेंस ने 2000 से 2014 की शुरुआत तक केरल फ़ुटबॉल को कठिन समय में बनाए रखने में मदद की। इस अवधि में विवा केरल और एफ़सी कोचीन जैसे कई पारंपरिक क्लब धन की कमी के कारण बंद हो गए।
इंडियन सुपर लीग क्लब केरल ब्लास्टर्स और आई-लीग टीम गोकुलम केरल के आगमन के साथ कई स्थानीय फ़ुटबॉलरों को बड़े स्तर पर और प्रशंसकों की भीड़ के सामने खेलने का अवसर दिया।