लॉकडाउन के समय एमसी मैरी कॉम (MC Mary Kom) के कोच छोटे लाल यादव (Chotelal Yadav) के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि कैसे वह 37 साल की उम्र में इस बॉक्सर को प्रेरित कर सकें। इस कोच को लगता है कि अगर अन्य भारतीय बॉक्सर्स से तुलना करें तो मैरी कॉम कहीं ज्यादा मेहनती हैं।
कोच छोटे लाल यादव महिला मुक्केबाजों को घरों में अपने पैर की उंगलियों पर सीमित रखने के लिए एक ऑनलाइन शेड्यूल बना रहे हैं, लेकिन भारतीय दिग्गज इससे बाहर खड़ी हैं।
चार साल से मैरी कॉम को कोचिंग दे रहे छोटे लाल यादव ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि “मैं युवा बॉक्सर्स का हर सेशन ध्यान से देखता हूं लेकिन मैरी के लिए ये मुश्किल है। मैं बस उन्हें कुछ प्लान देता हूं और वह उस पर काम करती हैं।”
इसके अलावा उन्होंने कहा कि “शायद उनकी उम्र ज्यादा हो गई हो लेकिन वह आज भी सबसे डेडिकेटेड बॉक्सर्स में से एक हैं और सिर्फ डेडिकेशन की ही बात क्यों करे, वह तो कई युवा खिलाड़ियों से भी तेज हैं।”
उम्र की बाधा को पार करने की कला
मैरी कॉम ने इस साल मार्च में ही अपने आखिरी ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया है। एशियाई क्वालीफायर के क्वार्टर फाइनल में सर्वसम्मत निर्णय से फिलीपींस के आयरिश मैग्नो (Irish Magno) को हराते हुए उन्होंने टोक्यो का टिकट कटा लिया।
हालांकि टोक्यो ओलंपिक को एक साल के लिए टाल दिया गया है, जिससे मणिपुर की इस बॉक्सर की चिंता बढ़ गई है। लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के 9 साल बाद 38 साल की उम्र में मैरी टोक्यो ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी। लेकिन उनके कोच को मानना है कि मानसिक तौर पर मजबूत खिलाड़ियों के लिए उम्र की बात मुश्किल नहीं होती।
छोटे लाल यादव ने बताया कि "उम्र का टोक्यो में मैरी के अवसरों से कोई लेना-देना नहीं है। आपको हर दिन उनके जैसे एथलीट देखने को नहीं मिलते हैं।"
ईएसपीएन से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि “जैसे-जैसे आप बड़े होते जाते हैं, आपको और समझदारी से बॉक्सिंग करनी होती है। पिछले कुछ सालों से हम केवल तकनीकी रूप से तेज होने पर ही काम कर रहे हैं।”
आंसू और चुपचाप खुशी का इजहार करना समर्पण का संकेत
छह बार की विश्व चैंपियन और पांच बार की एशियाई चैंपियन कई अन्य उपलब्धि हासिल करने वाली एमसी मैरी कॉम, कभी भी तारीफ सुनकर आराम से नहीं बैठती और ना ही मुश्किल वक्त में वह खुद को कमजोर होने देती हैं।
वहीं उनके कोच छोटे लाल को लगता है कि आत्म-सुधार ही इस खिलाड़ी की सबसे बड़ी ताकत है और इसी के कारण वह इतने सालों तक सफल होती रहीं। उन्होंने कहा कि "मुझे याद है साल 2016 में मैरी रियो क्वालिफाइंग मीट ऑफ़ चाइना के सेमीफाइनल में हार गई थी। वह बाउट के बाद बहुत रोईं थीं। जिस तरह से वह रोईं थी, मुझे लगा था कि मैरी बॉक्सिंग छोड़ देंगी, लेकिन अगले दिन सुबह 6 बजे उन्होंने मेरा दरवाजा खटखटाया और कहा मैं ट्रेनिंग के लिए तैयार हूं।”
मैरीकॉम ने 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स अभियान में भारत के मुक्केबाजी दल का नेतृत्व किया, जहां उन्होंने 48 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीता था।
कोच ने कहा कि, ‘’कुछ एथलीट बड़ी जीत हासिल करने के बाद जश्न मनाते हैं और कुछ दिन का ब्रेक लेते हैं लेकिन मैरी के साथ ऐसा नहीं है कॉमनवेल्थ में गोल्ड जीतने के बाद भी मैं अगले दिन सुबह 6 बजे तैयार था क्योंकि मुझे पता था कि हमेशा की तरह ये चैंपियन खिलाड़ी ट्रेनिंग के लिए हाज़िर होगी।’’