पीटी उषा का पूरा नाम पिलावुल्लाकांडी थेक्केपरम्बिल उषा है। उनके रिकॉर्ड के क़रीब आना भी एथलीटों के लिए बेहद मुश्किल है।
पीटी उषा का करियर तकरीबन दो दशक तक चला, इस दौरान उन्होंने दुनिया भर के ट्रैक पर अपनी छाप छोड़ी।
ट्रैक और फील्ड की भारतीय क्वीन का एशियाई खेलों में सफ़र सबसे बेहतरीन रहा है।
पय्योली एक्सप्रेस के नाम से मशहूर पीटी उषा ने एशियाई खेल में अपना लोहा मनवाया है। खासकर 80 के दशक में वह भारत में एथलेटिक्स की पोस्टर गर्ल हुआ करती थीं।
उन्होंने चार एशियाई खेल में हिस्सा लिया, जिसमें उन्होंने कुल 11 पदक जीते। उनके स्वर्णिम करियर की टाइमलाइन देखें।
एशियाई खेल 1982 – पीटी उषा ने दिखाई अपनी धमक
एशियाई खेल 1982 को भारतीय इतिहास में कई वजहों से बेहद अहम माना जाता है। जिसमें पीटी उषा की धमाकेदार एंट्री भी शामिल है।
खेल की तीन दशक बाद भारत में वापसी हुई और नई दिल्ली ने दूसरी बार इसकी मेज़बानी की।
तब तक पीटी उषा ओलंपियन बन चुकी थीं, क्योंकि महज 16 वर्ष की उम्र में वह 1980 में हुए मास्को ओलंपिक में अपना डेब्यू कर चुकी थीं।
खचाखच दर्शकों से भरे जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में पीटी उषा ने एशियाई खेल में अपना पहला पदक जीता।
18 वर्षीय उषा ने 100 मीटर स्प्रिंट में 11.95 सेकेंड के समय के साथ रजत पदक हासिल किया। वह सिर्फ़ फिलीपींस की लिडिया डी वेगा से पीछे रह गईं थीं, जिन्होंने 11.76 सेकेंड के साथ स्वर्ण पदक हासिल किया था।
पीटी उषा ने 200 मीटर की रेस में 24.32 सेकेंड का समय लेकर एक और रजत पदक अपने नाम किया। जापान की हिरोमी इसोजाकी ने 24.22 सेकेंड का समय लेकर स्वर्ण पदक जीतने में कामयाबी हासिल की।
भारत के तकनीकी विकास के साथ तालमेल बिठाते हुए भारतीयों ने पहली बार पीटी उषा को रंगीन टेलीविजन पर फर्राटा भरते और पदक जीतते देखा।
इस तरह 1982 के एशियाई खेल से पीटी उषा के शानदार करियर की शुरुआत हुई।
एशियाई खेल 1986 - गोल्डन गर्ल की स्वर्णिम दौड़
चैंपियनशिप में अपनी सभी व्यक्तिगत स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीता।
उनकी स्वर्णिम यात्रा दक्षिण कोरिया के सियोल में हुए एशियाई खेल 1986 में भी जारी रही।
पीटी उषा ने सियोल खेल में ट्रैक और फील्ड में रिकॉर्ड सबसे अधिक व्यक्तिगत पदक जीते, जिसमें चार स्वर्ण और एक रजत पदक शामिल था।
व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद उन्होंने महज दो घंटे के भीतर तीन रेस में हिस्सा लिया। पीटी उषा ने हर हीट और फ़ाइनल में अपना सबकुछ झोंक दिया।
पीटी उषा ने कहा, "मुझे अपने देश के लिए और पदक के लिए ये सब करना है। यह बहुत अधिक तनाव की बात नहीं है, सिवाय इसके कि मेरे पास एक रेस से पहले ठीक से वार्म अप करने का समय नहीं होगा, अगर मैंने अभी-अभी किसी अन्य इवेंट में भाग लिया है।"
पीटी उषा ने 200 मीटर, 400 मीटर, 400 मीटर हर्डल और 4x400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीतते हुए सभी स्पर्धाओं में एशियाई खेल का एक नया रिकॉर्ड बनाया था। शाइनी अब्राहम की जीत के साथ भारत ने 400 मीटर स्पर्धा में पोडियम पर पहला और दूसरा स्थान हासिल किया।
केरल की रनर को 100 मीटर में रजत पदक से संतोष करना पड़ा, क्योंकि लंबे समय से उनकी प्रतिद्वंदी रहीं लिडिया डी वेगा ने एशियाई खेलों में अपना ख़िताब बरक़रार रखा।
पीटी उषा सियोल में स्टार थीं, फैंस और अधिकारी उनके ऑटोग्राफ या उनकी एक झलक पाने के लिए लाइन में खड़े थे।
एशियाई खेल 1990 - संन्यास के बाद लौटीं पीटी उषा
1986 और 1990 के एशियाई खेल के बीच के वर्ष पीटी उषा के लिए उतार-चढ़ाव भरे रहे।
सियोल 1988 ओलंपिक के दौरान उनके टखने में चोट लग गई थी और वह फ़ाइनल में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकीं। लेकिन पीटी उषा ने 1989 की एशियाई चैंपियनशिप में वापसी की और चार स्वर्ण और दो रजत पदक जीते।
कुछ वर्षों बाद उन्होंने कहा, "एथलेटिक्स आसान नहीं है। जब आप 100 प्रतिशत प्रयास करते हैं तब यह शरीर के लिए बहुत कठिन होता है।"
हालांकि, पय्योली एक्सप्रेस ने 1990 में बीजिंग, चीन में हुए एशियाई खेल के लिए ट्रैक पर वापसी की।
चोट और उम्र को देखते हुए ऐसा माना जा रहा था कि पीटी उषा अपने चरम पर नहीं थी। लेकिन, उन्होंने 400 मीटर, 4x100 मीटर रिले और 4x400 मीटर रिले में तीन रजत पदक अपने नाम किए।
एशियाई खेल 1994 - पीटी उषा का अंतिम पदक
1994 के एशियाई खेल जापान के हिरोशिमा में हुए, जहां पीटी उषा ट्रैक एंड फील्ड की लीजेंड के रूप में पहुंची।
भारत की दिग्गज रनर ने जीवी धनलक्ष्मी, शाइनी विल्सन और कुट्टी सरम्मा के साथ 4x400 मीटर रिले में रजत पदक जीता, जिससे एशियाई खेल में उनके शानदार करियर का समापन हुआ। उन्होंने अपने इस यादगार सफर में कुल 11 पदक जीते थे, जिससे वह सबसे सफल भारतीय एथलीट बन गईं।
पीटी उषा ने एशियाई खेल 1998 में भी भाग लिया, लेकिन वह एक भी पदक नहीं जीत सकीं। 4x100 मीटर रिले में वह चौथे और 200 मीटर स्प्रिंट में छठे स्थान पर रहीं।