टोक्यो 2020 के लिए अब 100 दिन: भास्करन मानते हैं कि कोरोना ने सब कुछ बराबर कर दिया और भारत गोल्ड जीत सकता है।

मोस्को 1980 भारतीय हॉकी टीम के कप्तान वी भास्करन का मानना है कि टोक्यो 2020 में भारत अपने मेडल के रिकॉर्ड को बेहतर कर सकता है। वहीं स्टार लॉन्ग जंपर अंजू बोबी जॉर्ज को लगता है कि कम स्पर्धाएं होने की वजह से एथलीटों को ज़्यादा मुश्किल होगी।

4 मिनटद्वारा जतिन ऋषि राज
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(2021 Getty Images)

अब जब टोक्यो ओलंपिक गेम्स को 100 दिन रह गए हैं तो ऐसे में तैयारियां भी अपने चरम पर हैं।

कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप ने सभी की ज़िन्दगी मुश्किल में थी, चाहे वह एथलीट हों या कोच या फिर अथॉरिटी और ऐसे में टोक्यो 2020 को 2021 तक स्थगित कर देना ही सही फैसला था।

भारतीय ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता हॉकी टीम के कप्तान वासुदेवन भास्करन (Vasudevan Baskaran) का मानना है कि भारत इस चुनौती के लिए तैयार है।

ओलंपिक चैनल से बात करते हुए भास्करन ने कहा “अगर विश्व में नहीं तो कम से कम एशियन देशों में भारत की तैयारी सबसे ज़्यादा अच्छी है।

“हम गेम्स में 125 एथलीटों से ज़्यादा उम्मीदें कर रहे हैं। और सबसे अच्छी बात यह है कि हम अलग अलग खेलों में मेडल जीतने पर ज़्यादा उम्मीद लगा रहे हैं। अभी तक हर ओलंपिक गेम्स में हमारी मेडल जीतने की संख्या हमेशा सिंगल डिजिट में रही है। इस बात मुझे लगता है कि हम इसे डबल डिजिट तक ले जा सकते हैं। मैं इसकी उम्मीद कर रहा हूं।

“आर्चरी का खेमा अच्छा जा रहा है और शूटर भी अप टू द मार्क हैं। बैडमिंटन से हमेशा ही उम्मीद होती है और साथ ही रेसलिंग और मेंस हॉकी टीम भी इसमें शामिल है। मेरी उम्मीद टेबल टेनिस मिक्स्ड डबल्स से भी है।”

अब जब समर गेम्स को एक साल से स्थगित कर दिया गया है तो ऐसे में यह सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या हमारे एथलीट एक बार दोबारा अपना स्तर बढ़ा पाएंगे?

हालांकि वासुदेवन भास्करन जिन्होंने भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी करते हुए 1980 मोस्को ओलंपिक में गोल्ड मेडल जितवाया था वह इस समस्या को ज़्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं।

बातचीत को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा “अगर गेम्स नवंबर-दिसंबर में होते तो ज़्यादा मुश्किल हो जाता। अब सभी के पास खुद को बेहतर करने का एक साल था।”

कोरोना एक ऐसी चीज़ है जिसने पूरे विश्व में सभी को घात पहुंचाया है, यह केवल भारत का दुनिया के गिने चुने देशों में नहीं है। बल्कि हमने इस स्थिति को बेहतर संभाला है।

इसी बीच वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप (World Athletics Championships) में मेडल जीतने वाली एकलौती भारतीय एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज (Anju Bobby George) का मानना है कि कम प्रतियोगिताएं होने की वजह से एथलीटों को मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।

ओलंपिक चैनल से बात करते हुए “मेरे ख्याल से जब आपके पास एक पूरा साल ऐसा हो तो पीक पर आना मुश्किल होता है। लेकिन ज़्यादातर एथलीट प्रतियोगिताओं के समय पर ऊपर जाते हैं। इसमें 50 प्रतिशत एपीआई ट्रेनिंग होती है और बाकी वह कि आप कैसे स्पर्धा में जाते हैं। यह मेरी चिंता का सबब है।

“खिलाड़ी सही से ट्रेनिंग कर रहे हैं, लेकिन डाउट उन प्रतियोगिताओं पर हैं जो उन्हें गेम्स से पहले पीक पर आने के लिए चाहिए। यह मुश्किल है यकीन एथलीटों को अब इससे निपटना ही होगा। हम ऐसी स्थिति में भी आ सकते हैं जहां एथलीट सीधा ही गेम्स में जाएं।”

महामारी को मद्देनज़र रखते हुए टोक्यो गेम्स में कोई भी विदेशी दर्शक शामिल नहीं होंगे।

वासुदेवन भास्करन ने अलफ़ाज़ साझा करते हुए आगे कहा “मेरे ख्याल से गेम्स की आयोजक समिति ने निर्णय सही किया है कि वह विदेशी दर्शकों को नहीं बुलाएंगे।”

“अब आपके पास 10,000-11,000 और कुछ सौ ऑफिसियल होंगे। हाँ, कुछ मायनों में यह सही है। लेकिन खिलाड़ियों को इस स्थिति में खुशी होगी। कोरोना वायरस एक ऐसी बीमारी है जो फिट खिलाड़ी को भी घात पहुंचा सकती है। हमे बहुत ज़्यादा ध्यान रखना होगा।”

वहीं अंजू बॉबी जॉर्ज का यह भी मानना है कि ऐसी स्थिति में भारतीय एथलीट चमक भी सकते हैं।

संजू ने समझाते हुए कहा “मुझे लगता है कि यूरोप और यूएसए के खिलाड़ियों पर इसका सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ा है। हमारे खिलाड़ी इस परिस्थिति से रूबरू हो चुके हैं क्योंकि हमारी डोमेस्टिक मीट खाली स्टैंड्स में ही हुई हैं।”

एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की उपाध्याश, अंजू बॉबी जॉर्ज ने आगे कहा “अगर आप वेस्ट की बात करें तो वहां स्टेडियम ज़्यादातर भरे हुए होते हैं। तो ऐसे में जो खिलाड़ी वहां से आ रहे हैं उन पर इसका ज़्यादा प्रभाव पड़ेगा। मुझे नहीं पता कि उन खिलाड़ियों ने ऐसा पहले कभी अनुभव किया है या नहीं। और हम इससे अच्छे से परिचित हैं।

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