एथेंस 2004 में मधुबाला: भारत की मर्लिन मुनरो को ग्रीस का प्रेम पत्र 

एथेंस ओलंपिक के समापन समारोह में प्रसिद्ध भारतीय अभिनेत्री मधुबाला को समर्पित ग्रीक गीत मंडौबाला को पेश किया गया था। जानिए पूरी कहानी।

7 मिनटद्वारा मनोज तिवारी
Madhubala
(Shemaroo/ YouTube)

एथेंस 2004 ओलंपिक के समापन समारोह के दौरान लोकप्रिय ग्रीक गायक एंटोनिस रेमोस और एन्ना विसी ने ग्रीस के प्रतिष्ठित ओलंपिक स्टेडियम में एक लोकप्रिय ग्रीक गीत मंडौबाला के फुट-टैपिंग गायन को पेश करके हजारों लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था।

किसी भी भारतीय श्रोता के लिए इस गीत की भाषा भले ही 'ग्रीक' हो सकती थी, लेकिन इस गाने के पीछे जो भावनाएं थी वह बेहद स्पष्ट थीं। मंडौबाला यानी मधुबाला - भारत की मर्लिन मुनरो के लिए ये सच्ची श्रद्धांजलि है।

ग्रीक भाषा से अंग्रेजी में अनुवादित इस गीत के बोल कुछ इस तरह हैं। "मेरी प्रिय मोहब्बत। मैं चाहता हूं कि तुम दोबारा मेरे करीब आओ। जब से मैंने तुम्हें खोया है, मैं पिघल सा गया हूं। मैं दर्द में सिर्फ यही चिल्लाता हूं मंडौबाला, मंडौबाला, मंडौबाला (मधुबाला, मधुबाला, मधुबाला)"

सूदूर ग्रीस से आया ये गाना उस वक्त की सबसे प्रिय बॉलीवुड नायिकाओं में से एक मधुबाला के प्रेम गीत कैसे बन गया?

इसका जवाब बड़ा ही पेचीदा है, ये उसी तरह से काल्पनिक है जैसे झेलम के मनोरम तट पर सिकंदर महान की मुलाकात पोरस से हो रही हो। ये गीत भारत-यूनान के इतिहास का जीता जागता और सबसे प्रतिष्ठित रिकॉर्ड में से एक है

मधुबाला - भारतीय सिनेमा की वीनस, ग्रीस की एफ़्रोडाइट

1950 और 60 के दशक में भारत में पले-बढ़े किसी भी व्यक्ति से पूछने पर वे आपको बताएंगे कि मुमताज जहां बेगम देहलवी के रूप में जन्मी मधुबाला के प्यार में पड़ने से अपने आपको कोई भी रोक नहीं सकता था।

नरगिस के साथ मधुबाला 1950 और 60 के दशक में बॉलीवुड की प्रमुख नायिकाओं में से एक थीं और उन्होंने 70 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें मुगल-ए-आज़म, मिस्टर एंड मिसेज '55 और चलती का नाम गाड़ी जैसी कालजयी क्लासिक फिल्में शामिल हैं। मधुबाला की असमय मौत महज 36 साल की उम्र में हो गयी थी।

मधुबाला की सुंदरता अलौकिक थी और वह एक शानदार अभिनेत्री थीं। यूं कहें कि मधुबाला भारत में प्यार और सुंदरता का पर्याय थीं और अब भी हैं। उन्हें भारतीय सिनेमा का वीनस कहा गया। वीनस प्रेम और सुंदरता की रोमन देवी थीं, जो ग्रीक की देवी एफ़्रोडाइट के समकक्ष मानी जाती थीं।

भारत की तरह ग्रीस ने भी मधुबाला में अपना एफ़्रोडाइट पाया।

ग्रीस और भारत - भौगोलिक खाई, जिसे मधुबाला पाट देती थीं

मधुबाला के लिए ग्रीस में जो प्यार उमड़ा था, उसकी वजह 50 और 60 के दशक के दौरान ग्रीस का मजदूर वर्ग था। उस जमाने में उन मजदूरों के बीच भारतीय सिनेमा की एक अलग ही जगह थी, जो उस समय दोनों देशों के बीच सामाजिक समानता के कारण हुआ था।

प्रथम विश्व युद्ध के बाद ओटोमन साम्राज्य के विभाजन के दौरान ग्रीस ने 1919 और 1922 के बीच ग्रीक-तुर्की युद्ध के बाद शरणार्थियों का सैलाब देखा था। इसके तुरंत बाद ग्रीस द्वितीय विश्व युद्ध से घिर गया और उसके बाद इस देश में खूनी गृहयुद्ध हुआ।

उथल-पुथल वाले दौर के चलते ग्रीस आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिए पर चला गया, जिसके चलते वहां ब्लू-कॉलर मजदूर वर्ग का चलन पनप गया। जो ज्यादातर एथेंस और थेसालोनिकी जैसे शहरों के बाहरी इलाके में झुग्गियों में रहते थे।

इस वर्ग में शरणार्थियों के परिवार शामिल थे, जो साल 1922 के बाद अपने जीवन को पटरी पर लाने और एक नए देश में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे।

यह आंदोलन संगीत और सिनेमा जैसे सांस्कृतिक वाद्ययंत्रों तक भी फैल गया। जिसमें संगीत की एक नई शैली का जन्म हुआ, जिसे रेम्बेटिको कहा जाता था, जो बाद में ग्रीस के लाइको में आधुनिक पॉप संगीत के रूप में विकसित हुआ।

संगीत और कला विशेषज्ञ नैट राबे ने स्क्रॉल के लिए अपने संपादकीय में समझाते हुए बताया।

"शरणार्थियों ने अरबन ब्लूज की एक नई शैली में गाने गाए, जिसे रेम्बेटिको कहा जाता है, इसे बौज़ौकी और त्ज़ोरस जैसे प्राच्य वाद्ययंत्रों पर बजाया जाता था। इन गानों अन्याय, लालसा, लत और बेहतर भविष्य की आशा की कहानियां गाई और सुनाई जाती थीं।"

"मध्यम वर्ग ने शरणार्थियों और उनके संगीत को खारिज कर दिया, लेकिन कई गायकों ने इन गानों को शहरों में गाकर इन्हें राष्ट्रीय स्तर की लोकप्रियता दिला दी। 1950 के दशक तक आते-आते यही ब्लूज रॉक एंड रोल में रूपांतरित हो गये। ग्रीस का पॉप संगीत रेम्बेटिको पूरी तरह से लाइको में बदल गया था।”

दोनों देशों की स्थिति एक जैसी थी।

भारतवासियों को अंग्रेजों से साल 1947 में आजादी मिली और उसके कुछ ही दिन बाद भारत-पाक के खूनी बंटवारे ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला, लोग दोबारा से राष्ट्र निर्माण में लगे हुए थे।

सिनेमा को समाज का दर्पण माना जाता है, बॉलीवुड में उस दौर में श्री 420, नया दौर और मदर इंडिया जैसी फिल्मों ने भारतीय राजनीतिक और सामाजिक बदलाव को पर्दे पर उतारा था।

उस दौर में अंतरराष्ट्रीय स्तर की फिल्मों की तुलना में ग्रीक फिल्मी कारोबारियों के लिए बॉलीवुड फिल्मों को खरीदना बेहद सस्ता हुआ करता था। भाषाई अनभिज्ञता और खराब सबटाइटल के बावजूद भी हिंदी सिनेमा ने ग्रीस के हाशिए पर रहने वाले लोगों के साथ तालमेल बिठाया, जिन्होंने इन फिल्मों के जरिए अपने निर्वासन और प्रवास के दुख, दर्द और संघर्षों को महसूस किया।

मैनुअल टासोलस के साथ सह-लेखक ग्रीक शिक्षाविद् हेलेन अबादज़ी ने अपनी पुस्तक द रेवेलेशन ऑफ हिंदी-स्टाइल सॉन्ग्स इन ग्रीस में लिखते हैं-

“हिंदी भाषा की फिल्में प्रथम और द्वितीय श्रेणी थिएटरों में प्रसारित होती थीं। दो दशकों तक ग्रीस में भारतीय फिल्में खूब देखी गयीं और उनका प्रभाव उस समय के लोकप्रिय संगीत में भी देखा जाता था।”

हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता ने उस समय ग्रीस में मधुबाला और नरगिस जैसे सितारों को हर घर में पहुंचा दिया था।

मंडौबाला गीत की उत्पत्ति 

बहुत सारे रेम्बेटिको गाने बॉलीवुड फिल्मों के गीतों से प्रेरित थे, जिनके बोल लोकल ग्रीक संवेदनाओं से ओतप्रोत थे और वहीं के वाद्ययंत्रों और फ्लेवर से प्रभावित थे।

मंडौबाला मूल रूप से साल 1959 में स्टेलियोस काज़ांत्ज़िडिस द्वारा गाया गया था, जो उस समय भारत-यूनानी भावनाओं के संगम से निकला था।

काज़ांत्ज़िडिस जिन्हें ग्रीस में लाइको संगीत का जनक माना जाता है, उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से अलगाव के दर्द को लोगों तक पहुंचाया। मंडौबाला गीत को काज़ांत्ज़िडिस के सर्वश्रेष्ठ गीतों में गिना जाता था।

गार्जियन ने काज़ांत्ज़िडिस के लिए अपने शोक लेख में लिखा-

"होमर यूलिसिस के दिनों से लेकर स्टेलियोस काज़ांत्ज़िडिस (जिनकी 70 वर्ष की उम्र में कैंसर से मौत हो गयी) के समकालीन गीतों तक यूनानियों ने निर्वासन और पलायन के दर्द को कला में बदल दिया। ग्रीक संगीत के समृद्ध टेपेस्ट्री में काज़ांत्ज़िडिस को इकलौता सवार माना जाता था।"

"उनकी उपलब्धि अकेले ही उस अविरल सामाजिक और भावनात्मक उथल-पुथल को व्यक्त करता है, जो यूनानियों ने द्वितीय विश्व युद्ध और अपने गृह युद्ध के बाद झेला था।"

इस बात पर बहस छिड़ी थी कि क्या काज़ांत्ज़िडिस ने खुद या एक महिला शरणार्थी गीतकार एफ्तिहिस पपायियानोपोलू ने दिल दहला देने वाला गीत लिखा था।

गाने में गायक अपने खोए हुए प्यार 'मंडौबाला' को वापस लौटने की गुहार लगाता है। ऐसा माना जाता है कि पपीयानोपोलू की बेटी का नाम मंडौबाला था और उसकी मौत के बाद ये गीत लिखा गया था।

महान ग्रीक संगीतकार थियोडोरोस डर्वेनियोटिस ने रेम्बेटिको गीत के लिए संगीत की व्यवस्था की थी, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे आवारा फिल्म के पुराने बॉलीवुड क्लासिक 'आ जाओ तड़पते हैं अरमान' से बहुत कुछ पता चला था। दिलचस्प बात यह है कि आवारा ने मधुबाला को ही नहीं बल्कि उनकी सह अदाकारा नरगिस को भी स्टार बना दिया था।

मंडौबाला महज एक गाना ही नहीं था। ये ग्रीस में एक सांस्कृतिक घटना थी और जिसका 100,000 से भी अधिक रिकॉर्ड बिका था, जो उस वक्त अपने आप में एक रिकॉर्ड था। उस समय ग्रीस की आबादी लगभग 7.5 मिलियन थी।

गीत की सफलता ने स्टेलियोस काज़ांत्ज़िडिस को 'द रिटर्न ऑफ मंडौबाला' नामक एक फॉलो-अप गीत भी जारी करने के लिए प्रेरित किया।

खेल, सिनेमा और संगीत ये तीनों, निजी तौर पर सीमाओं को पिघलाने की शक्ति रखते हैं, चाहे सीमा भाषाई, राजनीतिक, सामाजिक या भौगोलिक ही क्यों न हो।

एथेंस 2004 के समापन समारोह में मंडौबाला का गायन उन दुर्लभ उदाहरणों में से एक था, जो सभी तीन लोकप्रिय माध्यमों के जरिए लोगों में प्यार और सहानुभूति का संदेश फैलाने का काम एक साथ किया था।

एथेंस में ओलंपिक स्टेडियम से बेहतर इसके लिए कोई और शानदार मंच नहीं हो सकता था। एथेंस को ओलंपिक खेलों का मूल या यूं कहें आध्यात्मिक घर माना जाता है। साल 1896 में हुए पहले ओलंपिक खेलों के बाद यहां पहली बार ग्रीष्मकालीन खेलों की वापसी हो रही थी।