खेल की दुनिया में पिता-पुत्र की मशहूर जोड़ियां: सचिन तेंदुलकर से लेकर लिलियन थुरम तक हैं सूची में शामिल
अर्जुन-सचिन से लेकर मार्कस-लिलियन तक खेलों में पिता-पुत्र की कई ऐसी जोड़ियां हैं जिन्होंने विभिन्न स्तरों पर सफलता की मिसाल क़ायम की है। देखें पूरी सूची।
'जैसा पिता वैसा पुत्र' - यह कहावत कई मामलों में जीवन के सभी क्षेत्रों में स्पष्ट दिखाई देती है और खेल की दुनिया भी इससे अलग और अछूती नहीं है।
वर्षों से, प्रसिद्ध एथलीटों के बेटों ने खेल के क्षेत्र में अपने ख्याति प्राप्त पिताओं का अनुकरण करने की कोशिश की है। हालांकि, कुछ ऐसे भी हैं जो कभी न खत्म होने वाली तुलनाओं का सामना करते हैं और अपने पिता की छवि के मुताबिक़ प्रदर्शन करने के लिए संघर्ष करते हैं। लेकिन, इनमें से कुछ समय की कसौटी पर खरे उतरते हुए अपने पिता से भी आगे निकल चुके हैं और उनसे भी बड़ा नाम बना चुके हैं।
खेल की दुनिया में पिता-पुत्र की जोड़ी एक दिलचस्प कहानी का नमूना पेश करती है, जिसे उनके प्रशंसक सुनने और देखने के लिए हमेशा उत्सुक रहते हैं। लेकिन, एक बड़ी बात यह भी है हर खेल-प्रेमी सफल और मशहूर खिलाड़ियों के बेटे में उनकी छवि को तलाशने की कोशिश भी करता है।
सबसे पहले बात क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर की जिनका कद और रिकॉर्ड दोनों ही खेल की दुनिया में एक मिसाल है। हाल ही में, अर्जुन तेंदुलकर ने अपने पिता सचिन तेंदुलकर के नक़्शेक़दम पर चलते हुए ख़ूब सुर्खियां बटोरीं, जो यक़ीनन दुनिया के सबसे महान बल्लेबाज़ थे। उन्होंने फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट में पदार्पण करते हुए शतकीय पारी खेली थी।
सचिन ने अपना पहला फ़र्स्ट क्लास शतक बॉम्बे (अब मुंबई) के लिए बनाया था, जब वह सिर्फ 15 वर्ष के थे। जबकि, 23 वर्षीय अर्जुन ने 2022 रणजी ट्रॉफ़ी में गोवा की ओर से खेलते हुए राजस्थान के ख़िलाफ़ अपना पहला शतक बनाया।
अर्जुन के शतक के बाद गर्व से भरे सचिन तेंदुलकर ने कहा था, 'क्रिकेटर का बेटा होना इतना आसान नहीं है और जब मैंने संन्यास लिया तब मीडिया से भी कहा था कि अर्जुन को क्रिकेट से प्यार होने दीजिए और उसे वह मौक़ा दिया जाए जो उसे मिलना चाहिए।'
क़तर में संपन्न हुए फ़ीफ़ा विश्व कप 2022 में, पिता-पुत्र की जोड़ी की एक और कहानी सामने आई, जब अर्जेंटीना के ख़िलाफ़ फ़ाइनल मुक़ाबले में फ़्रांस की ओर से मार्कस थुरम मैदान पर उतरे।
दिलचस्प बात यह है कि उनके पिता लिलियन थुरम ने 1998 की विश्व कप जीत में फ़्रांस की मदद की थी। मार्कर थुरम भी फ़्रांस की ओर से खेल रहे हैं। हालांकि, मार्कस विजेता के रूप में अपनी टीम के साथ मैदान से बाहर नहीं आ सके। लेकिन, यह पिता और पुत्र दोनों का फ़ुटबॉल विश्व कप के फ़ाइनल में पहुंचने का पहला उदाहरण था।
टाइगर वुड्स का नाम भी इस सूची में शुमार हैं, जिन्हें फ़िलहाल दुनिया में सबसे बेहतरीन गोल्फ़रों में से एक माना जाता है। उन्होंने हाल ही में अपने 13 वर्षीय बेटे चार्ली वुड्स के साथ PNC चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था।
खेलों की दुनिया में पिता-पुत्र की जोड़ी और उनकी सफलता के और भी कई शानदार उदाहरण हैं।
भारतीय लॉन्ग जंपर मुरली श्रीशंकर अपने पिता एस मुरली से प्रेरित थे और उन्होंने ही उन्हें प्रशिक्षित भी किया। एस मुरली, एक पूर्व ट्रिपल जंप एथलीट थे, जिन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। मुरली श्रीशंकर अपने पिता की सफलताओं से भी आगे निकल चुके हैं। वे राष्ट्रमंडल खेल के रजत पदक विजेता हैं।
वहीं, भारतीय हॉकी के दिग्गज ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार, ओलंपिक कांस्य पदक विजेता और विश्व कप विजेता होने के बावज़ूद अपने पिता के विरासत की कसौटी पर खरा उतरने में पीछे रह गए। ध्यानचंद ने भारत के 8 ओलंपिक हॉकी स्वर्ण पदकों में से 3 स्वर्ण पदक हासिल करने में मुख्य भूमिका निभाई थी।
कुछ ऐसे भी उदाहरण मौज़ूद हैं जहां पिता-पुत्र की जोड़ी ने अलग-अलग खेलों में सफलता हासिल की है। हालांकि, ऐसा काफ़ी कम ही देखा गया है।
साल 1952 में पहलवान केडी जाधव की सफलता के बाद, साल 1996 के अटलांटा खेलों में भारतीय टेनिस दिग्गज लिएंडर पेस ने भारत के लिए पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक हासिल कर इतिहास रचा था। उनके पिता वेस पेस, उस भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा थे जिसने साल 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था।
इसके अलावा जीव मिल्खा सिंह ने साल 1998 में यूरोपीय टूर में शामिल होने वाले पहले भारतीय गोल्फर बनकर इतिहास रच दिया और अपने करियर में 20 से अधिक टूर खिताब अपने नाम किए। वे महान भारतीय स्प्रिंटर मिल्खा सिंह के बेटे हैं।
हम नीचे उन पिता-पुत्रों की सूची दे रहे हैं जिन्होंने सफल करियर बनाने के लिए पारिवारिक और व्यावसायिक जीवन के बीच बेहतरीन तरीक़े से संतुलन बनाए रखा।