एक सदी से भी अधिक समय से, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ने हमें समाज में बदलाव लाने वाली महिलाओं के परिवर्तन करने वालों का जश्न मनाने का एक अवसर चिह्नित किया है, जिन्होंने दुनिया भर में महिलाओं के अच्छे कामों का जश्न मनाने का मौका दिया है।
वहीं, कुछ महिलाओं ने सामने न आते हुए चुपचाप परिवर्तन लाने के लिए लड़ाई लड़ी है। उन्हीं में से एक युवा खिलाड़ी गुलफ्शा अंसारी भी हैं, जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ के दुनिया में बदलाव लाने का जिम्मा उठाया है।
गुलफ्शा अंसारी भारत की पूर्व अंडर-15 फ़ुटबॉल खिलाड़ी हैं और अब वो एक एक्टिविस्ट और लाइसेंस प्राप्त फ़ुटबॉल कोच हैं।
वह मुंबई के धारावी में एक छोटे घर में रहती थीं, जिसे दुनिया के सबसे बड़े स्लम में से एक माना जाता है। उन्होंने 14 साल की उम्र में लड़कियों के खेलने के अधिकारों के लिए अपनी लड़ाई शुरू की।
गुलफ्शा अंसारी ने Olympics.com से बात करते हुए कहा, “मैं एक ऐसे इलाके में रहती थी, जहां एक लड़की के रूप में बड़े होने का मतलब था कि हमें एक अलग तरह की चुनौती का सामना करना पड़ा, जिसका सामना दूसरों ने शायद ही किया हो। कुछ लड़कियां तो ख़ुद के बारे में सोच भी नहीं पाती हैं।”
फ़ुटबॉल के ज़रिए अपने इलाके में लड़कियों की मदद करने की सोच से उन्होंने लोगों की काफी प्रशंसा हासिल की। इसकी वजह से उन्हें 2010 फीफा विश्व कप और लंदन 2012 ओलंपिक के लिए जूनियर एंबेसडर के रूप में दक्षिण अफ्रीका जैसी जगहों पर जाने का मौका मिला।
वह जहां से ताल्लुक रखती हैं, उनके लिए वहां से यहां तक पहुंचना बहुत बड़ी बात थी। धारावी में, लड़कियों के लिए इनडोर गेम्स ही एकमात्र खेल था। उनके पार बाहर जाने के लिए कोई वजह नहीं होती थी। गुलफ्शा अंसारी ने बीते दिनों को याद करते हुए कहा, "तो सभी लड़कियां एक घर में इकट्ठा हुईं और वहीं से इसकी शुरुआत हुई।"
“धारावी दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है। हमारे इलाके की कुछ खुली जगहों पर भी हमेशा लड़के ही नज़र आते थे।” युवा लड़कियों के माता-पिता के लिए यह एक चिंता का विषय था।
गुलफ्शा ने चीजों को बदलने की ठान ली। उनके सामने कई चुनौतियां थीं और कोई फंडिंग भी नहीं थी, लेकिन वह रुकी नहीं।
गुलफ्शा ने कहा, “मेरी मां मुझे सुरक्षित रखना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने मुझे कभी भी जंजीरों में नहीं बांधा, तो एक दिन मैंने मन ही मन सोचा 'क्या होगा अगर मैं एक फ़ुटबॉल प्रोग्राम शुरू करूं, जहां लड़कियां सप्ताह में सिर्फ एक बार घर से बाहर कदम रख सकें, और मैं उनकी सुरक्षा का जिम्मा संभालूं?"
गुलफ्शा ने कहा, “इस तरह ड्रीमिंग इन स्लम्स का विचार आया और मेरा कोचिंग करियर शुरू हुआ।”
साल 2011 में 14 वर्षीय गुलफ्शा अंसारी ने कुछ बच्चों के माता-पिता को राज़ी कर लिया और लगभग छह लड़कियों को साप्ताहिक प्रोग्राम में शामिल कर लिया। आज के समय में गुलफ्शा अपनी ड्रीमिंग इन स्लम्स पहल के ज़रिए से आर्थिक रूप से कमज़ोर पृष्ठभूमि की 100 से अधिक लड़कियों के जीवन में बदलाव लाने का काम कर चुकी हैं। वह उन्हें बेहतर से बेहतर फ़ुटबॉल कोचिंग देने का प्रयास करती हैं।
"यह उन दिनों बहुत ही कम पैसों के साथ शुरू हुआ। आज हम सिंगल मदर्स की उन बेटियों को शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं जो हाउसकीपिंग का काम करती हैं, हालांकि वह नहीं चाहती हैं कि उनकी बेटियां ऐसा करें। तो मेरा इरादा उन्हें लीडर और रोल मॉडल बनाने का है, क्योंकि सभी आगे चलकर पेशेवर फ़ुटबॉल खिलाड़ी नहीं बन सकती हैं।”
गुलफ्शा ने कहा कि मेरा इरादा इन लड़कियों को न केवल फ़ुटबॉल के लिए प्रशिक्षित करना था, बल्कि उन्हें वास्तविक दुनिया की लड़ाई के लिए भी तैयार करना था।
गुलफ्शा अंसारी ने बताया, "लीडरशिप प्रोग्राम के ज़रिए हम लड़कियों को कुछ नया और उनकी कल्पनाओं के प्रोजेक्ट के साथ आगे आने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे वो समाज में अपना कुछ योगदान कर सकें।"
“हम फोटोग्राफी भी सिखाते हैं - यह एक ऐसी स्किल है, जो उन्हें सिर्फ खेल ही नहीं बल्कि किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद कर सकता है। स्कॉलरशिप के माध्यम से, हम लड़कियों को प्रशिक्षित करते हैं और कोचिंग लाइसेंस और अन्य चीज़ो को कैसे हासिल करें, इन सभी जानकारियों को हासिल करने में उनकी मदद भी करते हैं।
हाल ही में जर्मनी में स्पोर्ट्स मैनेजमेंट प्रोग्राम से ग्रेजुएशन करने वाली गुलफ्शा ने कहा, "हम इसे फ़ुटबॉल के ज़रिए संभव बनाते हैं, लेकिन यह निश्चित रूप से सिर्फ फ़ुटबॉल के बारे में नहीं है।"
लंदन 2012 ओलंपिक में बनीं जूनियर एंबेसडर
गुलफ्शा की ड्रीमिंग इन स्लम्स पहल ने उन्हें लंदन 2012 ओलंपिक का टिकट दिलाया। धारावी की एक 15 वर्षीय लड़की को लंदन में जूनियर एम्बेसडर के रूप में चुने जाने की ख़बर ने इंटरनेट पर धूम मचा दी और गुलफ्शा रातोंरात सेलिब्रिटी बन गईं।
गुलफ्शा ने कहा, "मैं सच में बहुत उत्साहित हो गई थी, क्योंकि लंदन मेरे सपनों की जगह थी। मुझे यह भी नहीं पता था कि यह कितना बड़ा था। जब मैंने वहां ऐसे लोगों को देखा, जिन्हें मैं नहीं जानती थी कि वो मेरे लिए चीयर कर रहे हैं, तो यह व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए एक बड़ी सफलता के जैसा था।”
गुलफ्शा अंसारी को लंदन 2012 ओलंपिक के लिए पूर्व अमेरिकी महिला फ़ुटबॉल खिलाड़ी जूली फोडी के लीडरशिप प्रोग्राम के ज़रिए मदद मिली थी। जूली फूडी दो बार की फ़ीफ़ा महिला विश्व कप चैंपियन और दो बार की ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता हैं।
"मैंने लंदन के ओलंपिक स्टेडियम से उसेन बोल्ट को ट्रैक पर दौड़ते हुए देखा और साथ ही वॉलीबॉल व फ़ुटबॉल मैच भी देखे। उन पलों को मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगी।”
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मैसेज
गुलफ्शा अंसारी को लगता है कि भले ही मुंबई जैसे शहरों में महिलाओं को अच्छे मौके मिल रहे हैं लेकिन भारत और दुनिया भर में अभी सुधार की काफी गुंजाइश है।
“महिला दिवस पर महिलाओं के लिए मेरा संदेश यह है कि वे सपने देखना जारी रखें। इसके साथ ही उन लड़कियों को आगे बढ़ाना भी याद रखें, जिन्हें मदद की ज़रूरत है। दुनिया का मुकाबला करने का साहस रखने वाली महिलाओं के प्रयासों के बिना महिला अधिकारों का आंदोलन बहुत अधिक मज़बूत नहीं रहेगा।”
प्रशासन में बैठे लोगों के लिए, गुलफ्शा ने कहा: “जब हम ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी सफलता की कहानियां देख रहे हैं, तो सत्ता में रहने वालों के लिए मेरा संदेश यह होगा कि हमें यह सुनिश्चित करने के लिए नीतियां बनाने की आवश्यकता है जिससे लड़कियों की वर्तमान पीढ़ी भी आगे बढ़ती रहे।
लड़कियों को उचित मंच उपलब्ध कराए जाने चाहिए ताकि जो लड़कियां शारीरिक गतिविधियों में भाग नहीं लेती हैं, वे इससे मुंह मोड़ने की बजाय इसका हिस्सा बन सकें।”